साहित्यकारों का जमावड़ा रहता था फोर्ट में / संतोष श्रीवास्तव
मुम्बई का फोर्ट इलाका बेहद मशहूर इमारतों के लिए जाना जाता है। यहाँ की डी. एन. रोड (दादाभाई नौरोजी रोड) के नाम से टाइम्स ऑफ़ इंडिया के सामने की सड़क पहचानी जाती है। यह सड़क और विक्टोरिया टर्मिनस तीस पैंतीस साल पहले साहित्यकारों के आकर्षण का केंद्र था क्योंकि तब टाइम्स ऑफ़ इंडिया ग्रुप से हिंदी, अंग्रेज़ी की बेहतरीन साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक पत्रिकाएँ निकलती थीं। धर्मयुग, सारिका, माधुरी, नंदन, ऑनलुकर, इलस्ट्रेटेड वीकली जैसी बड़े सर्कुलेशन की पत्रिकाएँ यहाँ से निकलती थीं और भारत के हर शहर के पाठक वर्ग तक हाथों हाथ पहुँच जातीं। डॉ. धर्मवीर भारती, खुशवंत सिंह, कुर्रतुल एन हैदर, अवधनारायण मुद्गल, कमलेश्वर, कन्हैयालाल नंदन, जैसे संपादकों से मिलना हर नये लेखक के लिए सफलता की सीढ़ी हुआ करता था। मैं भी भारती जी से उसी दौरान मिली थी। वह मिलना मेरी पत्रकारिता और लेखन की इब्तिदा की तारीख़ों का था जब भारतीजी ने मेरी कुल जमा तीन कहानियों को धर्मयुग में प्रकाशित कर मुझे पहचान लिया था कि मैं ही वह लेखिका हूँ जो जबलपुर से पत्रकार बनने आई हूँ। दो महीने बाद ही मुझे लिखने के लिए उन्होंने धर्मयुग में स्तंभ दिया 'अंतरंग' जो तीन साल मैंने लिखा और बेहद चर्चित भी हुआ।
वह बीसवीं सदी का आठवाँ दशक रहा होगा जब फ़िल्मों में गीत और संवाद लिखने के लिए बाक़ायदा नामी गिरामी हस्तियाँ जुटी हुई थीं। साहित्यकारों, शायरों और कवियों का बोलबाला था यहाँ। साहिर लुधियानवी, जांनिसार अख़्तर, शैलेन्द्र, कैफी आज़मी, मजरूह सुल्तानपुरी, प्रदीप तब अपने पूरे निखार पर थे। यहाँ तक कि तब इनके गीतों और साहित्यिक रचनाओं में फर्क करना मुश्किल हो जाता था। ये सारे गीतकार प्रगतिशील आंदोलन और इप्टा से जुड़े थे और तब ट्रेड यूनियन आंदोलन अपने चरम पर था।
तमाम बेहतरीन इमारतों से समृद्ध फोर्ट इलाके का भ्रमण इतिहास के पन्नों को पलटने जैसा है। मराठी पत्रकार संघ की इमारत के सामने हाईकोर्ट बिल्डिंग है जिसकी स्थापना हुए एक सौ छत्तीस वर्ष हो चुके हैं। 14अगस्त 1878 में निर्मित बॉम्बे हाईकोर्ट आज जहाँ है वहाँ कभी मैदान हुआ करता था। रेम्पोर्ट रिमूवल कमेटी के जेम्स टरवशे ने इस मैदान के लिए एक मास्टर प्लान बनाया जिसके अनुसार आज़ाद मैदान और क्रॉस मैदान उत्तर दिशा में, केन्द्रीय हिस्सा ओवल मैदान की तरफ़ और दक्षिण की तरफ़ कूपरेज मैदान। इसके निर्माण के लिए हैदराबाद निज़ाम के यहाँ से तेलुगू कमाठी कामगारों को मुम्बई लाया गया। 18वीं सदी में इन कामगारों द्वारा कई खूबसूरत इमारतों का निर्माण करने में जिनमें यूनिवर्सिटी बिल्डिंग, सेक्रेटेरियट और हाईकोर्ट की इमारत शामिल है योगदान रहा। इस इमारत के निर्माण में 2, 668 रुपए ख़र्च हुए जो तयशुदा रक़म से काफ़ी कम थे। गोथिक शैली में बनी इस इमारत की ऊँचाई 562 फुट है और यह 81 हज़ार वर्गफुटमें फैली हुई है। इमारत का भीतरी हिस्सा लाइम प्लास्टर पत्थर से तैयार किया गयाहै और बाहरी हिस्सा ब्लूशिवरी स्टोन से बना है। इमारत की मुख्य दीवार की सीढ़ियों के पास एक संगमरमर की शिला पर 'वी' और 'आर' लिखा हुआ था पर स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात इसे हटाकर यहाँ पर अशोक स्तंभ के चिह्न को स्थापित किया गया। हाईकोर्ट के मुख्य द्वार के सामने दो प्रतिमाएँ हैं जिनमें से एक न्याय की देवी है। इसके एक हाथ में तराजू और तलवार है और दूसरी प्रतिमा क्षमा दया की देवी है जिसने अपने हाथ सोचने की मुद्रा में जोड़े हुए हैं। इमारत में जानवरों मगरमच्छ, कुत्ते, साँप, बंदर, लोमड़ी को शिल्पकार ने कई जगहों पर कोर्ट की मुद्राओं से जोड़ा है। एक बंदर ने अपनी आँख पर पट्टी बाँधी है और हाथ में न्याय का तराजू और तलवार है। एक लोमड़ी को गले में एडवोकेट वाला बैंड पहने दिखाया गया है। खूबसूरत नक्काशियों और शिल्प में पंचतंत्र और जातक कथाओं के अलावा एडशॉप की कहानियों को भी चित्रित किया गया है। इसके अलावा दो और प्रतिमाएँ हैं जो स्त्रियों की हैं। दोनों साड़ी पहने, सिर पर पल्लू लिए हैं। उनकी वहाँ उपस्थिति का पता लगाना कठिन है।
1977 में मुम्बई आई थी मैं पत्रकार बनने और पूरी तरह से बसने तब फोर्ट, बलॉर्ड एस्टेट घूमते हुए यह अनुभूति नहीं हुई जैसी अब हो रही है। लंदन से लौटकर यहाँ घूमते हुए मुझे लग रहा है जैसे मैं लंदन में ही हूँ। बलॉर्ड एस्टेट को यूरोपीय पुनर्जागरण काल की एडवर्डियन नियोक्लासिकल शैली की सुंदर, आकर्षक और महँगी इमारतों से भरा मुम्बई का आधुनिक रूप से नियोजित पहला कारोबारी परिसर होने का श्रेय हासिल है। यहाँ का हरी भरी और छतनारे दरख़्तों से घिरी चौड़ी चिकनी सड़कों के किनारे एक जैसे रंग, रूप, आकार, शैली और ऊँचाई की इमारतों को देख बरबस मन हो आता है कि काश, हम भी इसमें रहते। यह इलाका समुद्र को पाट कर बनाया गया है। यहाँ कई पेड़ तो सौ साल से भी ज़्यादा पुराने हैं। 22एकड़ में फैले इस इलाके में स्थित इंदिरा डॉक की खुदाई में निकली मिट्टी और पत्थरों से इसका निर्माण किया गया। जॉर्ज विटेट ने इसे पूरा लंदन की तर्ज़ का रूप दिया और इसका नाम मुंबई पोर्ट ट्रस्ट के संस्थापक कर्नल जे. ए. बलॉर्ड के नाम पर बलॉर्ड एस्टेट रखा गया।
कॉस्ट आइरन के पोर्च, पोर्टिको, प्रशस्त लॉबीज़, ऊँची खिड़कियाँ, छज्जे, घुमावदार कोर्निस यहाँ की इमारतों की विशेषता है। इनमें से कई इमारतें 'हेरिटेज' श्रेणी में आती हैं। यह इलाका महान विभूतियों की स्मृति में रखे गये सड़कों के नामों से ही परिचित है। कई जानी मानी कंपनियों के मुख्यालय यहीं हैं। रिलायंस सेंटर, अनिल अंबानी ग्रुप का मुख्यालय यहीं है जिसे मूल रूप से हवेरो ट्रेडिंग कंपनी ने डिज़ाइन किया था। मुम्बई के सबसे पुराने दैनिक अख़बारों में'जाम-ए-जमशेद' यहीं से प्रकशित होता है।
यहाँ कामयाबी की बहुत सारी कहानियाँ बिखरी हुई हैं। बलॉर्ड एस्टेट ने कईयों को फर्श से अर्श तक पहुँचाया है। मुम्बई गोदी बंदरगाह के बिल्कुल क़रीब होने के कारण बलॉर्ड इस्टेट में एक ओर शिपिंग कम्पनियों की भरमार है तो ओरियंट लांगमैन जैसे प्रकाशकों के बिलिंग हाउस और बुक पॉइंट, बुक शॉप जैसी किताबों की दुकानें भी हैं। पत्थरकी ऊँची दीवार और 'इंदिरा डॉक' का प्रवेशद्वार'ग्रे गेट' 'डेड एंड' है।
पोर्ट ट्रस्ट बिल्डिंग पत्थर से बनी है। पहली मंज़िल पर दो खूबसूरत जहाजों के शिल्प नौवहन में दिलचस्पी रखने वाले लोगों को बरबस अपनी ओर खींच लेते हैं। मिंट, न्यू कस्टम हाउस, टाउन हॉल और रिज़र्व बैंक की शानदार इमारतें इसकी पड़ोसी हैं। बलॉर्ड बंदर गेस्ट हाउस ग्रेड वन की हेरिटेज इमारत आज नेवी का मरीटाइम म्यूज़ियम है। बहुत शानदार दिनों का गवाह है बलॉर्ड पियर। 1944 में बंद होने के पहले बलॉर्डपेयर मालवाहक जहाजों और सैनिकों की आवाजाही का मुख्य केन्द्र था। यूरोप और पश्चिमी देशों से आने वाले जहाजी मुसाफिर भी यहीं उतरा करते थे। 1931 में लंदन की गोल मेज कॉन्फ्रेंसमें भाग लेने के बाद महात्मा गाँधी भी यहीं उतरे थे। आज यह मुम्बई आने वाले क्रूज़ पैसेंजरों का टर्मिनल है। यह पोर्ट ट्रस्ट रेलवे का भी गौरवपूर्ण हिस्सा है। बीस और तीस के दशक में पेशावर के लिए फ्रंटियर मेलऔर पंजाब मेल जैसी मशहूर ट्रेनों का यह ठिकाना रहा है और आज भी देश का सबसे बड़ा कंटेनर ट्रैफिक स्टेशन है।
मोदी बे पर बनने वाली पहली इमारत मार्शल बिल्डिंग चार मंज़िला है। ट्रेक्टर, रोड रोलर आकर्षण अस्त्र शस्त्र और शिरस्त्राण धारी ब्रिटेनिया की प्रतिमा। पहली मंज़िल पर कम्पनी को मिले मेडल और पुरस्कारों की ट्रॉफ़ियाँ रखी हैं। सड़क के दूसरे छोर पर सामने है ग्रेशम बिल्डिंग और ग्रैंड होटल। ग्रैंड होटल की ड्योढ़ी के तो कहने ही क्या।
गुज़रे ज़माने में रोज़गार की गतिविधियों की वजह से छत्रपति शिवाजी टर्मिनस के सामने घनी आबादी वाले इलाके को बाज़ार गेट के नाम से जाना जाता था। लेकिन अब सिर्फ़ बाज़ार ही रह गया है। कोठारी कबूतरखाना और वहाँ स्थित प्याऊ... ग्रे स्टोन से बना बाज़ार गेट पुलिस स्टेशन और ब्लैक स्टोन से बना ब्लैकी हाउस पुराने ज़माने की कहानी कहते नज़र आते हैं। कुछ इमारतें आज भी मौजूद हैं। जिनके अगवाड़े, मंगलूर टाइल वाली छतों, लकड़ी और कास्ट आयरन के बारीक काम वाले छज्जों, बरामदे और ओटलों में पुरानेपन की छाप अब भी मौजूद है। ज़्यादातर पारसी कारोबारियों के गौरवपूर्ण अतीत से यह इलाका जुड़ा है। हालाँकि रेडीमेड कपड़े, पोशाकें डिज़ाइन करना और सीना आदि का काम पारसी आज भी यहाँ कर रहे हैं और पारसी परम्परा को सहेजे हुए हैं।
बाज़ार गेट में ऐसी इमारतें भी हैं जिनकी उपयोगिता अब बदल गई है। मसलन, यूरोपियन जनरल हॉस्पिटल अब सर जमशेदजी स्कूल हो गया है। पुलिस कोर्ट लेन में अब पुलिस नहीं है। बोमनजी होरसोमजी वाडिया फाउंटेन और क्लॉक टॉवरपर पारसियों के लिए पवित्र मानी जाने वाली अग्नि के चिह्नबने हैं। भीतर पारसी संत की प्रतिमा है जिनकी स्मृति में ये बनाया गया। बाज़ार गेट लक्ष्मी वेंकटेश मंदिर, कोट शांतिनाथ जैन देरासर, गोदावरा गमाडिया अगियारी, मानेकजी नौरोजी सेठ अगियारी, मोदी स्ट्रीट मस्जिद जैसे धार्मिक स्थानों और 'जन्मभूमि प्रवासी' , 'जामे जमशेद' , 'समाचारदर्पण' जैसे अखबारों के कार्यालयों और स्ट्रेंड बुक स्टोर व बॉम्बे स्टोर जैसी दुकानों के लिए भी जाना जाता है। पारसीवाडे यहाँ की ख़ास पहचान थे। यहाँ के ईरानी होटल आईडियल रेस्त्रां की चाय, बन मस्का और पुडिंग खाने के शौकीनों की ज़बान पर आज भी बसी है। खूबसूरत सजे धजे पैनलों वाले यूनाइटेड इंडिया और बॉम्बे म्यूचुअल लाइफ़ जैसी इमारतें यहाँ की शान हैं। तीस के दशक में बनी यहाँ की ज़्यादातर कारोबारी इमारतों का स्थापत्य आर्ट डेकोऔर भारतीय शैलियों का मिश्रण है। लक्ष्मी बिल्डिंग को विशेष बनाता है देवी लक्ष्मी की प्रतिमा वाला शानदार क्लॉक टॉवर। बहुत आकर्षित करता है हाथियों वाला प्रस्तर शिल्प भी।
बाज़ार गेट की चक्करदार गलियों और सड़कों में तकरीबन सभी से कोई न कोई दिलचस्प कहानी जुड़ी है और लगभग सभी का नाम उनमें रहने वाले बहुसंख्यक समुदाय के नाम पर है।
फोर्ट में एक अद्भुत इमारत है सेंट जॉर्ज़ लॉज़। एंटीक फर्नीचर, पूर्व ग्रैंडमास्टर्स के सुंदर फोटोफ्रेमों व संगमरमरी शिलापटों से भरे सुंदर कमरों, अहातों, सीढ़ियों, बरामदों और काली सफेद टाइल्स वाले कार्पेट से गुज़रो तो सब कुछ बड़ा रहस्यमय लगता है। अंदर यानी भीतरी हिस्सों में गीता, बाइबिल, कुरान जैसे धर्मग्रंथों के साथ मेजों पर रखे हथौड़ों की घन-घन, कुर्सियों पर बांकी भूषा में सजे लोगों के कानों से टकराकर लॉज की दीवारों को टकोरती-सी लगती है। यह इमारत है ही रहस्यमयी संस्था फ्रीमैसंस का कार्यालय। संस्था की तह तक जाकर बखान करना मेरे लिखने का उद्देश्य नहीं पर जो कुछ देखा, समझा उससे यही जाना कि जाति-पांति और धर्म के बंधनों से मुक्त, भाईचारे पर आधारित यह संस्था सबसे पुरानी वैश्विक सेकुलर सोसाइटी है जिसके विश्व भर में 45 लाख सदस्य हैं और भारत में 22 हज़ार। इसका उद्देश्य है जनता में फैली ग़लतफहमियों को दूर करना।
ग़लतफहमियाँ, अँधविश्वास, धार्मिक उन्माद कभी किसी काल में न तो कम हुए हैं, न दूर हुए हैं और न होंगे। यह सब मनुष्य की सोच और मानसिकता पर निर्भर है। मुम्बई में प्रतिदिन हज़ारों किलो हरी मिर्च और नीबू इसी अंधविश्वास पर बरबाद होते हैं। मुम्बई की हर दुकान, टैक्सी, बस, कार, ऑटो में सात मिर्च और एक नीबू का गुच्छा ज़रूर लटकता नज़र आयेगा जिसे नज़र न लगने के प्रतीक या टोटके के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
आईरिश पत्रकार बेंजामिन ज्यू हार्निमन जिन्होंने अंग्रेज़ी शासन के विरुद्ध भारतीयों का साथ दिया और आज़ादी के लिए आवाज़ बुलंद की, उनके नाम पर एलफिंस्टन सर्कल का नाम बदलकर हार्निमन सर्कल रख दिया गया। हार्निमन सर्कल बनने के पहले टाउन हॉल के ठीक सामने के गोलाकार चक्कर ने बॉम्बे ग्रीन, सेंट्रल ग्रीन सर्कल और एलफिंस्टन सर्कलजैसे स्थान होने के कारण शहर की महत्त्वपूर्ण घोषणाओं की मुनादी और अहम अवसरों पर फौजी कवायद (परेड) यहीं होती थी। नज़दीक ही बाज़ार गेट है जहाँ से तोपों की सलामी के साथ ये परेड होती थी। अगियारी और चर्च पास होने से पारसी और ईसाई समुदायों की सामाजिक गतिविधियों का यह सबसे प्रमुख अड्डा था।
हार्निमन सर्कल 1860 में बना था। इसके खूबसूरत बगीचे में नायाब क्रोटन और दुर्लभ पेड़ पौधे हैं। फूलों से ये बगीचा महमहाता रहता है। यहीं सेंट थॉमस कैथेड्रल है। सन 1838 में बने गोथिक कला के इस कैथेड्रल की तारीख़ों का कुछ ऐसा करिश्मा है कि 25 दिसम्बर क्रिसमस के ही दिन यहाँ पहली प्रार्थना की गई. चैपल 1860 में बना। प्रवेश द्वार पर गोथिक कला का फव्वारा है जिसका डिज़ाइन इंग्लैंड में सर गिल्बर्ट स्कॉट ने तैयार किया।
19वीं सदी में जब कपास और कपड़ा मिलों के व्यापार की जड़ें गहरी हुईं तो बॉम्बे ग्रीन की चहल पहल और बढ़ी और सुहानी शामें बैंडकी आवाज़ से मुखर हो उठीं। उन दिनों यहाँ एक इमली का छतनारा पेड़ हुआ करता था जिसके नीचे छोटा-सा बाज़ार लगता था। यह जगह टेमरिंड लेन के नाम से मशहूर थी। इसके पश्चिम में एक बरगद का पेड़ था। वहीं कुएँ प्याऊ और जानवरों को पानी पिलाने के हौज आज भी खण्डहर के रूप में मौजूद हैं।
देश के सबसे पुराने अखबारों में से एक 193 साल पुराना "बॉम्बे समाचार" 1935 से यहाँ स्थित रेड हाउस से प्रकाशित हो रहा है जो सचमुच रेड हाउस है क्योंकि उसकी दीवारें लाल ईंटों की हैं। हार्निमन सर्कल की अपोलो स्ट्रीट 'बॉम्बे समाचार' मार्ग के नाम से जानी जाती है। इसी से लगी बैंक ऑफ़ इंडिया की बिल्डिंग अपनी गुंबद के कारण खूबसूरत लगती है तो यूनियन बैंक की बिल्डिंग आर्टडेकोकलेवरके कारण और इलाहाबाद बैंक का आकर्षण है उसका सुंदर काष्ठवर्क। स्टेट बैंक की बिल्डिंग पत्थर से बनी है। बैंक ऑफ़ बड़ौदा भी खूबसूरत बिल्डिंग में सिमटा है।
जेम्स मैकेंटॉश द्वारा 26 नवम्बर सन 1804 में स्थापित एशियाटिक सोसाइटी ऑफ़ इंडिया आज भी पूरे फोर्ट इलाके में एक बड़े लैंडमार्क के रूप में प्रख्यात है। यह प्रमुख रूप से उच्च शिक्षित नागरिकों की आवाजाही चहल पहल से आबाद रहता है। यहाँ भारत की आज़ादी की कई योजनाएँ बनीं जिन्हें साकार रूप दिया गया। इसइमारत में सम्राट कुमारगुप्त के समय के सोने के सिक्के और छत्रपति शिवाजी महाराज द्वाराचलाए गये सिक्कों समेत कुल 11829 अनमोल सिक्कों का संग्रह है। इसके अलावा देश की कई बेशकीमती पाँडुलिपियाँ सहेज कर रखी गई हैं और हज़ारों दुर्लभ किताबों का संग्रह किया गया है जिनमें से पंद्रह हज़ार किताबों को अति दुर्लभ श्रेणी में रखा गया है।
फोर्ट एरिया में सिद्धार्थ कॉलेज ऑफ़ लॉ है, जे. एन. पेटिट लाइब्रेरी है, दावूडी बोहरा एडमिनिस्ट्रेटिव ऑफ़िस और खादी भंडार है। डी. एन. रोड स्थित खादी भंडार का 'भारतीय बनो, भारतीय वस्तुएँ ख़रीदो' का नारा बुलंद करने में बहुत बड़ा हाथ था। अंग्रेज़ी कपड़ों का बहिष्कार करते हुए भारतीयों ने देशी कपास और देशी चरखे से खुद के बनाए धागों और उन धागों से खादी के कपड़ों को बनाकर इस्तेमाल किया था और खादी भंडार में उसकी बिक्री शुरू हुई थी। उस समय खादी से बने कपड़े और सफेद... गाँधी टोपी देश में पहले असहयोग आंदोलन का माध्यम बनी थी। बाद में गाँधी टोपी आज़ादी का प्रतीक बन गई. पंडित जवाहरलाल नेहरु जब जेल में थे तब उन्होंने अपनी बेटी इंदिरा की शादी के लिए गुलाबी रंग की खादी की साड़ी यहीं से ख़रीदी थी। आज भी खादी भंडार में प्रवेश करते ही इतिहास मानो साकार हो उठता है। कभी इस विशाल भंडार में आज़ादी के मतवालों और स्वदेशियों का जमघट लगा रहता था लगता है मानो हम भी उस जमघट का एक हिस्सा थे।
फोर्ट स्थित क्रेफ़र्ड मार्केट मुम्बई का बेहद व्यस्त रहने वाला बाज़ार है। जिसे अब महात्मा ज्योतिबा फुले मार्केट कहते हैं। 72000 स्क्वेयर यार्ड्समें फैले इस बाज़ार का डिज़ाइन विलियम एमर्सन ने तैयार किया। 1869 में यह लोगों के लिए खोला गया। इसका लम्बा चौड़ा इतिहास है। मुख्य बात यहाँ की यह है कि दुनिया की कोई चीज़ ऐसी नहीं है जो यहाँ न मिलती हो। बाज़ार में दो खूबसूरत फव्वारे हैं जो आर्किटेक्ट का बेहतरीन नमूना हैं। इसी के सामने 1896 में बना गोथिक कला का मुम्बई पोलीस कमिश्नर ऑफ़िस है। फिर म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन ऑफ़ ग्रेटर मुम्बई की बिल्डिंग है।
सेंट ज़ेवियर्स कॉलेज में भारतीय इतिहास, संस्कृति का संग्रहालय भी है जोइसके प्राँगण में है। इसे बॉम्बे लोकल हिस्ट्री सोसाइटी कहते हैं। यहाँ एस्ट्रॉनॉमी एसोसिएशन है जो संस्था के सदस्यों और विद्यार्थियों के लिए है। बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी शहीद भगतसिंह रोड पर एक ऐसा ग़ैर सरकारी संसथान है जो वन्यजीवों की रक्षा के लिए कार्य करता है। इसका हेडक्वार्टर हार्नबिल है। इसी की एक शाखा कनवरसेशन एजुकेशन सेंटर है जहाँ ऑडियो विज़ुअल शो होते हैं।
मिंट रोड पर मुल्लाजी जेठा फाउंडेशन है जो 1892-93 में बना। वैसे तो अब खंडहर ही शेष रह गये हैं इसके पर फिर भी देखने लायक हैं-'खंडहर बता रहे हैं, इमारत बुलंद थी।'
बलार्ड गेट म्यूज़ियम में मरीन यानी समुद्री सेना (नेव्ही) से सम्बन्धित तस्वीरें और एयरक्राफ्ट्स (हवाई जहाज) हैं। नेवी के अपने हेलिकॉप्टर्स और हवाई जहाज का बेहतरीन संग्रह है। इस म्यूज़ियम के सामने प्रथम विश्वयुद्ध शहीद स्मारक है। साथ ही एक ब्रिटानिया रेस्टॉरेंट है जो सिर्फ़ लंच के लिए खुलता है और करी पुलाव तथा पारसी व्यंजनों के लिए प्रसिद्ध है।
ओल्डटाउन हॉल और सेंट्रल लाइब्रेरी 1930 में बनकर तैयार हुई थी। इस ग्रीस रोमन शैली की खूबसूरत इमारत में आठ डोरिक कॉलम्सहैं। पत्थरों से बनी कुल तीस सीढ़ियाँ हैं। सेंट्रल लाइब्रेरी में दाते डिवाइन कॉमेडी की दो मूल पांडुलिपियाँ हैं। पाँच बड़े-बड़े कंटेनर्स में मुम्बई के पास सोपर्ड में मिली बौद्धकालीन दुर्लभ वस्तुएँ संग्रहित हैं।
पुर्तगालियों के शासनकाल मेंबैरक के लिए बनाई गई विशाल इमारत जो पूरी तरहपत्थरों से बनी है। 1656 मेंईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों में यह आई. अबयह इमारत ओल्ड कस्टम हाउस के नाम से जानी जाती है। अब यहाँ कलेक्टर्स ऑफ़िस और लैंड रिकॉर्ड्स ऑफ़िस है। पत्थरों से बनी होने के कारण यह इमारत गर्मियों में भी ठंडक देती है।
कावसजी जहाँगीर हॉल को अब नेशनल गैलरी ऑफ़ मॉडर्न आर्ट कहते हैं। यहाँ अलग-अलग प्रकार की चित्र प्रदर्शनियाँ होती हैं और प्रदर्शनी के लिए एडमिशन फीस भी लगती है।
डेविडससून ने 'नेस्ट एलियाहू सायनागौंग' बनवाया। हालाँकि उस वक़्त तक यहाँ कम संख्या में ही ज्यू थे लेकिन किसी समय उनकी संख्या अधिक होने के कारण यह पूजा घर और मकबरे बनवाए गये। सरडेविड ससून ने बगदादी यहूदियों के लिए भायखला और चिंचपोकली के बीच रेल पटरियों से सटी कब्रगाह बनवाई हैं। कब्रिस्तान के बीच दो छोटी सफेद गुम्बदनुमा इमारतें हैं डेविड ससून और उनकी पत्नी लेड राशेल के मकबरे। उनके पुत्र सर अल्बर्ट ससून थोड़ी ही दूर एक अन्य कब्र में चिरनिद्रा में सोए हैं।
बगदादी शासकों के अत्याचारों से त्रस्त होकर इराक से भागे सर डेविड ससून को मुम्बई ने शरण दी थी। इसे वे भूले नहीं और मुम्बई में महज़ 32 वर्ष के अपने प्रवासकाल में बैंकिंग से लेकर अफीम व कालीनों की तिजारत, तेल व कपड़ों की मिलें और दूसरे उद्योगों से देश विदेश में जो अकूत दौलत उन्होंने कमाई उसका एक बड़ा हिस्सा मुम्बई वासियों के कल्याण के ख़र्च किया। फोर्ट, कोलाबा, भायखला और दूसरी जगहों पर उनके बनाए स्कूल, अस्पताल, प्रार्थनास्थल, अनाथालय, संग्रहालय, महल, उद्यान, लाइब्रेरी और गोदियों ने उनकी यशगाथा को अमर कर दिया। गेटवे ऑफ़ इंडिया, प्रिंस ऑफ़ वेल्स म्यूज़ियम, डेविड ससून लाइब्रेरी, रानीबाग उद्यान, डॉ. भाउजी लॉड म्यूज़ियम, मसीना अस्पताल, उनकी ही भेंट है। इनमें से कुछ को अब रखरखाव की ज़रुरत है। वर्ल्ड मोन्यूमेंट्स फंड ने इसकी मरम्मत के लिए 60 लाख रुपए दान में दिए हैं बाकी 60 लाख यहूदियों ने तथा अन्य दानवीरों ने चंदा कर इकट्ठा किये हैं। मरम्मत के अभाव में हेरिटेज ग्रेट-2 केनेथ इलियाहू जैसे कुछ सिनेगॉग को शीघ्र ही सँवारना होगा।