सुबह की लाली / खंड 1 / भाग 15 / जीतेन्द्र वर्मा

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प्रो0 रवींद्र कुमार पांडेय बड़े परेशान दिख रहे हैं। उनकी एकलौती बेटी अनिता आज एक सप्ताह से बिना किसी से कुछ कहे अनुपस्थित है। पहले सोचा कि कहीं किसी रिश्तेदार के यहाँ चली गई होगी। सब जगह पूछ लिया पर कहीं पता नहीं चला। दंगा हो जाने से लोगों का ध्यान अनिता के अनुपस्थिति की ओर नहीं गया। वे अनिता के बारे में ही सोच रहे हैं कि

ट्रिन, ट्रिन, ट्रिन, ट्रिन, ट्रिन............

“हलो”

“पापा!”

“अनिता बेटी! कहाँ हो तुम?”

आश्चर्य और खुशी से मिश्रित स्वर निकला प्रो0 पांडेय का।

“पापा! मैंने एकराम से शादी कर ली है, मैं जानती हूँ कि इसे आप कभी स्वीकार नहीं करेंगे। इसीलिए मैंने आपको नहीं बताया, मैं जहाँ हूँ खुश हूँ। आप मेरी “चिंता नहीं करें।”

और फोन कट गया।

क्षितिज पर प्रातः की लालिमा बिखर चुकी है। सवेरा हो चुका है।

सुबह की लाली खंड 1 समाप्त। खंड 2 के लिए आगे बढ़ें।