सुबह की लाली / खंड 2 / भाग 6 / जीतेन्द्र वर्मा

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कोई अनजान आदमी अनीता को देखता तो ठिठक जाता। बुजुर्ग देखते तो कहते हे भगवान! सक्षात कलयुग आ गया है। धरम का तो नाश हो गया। लड़के देखते तो बोल बोलने लगते। नए कुत्ते भी भौंकने लगते। पर जो जानता है उसकी आँखें नम हो आती। सिर मुड़वाया हुआ, ऊपर शर्ट, नीचे लुंगी और दोनों पैर में दो तरह के जूते पहने अनीता सड़क पर इधर-उधर आते जाते रहती।

प्रो0 पांडेय उसे पीटते समय उसका बाल पकड़ कर पीटते। इससे उन्हें बड़ी सहुलियत होती। सो अनीता ने एक दिन उसे छिलवा ही दिया। लो अब पकड़ो! अनीता के बात छिलवाने का एक और कारण था। दिल्ली में उसने बाल बॉव्य कट स्टाइल में कटवाया था। यहाँ पर लाने के बाद उसके पापा बाल बढ़ाने पर जो देते। कहते कि लंबे बाल हिंदू नारी के सौंदर्य हैं। बाल बढ़ाने चाहिए।

वे अनीता को साड़ी पहनने के लिए कहते। कादो यह भारतीय वस्त्र है। अनीता शुरू में उनका मन रखने के लिए अक्सर साड़ी पहन लेती। पर जब एकराम को भूल जाने वाला प्रकरण शुरू हुआ तो उसने साड़ी पहनना बंद कर दिया। वह भरसक वही काम करती जिसे प्रो0 पांडेय मना करते। वह टाइट जींस पैंट या बिकनी डेªस पहन कर मुहल्ले में घूमती। एक दिन प्रो0 पांडेय ने उसके सारे जींस-पैंट, बिकनी आदि जला दिए। जैसे हिंदुत्त्व की स्थापना के यज्ञ कर रहे हों। अनीता बहुत रोई-चिल्लाई। प्रो0 पांडेय ने उसके लिए कई दर्जन साड़ी लाए और बोले ...

“जो पसंद हो ले लो।”

“मन लो सभी रख लो बेटी।”

अनीता ने नजर उठा कर देखा तो सामने सेठ रामस्वरूप मल खड़े थे। साड़ी का होलसेल व्यवसाय है इनका। सुनते हैं कि गुजरात में साड़ी बनाने की फैक्ट्री भी है। वह चुपचाप भीतर चली गई। अब उसने भी जिद्द पकड़ ली कि वह साड़ी नहीं पहनेगी। मौका देख कर वह पापा की शर्ट-पैंट पहन लेती। कभी लुंगी पहन लेती। और पूरे मुहल्ले में पिता को गरियाते हुए घूमती। कभी ठठा कर हँसती, कभी फूट-फूट कर रोती। अनजान व्यक्ति कहता पागल है।

प्रो0 पांडेय आते तो हींक भर पीटते और अनीता फुका फार कर रोती। कुछ लोग अनीता को कोसते, कुछ प्रो0 पांडेय को।