स्कूल में पहला दिन / अशोक कुमार शुक्ला
("हम सब उसी ईसा मसीह की संतान हैं" )
मेस्मोर प्राइमरी स्कूल की दाखिला परीक्षा में सफल होने के बाद नया बस्ता, नयी किताबें और नयी पोशाक के साथ पहले दिन जब पिता के साथ स्कूल भेजा गया...तो पिता मुझे विद्यालय में सुबह की प्रार्थना में छोड़कर चले गए....। एक मैडम जिन्हें विक्टर मैम्म कहा जाता था ने कक्षा तीन की पंक्ति की बालिकाओं को कुछ हिदायत देकर मुझे भी उनके साथ खडा कर दिया.. चार बड़ी बालिकाए सामने आकर खड़ी हो गयीं और कुछ ही देर में सावधान और विश्राम के स्वर गूंजने लगे ..."वह शक्ति हमें दो दया निधे कर्तव्य मार्ग पर डट जाएँ....." इन शब्दों के साथ प्रार्थना आरम्भ हुयी। मैं भी कुछ देर हाथ बांधे खडा रहा फिर हाथ सीधे करने चाहे तो साथ खड़ी लड़कियों ने पुनः हाथ जोड़कर खड़े रहने का इशारा किया..... यह प्रार्थना समाप्त होने पर एक अध्यापक ने बोलना प्रारम्भ किया- "मेरे प्यारे ईसा मसीह! हम तेरा धन्यवाद करते है कि तूने हमारी जिन्दगी में एक और दिन हमें दिया.........आदि....आदि....आमीन!!" मैंने गौर किया कि जब यह सब बोला जा रहा था तो सारे बच्चे हाथ जोड़कर आँख मूंद कर चुपचाप खड़े थे..... शंकर जी, हनुमान जी और गणेश जी से अलग एक इसाई भगवान् प्रभु ईशु भी हैं जिनकी प्रार्थना की जाती है यह मैंने पहली बार जाना था..... हेड मिस्ट्रेस मैसी मैडम थीं जिनकी बेटी का नाम "बेबी" था, ने बताया ...."हम सब उसी ईसा मसीह की संतान हैं" .....बेबी भी तीसरे दर्जे में ही पढ़ती थी और क्लास मानीटर थी... उसे ख़ास हिदायत दी गयी थी कि इस नए आये बच्चे को स्कूल और कक्षा के रीति रिवाजों से परिचित कराये..... क्लास मानिटर बालिका बेबी ने अपना उत्तरदायित्व बखूबी निभाया भी....उसने इंटरवेल में टिफिन खाने का उपक्रम अपने साथियो में मुझे भी शामिल करते हुए पूरा किया। इसके बाद बारी आयी कैंटीन से लाये गए चूरन को चाटने की... सच में टिफिन खाने का कार्य उतना आकर्षक नही था जितना चूरन चाटने का....दरअसल दस दस पैसे में मिलने वाला चूरन का पैकेट बच्चों में अत्यंत लोकप्रिय था। ......शायद स्कूल कैंटीन का बेस्ट सेलिंग आइटम भी रहा हो.....