सुबह की लाली / खंड 2 / भाग 9 / जीतेन्द्र वर्मा

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“बेटे का नाम मुश्ताक रहेगा।”

“बे! मुश्ताक-फुश्ताक भी भला नाम है। बेटे का नाम विक्रम रहेगा।”

“नहीं। बेटे का नाम मुश्ताक रहेगा।”

-एकराम जोर देकर बोला।

“तुम्हारे कहने से! बेटे का नाम विक्रम रहेगा।”

-अनिता भी लड़ने के मूड में आ गई।

“विक्रम-फिक्रम तो एकदम नहीं होगा और चाहे जो हो।”

“एकदम विक्रम ही रहेगा।”

होने वाले बेटे का नाम क्या हो? इस बात को लेकर आज दोनों में लड़ाई हो गई। अनिता एकराम के बाँहों से छिटक कर अलग हो गई। एकराम भी दूसरी तरफ मुँह घूमा कर लेट गया। आज बहुत दिनों बाद घर में खुशनुमा महौल बना था। जैसे ही मालूम हुआ कि अनिता माँ बनने बननेवाली है घर में बहुत दिनों से छाया तनाव का महौल बदल गया।

“तुमने पहले क्यों नहीं बताया।”

-एकराम ने अपनी खुशी छिपाने का असफल प्रयास किया।

“पहले मुझे कहाँ मालूम था।”

-अनिता ने एकराम का मान रखते हुए अपनी सफाई दी। आज बहुत दिनों बाद दोनों में दिल से बात हो रही है।

“मालूम क्यों नहीं होगा। तुम माँ बन रही हो।” -एकराम ने छेड़ते हुए कहा।

“पहले मालूम तो तुम्हें होना चाहिए। बाप बनने जा रहे हो और कुछ मालूम ही नहीं है। आखिर तुमने कुछ किया तो होगा।”

-अनिता ने हँसते हुए कहा। हँसते-हँसते निहाल हो गया एकराम। पर रात में बेडरूम में भावी संतान के नाम को लेकर फिर वही पुराना मुद्दा उभर कर सामने आ गया। लड़का हो या लड़की इसे लेकर दोनों के मन में समान भाव है। पर उसका नाम हिंदू का हो या मुसलमान का इस बात को लेकर दोनों में विवाद हो गया।

कुछ देर बात अनिता की सिसकी सुनाई दी। घबड़ा कर उठ गया एकराम।

“ये क्या कर रही हो।”

अनिता और फूट-फूट कर रोने लगी। एकराम और घबड़ा गया। पेट में पल रहे अपनी संतान के अनिष्ट के आशंका से वह काँप रहा था।

“तुम्हें जो नाम रखना है, सो रखना। पर अब चुप हो जाओ।”

अनिता ने एकराम को अपनी बाँहों में खींच लिया। उसकी सिसकी थमने लगी।