हिन्दी साहित्य में स्थान / गोस्वामी तुलसीदास / रामचन्द्र शुक्ल

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जो कुछ लिखा जा चुका, उससे तुलसीदासजी की विशेषताएँ कुछ न कुछ अवश्य स्पष्ट हुई होंगी। काव्य के प्रत्येक क्षेत्रों में हमने उन्हें उस स्थान पर देखा, जिस स्थान पर उस क्षेत्रों का बड़े से बड़ा कवि है। मानव अन्त:करण की सूक्ष्म से सूक्ष्म वृत्तियों तक हमने उनकी पहुँच देखी। बाह्य जगत् के नाना रूपों के प्रत्यक्षीकरण में भी हमने उन्हें तत्पर पाया। काव्य के बहिरंग विधान की सुन्दर प्रणाली का परिचय भी हमें मिला। अब उनकी सबसे बड़ी विशेषता की ओर एक बार फिर ध्याेन आकर्षित करके यह वक्तव्य समाप्त किया जाता है।

यह सबसे बड़ी विशेषता है उनकी प्रबन्धपटुता जिसके बल से आज 'रामचरितमानस' हिन्दी समझनेवाली हिन्दू जनता के जीवन का साथी हो रहा है। तुलसी की वाणी मनुष्य जीवन की प्रत्येक दशा तक पहुँचनेवाली है; क्योंकि उसने रामचरित का आश्रय लिया है। रामचरित जीवन की सब दशाओं की समष्टि है, इसका प्रमाण 'रामाज्ञाप्रश्न' है जिससे लोग हर एक प्रकार की आनेवाली दशा के सम्बन्ध में प्रश्न करते और उत्तर निकालते हैं। जीवन की इतनी दशाओं का पूर्ण मार्मिकता के साथ जो चित्रण कर सका, वही सबसे बड़ा भावुक और सबसे बड़ा कवि है, उसी का हृदय लोक हृदय स्वरूप है। ऋंगार वीर आदि कुछ गिने गिनाए रसों के वर्णन में ही निपुण कवि का अधिकार मनुष्य की दो एक वृत्तियों पर ही समझिए, पर ऐसे महाकवि का अधिकार मनुष्य की सम्पूर्ण भावनात्मक सत्ता पर है।

अत: केशव, बिहारी आदि के साथ ऐसे कवि को मिलान के लिए रखना उसका अपमान करना है। केशव में हृदय का तो कहीं पता नहीं। वह प्रबन्धपटुता भी उनमें नाम को नहीं जिससे कथानक का सम्बन्ध निर्वाह होता है। उनकी रामचन्द्रिका फुटकर पद्यों का संग्रह सी जान पड़ती है। वीरसिंहदेवचरित में उन्होंने अपनी हृदयहीनता की ही नहीं, प्रबन्धरचना की भी पूरी असफलता दिखा दी है। बिहारी रीति ग्रन्थों के सहारे जबरदस्ती जगह निकाल निकालकर दोहों के भीतर ऋंगारस के विभाव, अनुभाव और संचारी ही भरते रहे। केवल एक ही महात्मा और हैं जिनका नाम गोस्वामीजी के साथ लिया जा सकता है और लिया जाता है। वे हैं प्रेमस्त्रोतस्वरूप भक्तवर सूरदासजी। जब तक हिन्दी साहित्य और हिन्दीभाषी हैं, तब तक सूर और तुलसी का जोड़ा अमर है। पर जैसा कि दिखाया जा चुका है, भाव और भाषा दोनों के विचार से गोस्वामीजी का अधिकार अधिक विस्तृत है। न जाने किसने 'यमक' के लोभ से यह दोहा कह डाला कि 'सूर, सूर तुलसी ससी, उडुगन केशवदास'। यदि कोई पूछे कि जनता के हृदय पर सबसे अधिक विस्तृत अधिकार रखनेवाला हिन्दी का सबसे बड़ा कवि कौन है तो उसका एक मात्र यही उत्तर ठीक हो सकता है कि भारतहृदय, भारतीकंठ, भक्तचूड़ामण्श्नि गोस्वामी तुलसीदास।

समाप्त।