सेवट साच तो साच है अर कैयां सरसी... / नीरज दइया

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राजस्थानी आलोचना रो ओ दुरभाग रैयो कै आपां रा हरावळ लिखारां इण जाजम माथै नवा रचनाकारां नैं बिड़दावतां रैया। रचनाकारां री गिणती बधावण रै चक्कर मांय आलोचना करीजी ई कोनी। कदैई करीजी तो एक-आधा ओळी पछै वै वांनै पंपोळता रैया। जे बखतसर मन री बातां करीजती तो आज तांई केई कमियां रो निवेड़ो होय जावतो। कहाणी-जातरा नैं देखण-परखण रा केई-केई पख होवै। आं पखां मांय सूं एक मेहतावू पख है- खुद नारियां री कलमां सूं निकळी कहाणियां। संसार-गाड़ी नै नर-नारी रळ परा चलावै। नारी तो जुगां-जुगां सूं सगती रो रूप मानीजै। संसार री गति रो जस इणी सगती नैं। राजस्थानी कहाणी-जातरा री बात करां तद गिणती रा नांव साम्हीं आवै। वां मांय जे महिला-कथाकारा री विगत बणावां तो सोळा का बीस-पच्चीस जोड़ी आंख्यां निजर आवैला। भाषा-बुणगट रै पाण महिला-कथाकारां मांय डॉ. चांदकौर जोशी एक भरोसै-जोग नांव कैयो जाय सकै। भारतीय भाषावां मांय स्त्री-विमर्श माथै मोकळी चरचा होवै। राजस्थानी मांय इण दिस बात करीजणी चाइजै। नारियां पेटै जिकी कहाणियां खुद महिला-कथाकार री कलमां रचै, वां मांयली अर खासकर नारी-पात्रां री मनगत बाबत विचार कियो जावणो चाइजै। उम्मीद करी जाय सकै कै नारियां रै सुख-दुख, वां री अबखायां-अवंळाया री सावळ अर पुखता अनुभव री बात महिला-कहाणीकार मांड सकै। स्त्री-पात्रां रै ठेठ अंतस नै उजागर करण मांय जिकी दीठ अर पैठ खुद महिला रचनाकार री रैयी है वा मेहतावू मानीजैला। कहाणी-जातरा री इण दिस पगां होवां।

डॉ. चांदकौर जोशी रो दूजो कहाणी-संग्रै “सेवट” (2012) अकादमी इमदाद सूं प्रकाशित होयो है। पैलो कहाणी संग्रै “साचौ सुपनौ” (1999) ई इमदाद सूं प्रकाशित होयो हो अर उण नै राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति रो सांवर दइया पैली पोथी पुरस्कार-2002 अरपण ई करीज्यो। अकादमी पुरस्कार अर सैयोग रो अरथाव इण कहाणियां नै बांचण अर सरावणियां घणा रचनाकारां रो होवणो मान सकां। पोथी-परख असल मांय किणी रचना-पाठ पछै री मनगत होया करै। जिकी आं सब बातां सूं प्रभावित होवै। इण ओळ मांय पैली फ्लैप-टीप अर भूमिका री बात करां। लूंठा निबंधकार प्रो. जहूरखां मेहर मुजब डॉ. जोशी रै इण संग्रै री घणकरी कहाणियां आदर्शवादी रूप लियोड़ी है। वै लिखै- “डॉ. जोशी रिस्तां री उठापटक अर विडरूपता नै उकेरै जरूर, पण सेवट उणां री लुगाई वाळी कंवळी आतमा कहाणी नै आदर्श में खतम करै।” (“हियै ढूकणजोग सवावतो कहाणी-संग्रै” : पेज-6)

आदर्शवाद कोई कमजोरी कोनी होवै। कहाणी मांय पोयैड़ै साच खातर कैयो जाय सकै कै हुनर ओ होवणो चाइजै कै कोई कूड़ ई साच मांय दूध-पाणी दांई रळ जावाणो चाइजै। कहाणीकार री कला किणी पण साच-कूड़ नै रचती बगत बुणगट री चतराई सूं साम्हीं आवै। “साचौ सुपनौ” संग्रै पेटै कवि-कथाकार सत्येन जोशी आपरी भूमिका में लिख्यो हो- “कहाणी साच अर कूड रो भेळ होवै अर कहाणी उणा रै सिरजणहार रै अंतस नै दिमाग में उथळ-पुथळ मचावता या पळता विचारां नै चवड़ै ला’र उण साच नै सबद देवै जको दीखण में साच नीं होवता थका भी केई-केई लोगां रै मन में पळतो होवै।” (“दो आखर” : पेज-3)

कोई पण कहाणी पूरो जथारथ, का किणी बीज-जथारथ रो कोई सुपनो होवै। इण ढाळै किणी सुपनै ई आपां आदर्श कैय सकां। डॉ. चांदकौर जोशी रै संग्रै “सेवट” री कहाणियां मांय जे जथारवाद भेळै आदर्शवाद मिलै तो आ वां री आपरी दीठवू-बात है। कांई कारण है कै आजादी सूं पैली आंख खोलण वाळा कहाणीकार जोशी कहाणी मांय घटना तो इक्कीसवी सदी री लेवै अर उण रो ट्रीटमेंट करती बगत बै उन्नीसवी सदी मांय पूग जावै। अठै दाखलै री बात करां तो आं कहाणियां मांय घणी-लुगाई बिचाळै जिकी दूसरी लुगाई आवै वा पैलड़ी लुगाई खातर फगत कहाणी होवै। कैवणो पड़ैला कै कहाणीकार आपरै पात्रां री मनगत नै आजादी कोनी देवै। कहाणीकार कहाणी मांय जिका घुमाव साच-झूठ प्रगटण करण पेटै रचै वै घणा मेहतावू होवै। घटनावां मांय संयोग अर संयोग भेळै नाटकीयता रो सांगोपांग मेळ सावचेती सूं राखीजै। कहाणी मांय संयोग अर नाटक री आपरी सींव होया करै। साच अर कूड रो भेळ रचण मांय जुग मुजब आपारा असूल खुद कहाणीकार नै रचणा पड़ै। किणी रचना मांय पात्रां रा नांव राखण सूं लेय’र बां री सगळी बातां पेटै सबद-सबद सावचेती री मांग करै।

नारी विमर्श पेटै पंद्रा औपन्यासिक पलक री आं कहाणियां मांय डॉ. जोशी री सितर बरसां री औसथा परवाण केई केई सामाजू जथारथ साम्हीं आवै। बदळतै जुग री धमक रो अठै साफ सुणीजै पण जूनी मानसिकता रै कारण केई कहाणियां जाणै अळसीज-सी जावै। प्रो. मेहर सूं जुदा सबद अणखावणो काम मांय इण खातर लेवणो चावूं कै लुगाई जात पेटै आं कहाणियां मांय हाल तांई जूना पाठ पढावण री बाण दीसै। संग्रै री पैली कहाणी “आपरो घर” में सरिता आपरै डॉक्टर घणी मुकेश नै बीस बरसां पछै जद वो आपरी बिदेसी दूजी लुगाई क्यूरी सूं घाप’र घरै आवै तद वा मुळक’र बोलै- “आज म्हारी साधना सफळ हुई। म्हनै आप माथै पूरो भरोसो हो कै थां एक-न-एक दिन पाछा आपरै घरां जरूर आवोला। अर देखो, थां साचैई आयग्या।” मोटै फलक मांय रचीजी इण कहाणी मांय जिण साच का सीख री बात करीजी है उण पेटै कैयो जाय सकै कै आ आधुनिक जुग रै भरतारां खातर आ जोरदार कहाणी है, जिकी उणां री लुगायां नै बांच’र वां नै सरिता दांई लाडै-कोडै मन सूं खुद नै उन्नीसवी सदी मांय राखता सदीव पति-परमेसर री जै बोलणी चाइजै। मुकेश रै बिदेस जायां पछै सरिता किणी ढळाण क्यूं नीं ढळै? सरिता कोई नवो मारग क्यूं नीं लेवै?

सेवट संग्रै री कहाणियां मांय फगत एक कहाणी “नुंवो मारग” बाबत कैयो जाय सकै कै इण मांय ट्रीटमेंट रै स्तर माथै कीं कमियां रै उपरांत ई लखावै कै डॉ. जोशी लुगाई रै हक मांय ऊभा होया है। इण कहाणी मांय गांव री उमा रै पति शंकर नै शहर री इसी हवा लागै कै वो आपरै दफ्तर में काम करण वाळी सरस्वती नै उमा रो दरजो देय देवै। घणी एक घर मांय दूजी लुगाई राखै, इण री ठाह उमा नै लागै। वा आपरी नैनकी बैन गवरी रै ब्याव सारू शहर सूं गांव आवै। आवती बगत गवरी रो जेठ गणेश मिलै अर उण री प्रीत रो नवो श्रीगणेश होवै। गणेश री पैली लुगाई आपरै टाबरां नै छोड़’र दोय दिनां रै ताव सूं चालती रैयी। इण प्रीत भेळै उमा री बोल्डनेस कहाणी मांय खास उल्लेखजोग मानीजैला। घरआळी साथै दगाबाजी करतै खसम नै उण रै जीवतां थका दूजै घर जावण सारू संभती उमा राजस्थानी कहाणी जातरा री यादगार नायिका बण जावै।

उमा रा बोल- “थारै में बदळाव आयो है तो म्हारै में ई आय सकै। अबै वो जमानो नीं रैयो के खड़कती तलवारां, कड़कती ललकार माथै लुगाई बळबळती झाळा में होमीज’र आपरी कंचन सरीखी काया नै बाळ नांखै।” (नुवो मारग : पेज-92) पण इण कहाणी रै पात्रां रा नांव आपरै भेळै जूनो अरथ अर आगूंच आपरी कहाणियां लियोड़ा हुवण सूं कीं रसभंग करै। उमा शंकर री लुगाई है जिकी तो चोखी, पण कहाणीकार गवरी रै जेठ रो नांव गणेश क्यूं राखै? ऐतिहासिक अर पौराणिक कथावां जिकी रूढ होयगी है वां रो नवै ढंग सूं कहाणी मांय प्रयोग करियो जाय सकै। नवी थीम भेळै कहाणी मांय नांव ई नवा होवणा चाइजै। अठै कहाणीकार जोशी रै पैलै संग्रै “साचौ सुपनौ” री कहाणी “नुंवी उगाळी” री गायत्री री याद आवै। जिकी नुवो मारग सारू संभी ही अर परंपरागत रीत-रिवाज मांय लुगाई री ओळखाण खातर कीं विचार करियो हो।

डॉ. जोशी रै कथा-संसार मांय आधुनिक जुग री अबखयां तो मिलै पण सेवट जूनो चसमो नीं उतारण री बाण वां रै पात्रां नै पूरा पांगरण कोनी देवै। दाखलै रूप ओ संवाद देख्यो जाय सकै : गळगळै कंठ सूं बोलियो- “ धिन हो देवी! थां जिसी नारियां ई समाज रो अर देस रो कल्याण कर सकै जिकी खुद बिखर जा, पण आपरी नारी मन री भावना री छिब नीं फीकी पड़ण देवै।“ (रिस्तै री ओळखाण : पेज-24) आज रै जुग मांय “सेवट” कहाणी संग्रै री लुगायां रो ओ जस आपां री संस्कृति रै रंग-रूप नै दरसावण खातर तो ठीक कैयो जाय सकै, पण कहाणी-कला री दीठ सूं आं कहाणियां पात्रां नै रोस-सा देवै का कैवां कहाणीकार वां नै आपरी आंगळी पकड़ाया राखै। आधुनिकता रो अरथाव जठै आज रै साच नै राखणो है वठै ई होवतै बदळावां नै स्वीकारणो है। आ बदळावां साम्हीं लोककथावां रै रंग रंगी जूनी नायिकावां नै नवै मारग कोई नवी उगाळी कानी पग लेवणा होसी।

किणी कहाणीकार री मूळ चिंता कांई होवणी चाइजै? समाज नै आदर्श री कित्ती जरूरत है अर कांई आदर्श लेवण नै वो तियार है? जिका आदर्श है वै आगूंच उण नै जद ठाह है तद रचनाकार री जिम्मेदारी बणै कै वो वां आदर्शां री दुनिया आपरै पाठकां रै हियै सचेतन करै। सिरैनांव कहाणी “सेवट” मांय सुभाष अर कमलेश बाळगोटिया है अर आभा भाभी सूं सुभाष रो ब्याव करावण रै साथै कहाणी पूरी होवै। इण कहाणी री छेहली ओळियां है- “आज होळी रै दिन आभा रै अर उणरै सासू-सुसरै रो चैरो बिना रंगियां ई हरख सूं गुलाबी हुयग्यो। सुभाष वां नै जीवण रो वो रंग दियो, जिणरी चमक कदैई मगसी नीं पड़ सकै।” (सेवट ; पेज-112)

डॉ. चांदकौर जोशी री कहाणियां रो मेहतावू पख बुराई नै भलाई सूं जीतणो कैयो जाय सकै। नेक नीयत रा आं पात्रां मांयला गुण असलियत मांय लाधै कोनी। इण ढाळै रो गुण-गान ई जरूरी मानीजै। आं गुणवान पात्रां रै जगत री हवा लागगी है। इण संसार मांय वै वां गुणां नै बचाया राखणो ऐब मानण लागग्या। “रिस्तै रौ मतलब” अर “ऐ कुण है?” कहाणियां मांय माया री माया देख सकां तो “सजा” कहाणी भगवान अठै रा फळ अठै देवै री बात पुखता करै। “घर री लिछमी” कहाणी री ओळियां है- “देखी जावै तो लुगाई खुद, खुद री दुसमण हुवै अर खुद ई खुद री सहेली हुवै आ तो उण माथै निरभर करै कै वा दूसरा री तकलीफ देख’र दुर्गति रै मारग में अपणै अपनै पटकै या पछै दूसरां रै काम में मदद कर’र प्रगति रै शिखर माथै पूगै। आ तो उअ रै खुद हाथ री बात है।” (घर री लिछमी ; पेज-61) मूंडै री बात आ है कै डॉ. जोशी री कहणियां सूं नारी-विमर्श माथै बात करण री जमीन तियार होवै। राजस्थानी समाज रै घर-परिवारां रा केई रंगां सूं रंगी आं कहाणियां मांय हाल उण साच नै सबद देवणा बाकी है, जको दीखण में साच नीं होवता थका भी केई-केई लोगां रै मन में पळतो साच होवै। कहाणियां सूं सामाजिक आदर्श राखण री सोच तो भली, पण आज रै आधुनिक जथारथ-बोध अर बदळती मानवी-मनगत नै परोटणी बेसी जरूरी समझी जावणी चाइजै।