हिरोशिमा पर बम / बावरा बटोही / सुशोभित

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हिरोशिमा पर बम
सुशोभित


मेरी अनेक कामनाओं में से एक है कर्नल पॉल टिबेट्स की चेतना में प्रवेश करना।

कर्नल पॉल टिबेट्स 509वें कम्पोज़िट ग्रुप का कमांडर था, जिसके बमवर्षक विमान-दस्ते ने 6 अगस्त 1945 को हिरोशिमा पर लिटिल मैन नामक एटम बम गिराया था।

जिस बोइंग बी-29 सुपरफ़ोर्ट्रेस बॉम्बर से हिरोशिमा पर वह बम गिराया गया था, उसका नाम एनोला गे था। पॉल टिबेट्स की मां का भी यही नाम था। पॉल ने अपनी मां के नाम पर एटम बम गिराने वाले उड़नखटोले का नामकरण किया था।

एटम बम गिराने की ज़िम्मेदारी मेजर थॉमस फ़ेरेबी ने निभाई थी। सुबह ठीक 8 बजकर 15 मिनट पर बम को विमान से पृथक कर दिया गया था।

बम ने हिरोशिमा शहर की सतह को छूने में 44.4 सेकंड का समय लिया।

मैं टिबेट्स और फ़ेरेबी की चेतना में ऐन इन्हीं 44.4 सेकंड के लिए कायाप्रवेश करना चाहता हूं।

कैसा लगता होगा, जब आप अपनी मां के नाम पर आधारित एक विमान से, अभी-अभी नींद से जागे एक शहर पर दुनिया का सबसे घातक बम गिराते हैं, और फिर अगले 44 सेकंडों तक अपने किए के प्रतिफल की धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करते हैं। तब आपकी चेतना का मानचित्र कैसा होता होगा!

509वें कम्पोज़िट ग्रुप के सभी सदस्यों को अंदाज़ा नहीं था कि वे क्या करने जा रहे हैं। उनमें से कुछ ने जब आकाश से इस विनाशलीला का मुआयना किया, तो उनके भीतर ग्लानि का एक 'मशरूम क्लाउड' उठा और उनके अंतःकरण पर छतरी की तरह तन गया।

हे ईश्वर, यह हमने क्या कर दिया - यही उनके शब्द थे। वो एक लैंडस्केप ऑफ़ मास डिस्ट्रक्शन के ऊपर किसी चील की ही तरह मंडरा रहे थे!

मैं उनके भीतर भी एक बार कायाप्रवेश करना चाहता हूं।

लेकिन मैं टिबेट्स, फ़ेरेबी और विमान-दस्ते के अन्य सदस्यों की ही चेतना में दाख़िल नहीं होना चाहता, मैं हिरोशिमा शहर के उन लोगों की आत्मा में भी पैबस्त होना चाहता हूं, जिन्होंने अपने सिर पर उस बला को गिरते हुए देखा था और अगले ही पल एक तीखी रौशनी के साथ वाष्पीभूत हो गए थे।

वो क्षण इस सृष्टि के सामूहिक अवचेतन में कहीं तो दर्ज़ होगा, मुझे उस तक एक्सेस चाहिए!

मुझे पाप और पछतावे, अपराध और ग्लानि, विजेता और पराजित, बमवर्षक और बम से झुलसे, सभी की चेतना में प्रवेश चाहिए। एक यही भूख मुझे व्यग्र किए रहती है। क्योंकि एक यही ईश्वरीय अनुभूति है! ईश्वरीय अनुभूति केवल दिव्य और पवित्र ही नहीं है! मैं ग्लानि और गौरव के चरम को अनुभव करना चाहता हूं।

सहानुभूति एक बहुत लचर शब्द है। सहानुभूति से कुछ नहीं होता। आपकी चेतना को ठीक उसी जगह पर होना चाहिए, अनुभोक्ता की तरह। किंतु यह सम्भव नहीं।

आप मृत्यु के साक्षी होते हैं, किसी को मरता हुए देखते हैं। अगर वह प्रिय है, तो उसकी मृत्यु आपको कष्ट भी दे सकती है। किंतु तथ्य तो यही है कि जब वह मर रहा था, तब आपका दिल ख़ून को ठीक तरह से पम्प कर रहा था और आपके गुर्दे सही-सलामत थे। क्लिनिकल अर्थों में, ना केवल आप जीवित थे, बल्कि स्वस्थ भी थे।

एक व्यक्ति के लिए दूसरा कितना असम्भव है, इसका अनुभव आपको तभी होता है, जब ठीक आपके बीच में से कोई उठकर चला जाए, जिसके बारे में आपको लगता था कि वह अलार्म घड़ी को कभी धोखा नहीं देगा।

मुझे ओलिम्पिक के छल्ले आकृष्ट करते हैं, जिनकी परिधियाँ आपस में उलझी होती हैं- ओवरलैपिंग रिंग्स बनाती हुई।

किंतु हमारी चेतनाओं के छल्ले सर्वथा भिन्न होते हैं, वे एक दूसरे को छूते भी नहीं।

जो बम गिराता है, वह बम गिराता है। जो बम धमाके में मरता है, वह बम धमाके में मरता है। जिसको इसका पछतावा होता है, उसको इसका पछतावा होता है। किंतु इनमें से कोई भी दूसरे की नियति में कोई रद्दोबदल नहीं कर सकता।

हमदर्दी एक निहायत ही लचर लफ़्ज़ है। उससे कुछ नहीं होता, बशर्ते आप हमदर्दी के ही भूखे ना हों, और हमदर्दी की भूख चेतना की निकृष्ट अवस्था है।

सच तो यही है कि आपकी चेतना और अनुभूति की सब्जेक्टिविटी एक ऐसा अनुल्लंघ्य प्रतिमान है, जिसमें आप पूरी तरह जकड़े जा चुके हैं। जबकि मैं संज्ञान के समस्त का साधक होना चाहता हूँ! द कम्प्लीट कॉग्निशन!

मुझे सर्व-चेतना चाहिए, विश्व-चेतना चाहिए, उससे कम में मेरी भूख नहीं मिटने वाली।

आकाश से कोई तारा टूटकर गिरे, तो मुझे अनुभव होना चाहिए कि मेरे भीतर कुछ टूटा है।

और लावे का कोई पिंड किसी पर्वत से फूटे तो मुझे अनुभव होना चाहिए कि मेरी आंतों में कुछ जल रहा है।

ख़ोर्ख़े लुई बोर्ख़ेस ने 'अलेफ़' नामक एक एेसे बिंदु की कल्पना की है, जो सृष्टि के सभी समीकरणों का समुच्चय हो। मुझे वह 'अलेफ़' अपने भीतर चाहिए।

मैं ईश्वर से सम्भवतया इसीलिए प्रेम नहीं कर पाता, क्योंकि उससे प्रतिस्पर्धा करता हूं, डाह रखता हूं।

और जहाँ प्रतिस्पर्धा है, वहाँ प्रेम कैसे हो?