सुबह की लाली / खंड 2 / भाग 12 / जीतेन्द्र वर्मा

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“पापा झूठ बोल रहे हैं। एकराम मुझे बहुत प्यार करता है।”

“पर तुम्हारे पापा तो कहते हैं कि एकराम ने बेटी को छुआ भी नहीं है।”

“वे लबार हैं। एकराम से मुझे सात साल का बेटा है।........ मेरा बिना खाता भी नहीं है।”

प्रो0 रवींद्र कुमार पांडेय सबसे कहते फिरते हैं कि वह मलेच्छ मेरी बेटी को क्या गंदा करेगा। मैंने गुप्त रूप से काशी के पंडितों से कई यज्ञ करवाए थे जिसके प्रभाव से एकराम उसे छुता तो जल कर भस्म हो जाता।................. याद नहीं है अशोक वाटिका वाली घटना। रावण ने हर तो लिया सीता को पर छू पाया! जब छूने जाता जलने लगता। तुलसी बाबा ने लिखा है-तृन धरि ओठ कहत वैदेही .................। मेरी बेटी सती है। उसकी तरफ जो आँख उठाकर देखेगा जल कर भस्मे हो जाएगा। सती है मेरी बेटी, सती। ई मत समझिएगा लोग कि मेरी बेटी को कुछ हो गया है।

प्रो0 पांडेय रावण द्वारा सीता को नहीं छू पाने की बात किसी-न-किसी बहाने लोगों को बताते। एक दिन सबको टी0वी0 पर रामायण का अशोक वाटिका वाला प्रसंग दिखाया। जब रावण जबरन सीता से विवाह करना चाहता है तो सीता तृन धरि ओठ कहत वैदेही................. कहती है। प्रो0 पांडेय जोर-जोर से बोलते हैं-

“सती है, सती! छुओ न थोड़ा। छूते जल जाओगे। सती के प्रताप का क्या कहना है। सती के प्रताप से तो सभी हारते हैं।

दुर्गा पूजा में हर साल रावण-वध का प्रसंग मंचित होता था पर जब से अनिता आई है तब से अशोक वाटिका वाला तृन धरि ओठ कहत वैदेही वाला प्रसंग मंचित होने लगा है। इसके पीछे प्रो0 पांडेय का जोर है। वे दिन-रात सती का प्रताप बखानते फिरते हैं। शास्त्र-पुराण से लेकर न जाने कहाँ-कहाँ से सती स्त्रिायों के चमत्कार की कथा ऊपर कर लोगों को सुनाते। वे कहते हैं कि एकराम तो मेरी बेटी को छू तक नहीं पाया है। वह एकदम पवित्र है। बेटेवाली बात तो सुनकर ही वे भड़क जाते हैं।

उधर अनिता घूम-घूमकर कहती कि-

“इसमें अपवित्र होनेवाली क्या बात है। सेक्स करने से पुरुष अपवित्र नहीं होता तो स्त्री कैसे होगी।................. और फिर हम दोनों पति-पत्नी हैं। मैं तो एकराम से प्यार करती हूँ। वह भी मुझे बहुत चाहता है।”

पीछे-पीछे अनिता की माँ उसे गरियाती-

“अरे सतभतरी। अब से भी तो चुप रह। यह सब तेरे लिए ही तो हो रहा है। दिमाग में गूह भरा है क्या! चुपचाप रह। तेरे पापा सब ठीक कर लेंगे । ”

अनिता लड़ने के लिए तैयार हो जाती-

“क्यों चुप रहूँ। मेरी शादी एकराम से कराओ, नहीं तो मैं फिर चली जाऊँगी।”

“फिर एकराम का नाम लिया तो काट कर रख दूँगी।........ जहाँ कहा जा रहा है वहाँ चुपचाप शादी कर ले। तेरे मामा ने एक लड़का ठीक किया है।”

“उससे तुम शादी कर लेना माँ । ”

रड उठा कर मारने दौड़ी अनीता की माँ। घंटो गालियाँ देती रही। रोती रही। उधर अनिता हँसते हुए दौड़ती-कूदती रही। अनिता का कहना था कि वह एकराम के साथ ठाठ से दिल्ली में रहती थी। उसके पापा खोजते-खोजते वहाँ पहुँच गए। कई बार गए। सप्ताह-सप्ताह भर रह कर आते। दोनों को विश्वास दिलाया कि वे इस शादी को हृदय से स्वीकारते हैं। उन्हें सिर्फ समाज का भय है। एकराम अच्छा लड़का है। बेटी जब खुश है तो वे भी खुश हैं। शुरू में उन्हें जरूर डर था। कई लड़के बाद में लड़की को छोड़ देते हैं, बेच देते हैं पर अब तो संतुष्ट हैं।

वे अपनी बात कई-कई बार कहते। मोबायल पर सबको बताते कि वे अपने बेटी-दामाद के यहाँ आए हैं। वे अनीता-एकराम से कहते कि उन्हें उनकी शादी पर कोई आपत्ति नहीं है। वे तो सिर्फ इतना चाहते हैं कि दोनों की शादी को सामाजिक स्वीकृति मिले।

वे दोनों भी सामाजिक स्वीकृति चाहते थे। पापा ने इसका ऊपाय बताया कि दोनों की शादी फिर धूमधाम से हो, परंपरागत तरीके से। वे कन्यादान करेंगे। कन्यादान के बिना उन्हें मुक्ति नहीं मिलेगी।

मैंने आपत्ति की थी-

“इस पाखंड की क्या जरूरत है पापा।”

“तुम नहीं समझोगी बेटी! धूमधाम से बेटी की शादी के बिना दुआर नहीं शोभता। मेरा दुआर कैसे शोभेगा? और फिर कन्यादान महादान है। इसके बिना मुझे मुक्ति कहाँ मिलेगी।................. अब तो मैं चार-पाँच साल का मेहमान हूँ।”

रोने-रोने लगते पापा। उनकी बड़ी चाह थी कि सबके सामने बेटी को विदा करे। सीना तान कर रहें। वे सीखा-पढ़ा कर दिल्ली से बुला लाए। हरदम कहते रहे कि जल्दी ही शादी हो जाएगी।

यहाँ आने के बाद उसे लगा कि पापा की नियत ठीक नही है। पहले कहा कि तुम एकराम के बारे में किसी को मत बताना, बेटे की बात ही भूल जाओ। बाद में मैं शादी कर दूँगा। बाद में कहने लगे एकराम को भूल जाओ। उसमें क्या रखा है। उससे अच्छे लड़के से मैं शादी कर दूँगा। सुखी रहोगी।

प्रो0 पांडेय तो यह सब मानते ही नहीं हैं। वे कहते हैं कि काशी के पंडितों से उन्होंने कई यज्ञ कराये जिसके मंत्रों के प्रभाव के कारण वह खींची घर चली आई। उसका दिमाग अभी ठीक नहीं है। मुसलमानों ने कोई मनतर मारा होगा। मैं काशी के पंडितों से फिर यज्ञ करा रहा हूँ। अनिता का दिमाग भी ठीक हो जाएगा। मंत्रों में तो अमोघ शक्ति होती है। मंत्र-शक्ति से ही दुनिया चलती है।

उनके यहाँ किसी ने यज्ञ होते नहीं देखा। हाँ अनीता की पिटाई, उसके रोने चिल्लाने और गाली-गलौज की आवाज सबने सुनी। कबूतरी की माई कह रही थी कि मुँह में कपड़ा ठूँस देते हैं और रस्सी से हाथ पैर बाँध कर कई-कई दिन रखते हैं।

“बड़ा कसाई है रे पंडितवा।”

“एकदम नहीं। सब गलती बुचिया का है। वे अच्छे घर में शादी लगा रहे हैं पर वह तो एकराम, एकराम का जप लगाए है।

मुँह में कपड़ा ठूँसकर, हाथ पाँव रस्सी से बाँध कर प्रो0 पांडेय पूछते-

“मैं जहाँ कहता हूँ, वहाँ शादी करेगी?”

आँखों में इंकार का भाव लाती अनिता। और फिर पीटने लगते प्रो0 पांडेय।