सूरज का सातवाँ घोड़ा / धर्मवीर भारती / पृष्ठ 9

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तन्ना का दिल कमजोर था। अत: तन्ना अक्सर माँ की याद करके रोया करते थे और उन्हें रोते देख कर बड़ी और छोटी बहन भी रोने लगती थी और मँझली अपने दोनों टूटे पैर पटक कर उन्हें गालियाँ देने लगती थी और दूसरे दिन वह बुआ से या बाप से शिकायत कर देती थी और बुआ माथे में आलता बिंदी लगाते हुए रोती हुई कहती थीं, 'इन कंबख्तों को मेरा खाना-पीना, उठना-बैठना, पहनना-ओढ़ना अच्छा नहीं लगता। पानी पी-पी कर कोसते रहते हैं। आखिर कौन तकलीफ है इन्हें! बड़े-बड़े नवाब के लड़के ऐसे नहीं रहते जैसे तन्ना बाबू बुल्ला बना के, पाटी पार के, छैल-चिकनियों की तरह घूमते हैं।' और उसके बाद महेसर दलाल को परिवार की मर्यादा कायम रखने के लिए तन्ना को बहुत मारना पड़ता था, यहाँ तक कि तन्ना की पीठ में नील उभर आती थी और बुखार चढ़ आता था और दोनों बहनें डर के मारे उनके पास जा नहीं पातीं और मँझली बहन मारे खुशी के आँगन-भर में घिसलती फिरती थी और छोटी बहन से कहती थी, 'खूब मार पड़ी। अरे अभी क्या? राम चाहें तो एक दिन पैर टूटेंगे, कोई मुँह में दाना डालनेवाला नहीं रह जाएगा। अरी चल, आज मेरी चोटी तो कर दे! आज खूब मार पड़ी है तन्ना को।'

इन हालतों में जमुना की माँ ने तन्ना को बहुत सहारा दिया। उनके यहाँ पूजा-पाठ अक्सर होता रहता था और उसमें वे पाँच बंदर और पाँच क्वाँरी कन्याओं को खिलाया करती थीं। बंदरों में तन्ना और कन्याओं में उनकी बहनों को आमंत्रण मिलता था और जाते समय बुआ साफ-साफ कह देती थीं कि दूसरों के घर जा कर नदीदों की तरह नहीं खाना चाहिए, आधी पूड़ियाँ बचा कर ले आनी चाहिए। वे लोग यही करते और चूँकि पूड़ी खाने से मेदा खराब हो जाता है अत: बेचारी बुआ पूड़ियाँ अपने लिए रख कर रोटी बच्चों को खिला देतीं।

तन्ना को अक्सर किसी-न-किसी बहाने जमुना बुला लेती थी और अपने सामने तन्ना को बिठा कर खाना खिलाती थी। तन्ना खाते जाते और रोते जाते क्योंकि यद्यपि जमुना उनसे छोटी थी पर पता नहीं क्यों उसे देखते ही तन्ना को अपनी माँ की याद आ जाती थी और तन्ना को रोते देख कर जमुना के मन में भी ममता उमड़ पड़ती और जमुना घंटों बैठ कर उनसे सुख-दु:ख की बातें करती रहती। होते-होते यह हो गया कि तन्ना के लिए कोई था तो जमुना थी और जमुना को चौबीसों घंटा अगर किसी की चिंता थी तो तन्ना की। अब इसी को आप प्रेम कह लें या कुछ और!

जमुना की माँ से बात छिपी नहीं रही, क्योंकि अपनी उम्र में वे भी जमुना ही रही होंगी - और उन्होंने बुला कर जमुना को बहुत समझाया और कहा कि तन्ना वैसे बहुत अच्छा लड़का है पर नीच गोत का है और अपने खानदान में अभी तक अपने से ऊँचे गोत में ही ब्याह हुआ है। पर जब जमुना बहुत रोई और उसने तीन दिन खाना नहीं खाया तो उसकी माँ ने आधे पर तोड़ कर लेने का निर्णय किया यानी उन्होंने कहा कि अगर तन्ना घर-जमाई बनना पसंद करे तो इस प्रस्ताव पर गौर किया जा सकता है।

पर जैसा पहले कहा जा चुका है कि तन्ना थे ईमानदार आदमी और उन्होंने साफ कह दिया कि पिता, कुछ भी हो, आखिरकार पिता हैं। उनकी सेवा करना उनका धर्म है। वे घर-जमाई जैसी बात कभी नहीं सोच सकते। इस पर जमुना के घर में काफी संग्राम मचा पर अंत में जीत जमुना की माँ की रही कि जब दहेज होगा तब ब्याह करेंगे, नहीं लड़की क्वाँरी रहेगी। रास्ता नहीं सूझेगा तो लड़की पीपल से ब्याह देंगे पर नीचे गोतवालों को नहीं देंगे।

जब यह बात महेसर दलाल तक पहुँची तो उनका खून उबल उठा और उन्होंने पूछा - कहाँ है तन्ना? मालूम हुआ मैच देखने गया है तो उन्होंने चीख मार कर कहा ताकि जमुना के घर तक सुनाई दे - 'आने दो आज हरामजादे को। खाल न उधेड़ दी तो नाम नहीं। लकड़ी के ठूँठ को साड़ी पहना कर नौबत बजवा कर ले आऊँगा पर उनके यहाँ मैं लड़के का ब्याह करूँगा जिनके यहाँ...?' और उसके बाद उनके यहाँ का जो वर्णन महेसर दलाल ने किया उसे जाने ही दीजिए। बहरहाल बुआ ने तीन दिन तक खाना नहीं दिया और महेसर ने इतना मारा कि मुँह से खून निकल आया और तीसरे दिन भूख से व्याकुल तन्ना छत पर गए तो जमुना की माँ ने उन्हें देखते ही झट से खिड़की बंद कर ली। जमुना छज्जे पर धोती सुखा रही थी, क्षण-भर इनकी ओर देखती रही फिर चुपचाप बिना धोती सुखाए नीचे उतर गई। तन्ना चुपचाप थोड़ी देर उदास खड़े रहे फिर आँखों में आँसू भरे नीचे उतर आए और समझ गए कि उनका जमुना पर जो भी अधिकार था वह खत्म हो गया। और जैसा कहा जा चुका है कि वे ईमानदार आदमी थे अत: उन्होंने कभी इधर का रुख भी न किया हालाँकि उधर देखते ही उनकी आँखों में आँसू छलक जाते थे और लगता था जैसे गले में कोई चीज फँस रही हो, सीने में कोई सूजा चला रहा हो। धीरे-धीरे तन्ना का मन भी पढ़ने से उचट गया और वे एफ.ए. के पहले साल में ही फेल हो गए।

महेसर दलाल ने उन्हें फिर खूब मारा, उनकी मँझली बहन खुश हो कर अपने लुंज-पुंज पैर पटकने लगी, और हालाँकि तन्ना खूब रोए और दबी जबान इसका विरोध भी किया, पर महेसर दलाल ने उनका पढ़ना-लिखना छुड़ा कर उन्हें आर.एम.एस. में भरती करा दिया और वे स्टेशन पर डाक का काम करने लगे। उसी समय महेसर दलाल की निगाह में एक लड़की

(यहाँ पर मैं यह साफ-साफ कह दूँ कि या तो कहानी की विषय-वस्तु के कारण हो, या उस दिन की सर्वग्रासी उमस के कारण, लेकिन उस दिन माणिक मुल्ला की कथा-शैली में वह चटपटापन नहीं था जो पिछली दो कहानियों में था। अजब ढंग से नीरस शैली में वे विवरण देते चले जा रहे थे और हम लोग भी किसी तरह ध्यान लगाने की कोशिश कर रहे थे। उमस बहुत थी। कहानी में भी, कमरे में भी।)

खैर, तो उसी समय महेसर दलाल की निगाह में एक लड़की आई जिसके बाप मर चुके थे। माँ की अकेली संतान थी। माँ की उम्र चाहे कुछ रही हो पर देख कर यह कहना कठिन था, माँ-बेटी में कौन उन्नीस है कौन बीस। कठिनाई एक थी, लड़की इंटर के इम्तहान में बैठ रही थी हालाँकि उम्र में तन्ना से बहुत छोटी थी। लेकिन मुसीबत यह थी कि उस रूपवती विधवा के पास जमीन-जायदाद काफी थी। न कोई देवर था, न कोई लड़का। अत: उसकी सहायता और रक्षा के खयाल से तन्ना को इंटरमीडिएट पास बता कर महेसर दलाल ने उसकी लड़की से तन्ना की बात पक्की कर ली मगर इस शर्त के साथ कि शादी तब होगी जब महेसर दलाल अपनी लड़की को निबटा लेंगे और तब तक लड़की पढ़ेगी नहीं।

चूँकि लड़की की ओर से भी सारा इंतजाम महेसर दलाल को करना था अत: वे ग्यारह-बारह बजे रात तक लौट पाते थे और कभी-कभी रात को भी वहीं रह जाना पड़ता था क्योंकि लड़ाई चल रही थी और ब्लैक-आउट रहता था, लड़की का घर उसी मुहल्ले की एक दूसरी बस्ती में था जिसमें दोनों तरफ फाटक लगे थे, जो ब्लैकआउट में नौ बजते ही बंद हो जाते थे।

बुआ ने इसका विरोध किया, और नतीजा यह हुआ कि महेसर दलाल ने साफ-साफ कह दिया कि उसके घर में रहने से मुहल्ले में चारों तरफ चार आदमी चार तरह की बातें करते हैं। महेसर दलाल ठहरे इज्जतदार आदमी, उन्हें बेटे-बेटियों का ब्याह निबटाना है और वे यह ढोल कब तक अपने गले बाँधे रहेंगे। अंत में हुआ यह कि बुआ जैसे हँसती, इठलाती हुई आई थीं वैसे ही रोती-कलपती अपनी गठरी-मुठरी बाँध कर चली गईं और बाद में मालूम हुआ कि तन्ना की माँ के तमाम जेवर और कपड़े जो बहन की शादी के लिए रखे हुए थे, गायब हैं।

इसने तन्ना पर एक भयानक भार लाद दिया। महेसर दलाल का उन दिनों अजब हाल था। मुहल्ले में यह अफवाह फैली हुई थी कि महेसर दलाल जो जो कुछ करते हैं वह एक साबुन बेचनेवाली लड़की को दे आते हैं। तन्ना को घर का भी सारा खर्च चलाना पड़ता था, ब्याह की तैयारी भी करनी पड़ती थी, दोपहर को ए.आर.पी. में काम करते थे, रात को आर.एम.एस. में और नतीजा यह हुआ कि उनकी आँखें धँस गईं, पीठ झुक गई, रंग झुलस गया और आँखों के आगे काले धब्बे उड़ने लगे।

जैसे-तैसे करके बहन की शादी निबटी। शादी में जमुना आई थी पर तन्ना से बोली नहीं। एक दालान में दोनों मिले तो चुपचाप बैठे रहे। जमुना नाखून से फर्श खोदती रही, तन्ना तिनके से दाँत खोदते रहे। यों जमुना बहुत सुंदर निकल आई थी और गुजराती जूड़ा बाँधने लगी थी, लेकिन यह कहा जा चुका है कि तन्ना ईमानदार आदमी थे। तन्ना का फलदान चढ़ा तो वह और भी सजधज के आई और उसने तन्ना से एक सवाल पूछा, 'भाभी क्या बहुत सुंदर हैं तन्ना?' 'हाँ!' तन्ना ने सहज भाव से बतला दिया तो रुँधते गले से बोली, 'मुझसे भी!' तन्ना कुछ नहीं बोले, घबरा कर बाहर चले आए और सुबह के लिए लकड़ी चीरने लगे।

तन्ना की शादी के बाद जमुना ने भाभी से काफी हेल-मेल बढ़ा लिया। रोज सुबह-शाम आती, तन्ना से बात भी न करती। दिन-भर भाभी के पास बैठी रहती। भाभी बहुत पढ़ी-लिखी थी, तन्ना से भी ज्यादा और थोड़ी घमंडी भी थी। बहुत जल्दी मैके चली गई तो एक दिन जमुना आई और तन्ना से ऐसी-ऐसी बातें करने लगी जैसी उसने कभी नहीं की थीं तो तन्ना ने उसके पाँव छू कर उसे समझाया कि जमुना, तुम कैसी बातें करती हो? तो जमुना कुछ देर रोती रही और फिर फुफकारती हुई चली गई।