सैपियन्स / आइंस्टाइन के कान / सुशोभित

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सैपियन्स
सुशोभित


विगत एप्रिल से ही मैं धीरे-धीरे सैपियन्स को पढ़ रहा था। हज़ार काम निबटाता रहा, और लगे हाथ सैपियन्स के भी पाँच-दस पेज पढ़ता रहता। बीते कुछ सालों में नॉन-फ़िक्शन की ऐसी कम ही किताबें रही होंगी, जिन्होंने इस तरह से दुनियाभर के पाठकों का ध्यान अपनी ओर खींचा हो। यह आश्चर्यजनक था, क्योंकि यह किताब मनुष्यता का एक बहुत सुंदर चित्र हमारे सामने नहीं खींचती है। अमरीका में इसे ब्रेनी बुक्स की श्रेणी में रखा गया। पुस्तकों का श्रेणीकरण भी एक ही शै है, और किताबें बेचने वाला बाज़ार उनकी कैटेगरी पर बहुत मेहनत करता है। इसी के चलते रिल्के के ख़त विज़डम लिट्रेचर के अम्ब्रेला-टर्म में शुमार होकर ख़ूब बिकते हैं, जिन्हें उसने वास्तव में अपनी रचनात्मकता के महत्वहीन हाशियों पर लिखा था। इससे पहले स्टीफ़न हॉकिंग की अ ब्रीफ़ हिस्ट्री ऑफ़ टाइम के प्रति ऐसी ललक दिखलाई दी थी। उसके बारे में कहा जाता है कि वो एक ऐसी यूनिवर्सल बेस्टसेलर है, जिसे कभी पढ़ा नहीं गया। यानी जिन्होंने उसे ख़रीदा था, उन्होंने उसे बहुत जोशोख़रोश से पढ़ने की कोशिश तो की, लेकिन ख़त्म नहीं कर सके। ये और बात है कि ये राज़ उन्होंने अपने तक ही रखना बेहतर समझा है।

लेकिन सैपियन्स सच में ही पढ़ी गई है। समालोचकों ने इसमें कोई ऐसी बात नहीं पाई है, जो पहले से मौजूद ज्ञान-परम्परा में इज़ाफ़ा करती हो और उन्होंने इस श्रेणी में जैरेड डायमंड की गन्स, जर्म्स एंड स्टील को इससे बेहतर कृति बताया है। स्वयं युवाल नोआ हरारी ने सैपिएन्स की रचना में उस पुस्तक की प्रेरणा को स्वीकारा है। किंतु सामान्य पाठकों को इसने भरसक लुभाया है, क्योंकि हरारी ने एक रोमांचक फलक पर कथानक बुना था और उनके पास कहानियां सुनाने का उम्दा हुनर था। पुराने वक़्तों के कथावाचकों की तरह हरारी कहानी के अंत में एक उपदेश सुनाने से भी नहीं चूकते हैं। पाठकों ने इस पर आपत्ति नहीं ली है और उनकी स्थापनाओं को सदाशयता से स्वीकारा है।

हरारी ने मनुष्यता के इतिहास (यह वास्तव में मनुष्यता नहीं होमो सैपियन्स का इतिहास है, जो कि मनुष्यों की अनेक प्रजातियों में एक भर हैं) को तीन खण्डों में बांटा है। 70 हज़ार साल पहले कॉग्निटिव रिवोल्यूशन से इतिहास का आरम्भ उन्होंने स्वीकार किया। मनुष्यता का यह इतिहास 13.5 अरब वर्ष पूर्व बिग बैंग के बाद आरम्भ हुए समय के इतिहास से फ़र्क़ है, क्योंकि यह समाजशास्त्रीय नियमों से संचालित होता है, जो संस्कृतियों को जन्म देते हैं, और समय के इतिहास के मूल कारक यानी भौतिकी, जैविकी जैसे प्राकृतिक नियमों से उसकी निरंतर अंत:क्रिया होती है। कॉग्निटिव रिवोल्यूशन क्यों हुई, इसका जवाब किसी के पास नहीं है, किंतु जेनेटिक म्यूटेशन या दूसरी किसी रहस्यमयी परिघटना ने होमो सैपियन्स को औरों से अधिक मेधावी और महत्वाकांक्षी बना दिया था और वे दुनिया जीतने निकल पड़े थे। 45 हज़ार साल पहले वो ऑस्ट्रेलिया पहुंचे और वहां के पारिस्थितिकी तंत्र को ध्वस्त कर दिया। 16 हज़ार साल पहले उन्होंने अमरीका पहुंचकर यही कारनामा दोहराया। इस बीच 30 हज़ार साल पहले वो मनुष्यों की दूसरी प्रजाति निएंडरथल्स का सर्वनाश कर चुके थे। सहस्राब्दियों बाद यह परिघटना फिर दोहराई गई, जब यूरोपियन ताक़तें ऑस्ट्रेलिया और अमरीका पहुंचीं, तो वहां बसे सैपियन्स-समूहों (एबोरिजिनल्स और नैटिव इंडियंस) को उन्होंने उसी तरह से महत्वहीनता के हाशियों पर खदेड़ दिया, जैसा सलूक़ इन सैपियन्स ने सदियों पहले वहां के मेगाफ़ॉना के साथ किया था।

अनेक समालोचकों ने इस कथानक को रोमांचक पाया है। समस्या तब शुरू होती है, जब हरारी 10 हज़ार साल पहले घटित एग्रीकल्चरल रिवोल्यूशन के स्वरूप पर चर्चा छेड़ते हैं। इसके प्रति हरारी का स्वर आलोचनात्मक है और वो ये संकेत करते हैं कि अनाज, पशुधन और स्वयं मनुष्य-जाति के डोमिस्टिफ़िकेशन ने किसी का भला नहीं किया है। यह तर्क मनुष्य के सभ्यतागत विकास की कहानी को अवमूल्यित करता है, और इसलिए समालोचकों ने एक स्वर से हरारी की इस बिंदु पर निंदा की है। किंतु सैपियन्स लिखते समय हरारी का मक़सद इतिहास की पहले सुनाई जा चुकी कहानियों को दोहराना भर नहीं था, वो एक सभ्यता-समीक्षा भी हमारे सामने प्रस्तुत करते हैं और एग्रीकल्चरल रिवोल्यूशन के ब्योरों के बाद उनकी पुस्तक एक इनडाइक्टमेंट अगेंस्ट मॉडर्न सिविलाइज़ेशन (आधुनिक सभ्यता के विरुद्ध अभियोग-पत्र) बन जाती है। हरारी की विश्वदृष्टि डिस्टोपियन है और वो सैपियन्स की उपलब्धियों के प्रति बहुत गौरवान्वित नहीं हैं। वो अपने स्वर को संशयमूलक और उपहासपूर्ण बनाए रखते हैं। यह मनुष्य-सभ्यता की गौरव-गाथा में आस्था रखने वालों को अखर गया है। हरारी के यहां पश्चिमी सभ्यता के लिए एक प्रतिकूल रुख़ की झलक ने भी गौरांग-प्रभु बुद्धिजीवियों को सशंक किया है।

सैपियन्स में हरारी ने इमेजिन्ड रियल्टीज़ की भी प्रोवोकेटिव अवधारणा रची है और आधुनिक मनुष्य के जीवन को संचालित करने वाले चार तत्वों- ईश्वर, राज्यसत्ता, धन और मानवाधिकार- को उन्होंने परिकल्पित बताया है। ईश्वर की संस्था धर्म है, राज्य की संस्था राष्ट्र है, धन की संस्था आर्थिकी है और मानवाधिकार की संस्था उदारवाद है। हरारी ने उदारवाद, राष्ट्रवाद, पूंजीवाद आदि को विचारधारा न कहकर ह्यूमन-रिलीजन्स की संज्ञा दी है। वे उदारवाद में निहित सब्जेक्टिविटी के प्रति भी सहज नहीं मालूम होते हैं, जो एक इंडिविजुअल की पसंद-नापसंद को अतिशय महत्व देता है। एक उकसावे भरी कोशिश में उन्होंने अमरीकी स्वतंत्रता के घोषणापत्र की तुलना बेबीलोन के निरंकुश सम्राट हम्मूराबी की नियमावली से कर दी है। उन्होंने यह भी कहा है कि फ्रांसीसी, बोल्शेविक और ईजिप्शियन क्रांतियों ने पेरिस, पीतर्सबर्ग और काहिरा के लोगों के जीवन को पहले से सुखमय नहीं बना दिया था। हरारी का निष्कर्ष है कि मनुष्य को पता नहीं है कि उसे क्या चाहिए और उसका सुख किस बात में निहित है, जबकि एग्रीकल्चरल रिवोल्यूशन के बाद से ही वह सुख-सुविधा की अंधी लालसा में खप रहा है।

हरारी के मुताबिक़ मनुष्य के इतिहास की तीसरी बड़ी क्रांति साइंटिफ़िक रिवोल्यूशन है, जो 500 साल पहले आरम्भ हुई और अभी चल रही है। इसने अढ़ाई सौ साल पहले इंडस्ट्रीयल रिवोल्यूशन और कोई पचासेक साल पहले इंफ़ॉर्मेशन टेक्नोलॉजी को जन्म दिया है। भविष्य में बायोइंजीनियरिंग और आर्टिफ़िशियल इंटेलीजेंस किस तरह से मनुष्यता को बदलने जा रहे हैं और सम्भवतया सैपियन्स का अंत करने जा रहे हैं, इस पर पुस्तक के अंतिम हिस्से में हरारी ने सनसनीखे़ज़ चर्चा की है। इसे समालोचकों ने स्पैक्युलेटिव कहकर निरस्त किया है। किंतु पाठकों को इसमें बहुत रस मिला है। इसी ने हरारी को सैपियन्स के बाद होमो देअस लिखने के लिए प्रेरित भी किया था।

सैपिएन्स की मौलिकता इतिहास और जैविकी के बीच एक तारतम्य तलाशने की कोशिश में निहित है और हरारी का मानना है कि भले एवॅल्यूशन एक अंधी, अर्थहीन यांत्रिक प्रक्रिया हो, कॉग्निटिव रिवोल्यूशन के बाद से ही मनुष्य एक भौतिक-मानसिक द्वैधा में जीता रहा है, जिसने उसके अनेक सम्भ्रमों, संशयों, वितृष्णाओं और विक्षोभों को जन्म दिया है। 2014 में छपी इस किताब की अब तक डेढ़ करोड़ से अधिक प्रतियां बिक चुकी हैं, और इसने हरारी को आज सबसे लोकप्रिय पब्लिक इंटेलेक्चुअल्स में से एक बना दिया है। निजी रूप से मुझे हरारी की प्रविधि पसंद आई है। मनुष्य-सभ्यता के विजय-रथ को मैं भी गहरी अरुचि से देखता हूं और आइडेंटिटी डिस्कोर्स को जन्म देने वाली मूढ़ताओं को अरसे से फ़र्ज़ी मानता आ रहा हूं। स्वतंत्रता और समानता के विपर्यय पर भी मेरी पटरी हरारी के साथ बैठी है और लिबरल्स की वस्तुनिष्ठ-प्रज्ञा से शून्य आत्मतुष्टता मुझको भी फूटी आंख नहीं सुहाती। एक और निजी कारण है। हरारी वीगन हैं और अपनी किताब में उन्होंने फ़ैक्टरी फ़ार्मिंग पर कड़ी टिप्पणियां की हैं। पशुओं के साथ क्रूरता को उन्होंने मनुष्य-जाति के इतिहास का सबसे बड़ा अपराध कह दिया है। अपनी जाति के स्वार्थ में अंधे हो चुके मनुष्यों के परिप्रेक्ष्य में यह साधारण टिप्पणी नहीं है, किंतु सौ टका सच है। इससे पूरी तरह सहमत हूं।

मैं सैपियन्स को अपनी पसंदीदा किताबों में शुमार करते हुए ज़्यादा से ज़्यादा लोगों से इसे पढ़ने की सिफ़ारिश करूंगा, ताकि हम अपनी रैशनलिटी के ढीले पढ़ चुके कलपुर्ज़ों को अच्छी तरह से दुरुस्त करने की कोशिश कर सकें और खण्डित सत्य को देखने के बजाय एक व्यापक कथानक पर भरसक नज़र बनाए रख सकें।