26 अक्टूबर, 1941 / अमृतलाल नागर

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कल रानडे ने एक मजाक सुनाया। 'सरकारी पाहुणे' का 'ट्रीटमेंट' टाइप करने को दिया गया। रानडे ने लिखा था : A bullock-cart drawan by ten bullocks. टाइप होकर आया। "A bullock-cart drawan by ten horses." दुबारा ठीक करने के लिए भेजा गया। टाइप होकर आया! A bullock-cart drawan By Manutai. मनुताई फिल्‍म की हीरोइन का नाम है। टाइपिस्‍ट रौ में इस बार 'मनुताई' टाइप कर गया।

कल रात राजू और गोविंद को पत्र लिखा और 12 बजे सो गया। मौलाना शहर गए हुए थे।

आज सुबह से संपादक की कुरसी जोर मार रही है। तबीयत एक मासिक-पत्रिका को हाथ में लेने के लिए मचल रही है। हिंदी में इस समय कोई भी ऐसी मासिक पत्रिका नहीं जो आज के साहित्यिक-जगत के सामने अभिमान के साथ रखी जा सके। सबकी सब उसी दकियानूसी ढंग पर चली जा रही हैं। मेरा इरादा है एक ऐसी पत्रिका निकाली जाए जो साहित्‍य के सभी अंगों की पुष्टि कर सके। उसमें मनन और स्‍वाध्‍याय की ठोस सामग्री हो। साधारण पाठक वर्ग के लिए भी काम उठाने का काफी साधन हो। हिंदी में इस वक्त बड़ी मनमानी और धाँधलेबाजी मची हुई है। गत से काम करने की तरफ किसी का ध्‍यान नहीं जाता। रामविलास शर्मा ऐसे उत्‍साही साहित्‍य-सेवियों की बड़ी जरूरत है। हिंदी में अच्‍छे-अच्‍छे लेखक पैदा किए जाएँ। विद्वानों का सहयोग प्राप्‍त किया जाए। मान लीजिए कि दुर्भाग्‍यवश बहुत से ऐसे विद्वान मौजूद हैं, जो अपनी मातृभाषा की सेवा करने की रुचि नहीं रखते। उन्‍हें उकसाया जाए। पहले यदि वो अंग्रेजी में भी लिखें तो उनसे लीजिए। संपादक खुद अनुवाद करके उसे छापे। ऐसे तीन-चार लेख जहाँ निकालें, फिर उनसे कहा जाए कि आप जैसी भी भाषा बने-हिंदी में ही लिखिए। बहुत से तो बस इसी वजह से संकोच करते हैं कि उनके पास भाषा नहीं। अगर उनका यह डर संपादक निकाल दें तो साल-छह महीने बाद वह सुंदर और सुचारु रूप से लिखने लगेंगे। ऐसे लोगों की भाषा भी जटिल न होकर प्राकृतिक बोलचाल की भाषा ही बनेगी। इस तरह हिंदुस्‍तानी का मसला आप ही आप हल हो जाएगा। कोई भी तकलीफ न होगी। संपादक लोग जरा भी मेहनत नहीं करते। उनमें स्‍फूर्ति ही नहीं। संपादक की कुरसी पर बैठकर, बस, लोग अभिमान से फूल जाते हैं - काम कायदे से करते ही नहीं। उन्‍हें लेखक बनाने का परिश्रम उठाने में शर्म मालूम पड़ती है। आशीर्वाद और उपदेश वो लोग बाँट सकते हैं। दौड़-धूप कर कायदे के विद्वानों का सहयोग प्राप्‍त नहीं करते। संपादक भी आम तौर पर जाहिल और बुद्धू ही है। हे ईश्‍वर, किस दिन हिंदी साहित्‍य का सूर्य चमकेगा!

10 बजे रात

योग की व्‍याख्‍या करते हुए महर्षि पतंजलि अपने योग-दर्शन के द्वितीय सूत्र में कहते हैं : योग * चित्‍तवृत्ति निरोधः चित्‍त की वृत्तियों को रोकना दो प्रकार से संभव बतलाया गया है।

(1) संप्रज्ञात (2) असंप्रज्ञात।

इसके पहले कि इन दो प्रकार के योग साधनों का भेद बताया जाए, पतंजलिजी की परिभाषा के अनुसार चित्‍त के पाँच प्रकारों को समझ लेना आवश्‍यक है -

(1) क्षिप्‍त (2) मूढ़ (3) विक्षिप्‍त (4) एकाग्र (5) निरुद्ध।

क्षिप्‍त - चित्‍त की उस अवस्‍था को कहेंगे जब उसमें निरंतर रजोगुण का प्राधान्‍य रहे।

मूढ़ - तामसी वृत्तियों के प्राबल्‍य से जब चित्‍त विवेकरहित हो जाए - ऐसा, जैसे कि मनुष्‍य निद्रावस्‍था में ज्ञान एवं चेतनता शून्‍य हो जाता है।

विक्षिप्‍त - इस प्रकार के चित्‍त में चंचलता अधिक होती है, वह कभी-ही-कभी स्थिर हुआ करता है। विक्षिप्‍त में प्रायः सतोगुण और रजोगुण की प्राधान्‍यता रहती है। तामस कम रहता है। विक्षिप्‍त की क्षणिक स्थिरता में ही एकाग्रता भी संभव है और एकाग्रता के कारण सात्विक वृत्तियों का पोषण भी संभव है, जिनके द्वारा योग के मार्ग, या यों कहना चाहिए कि योग के प्रवेश द्वार तक पहुँच जाना मनुष्‍य के लिए संभव है।

पातंजलि के मतानुसार क्षिप्‍त और मूढ़ प्रकारों के चित्‍त में योग का आभास भी होना संभव नहीं, क्‍योंकि उनमें सतोगुण का अभाव है।

एकाग्रता - किसी भी विषय-विशेष को लेकर उसी में रम जाना। उदाहरणार्थ हम sex को ही ले लें। sex को लेकर यह भी संभव है कि हम तमोगुण को प्राधान्‍यता दें, क्‍योंकि sex के संबंध में सोचते ही शारीरिक उपभोग...। रजोगुण भी संभव है कि हम उस सुख के मद में चूर हो जाएँ, परंतु इन दोनों गुणों को छोड़कर हम सतोगुण प्रधान चित्‍त से sex के संबंध में विचार कर सकते हैं। उस समय हमारा चित्‍त केवल अध्‍ययन के तौर पर ही इस विषय की विवेचना करेगा। ऐसा करते समय इंद्रिय-उपभोग की लालसा भी हमारे ध्‍यान में नहीं आएगी। एकदम ही न आए, यह तो मैं नहीं कह सकता, परंतु यदि सात्विक वृत्ति विशेष है तो वह राजस और तामस का नाश करने में निश्‍चयतः सफल होगी।

इस सात्त्विक वृत्ति विशेष एकाग्र-चित्‍त में ही संप्रज्ञात योग होता है। संप्रज्ञात (consciousness) हमारे में जागृत रहती ही है। हमें यह ध्‍यान रहता ही है कि इस समय हम इस विषय-विशेष का मनन कर रहे हैं।

इस तरह conscious state of mind से जो विषय का सीधा (direct) योग सात्त्विक रूप से होता है वह संप्रज्ञात योग हुआ।