सौदागर / माया का मालकौंस / सुशोभित
सुशोभित
लड़का और लड़की चोरों की तरह छुप-छुपकर मिलते।
प्यार चोरी ही थी, अनारकली के हज़ार इनकार करने के बावजूद !
जिस दुनिया में बारिश को भी इंचों और सेंटीमीटरों से मापा जाता, वहाँ प्यार चोरी के सिवा और क्या हो सकता था ?
लड़का और लड़की गुब्बारों के रंग से यह तय करते कि हमें कब मिलना है, कब नहीं।
जिस जगह पर वो मिलते, वहाँ संगेमरमर के ख़ूब सारे बुत रखे होते और सफ़ेद फ्रॉक पहनने वाली लड़की ख़ुद संगेमरमर का एक बुत मालूम होती । जबकि, वो अभी तक गुड्डे-गुड़ियाओं से खेलना भूली ना थी ।
लड़का सिर को मफ़लर से बाँधे रखता । वो इतना मासूम था कि बारिश में भींग जाने पर जब लड़की परदे के पीछे कपड़े बदलती तो वो शर्म से चेहरा छुपा लेता ।
प्यार पाने में नहीं था, प्यार पाने की सरहद पर हमेशा प्यासे बने रहने में था, सन् इनक्यानवे में ये बात सभी को मालूम थी !
वो दोनों दो अलग-अलग दुनियाओं से आते और अपनी एक दूसरी दुनिया बनाते। वो जहाँ पर मिलते, वहाँ पर तमाम दुनियाएँ आपस में मिल जातीं, जैसे छल्लों की कमानें एक-दूसरे से उलझ जाती हैं।
लड़का मायूस होकर कहता-
'दिल तो है पर दिल के अरमान कहाँ से लाऊँ
डोली, सेहरा, कंगन, सब सामान कहाँ से लाऊँ?”
कि इन तमाम सामान के बिना प्यार पर मुहर नहीं लग सकती थी, प्यार मुहरों का मोहताज हुआ जाता था !
लेकिन, मन पर तारा पहनने वाली उस पागल लड़की के लिए इन चीज़ों का कोई मोल ही ना था !
लड़की उसको पंछी कहती, तो कभी परदेसी। कभी जोगी, कभी जादूगर । लड़की के दिल में शुब्हा की एक रत्ती ना थी ।
'सौदागर', वो कहती, और फिर बच्चों की तरह मनुहार के साथ बोलती, 'सौदा कर, दिल ले ले, दिल देकर ।'
कि एक यही सौदा-सुलफ़ क़ायदे का था, करने जैसा था । बाक़ी तमाम सौदे तादों से भरे थे !
सन् इक्यानवे में वो गाना हर तरफ़ था, हवा और धूप की तरह ।
सन् इक्यानवे में भाप के इंजिन चलते थे और रातें नींदों से भरी थीं।
सन् इक्यानवे में एक दिल ही लेने और देने की चीज़ थी, और बाक़ी दुनिया महज़ मीनाबाज़ार थी !