स्कूल में दाखिला / अशोक कुमार शुक्ला
(फ़ालतू की बाते मत करना)
अब की पीढ़ी तो बहुत छोटी उम्र में ही प्रेप और नर्सरी में दाखिल हो जाती है और कुछ एक साल के बाद ही प्राइमरी शिक्षा तक पहुँच पाती है इसलिए शायद ही कोई हो जिसे वो दिन याद रहे जब वो पहली बार स्कूल गए हो ....लेकिन उस जमाने में पांच साल से पहले किसी बालक को स्कूल भेजने के बारे में कम सोचा जाता था.....प्रारंभिक ज्ञान घर पर देने के बाद बच्चे के दाखिले के लिए स्कूल तलाशा जाता था... ऐसा ही मेरे साथ हुआ ....घर पर प्यार दुलार के पढ़ते पढ़ाते जब पिता को यह लगा कि अब इसकी नंगे होकर घूमने की उम्र नहीं रही तो मेरा दाखिला किसी अच्छे स्कूल में कराने के बारे में सोचा। पौड़ी गढ़वाल का "मेसमोर प्राइमरी स्कूल" क्रिश्चियन विद्यालय था तथा अच्छी शिक्षा के लिए इसकी ख्याति थी लेकिन इस स्कूल में दाखिले के लिए तब भी प्रवेश परीक्षा होती थी... मुझे बताया गया कि घर में दुलार पाते पाते अब मेरी उम्र कक्षा दो में दाखिले लायक हो गयी है इसलिए पिता के हिसाब से मुझे कक्षा दोकी प्रवेश परिक्षा के स्तर की तैयारी करनी होगी। माँजी और पिताजी ने कोई दस पंद्रह दिन प्रवेश परिक्षा की तैयारी कराई और आखिर प्रवेश परिक्षा वाला दिन भी आ ही गया. मुझे अच्छी तरह याद है जब माँ ने आँखों में मोटा मोटा काजल और माथे पर उसी काजल के दो काले टीके लगाकर पिता के साथ प्रवेश परिक्षा के लिए भेजा था ...साथ में ढेरों हिदायते भी दीं...जाकर मैडम से नमस्ते करना मत भूलना.... जो पूछा जाय बस उसी का उत्तर देना ....फ़ालतू की बाते मत करना....जो सवाल पूछे उससे बहस मत लगना ...आदि आदि.. ...हालांकि स्कूल दाखिले की प्रवेश परिक्षा में शामिल होने के लिए जाने से पहले माँ ने ढेरों हिदायतों के साथ भेजा था लेकिन वहाँ पहुंचते पहुँचते स्कूल जाने के उत्साह में सारी हिदायतें भूल गया....रास्ते में तरह तरह के सवाल पूछ कर पिताजी को परेशान करता रहा....पिताजी भी धैर्य पूर्वक शंका समाधान करते रहे प्रवेश परीक्षा की बस धुंधली सी याद बाकी है जिसमें गणित के कुछ आसान सवाल, एक छोटा सा इमला और अंग्रेजी की वर्णमाला लिखने को कहा गया था। मैंने फ़टाफ़ट इन्हें पूरा कर लिया तो मौखिक साक्षात्कार के लिए हेड मिस्ट्रेस के पास मुझे और पिता दोनों को भेज दिया गया... हेड मिस्ट्रेस मैम ने बहुत मीठी और प्यार भरी आवाज में जो भी सवाल पूछे मैं फटाफट उनके जवाब देता रहा तो उन्होंने प्यार से पुचकारते हुए मुझे अपनी ओर खींच लिया...और पूछा- "तुम्हारी आँखों में यह काजल किसने लगाया बेटा?" मैंने चहककर बताया-"मेरी मांजी ने...! वो तो रोज ऐसे ही लगाती है...काजल लगाने से आँखे बड़ी बड़ी हो जाती हैं ना...इसलिए लगाती हैं..!!" एक सवाल के जवाब में इतनी बड़ी कहानी सुनने के बाद इसी तरह के कुछ और सवाल हुए और उनके जवाब सुनने के बाद वो मेरे सिर के बालों और गालों को सहला रही थीं तो मैंने सिर से उनका हाथ हटाया और कहा- "बाल ख़राब हो जायेंगे ..मांजी ने बनाए हैं...!" मेरे इस जवाब ने तो उन्हें चमत्कृत कर दिया मेरे गाल नोचते हुए उन्होंने मुझे पिता की ओर भेज दिया। अब शायद पिता ने वार्तालाप में उन्हें बताया होगा कि वो मेरा दाखिला सीधे दुसरे दर्जे में कराना चाहते हैं तो मैम ने बताया कि यह बच्चा तो तीसरी कक्षा के लायक है..फिर क्यों न इसे सीधे तीसरी कक्षा में दाखिल कर दिया जाय? पिता ने हामी भर दी और इस तरह कक्षा दो में भरती होने के लिए आया बालक सीधे कक्षा तीन में दाखिल हो गया....। अगले दिन से स्कूल आने के निश्चय के साथ मैं पिता के साथ प्रसन्नता पूर्वक घर लौटा तो मेरी यह विजय गाथा माँ को सुनायी गयी । अब सोचता हूँ की शायद यही वह पहला अवसर रहा होगा जब मैंने माँ और पिता को गौरवान्वित होने का अवसर उपलब्ध कराया था... ......माँ ने कुछ लाल मिर्चे मेरे सिर के ऊपर फिराकर आग के हवाले करीं और यह बताया कि नजर उतार दी है.... माँ आज भी वैसी ही है कहती है इतनी अच्छी अच्छी फोटो फेसबुक पर मत डाला करो ...नजर लग जायेगी.... मैंने माँ को बताया है कि इसलिए ये सुन्दर फोटो काली करके प्रोफाइल पर डाली है ताकि बुरे नजर न लगे.....