सुबह की लाली / खंड 2 / भाग 5 / जीतेन्द्र वर्मा
“मम्मी! तुम मारती हो तो नहीं दुखता है पर पापा मारते हैं तो बड़ी दुखता है।”
“मम्मी! तुम मारती हो तो नहीं दुखता है पर पापा मारते हैं तो बड़ी दुखता है।”
“मम्मी! तुम मारती हो तो ................................. ”
-अनिता डायनिंग स्पेश में घूम-घूम कर कह रही है। वह रो रही है कि हँस रही है यह तय कर पाना मुश्किल है। कभी हँसती है, कभी रोती है। कब हँसती है, कब रोती है- यह तय कर पाना कठिन है। प्रो0 पांडेय कॉलेज गए हैं। घर में केवल अनिता और उसकी माँ है। अनिता बच्चों-सी उछल-कूद मचाये है। माँ को पकड़ कर उसने हँसते हुए कहा-
“मम्मी! तुम मुझे जान-बूझ कर न धीरे-धीरे मारती है। तुम मारती हो तो चोट नहीं लगती.................. ”
इतना सुनते ही अनिता की माँ का पारा गर्म हो गया--
“कुलबोरन! मैं तुझे धीरे से क्यों मारूँगी ?”
उन्होंने अनिता का बाल पकड़ कर फर्श पर पटक दिया और लात से मारने लगी-
“मैं तुम्हें जान से मार डालूँगी। अभागीन, सत ...................... अब बोल धीरे-धीरे मारती हूँ कि.............................. ।”
“हाँ, धीरे-धीरे मारती हो माँ!”
-हँस रही थी अनिता। लात से पूरा जोर लगा कर मारते हुए उसकी माँ रोने लगी।
और हँसने लगी अनिता-
“मम्मी! मैंने कहा न, तुम मुझे नहीं मार सकती।”
“नहीं मार सकती! ले, अब बोल! चोट लगती है या नहीं।!”
पूरा दम लगाकर लात चलाने लगी अनिता की माँ। हाँफ रही थी साथ में रो रही थी। हँस रही थी अनिता-
“चोट लग रही है मम्मी। पर तुम्हें मुझसे ज्यादा चोट लग रही होगी!”
हार कर बैठ गई अनिता की माँ। रोते हुए अनिता को सरापने लगी-
“अरे किस नछतर में पैदा हुई थी। जन्मते क्यों नहीं मर गई। अब कौन दिन देखवाएगी। बहतर गो भतार कर के मन नहीं भरा! घर-परिवार का नाम डबाया। .........।”