सविता / शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय / पृष्ठ 1

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तारकनाथ और राखाल केवल तीन महीने के ही साथ-संग से घनिष्ठ मित्र हो गए। जब तीन बज गए और तारक अभी तक नहीं आया तब राखाल के हृदय में घबराहट और बेचैनी पैदा होने लगी। भवानीपुर में आज स्त्रियों की एक सभा होने वाली है। वहां पर बहुत से शिक्षित परिवारों की लड़कियां इकट्ठी होंगी और इस समय राखाल वहां के लिए चल देने को बेचैन होता जा रहा था। जाने के सब इन्तजाम कर चुका था। सफेद कुर्ता, धोती और सिल्क का साफा पलंग पर तैयार रखे थे और पास ही ताजा पॉलिश किया हुआ जूता चमचमा रहा था।

स्टोव पर चाय का पानी जरूरत से ज्यादा गरम हो चुका था, लेकिन तारक अभी तक आया नहीं था। द्वार पर किसी के आने की आहट सुनने के लिए कान अधीर हो रहे थे। सभा में जाने की बेचैनी और मित्र का अभाव इन दोनों मायाचक्रों को बीच इस समय राखाल का हृदय चक्कर काट रहा था। ताला लगा कर जा भी नहीं सकता था।

कई बार द्वार तक गया, सड़क पर भी चप्पल पहनकर हो आया, फिर लौटा और अकेले ही चाय पीने लगा। सोचा- ‘सिर्फ इस प्याले के खत्म होने तक ही इन्तजार करता हूं, फिर चल पड़ूंगा। अब और ज्यादा भी इन्तजार भला क्या करूं ? कौन ऐसी राय लेनी है, अगर जरूरत होती तो साहब वक्त से पहले ही आ धमकते। न होगा तो कल उनके डेरे पर ही जाऊँगा।’ ऐसे विचार, चाय की प्याली होंठों तक पहुँचते-पहुँचते दिमाग में चक्कर काटने लगे।

राखाल अपने को संन्यासी कहता है, क्योंकि वह दुनिया में एकाकी है और वह ठीक तरह से यह अन्दाज भी नहीं लगा सकता कि उसका कुटुम्ब कैसा था और कब किस तरह उसका सम्बन्ध उससे टूट गया ? वह अपने कुटुम्ब के बारे में कुछ बतलाना ठीक नहीं समझता। पटल डांगा में एक किराये के मकान में वह एक कमरे में रहता है। कमरे में कुछ सील होते हुए भी हवा और प्रकाश आता है। राखाल शौकीन तबीयत का आदमी है इसलिए उसके कमरे में एक उम्दा पलंग, मेज, कुर्सी और दो अलमारियां है। पोशाक उसकी सुन्दर ही रहती है। बिजली का पंखा भी उसने अपने कमरे में लगा रक्खा है। गरज यह कि राखाल के पास शौकीनी की चीजों का अभाव नहीं है।

राखाल का काम एक वृद्ध दासी करती है और उसे वह नानी कहकर बुलाता है। वृद्धा उससे स्नेह करती है और बर्तन रगड़ने से लगाकर चीज-वस्तु लाने तक का काम उसी के जिम्मे है। वेतन के अलावा राखाल उसे अच्छा खासा इनाम देता है। सवेरे राखाल लड़कों को पढ़ाता है और बाकी समय सभाओं के लिए देता है। उसका स्थान राजनैतिक न होकर साहित्यिक है। राजनीति का अशान्त वातावरण उसे पसन्द नहीं। वह छोटे दर्जे के लड़कों को ही पढ़ाता है। नौकरी पाने के अपने प्रारम्भिक प्रयास के असफल हो जाने पर अब उसने उस सम्बन्ध में प्रयास करना छोड़ दिया है। साहित्यिक तो वह है, लेकिन किसी पत्र-पत्रिका में उसका कोई लेख दिखाई नहीं पड़ता। रात-रातभर वह जागकर लिखता है, लेकिन फिर उसका वह क्या करता है, यह भेद कोई नहीं जानता। वह किस दर्जे तक पढ़ा है, जब कोई आदमी इस तरह की जानकारी उससे लेना चाहता है तो उसका चेहरा इस तरह का बन जाता है कि मिडिल से लगाकर डॉक्टरेट तक किसी भी डिगरी का अधिकारी उसे समझा जा सकता है। उसकी अलमारियों में काव्य, साहित्य, दर्शन, विज्ञान सभी विषयों की पुस्तकें भरी पड़ी हैं। प्राचीन अथवा वर्तमान, डॉक्टरी हो या विज्ञान- सभी विषयों पर पूर्ण अधिकार के साथ बातें करता है। बड़े-बड़े ग्रन्थों और उनके लेखकों के नाम पूर्ण परिचय के साथ उसे कण्ठस्थ हैं। होमर, स्पेंसर और ड्रक ऑर्थर के काव्यों की तुलनात्मक समालोचना और भारतीय दर्शनों के सामने उनकी तुच्छता का वर्णन जब वह करता है तो तत्वों के स्पष्टीकरण में अपने पूर्ण पाण्डित्य का प्रदर्शन कर डालता है।

बोर-युद्ध का कौन सेनापति था, आदि सब बातें उसके लिए खेल हैं। भारतीय गोलस्टैंडर्ड, रिवर्स कौंसिल और मुद्रा विषयक प्रश्नों पर वह अपनी गम्भीर सम्मति दे सकता है, और देता भी है। यही नहीं, न्यूटन के विचार किस दिन आइंस्टीन के विचारों से मेल खाकर एक हो जाएगें, यह भविष्यवाणी वह बड़े गर्व से करता है। उसकी बातें सुनकर कोई हंस देता है और कोई श्रद्धा से शिष्य हो जाता है। इतना जरूर है कि राखाल के परोपकारी होने में किसी को शक नहीं और यह सभी जानते हैं कि वह दूसरों की भरकस मदद करने में कभी पिछड़ता नहीं।

बहुत से घरों के दरवाजे राखाल के लिए चौबीसों घण्टे खुले रहते हैं। उसे बेगार करने में मजा आता है। बड़ी उम्र वाली स्त्रियां राखाल से विवाह करने के लिए नित्य ही आग्रह करती हैं, लेकिन राखाल इसके जवाब में कान पकड़कर सिर्फ इतना ही कह देता है- ‘‘कुछ और कहिए न ? ऐसी सम्मति मत दीजिए। मैं अपनी आज की हालत में बहुत सुखी हूं।’’ राखाल के हितैषी उसकी इस प्रवृत्ति से बहुत दुःखी हैं, लेकिन उसके इस पागलपन को छुड़ाने के लिए आज तक किसी हितैषी ने यह नहीं कहा- ‘‘भाई राखाल हमने एक सुन्दर युवती तुम्हारे विवाह के लिए ठीक कर दी है। इस विवाह की सभी व्यवस्था हो चुकी है और तुम्हें शादी करनी ही पड़ेगी।’’

हितैषियों में इतना अधिकार कहां था और कोरी सहानुभूति पर राखाल पिघलता भी क्यों ? इसी तरह राखाल अपनी जीवन नौका को खे रहा था। राखाल अकेला है और भविष्य भी उसे इसी तरह दिखाई देता है। वह जानता है कि स्त्रियां उसकी इस कमी को सहानुभूति के साथ अनुभव करती हैं, इसी तरह वह उनके आग्रह को भी पूरी सहानुभूति के साथ स्वीकार करता है, और उनकी बेगारें करने में नहीं पिछड़ता।

चाय भी खत्म हो गई लेकिन तारक अभी तक आया नहीं। राखाल कपड़े पहनकर जैसे ही दरवाजे की तरफ बढ़ रहा था वैसे ही तारक सामने से आता हुआ दिखाई दिया। निकट आने पर राखाल ने कहा- ‘‘क्यों जी, इसी को जरूरी सलाह कहते हैं ?’’ ‘‘क्या नहीं जाना है ?’’ ‘‘जी नहीं मैं तो शाम तक यहीं बैठा रहूंगा।’’ ‘‘लेकिन अभी शाम दूर है, बैठो न !’’

‘‘नहीं मित्र, अब कल सलाह होगी।’’ कहकर राखाल ने साफा गर्दन में डाल लिया। तारक गम्भीर स्वर में बोला- ‘‘तब तो समझिए सलाह-मशविरा नहीं होगा कल तड़के मैं बहुत दूर चला जाउंगा। फिर कभी नहीं, ईश्वर ऐसा न करे, शायद बहुत दिनों तक मुलाकात न हो सके। ’’ ‘‘क्या मतलब ?’’ राखाल ने विस्मति होकर कुर्सी पर बैठते हुए पूछा। मतलब यह कि बर्दवान जिले में एक नये स्कूल की हेडमास्टरी मिल गई है। मुझे वहाँ नौकरी करने के लिए जाना पड़ेगा। ’’ ‘‘किसी प्राइमरी स्कूल में ?’’

‘‘नहीं, हाई स्कूल में।’’ ‘‘तनख्वाह क्या मिलेगी ?’’ नब्बे रूपये महीना और एक छोटा-मोटा घर।’’ ‘‘हो ! हो !’’ करके राखाल हंस पड़ा और बोला-

‘‘यह सब धोखा जान पड़ता है। वह रकम सौ से भी ज्यादा है। क्या दुनिया के और सब विद्वान मर गए जो तुम्हारे पास...’’ ‘‘अवश्य मर गए होंगे। फिर गंवारू गांव है, कौन विद्वान जाने को राजी होगा।’’ राखाल हंस पड़ा और मुसकराते हुए बोला- ‘‘भाई, जाने को राजी क्यों नहीं होगा ? सौ रूपये पर तो आदमी यमराज के यहां भी जा सकता है, बर्दवान की तो बात ही क्या है ?’’ इतना कहकर घड़ी की ओर देखा। तीन बजकर दस मिनट हो गए थे। ‘‘यह सब पागलपन है मित्र ! कल सवेरे विचार करेंगे।

देखूंगा कि उन्होंने क्या लिखा है ? यह साफ धोखेबाजी है। अच्छा; अब तो मैं चलता हूं।’’ कहकर वह उठ खड़ा हुआ। ‘‘मित्र सिर्फ दस मिनट और ठहरो। उन्होंने झूठ लिखा या सच, लेकिन मैं आज रात की गाड़ी से जरूर जाऊंगा।’’ ‘‘क्यों ? क्या मेरी बात पर यकीन नहीं हो रहा है ?’’ तारक ने इसका कोई उत्तर नहीं दिया- ‘‘अगर किसी दिन तुमसे न मिलूं तो दिल अधीर हो जाता है। कुछ आदत सी बन गई है मेरी।’’ तारक ने गम्भीरता से कहा। ‘‘और शायद मेरी नहीं !’’ इतना कहकर राखाल चुप हो गया।