सुनंदा की डायरी / सुमित की डायरी से-2 / राजकिशोर

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आदमी और आदमी के बीच वही रिश्ता सही है, जिसमें झूठ की जरूरत न हो। लेकिन क्या कोई रिश्ता ऐसा हो सकता है जिसमें झूठ की वास्तव में जरूरत न हो?

हम हमेशा अपने लिए झूठ नहीं बोलते, अकसर दूसरों के लिए झूठ बोलते हैं, ताकि उन्हें कष्ट न हो।


दूसरे नरक हैं।

लेकिन उनके बिना

क्या हम किसी स्वर्ग की

कल्पना कर सकते हैं?



जीवन जीने का सामान जमा करने में ही हम इतनी उम्र - और ऊर्जा - गँवा देते हैं कि जीवन को जीने का मौका ही नहीं आ पाता।


कहते हैं, रोम एक दिन में नहीं बना था। ठीक, लेकिन क्या उसका विध्वंस भी एक दिन में हुआ था? जिंदगी के बारे में भी यह उतना ही सच है।




तुम जिससे प्रेम करते हो, जरुरत पड़ने पर क्या उसका मूत्र पी सकते हो और मल खा सकते हो? अगर नहीं, तो तुम उससे प्रेम नहीं करते ।


जनमत दुनिया की सबसे मलबूत तानाशीही है । यह वह सत्य है जो झूठों को मिला कर बनता है ।