से महुआ गिरे सगर राति / रोज केरकेट्टा
फागुन और चैत महुआ गिरने का समय था। पूरा जंगल महुए के फा मधुगंध से भर उठा था। रेंगारी से जोसेफा को राँची पढ़ने के लिए जाना था। पास्का के लिए घर तो आ गई थी, लेकिन अब उसे वापस जाना बड़ा अखर रहा था। रेंगारी से सिमडेगा उसे पैदल आना पड़ता था। तिर्रा दरबार और समरसिंघा झरिया के जंगलों को लाँघकर जाना पड़ता था। दस बजे खा- पीकर निकलते तो शाम पाँच- छह बजे तक सिमडेगा पहुँचते थे। किसी-किसी के बरामदे में रात बिताकर सबेरे पाँच बजे भारत मोटर से राँची आते थे।
जोसफा पिछले तीन वर्षों से राँची आ रही है। इस बार वह ग्यारहवीं में है।
अगले वर्ष मैट्रिक की परीक्षा देगी और उसकी पढ़ाई समाप्त हो जाएगी। वह
कोई-सी ट्रेनिंग लेने के लिए कहीं और चली जाएगी। उन दिनों हाई स्कूल की
पढ़ाई करने के लिए राँची ही आना पड़ता था। गरमी की छुट्टी के बाद राँची
लौटना सबसे कठिन था। बसें बरसात भर के लिए बंद हो जाती थीं। इस क्षेत्र के
सारे लड़के-लड़कियाँ एक साथ मिलकर पैदल रास्ता चलते थे। इसलिए आपस में
उनकी मित्रता भी हो जाती थी। जब परिचित हो जाते तो एक-दूसरे के घर भी
आना-जाना करते थे।
जोसफा के साथ फूलमणि, मरियम, दुलारी, जोसेफा नं. दो, अन्ना आदि भी पढ़ती हैं, लेकिन जोसफा इन सबमें सीनियर है। पिछले वर्ष गरमियों के बाद, जब राँची लौट रही थी, तब कोइल नदी में बाढ़ आ गई थी। सड़क कच्ची थी। नदी पर पुल नहीं था। बस कोनबीर में रुक गई। लड़कियों को भी रुक जाना पड़ा। वे सब फादर के बँगला में रुक गईं। खाना भी मिला और सोने के लिए जगह भी मिली। बाकी यात्रा किसी-किसी के घर चले गए। वहीं ताने यानी तानिस भी लड़कियों को मिला। वह राँची के कॉलेज में पढ़ता था। जोसफा की तरफ के प्रकाश, जोहन, आह्लाद, जीवन आदि तानिस के साथ पढ़ते थे। इसलिए जोसफा से वह परिचित था। उस रात भयंकर बारिश हुई। कोइल नदी का पानी सबको 'ओरे आव' कहने लगा। कितनी बार लोग नदी तक गए और लौटे। दिन भर तेज बारिश हुई। बाढ़ में कौन नाविक नाव खेता ? बाढ़ का पानी पहाड़ की तरह उतरता। बड़ी-बड़ी लकड़ियों के लट्ठे बहकर आ रहे थे। मछलियाँ खेतों में चढ़ती हुई आ गई थीं। लेकिन इस घनघोर वर्षा में घर से इक्के-दुक्के लोग ही निकल रहे थे। लड़कियाँ बीच रास्ता कोनबीर में अटक गई थीं। सबके चेहरे उदास थे। पता नहीं कल बाढ़ उतरे या नहीं! नाव चले या नहीं! फिर उनके पास चावल तो है नहीं कि पकाकर खाएँ। 10-12 लड़कियों को कोई कब तक खिलाएगा? वे जानती भी नहीं हैं कि किसके यहाँ चावल मिलेगा। लेकिन उस जमाने में सचमुच लोग अतिथि सेवा को अपना अहोभाग्य समझते थे।
तानिस ने मौसम की निर्ममता को देखा। नदी किनारे का आदमी था। उसने नदी का भयावह रूप देखा था। रात उसने अपने घर काटी। सुबह एक कपड़े में कुछ चावल लेकर लड़कियों के पास वह आ गया। चावल के साथ चार-पाँच प्याज और नमक था। दोपहर तक भूखी बैठी लड़कियों की जान में जान आई। उन्होंने नमक और प्याज से भात खाया। बातचीत के क्रम में तानिस ने बताया कि कल बारिश रुक जाए तो शाम तक उस पार के लिए गाड़ी आ जाएगी। 'कल मैं भी जाऊँगा। ड्राइवर और टिकट कटवा को एक मुरगा दूँगा। मुरगा और गोलङ बड़े काम की चीज होती है। कम-से-कम हम लोगों को सीट मिल जाएगी।' बाढ़ बहुत कुछ बहाकर ले जाती है और बहुत कुछ बहाकर दे भी आती है। इसीलिए नदी किनारे के लोग रबी की अच्छी फसल उगा लेते हैं। कारण जब बाढ़ आती है तो अपने साथ पाक मिट्टी लाती है और खेतों में फैला देती है। इससे खेत उपजाऊ हो जाते हैं। इस बाढ़ ने जोसफा और तानिस को और निकट ला दिया। दूसरे दिन सचमुच वर्षा रुक गई। दोपहर होते-होते बाढ़ रुक गई और नदी में डोंगाइत ने डोंगा उतार दिया। जल्दी-जल्दी सवारियाँ नदी पार उतर गईं। उस पार की भारत मोटर आ गई थी। तानिस की व्यवस्था के कारण लड़कियों को सीट मिल गई। बस चली हिचकोले खाते, लेकिन अँधेरा होने से पहले राँची बस स्टैंड पहुँच गई।
राँची में लड़कियों की भेंट तानिस से होती थी। धीरे-धीरे जोसफा और तानिस की मित्रता घनिष्टता में बदल गई। प्रेम ऊर्जा है। जब दोनों को अहसास हो गया कि उनका भविष्य एक होने जा रहा है तो दोनों ने मिल- बैठकर सपने बुने। जोसफा ने तय कर लिया कि वह नर्स बनेगी, इसलिए वह दिल्ली जाएगी। तानिस ने शिक्षक बनना तय किया, क्योंकि उन दिनों शिक्षक का समाज में बहुत सम्मान था।
पास्का की छुट्टियों में मदर ने ग्यारहवीं में पढ़नेवाली लड़कियों को अपने- अपने घर भेजा। लड़कियों को बताया गया कि गरमी की छुट्टियों में उनकी गणित और अंग्रेजी विषय की विशेष कक्षाएँ चलेंगी। अगस्त में प्री- टेस्ट और नवंबर में टेस्ट होगा। फरवरी में फाइनल रहेगा। अभी छुट्टी दी जा रही है, ताकि वे अपने- अपने अभिभावकों को अच्छी तरह समझा दें कि उन्हें अब फिर घर जाने के लिए छुट्टी नहीं मिलेगी। इसी छुट्टी में जोसफा घर आई। साथ में तानिस भी चला आया। तानिस जोसफा के घर सीधे नहीं गया। मुड़ल टोली में अपने रिश्तेदार के घर उतरा। लेकिन दूसरे दिन जोसफा के माता-पिता से मिलने गया।
ईस्टर की रात लोग चर्चों और कब्रिस्तान में व्यस्त थे। लेकिन महुआ गिरने का समय था। इसलिए हरेक घर से कोई-न-कोई महुआ अगोरने अवश्य गया था। जोसफा गाँव की सहेलियों के साथ महुआ अगोरने गई तो तानिस भी साथ हो लिया। सारी रात महुआ टपकता रहा। कोई पेड़ बाकी नहीं था। महुआ के सफेद फूल संगमरमर की तराशी गोलियों की तरह चमक रहे थे। लेकिन यहाँ गलती हो रही है। संगमरमर की गोलियाँ तो कठोर होती हैं। उनमें सुगंध भी नहीं होती। महुआ के फूल और उसकी रसीली महक सबको अपने मोहपाश में जकड़े थी। जंगल के गुलैंची, फरसा और गलपुली की मीठी गंध अलग से तंद्रा ला रही थी। पूर्णिमा की इस रात आसमान के तारे फीके लग रहे थे। पर चंद्रमा की दूधिया रोशनी में पूरा जग नहा रहा था। तानिस और जोसफा के अंदर भी प्रेमाग्नि धधक रही थी। सहेलियों की उपस्थिति के कारण वह अग्नि वश में थी।
सुबह महुआ चुनकर घर आने तक उजाला हो गया था। औपचारिकता निभाने के बाद तानिस अपने रिश्तेदार परचार के यहाँ चला गया। सूखा दिन था। दूसरे दिन बस रेंगारी गई। वहीं बस पर बैठकर जोसफा और तानिस राँची आ गए। दोनों अपनी पढ़ाई में मग्न हो गए। अगले वर्ष परीक्षा दी और जोसफा ने द्वितीय श्रेणी में सफलता पाई। अपनी इच्छा के अनुसार वह नर्स बनने चली गई। दो वर्ष पंख लगाकर उड़ गए। तानिस को सरकारी स्कूल में गणित- अध्यापक की पक्की नौकरी मिल गई। उसके परिवार के लोग गर्व का अनुभव करने लगे। उसके विवाह की चिंता माता-पिता को हुई। अनपढ़ माता-पिता ने शिक्षित पुत्र के लिए कन्या ढूँढ़ना आरंभ किया। जब तानिस से पूछा गया, तब उसने जोसफा के बारे में बता दिया।
'जोसफा कितना पढ़ी-लिखी है?' उसकी ममेरी बहन ने पूछा।
तानिस, 'सेकेंड डिवीजन से मैट्रिक पास है।'
बहन, 'क्या करती है ?'
तानिस, 'नर्स ट्रेनिंग ले रही है दिल्ली में।'
बहन, 'नर्स ट्रेनिग ? छी-छी ऐसी लड़की को तुमने पसंद किया है? दुनिया जल गई है तुम्हारे लिए? नहीं, इस घर में नर्स नहीं आएगी। कितना गंदा काम है नर्स का।'
तानिस, 'दीदी, लेकिन हम दोनों एक-दूसरे को पसंद करते हैं। वह भी मेरे आसरे में है।'
बहन, 'नर्से बहुत बुरी होती हैं। सब तरह के मर्दों से बात करती हैं।'
तानिस, 'बीमारों की सेवा करती है। जोसफा बुरी नहीं है। मैं पिछले पाँच वर्षों से उसे देख रहा हूँ। उसके घर के लोग भी मुझे देख चुके हैं।'
बहन, 'तो तुम नर्स से शादी करोगे? करो शादी उसी से ! मैं तुम्हारी शादी के नाम पर कच्चा पानी तक नहीं पीऊँगी।' इतना कहकर बहन बाहर निकल गई।
तानिस विकट परिस्थिति में फँस गया 'इतने दिनों तक बहन ने भाई को मनाकर उसके पढ़ने-लिखने में मदद की, यह क्या कम है ? सिर्फ जोसफा के पेशे को लेकर दीदी ने इतना विरोध किया?
एक वर्ष बिता दिए तानिस ने निर्णय लेने में। आखिर उसने निर्णय लिया, 'दीदी के ऋण से दबा हुआ हूँ। उसने मुझे आदमी बनाया। मुझे उसकी बात मान लेनी चाहिए। माता-पिता दीदी की सेवा से दबे हैं। आखिर दीदी भी मेरा अहित क्यों चाहेगी ? उसने दीदी से कहा, 'मैं तुम्हारी पसंद की लड़की से ही शादी करूँगा। मैं परिवार के विरुद्ध नहीं जा सकता।'
तानिस ने जोसफा से धीरे-धीरे पत्राचार कम कर दिया। पत्र में औपचारिक बातें होती थीं। उसमें समयाभाव का बहाना होता था। जोसफा को अहसास हो गया कि बात कहीं अटक रही है। उसने पत्राचार बंद कर दिया। तानिस को इससे राहत मिली। लेकिन उसकी व्याकुलता बढ़ गई। आखिर उसने तय किया कि जाकर जोसफा के माँ-बाप से मिले।
मई के महीने में तानिस रेंगारी गया। शाम को सारे गाँव के लोग अपने खेतों में खाद डाल रहे थे। जोसफा की लगनेवाली बहनों ने ठिठोली की। तानिस ने उन्हें कहा, 'काम खत्म कर लो, फिर साथ घर जाएँगे। तब तक मैं यहीं घूमता हूँ, यह कहकर वह उन्हीं महुए के पेड़ों के बीच गया, जहाँ कभी उसने भविष्य के सपने बुने थे। तब की रात उजास भरी थी। फूलों की सुगंध से वह रात बौरा गई थी। लेकिन वे होश में थे। वही भविष्य आज उनके सुनहरे सपनों को रौंद गया। तब महुए के खोंच में सफेद रसभरे फूल थे। फूल टपक रहे थे। टप-टप ! आज न फूल हैं, न सुगंध। पेड़ों में फल भी नहीं हैं। फूल- फल विहीन पेड़ों पर चीटियाँ रेंग रही हैं। मेरा और जोसफा का साथ भी आज खत्म हो गया। उस पर चींटियाँ ही तो रेंग रही हैं। इतना अल्पायु होता है प्रेम?
शाम को जोसफा के घर उसकी बहनों के साथ आ गया। रात्रि भोजन के बाद आँगन में तानिस के लिए चारपाई बिछा दी गई। पूर्णिमा की रात थी। सारी रात करवटें बदलता रहा तानिस। किस तरह वह अपनी बात इन लोगों के सामने रखे ! इसे तय नहीं कर पा रहा था। तभी उसने आसमान में चंद्रमा को देखा। उसे धीरे-धीरे राहु ग्रस रहा था। तानिस का दिल भर आया। वह उठकर बैठ गया, फिर धीमे स्वर में गा उठा-
"चाँद जे उगी गेल तिले तिल, तिले तिले हो होरे चंदा मोर, गहन लागी गेलयं।"
गीत समाप्त होते ही वह फूट-फूटकर रोने लगा। उसका रोना सुनकर घर के सारे लोग उठ आए। तानिस को उन्होंने घेर लिया। वे तानिस से पूछताछ करने लगे। परंतु उसने कुछ उत्तर नहीं दिया। स्वयं ही धीरे-धीरे शांत हो गया। फिर एक गिलास पानी माँगा, पीया और बिस्तर से उठा। उसने किसी से आँखें मिलाए बिना कहा, 'जा रहा हूँ', और घर से धीरे-धीरे बाहर आ गया। वह कभी नहीं लौटने के लिए चला गया।
जोसफा ने अपना प्रशिक्षण पूरा किया। दिल्ली में एक बड़े अस्पताल में नौकरी लग गई। वह अपने गाँव रेंगारी नहीं लौटी। हरियाणा में जमीन लेकर बस गई। अपनी बहनों किपु, कारा आदि को बुलाकर अपने पैरों पर खड़ा किया। कोई नर्स बनी, कोई शिक्षिका, कोई क्लर्क। उसने विवाह नहीं किया। उसकी बहनों ने अपनी इच्छानुसार घर बसाया। तानिस और अपने संबंधों के बारे में उसने एक शब्द भी नहीं कहा। उसके मौन निश्चय और काम से उसके निर्णय का पता चल गया।
तानिस अपराधबोध, अतृप्त आकांक्षाओं और घोर निराशा में डूब गया। उसने इन सबसे मुक्ति के लिए शराब में अपने को डुबा दिया। उसकी सारी योग्यताएँ नष्ट हो गईं और एक दिन वह गुमनाम मर गया। जोसफा आज भी है। उसका दरवाजा सब लड़कियों के लिए खुला है, जो अपने पैरों पर खड़ी होने का हौसला लेकर पहुँचती हैं।