24 अक्टूबर, 1941 / अमृतलाल नागर

Gadya Kosh से
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कल से कसरत करना शुरू कर दिया है। बदन के जोड़-जोड़ में उसके कारण दर्द हो रहा है। मौलाना कहते हैं, कसरत शुरू में दो महीने तक बड़ी तकलीफ देती है। जो भी हो, अब तो इसे छोड़ूँगा नहीं - यही मेरा निश्‍चय है। प्रभु इसे निबाह दें। मैं भी अपना बदन गठीला बना हुआ देखना चाहता हूँ।

कल से 'संगम' के बकाया हिस्‍से की शूटिंग चल पड़ी है। दिन भर सेट पर ही बीता है।

आज 'खजांची' देखा। कहानी क्‍या है, बस वो मसल है कि 'कहीं की ईंट, कहीं का रोड़ा - भानमती ने कुनबा जोड़ा' - मगर इस पिक्‍चर को सफल जाना ही चाहिए था। इसमें वो 'मास-अपील' का मसाला मौजूद है। भगवान, मेरे 'संगम' को भी 'फ्लूक' बनाकर निकाल दें तो मुझे भी फायदा हो। सब कुछ प्रभु कृपा पर निर्भर है।

आज विनायकराव मुझसे कहते थे कि 'संगम' की पब्लिसिटी के संबंध में तुम भी चिंचलीकर के साथ दिल्‍ली जाओ।

आज बच्‍चों की याद बड़ी आ रही है। भगवान मेरे भाइयों और बच्‍चों तथा सारे परिवार को शतायु प्रदान करें और अखंड सुख दें। तथास्‍तु! - प्रभु तुम्‍हारी जय हो !