अखबार क्रान्ति / अमृतलाल नागर
Gadya Kosh से
अखबार क्रान्ति
प्रेस और अखबारों ने समाज-सुधार आन्दोलन, नागरी प्रचार आन्दोलन एवं राजनैतिक आन्दोलन को बढ़ाने में बहुत बड़ा हाथ बटाया। छापे के अक्षर पढ़े-लिखे समाज के लिए विधाता के लेख की भांति अटल और विश्वसनीय हो गए। पुराने बुजुर्ग, जो हर नई चीज का विरोध करते थे, अखबार का भी विरोध करते थे। परन्तु इस विरोध के साथ एक आश्चर्यजनक बात मैंने एक नहीं अनेक बुर्जुर्गों से सुनी है- कई बड़े-बूढ़ों का यह ख्याल है कि जब से अखबार चले तब से महंगाई बढ़ गई।