सुबह की लाली / खंड 2 / भाग 13 / जीतेन्द्र वर्मा

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लोढ़ेवाली आंटी चालू हैं-

“यहाँ तो बच गया। अब भगवान के यहाँ से बच के दिखाओ तो। ऊ इसका चेलवा एस0 पी0 इसको बचा लिया। वह भी टाइट एस0 पी0 बनता है। सत्यवादी हरिश्चंद्र का नाती! और बेटी के हत्यारे को बचाते फिरता है। दोनों के देह में पिलुआ पड़ेगा। बड़ा मंदिर बनवाते फिरता है और करनी.............. बाप रे बाप .............. नाली क्या, गुहकीड़वा से भी गया गुजरा है ई सब।”

प्रो0 पांडेय के एक शिष्य एस0पी0 था। असल में वह शिष्य कम और प्रो0 पांडेय की संस्था से अधिक जुड़ा था। अनिता के मरने के बाद थाना पुलिस जाँच करने घर पहुँच गई थी। प्रो0 पांडेय की तो कंप-कंपी छुट रही थी। काँपते हुए एस0पी0 फोन लगाया। एस0पी0 ने तत्काल सारे मामले को अपने हाथ में ले लिया और अपने देख-रेख में बिना पोस्टमार्टम के लाश जलवा दी। चलते समय उसने प्रो0 पांडेय से धीरे से कहा-

“कुछ करना हो तो मुझे पहले खबर कर दिया कीजिए।”

रोवाँ-रोवाँ दुआ दे रहा था प्रो0 पांडेय का। कुछ बोले नहीं सिर्फ सिर हिलाया।

लोढ़ेवाली आंटी चाहती थी कि प्रो0 पांडेय की बातों पर कोई विश्वास नहीं करे। यह सभी जान जाएँ कि उसने ही बेटी की हत्या की है। वह अपने से नहीं मरी।

दोपहर ढलते-एलते यह साफ हो गया कि लोढ़ेवाली आंटी को अभियान सफल हो रहा है। प्रो0 पांडेय ने जितने लोगों से कहा होगा उससे अधिक महिलाओं से लोढ़ेवाले आंटी ने अपनी बात कही।

प्रो0 पांडेय ने एक आदमी भेजकर चुप रहने को कहा। नहीं तो जेल भेजवा देने की धमकी दिलवाई। पर लोढ़ेवाली आंटी नहीं मानी। वे दुगुना जोश में गरियाने लगी-

“मैं डरने वाली नहीं हूँ। बेटीमरवा! बुलाव अपने कनफुकवा एस0पी0 को। मैं जेल जाऊँगी रे। .........”

नई-नई गालियाँ बनाने में लोढ़ेवाली आंटी का कोई जवाब नहीं है। उन्होंने प्रो0 पांडेय को कई नई-नई गालियाँ दी। कुछ लोग इसका आनंद लेते, कुछ महिलाएँ मन-ही-मन सीखती।

प्रो0 पांडेय ने हवा में धमकी नहीं दी थी। उनका मनोबल बढ़ा हुआ था। एस0पी0 अपना आदमी है तो डर क्या है! उन्होंने एस0पी0 को फोन किया और सचमुच एक घंटे के भीतर ही एस0पी0 पीली बत्ती भुकभुकाता हुआ आंटी के घर पहुँच गया। पर लोढ़ेवाली आंटी डरी नहीं। वे उलझ गई। सारी स्थिति-परिस्थिति समझ कर वह चुपचाप वापस जाने में ही भलाई समझी। चलते समय प्रो0 पांडेय को समझाया-

“इससे उलझना ठीक नहीं है। मामला रफा-दफा हो ही गया। अब चुपचाप रहिए। बोलते-बोलते उसका मुँह दुःख जाएगा। अपने चुप हो जाएगी। इसे थाना ले जाने पर और विवाद होगा। ........ वैसे भी सारे मुहल्लेवासी आपके खिलाफ हैं।”

उधर लोढ़ेवाली आंटी चिघाड़ रहीं थी-

“अब भेजो जेल! मैं चुप नहीं रहूँगी। बेटी को मार डाला। कौन नहीं जानता। रोज कसाई की तरह मारता था। कई गुंडो को पीछे लगा रखा था कि कहीं फिर भाग न जाए। गुंडो को भाई कहता था। ...... मुझे डराने चला है।”

चिल्लाने के मारे उनका गला बझ गया। पर वे पूरा जोर लगा कर बोले जा रहीं थी-

“ हिंदू एकता की बात करता है! घर में तो एकता हुई नहीं। कादो सबको एक करेगा, हत्यारा! .......”

मुहल्लेवासियों को सुना कर कहती-

“हम भले जेल जाएँ बाकिर ई भँडुववा को नहीं छोड़ेंगे। ......”

सभी उनकी हिम्मत की दाद दे रहे थे।

समाप्त।