सामूहिक विवाह / नंदनी

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
[[नंदनी ग्यारहवीं कक्षा की छात्रा हैं। ये दक्षिणपुरी में रहती हैं। इनका जन्म सन 1999 में दिल्ली में हुआ। पिछले चार सालों से अंकुर क्लब से जुड़ी हैं। तरह – तरह के रियाज़ों को करना और उनसे उभरती कहानियों को अलग अलग संदर्भों में सुनाना इन्हें बेहद पसंद है।]]

सुबह की करारी धूप सड़क के नुक्कड़ पर फैली हुई है। सभी गाड़ियों के हॉर्न पूरे माहौल में गूंजने लगे। तभी हॉर्न की आवाज़ को चीरती एक ज़ोरदार आवाज़ आई “आप सभी का स्वागत है, यहां आने के लिए आपका धन्यवाद!” गेट का गाजरी व पीला रंग धूप में निखर रहा है। मेले की रातें याद आ गई। उस आदमी की आवाज़ की और ऊंची होने लगी। नीचे ज़मीन पर चारों तरफ़ भूरे रंग की मिट्टी फैली हुई है, जो हवा के साथ मिलकर नाच रही है।

आसमान के नीचे कई परिवारों व लड़कियों के अरमान पूरे होने में अभी वक़्त है। मेहमानों व दुल्हनों की आवाजाही लगी हुई है। क़तार से सोलह पंडाल सजे हुए हैं, जिन पर ‘दुल्हन व दूल्हे’ का नाम लिखा है। उसी के नीचे ‘कन्यादान महादान’, ‘आपका आर्शीवाद चाहिए’ जैसी लाइनें बड़े ही करीने से लिखी हैं। उसी के ऊपर पता, पिता का नाम, माता का नाम – जैसी जानकारियां लिखी हुई हैं। मेहमान दुल्हे के आने का इंतज़ार कर रहे हैं।

तीन तरफ़ से बंद टेंट से बनी जगह कमरे से कम नहीं लग रही है। नीचे लाल रंग का कारपेट बिछा हुआ है। पीछे की तरफ़ ‘कंट्रोल रूम’ भी है, जिसके अंदर पंडित की खातेदारी और खातिरदारी, दोनों की जा रही है। पंडालों के बीच में ‘पूजा कक्ष’ है। दुल्हन, जो अपने घर से बिना सजे आई थी, को सजाने के लिए एक मेकअप टीम भी थी।

नीले व सफेद रंग का लहंगा पहन कर दुल्हन बाहर निकली। उम्र बाईस-तेईस साल की लग रही है। चेहरे पर शर्म के साथ ख़ुशी भी झलक रही है। उसे थामे परिवार की लड़कियां उसे पंडाल की तरफ़ ले चली। दुल्हन कभी चोरी से आंखें उठा पूरे माहौल को देख रही है, तभी उसकी दोस्त कहती है कि आगे चल, यह हमारा पंडाल नहीं है। वह मुस्कुराते हुए बोलती है, “तुम तो मुझे भगाते हुए ले जा रही हो।” तभी उसके बायीं तरफ़ चल रही लड़की अपनी लटों को संभालते हुए बोली, “अभी तो हम घूम सकते हैं!” तभी दुल्हन ने दबे होठों से कहा, “एक आइडिया है, क्यों न हम पंडाल खोजने के बहाने घूम लें।”

सामने की तरफ़ के टेंट से सफेद सा चेहरा बनाकर नीले-सफ़ेद लहंगे में एक लड़की आई, आंखें सुरमे से भरी है। होंठ लाल लिपिस्टिक से सजे हुए, उसी के पीछे-पीछे एक लड़का हाथों में बांसुरी लिए चल रहा है, जिसके सिर पर मोर पंख सजा है। वह पंख चलती हवा के रूख के साथ उड़ता चला जा रहा है। माहौल में कृष्ण भक्ति के गाने सुरीली धुन में बजने लगे। पहले राधा के बोल बजने लगे, “मैं बरसाने की छोरी न कर मोसे बलजोरी…” इसी बोल पर लहंगा पहनी लड़की अपने ठुमके लगाने लगी, उसके पीछे कृष्ण के बोल भी माहौल में पैर पसारने लगे “तोसे बांधूं प्रीत की डोरी, करता खेल नहीं…।”

गाना जैसे ही ख़त्म हुआ तो पूजा कक्ष से एक और राधा-कृष्ण की जोड़ी बाहर निकल आई। गाने के बोल तेज़ आवाज़ में बजने लगे। कैमरा लिए दो आदमी आस-पास को रिकॉर्ड कर रहे हैं। जनता टच स्क्रिन फ़ोन लिए वीडियो बनाने लगी। कृष्ण बिंदास होकर नाचने लगे, बांसुरी को घुमाकर, आँखें मटकाते कभी कूद कर राधा के दायें जाते तो कभी बायें।

पंडालों के सामने सभी के नाम सुनहरे अक्षरों में लिखे थे। पहले पंडाल पर लिखा था ‘सौ0 सागर’ और ‘चि0 रश्मि’। दुल्हन तैयार होकर सिर से पैर तक सजी हुई है। वह शर्माकर अपनी माँ से कह रही है, “मेरा काजल तो नहीं फैला है?” “नहीं बेटा सब ठीक है।” आसपास उसकी बहनें व रिश्तेदार अपने में ही बातचीत कर रहे हैं। अगले पंडाल में पता ही नहीं चल रहा है कि दुल्हन कौन है? तीन-चार लड़कियों ने लाल रंग का जड़ा लहंगा पहना हुआ है। सबके चुन्नी से ढके सिर, काजल से भरी आँखें, लिपिस्टिक से सजे होंठ! तभी एक लड़की से बगल में बैठी तीन-चार लड़कियों बोली, ‘दुल्हा…?’ यह सुन कर बीच में बैठी लड़की खुशी से उछलने लगी। उसके बग़ल में बैठी लड़की ने कहा, ‘दुल्हा अभी तक नहीं आया!’ ‘ओह, अफसोस!’ वही लड़की उसे चिढ़ाने लगी, बीच वाली लड़की ही दुल्हन है। उसका लाल लहंगा जिस पर जड़े सफेद चमकते मोती धूप की रोशनी से अपनी चाँदनी बिखेर रहे हैं।

तीसरे पंडाल में एक लड़की की आँखें पूरी तरह सजी हुई हैं। नीचे लाल व गुलाबी रंग का लहंगा, सफेद सितारों से सजा है। वह कृष्ण भक्ति के चलते गानों पर ठुमके लगाने लगी। शायद यह पहली दुल्हन होगी जो अपनी शादी के दिन भी नाच रही है।

पंडाल में लोगों व दुल्हनों की बातों का शोर सुनाई पड़ने लगा। अंत के पंडाल के पोस्टर पर एक नाम लिखा था- ‘जन्नति ख़ातून’ और ‘अरबाज़ ख़ान’। माइक पर आवाज़ें सुनाई दी “तो वह वक़्त आ गया है, जिसका लड़की वालों को इंतज़ार था। लड़के वाले व दुल्हे गेट के नजदीक आ चुके हैं, कृपया लड़की वाले दूल्हे का स्वागत करने के लिए तैयार हो जाएं!”

मैदान के गेट पर आतिशबाजी की आवाज़ें सुनाई देने लगी। आसमान में जलते बम-पटाखे हल्के-हल्के चमकते दिखाई दे रहे थे। गेट पर बैंड वालों का झुंड न जाने कौन-कौन से साज बजाने में लगे थे। पंडालों के अंदर बैठे सभी मेहमान दुल्हे राजा को देखने व पंडाल में लाने के लिए बाहर निकल आए। पंडालों में थी तो सिर्फ़ दुल्हनें जो अपने होने वाले दुल्हे के लिए पलकें बिछाए बैठी थी।

नज़रें व कान उस बारात की भीड़ में कहीं खो गए। इक्कीस दुल्हनों के इक्कीस दूल्हे बाहर घोड़ी के बढ़ते एक-एक कदम की दूरी को नज़दीक से देख रहे थे। आगे बैंड वाले क़तार में लगे हैं, उनके पीछे पहला दूल्हा गोल्डन पगड़ी पहने है, जिस पर चमकीला गोल हीरे जैसा लगा है। इसी तरह अन्य बीस दूल्हे क़तार में लगे हैं।

भीड़ देख एक पल तो ऐसा लग रहा है कि आज इक्कीस राज्यों के राजा एलान-ए-जंग में अपनी पूरी सेना के साथ जंग करने के लिए बिल्कुल तैयार हैं। बैंड वालों के हाथ में ढोल की जगह भाले, तलवार, धनुष या युद्ध में इस्तेमाल होने वाले हथियार के होने का आभास करा रहे हैं।

ज़्यादातर दूल्हों का चेहरा सेहरे से छुपा हुआ था। एक दूल्हा शेरवानी भी पहना हुआ है। पूरे पंडाल में अकेली बैठी जन्नति काले से कपड़े को सिर से लेकर घुटनों तक ढकी थी। उसकी सुरमा भरी आँखें ही दिखाई पड़ रही थी कि तभी दो औरतें आईं और उसके सामने जा खड़ी हुई। जब वह औरतें वहां से हटी तो देखा कि काले रंग के बुर्के के पीछे गुलाबी रंग की चुन्नी थी जिससे सिर ढका था। गुलाबी रंग के सूट पर छोटे-छोटे चमकीले तारे जड़े हुए थे। वह अपनी आँखें मटकाते हुए यहां-वहां देखने लगी। कुछ ही मिनटों में ख़ाली पंडाल आवाज़ों से गूँजने लगा।

धीरे-धीरे लड़के वालों व मेहमानों का जत्था वहां पहुंचा, तभी भीड़ से एक आदमी दाढ़ी को ताव देते हुए जन्नति ख़ातून के बीच में पड़े पर्दे के साइड में रखी कुर्सी पर जा बैठा। लड़की वाले लड़की की साइड में पहुंच गए और लड़के वाले लड़के की साइड में। भीड़ में सबसे आगे बैठे बुजुर्ग आये और कंधे पर टंगे सफेद थैले को संभालते हुए कुर्सी पर बैठ गए। वह अपने गले में टंगे चश्मे को नाक पर चढ़ाते हुए ठुड्डी से गले तक लटकी दाढ़ी को सहलाते हुए बोले, ‘अरबाज ख़ान’। वह लड़का उनकी तरफ़ देखते हुए बोला, ‘जी काजी हुजूर!’ काजी ने अपने थैले से कुरान शरीफ़ निकाली और उनके हाथ पेज़ पलटने में मशरूफ़ हो गए। एक पेज निकाला जिस पर हिन्दी में बड़ा-बड़ा लिखा था ‘निकाहनामा’ बाकी नीचे की तरफ़ उर्दू के शब्द लिखे थे।

काज़ी चेहरे को ऊपर करते हुए बोले, “मिठास की प्राकृतिक मिठाइयां पेश की जायें!” तभी भीड़ से दो औरतें कान के पीछे पल्लू को टिकाये निकल कर आईं और एक थाल जिस में कई तरह की मीठी चीज़ें तहज़ीब से रखी हुयी थीं, जैसे मिश्री, सौंफ, छोटी इलायची, बादाम आदि। उस थाल को उठाकर काजी के सामने पेश किया गया। तभी काज़ी बोले, “हाज़रीन कुरान के मुआवज़े के मुताबिक आज का यह दिन जश्न मनाने का है। आज के दिन बेटी जन्नति का निकाह बेटे अरबाज ख़ान के साथ हो रहा है। क्या जन्नति को ये निकाह कबूल है?” उनके इतना कहते ही सब उसकी ओर देखने लगे। वह चेहरा नीचे किए हुए बोली, “कबूल है!” “मुबारक हो” लड़की ने निकाह कबूल कर दिया अब अरबाज़ ख़ान से पूछा कि “आपको यह निकाह कबूल है?” “हां” कहते ही लड़के वाले लड़की वालों से गले मिलकर बोले ‘मुबारक हो-मुबारक हो’।

दोनों पक्षों ने हामी भर ली है, अब तो जश्न होना तय है। खामोश माहौल अचानक शोरगुल में तब्दील हो गया, तभी काजी एक औरत से बोले, “इस मौक़े पर कुदरती मिठाई सबको बाँट दी जाए!”

उसके बगल वाले टैंट में वरमाला डाली जा चुकी थी। दूल्हा-दुल्हन के हाथों में तोहफ़े दिए जा रहे हैं। दूल्हे ने सेहरे वाली पगड़ी पहनी है। सफेद रंग की शेरवानी व काली पाजामी पहनी है। उसके बगल में बैठी दुल्हन पिंक रंग की चुन्नी व लाल व पर्पल रंग का लहंगा पहनी है। मंजर को चीरते हुए एक लड़का, जिसके गले में बड़ा सा कैमरा टंगा है, आकर बोला, “चलो टाइम नहीं है मेरे पास, जल्दी दोबारा से माला डालो, फोटो खींचनी है।” उसकी बात सुनकर सबकी बातें थम गई। बातों का माहौल शांत हो गया। तभी एक महिला बोली, “जी यह अच्छा नहीं होगा! एक वरमाला पहना दी तो पहना दी, अब दोबारा नहीं होगा।” इतना कह कर वह रूक गई। फोटोग्राफर भी मानने वालों में से नहीं था। वह बोला, “जी मुझे कुछ नहीं पता, आपको दोबारा माला पहनानी पड़ेगी, हमें सबूत देना है कि पार्टी ने शादी करवाई है। इक्कीस जोड़ों की फोटो चाहिए!” “ओह हो… हमारी फोटो चाहिए, कोई बात नहीं खिंचवा लेते हैं।”

पहले दूल्हे ने दुल्हन की माला उतारी फिर दुल्हन ने दुल्हे के गले से माला उतारी और एक-दूसरे को दोबारा पहनाई। फोटो वाले ने जल्दी से बटन दबाकर दो फोटो खींचें और चला गया।