अगन-हिंडोला / भाग - 14 / उषा किरण खान

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रास्तों की परेशानी दूर करने के लिए सभी इबादतगाहों की ओर जाने के लिए सड़कें चाहिए. वह हिंदुओं का हो या मुसलमानों का। तभी याद आया कि उनपर तीरथ जाने का जजिया वसूला जाता है। यह सही नहीं है। अपने-अपने कौम की इबादतगाहों में जाने के लिए फाजिल जजिया क्यों उगाहा जाय। आज गया की इस धरती पर ऐन फजिर की नमाज के वक्त यह ख्याल आया है तो रोहतासगढ़ पहुँचते ही ऐलान करना होगा। एक छोटी-सी जागीर के शिकदार होते ही शेर खाँ ने खेत की मालगुजारी कम कर दी थी अब तो दिल्ली की तख्त पर बैठने जा रहा है। इस तरह के तमाम फिजूल मालगुजारी माहसूल बंद करेगा। सैकड़ों साल से राज यूँ ही नहीं किया है। जैसे ही ऐसे फिजूल खर्चे थोपे गए शाही फरमान के ऐलान से वैसे ही सुल्तानी गई समझो। हम ऐसा नहीं करेंगे। रियाया खुश रहेगी खेती चलती रहेगी तो आप से आप खजाने भरेंगे। इतनी ज़्यादा पढ़ाई की है, उसका कायदे से इस्तमाल करेगा शेर खाँ। गुलाब कुँअर नैना बनजारन की गोद में डाल दी गई थी। नैना ने उसे सीने से लगाया और अपने मरद मानुस से कहा-"इस देस से उखाड़ो तंबू चलो पश्चिम की ओर जिधर समंदर है। इस सोने-सी बच्ची को महाराज की अमानत समझ पालूँगी इसके पैरों में न घुंघरू बँधेगी न ये किसी के आगे नाचेगी। हम नाच गाकर इस राजकुमारी का साज सिंगार बरकरार रखेंगे।"-नैना का कहना था कि सारे बनजारे अपने तंबू उखाड़ पच्छिम की ओर चल पड़े। वह व्यौपारियों का देस था, सेठों साहूकारों का। नैना का कुनबा रुका, पड़ाव डालकर पास दूर के गाँव में जाकर रोजी कमाता। करतब दिखातें, नाचते गाते ज़िन्दगी की गाड़ी आगे खींचते। सात साल की बच्ची गुलाब कुँअर थोड़े ही दिनों में इन लोगों के साथ घुलमिल गई. उनके बच्चों के साथ खेलती, घर द्वार बनाती तंबुओं में रहने वाले बच्चे खेल-खेल में खूबसूरत बालू की डेवढ़ियाँ बनाते। गुलाब कुँअर के जहन में अपना किला था सो वह विस्तार देकर किला और सिंह दरवाजा बनाती बनजारे बनजारिने देखतीं और दिल ही दिन में आहें भरतीं। कैसी है यह तख्त की जंग जिसमें औरतें जल मरती हैं, बच्चे यदि जिंदा बच गए तो बेसहारा हो जाते हैं। इन बनजारों के साथ घुल-मिलकर इनकी संख्या सदा बढ़ाते रहते हैं। नैना बनजारन लहँगे में कशीदाकारी कर रही थी कि जीतू आया। जीतू छरहरा लंबा साँवला-सा युवक था। उसके कंधे पर मानुष तीर टँगे थे। उसने माथे पर कौड़ी टँके पट्टे पहन रखे थे। कमर में चूनर का गमछा बाँधे थे। कालें रंग के सुत्थन पर हरे रंग के चूनर का गमछा। बड़े-बड़े जुल्फों को बाँधने वाला पट्टा लाल चूनर पर टँका था। कुल मिलाकर जीतू एक छैल छबीला नौजवान था। नैना बनजारन ने उसकी झोली में ढेर सारे फल देखे। "क्या लाया जीतू?"-उसने पूछा "अमरूद हैं जिज्जी, जंगली हैं छोटे-छोटे कड़े पर मीठे हैं।"

"बच्चों में बाँट दे।" जितू ने सभी बच्चों को बुलाकर अमरूद बाँट दिए. बच्चे जानते थे कि सबों को मिलेंगे फिर भी एक के उपर चढ़े आ रहे थे। गुलाब कुँअर किनारे खड़ी निहार रही थी, जितू ने पुकारा "ओ महारानी, तुझे नहीं चाहिए क्या?"-उसने हाँ में सिर हिलाया और अपने हाथों को देखा उसमें बालू लगे थे। वह दौड़कर घिड़ौंची के पास गई कि दूसरी बनजारन ने रोका।

"बिटिया, रुक मैं देती हूँ पानी घड़ा गिर जायगा।"-उसी ने लोटे में पानी निकाल उसके हाथ घुलवा दिए. जीतू उसे देखकर हँसने लगा और सबसे अच्छे अमरूद थमाते हुए कहा-"यह बिल्कुल साफ है, धोने न लगना।"-मन ही मन सोच रही थी नैना बनजारन कि यह सब कुछ दिन चलेगा जब तक राजसी आदत है फिर वैसी ही हो जायगी जैसी हम हैं। जीतू को मालूम भी नहीं कि वह किस राजघराने का बेटा है। मालवा के राजघराने के 5 पाँच लड़के इन्हें हिजड़ा बनाने को दिए गए थे, नैना ने इसे दूर पुआल की ढेर में छुपा दिया था। चार का बधिया कर नवाब के यहाँ पहुँचा दिया गया पाँचवें के बारे में कह दिया गया कि उसे रात में सियार उठा ले गए. ये घुमंतू बनजारे मालवा से डेरा उठाकर दूर दूसरे राज्य की सीमा में जा बसे। इनकी यही आदत है बड़ी औरतों को हरम में ले गए बच्चियों को रक्कासा बनाने बनजारों को दे देते और लड़कों को अगर जिंदा छोड़ते तो हिजड़ा बनाकर। वे नस्ल ही खत्म करना चाहते। जीतू को नहीं पता है कि वह मालवा के किसी राजा का चश्मे चिराग था। नैना पक्के तौर पर जानती है कि ये बनजारों की बस्ती बसी ही ऐसे है। सुलतानों के नफरत की पैदाइश है यह कौम। इनके कोई नहीं न अल्लाह न भगवान। इनका ईश्वर है पंचतत्व क्षिति जल पावक गगन और समीर, इनका ईश्वर है अन्न जो धरती देती है, जल जो ज़रूरी है जिसके कारण भी इनके तंबू उखड़ते रहते हैं। इन्हें आग जुगाड़कर रखना होता है, आकाश ही इनका घर है, हवा का रुख देख आपदा पहचानने की क्षमता है, क्योंकि आपदा के कारण ही तो अनिकेत हैं। कई बार जीतू ने पूछा नैना से-"जिज्जी, हमारे माई-बापू कहाँ चले गए?"

"ऊपर" -उँगली तान देती नैना।

"काहे? जिज्जी मेरी माई तुम्हारी माई भी थी न?"

"वो हमारी चाची थी, तू मेरी छोटी चाची चाचा का बेटा था मेरे लाडले।"

"मैं इस गुलाब की तरह कहीं से उड़के तो नहीं आया"

"नहीं रे। पर ऐसा नहीं बोलते गुलाब को दुख होगा।"

"तुम्हें कहता हूँ न, उसे न कहूँगा।"

भूलकर भी न कहूँगा।

"मेरे पास है, मेरी भी तो कुछ है।"-नैना इस कुछ से चौक गई. ठीक तो कहता है। पर क्या है गुलाब? नहीं है तो कुछ बनना होगा। इस दीन दुनिया में जो उथल पुथल चल रही है उसमें इनके राजपाट लौटने की सूरत तो नजर नहीं आती। नैना सोच रही है कैसे बदलेगी सूरत पूरनमल जीतेगा तो अफगान पठान औरतों को रक्कासा बनाएगा, अफगानों को काट डालेगा, पठान जीतेंगे तो वह नचवाएँगे एक कदम आगे बढ़कर हिजड़ों की फौज तैयार करेंगे। कुछ दिनों में हम बनजारे ही रह जाएँगे अमन पैदा करने उन्हें बरतने। ऊह, ठीक है कि हम किसी राजपाट के लिए नहीं लड़ते, पाँवरियों और बक्खो की तरह नाचने गाने की जगह भी तय नहीं कर रखी है जहाँ जी चाहता है चल देते हैं बैलों पर लादकर अपना कुनबा। टट्टू और बकरियों चलती हैं साथ। गाँव-गाँव घूमो ठाँव-ठाँव तंबू गाड़ो। न किसी भूमि के राजा हैं न किसी सुलतान की रैयत। राजधनी के आजू-बाजू में रहकर ज़्यादा बुरा लगता है। जब तब हमले हो जाते हैं, मार-काट होती है। खून-खच्चर का यह बुरा मंजर हमें नाकाबिले बर्दाश्त होता है पर करें क्या, जहाँ-जहाँ तंबू गड़ते हैं उस जमीन को भले ही ऊपर वाले ने बनाया हो चलती उनकी कुछ नहीं। चलती उनकी है जिसका कब्जा होता है और कब्जे के लिए ही तो लड़ाइयाँ होती हैं। रात को सारे बच्चे सो गए तब नैना बनजारन ने बनजारा सरदार से बड़े बुजुर्गो के साथ बैठकर विचार किया-"इस राजकुमारी के साथ क्या किया जाय?" कंजी आँखों वाले अतिवृद्ध बनजारे ने कहा-"हम कर क्या सकते हैं?" "इसकी तकदीर में बनजारिन बनना लिखा है नैना"-सरदार ने आकाश निहारते हुए कहा। वह देख रहा था कि कितने कलंदर आए सिकंदर आए आज वे आसमान में तारे बन चमक रहे हैं, धरती को अपनी खूँरेजी से लाल कर उपर जा विराजते है वहाँ से देखते हैं कि एक भी पौध लाल पत्तियाँ लेकर कहाँ उगता है, सबके रंग धानी हरे होते हैं। फिर भी नहीं सँभलते। "हमें मालूम है सरदार, हमें यह भी मालूम है कि गुलाब कुँअर को हम नहीं नाच करने देंगे पर उसकी नस्ल नहीं नाचेंगी यह कौन कह सकता है?"

"हममें से कितने अफगान नस्ल के हैं क्या वे नहीं नाचते, उनकी क्या निशानदेही है? हम सब बनजारे हैं।"-बूढ़े बनजारे ने कहा।

"सीधे मुद्दे पर आ नैना कहना क्या चाहती है?"-बूढ़ी बनजारन बोली "कहना है कि कमाऊ बनजारा जो हमारी नजर में गुलाब कुँअर के लायक है से इसकी सगाई कर देनी चाहिए."

"ठीक सोचा है।"-बूढ़ी बनजारन ने कहा।

"कमाऊ का मतलब?"-सरदार ने कहा

"जो अच्छे करतब करना जानता है, खेल दिखाकर रोजी कमाना जान रहा है। बिना नचवाए बीवी बच्चे पाल ले।"

"ऐसा हो सकता है क्या?"-एक बनजारे ने कहा

"हम सिलाई-कढ़ाई के सामान बनाकर भी तो बेचते हैं। गुलाब को वही सिखाएँगे।"

"वह तो ठीक है पर क्या दूसरी टोली में देखभाल कर दूल्हा ढूँढ़ेगी?"

"अजी ना जी-ना, अपने पल्ले ऐसा लड़का है।"

"कौन है री?" बूढ़ी बनजारन का सवाल था

"अपना मालवे वालो राजकुमार।"-नैना के नैन चमक उठे।

"जोड़ी तो उपर वाले ने तय करके भेजी है नैना।" बूढ़े ने कहा

"उमर का बड़ा फरक है।"-एक बनजारे ने कहा

"अभी सगाइ कर बाँध देंगे, जवान होने पर फेरे पड़वा देंगे।"-नैना ने उत्साह से कहा।

"वही करेंगे। अगली पूरनमासी पर जसन करो और दोनों की सगाई कर दो। तब तक कुछ नए घाघरे गहने तैयार कर लो।"-बाँ की पतली-पतली तीलियाँ बनाता जीतू मसरूफ था कि गुलाब उसके पास आई और खजूर की पत्तियाँ तोड़ देने की जिद करने लगी।

"मैं अपनी तीलियों को चिकना कर रहा हूँ, टाट बनानी है अभी नहीं जाऊँगा। बिल्लू मेरी तीलियाँ उड़ा लेगा।"-जीतू ने कहा "तुझसे चिकनी तीलियाँ मैं चीरता हूँ, मैं क्यों उड़ाऊँगा भला? तू कामचोर है, खजूर के पेड़ पर चढ़ेगा तो तेरा हाथ पैर छिलेगा न।"-बिल्लू जो पास बैठा तीलियों को मोटे धगे से फँसाकर टाट बिन रहा था ने कहा "तू बैठी देखती रह तीलियाँ जस की तस रहनी चाहिए, मैं लेकर आता हूँ खजूर की डाल।"-जीतू हनक कर उठा और चल पड़ा बिल्लू हँसने लगा, गुलाब कुँअर भी हौले से मुँह दबाकर हँस पड़ी। बिल्लू ने गौर किया गुलाब हाथों से मुँह ढँक कर हौले से हँसती है, इसकी बहनों की तरह खिलखिला कर हँसती नहीं। इसे यह तो मालूम है कि नैना मौसी ने इसे गोद लिया है पर किससे और कहाँ से इतनी सुथरी छोकरी को गोद लिया यह नहीं जानता जी करने लगा कि इससे पूछे कि तभी इसकी बहनें रज्जो और गुंजा आ धमकी।

"दादा, चल रोटी खाले, माई बुला रही है। गुलाबो तू यहाँ क्या कर रही है?"-रज्जो ने पूछा।

"मैं जीतू की तीलियों की रखवाली कर रही हूँ।"

"क्यों जीतू कहाँ गया?"

"मेरे लिए खजूर की डाल लाने। चटाई बुननी है।"

"सच, दादा हमें भी खजूर के पत्ते ला दो न"-रज्जो ने कहा।

"तो जा न उसी जीतू से माँग ले।"

"वो नहीं तोड़ देगा।"-गुंजा ने कहा

"अरी तोड़ देगा।"-बिल्लू ने कहा

"गुलाबो झगड़ा करेगी। उसके लिए लाने गया है न"-रज्जो ने कहा "ऊँह, गुलाब कुँअर झगड़ना जानती है क्या? इसकी तो मुँह में जुबान ही नहीं है।"-फिक से हँस पड़ा बिल्लो, गुलाब उन तीनों को देखकर आनंदित हो रही थी पर समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे उनसे आयु में थोड़ी छोटी तो थी ही, यह सब उसे आता भी नहीं था। अभी तक उसके सामने से वह खौफनाक मंजर हटा नहीं था। परकोटे में रहने वाली बाँस की तीलियों के घेरे में रहने लगी थी। पलंग पर सोने वाली झिलंगी खाट पर सो रही थी। केशर वाले दूध पीने की आदी रोटी खाकर जी रही थी वह भी मोटी टिक्कड़ वाली, सागडाँट के साथ। नैना बनजारन और उनके टप्पर के बप्पा हीरा के लाड़-दुलार से धीरे-धीरे हरी हो रही थी। इन बनजारे बच्चों, युवाओं के हँसने खेलते चुहल इसे सुकून देते। उसी समय जीतू हाथ में दो-चार खजूर की डालियाँ लेकर आ गया।

"ले, तब तक इससे काम चला मैं और तोड़ लाऊँग।"-जीतू ने कहा। वह उठाने लगी पर उससे एक भी न उठी। "तू छोड़ मैं पहुँचा दूँगा। जब तक पत्तियाँ निकाल।"-अपने गले में लिपटे गमछे को जमीन पर फैलाकर कहा-"इसमें निकाल कर रख।"

"ऐ है, बड़ा बाँका-है रे तू मेरे लिए भी ला दे न"-गुंजा ने इठलाकर जतू से कहा

"दूसरी बार तो जाएगा ही, ला देगा।"-बिल्लू ने बेलौस होकर कहा।

"मैं नहीं जाता अभी। काम भर ले आया। तू जा लेकर आ।"-जीतू ने कहा। फिर तो चारों में खजूर की डाल के बहाने झगड़े होने लगे, वे जोर-जोर से एक दूसरे को गालियाँ देकर लड़ने लगे। शोर सुनकर घबड़ा गई गुलाब, मुँह दोनों हाथों से छुपाकर रोने लगी। उसका गुलाबी चेहरा काला पड़ गया। अचानक रज्जो की नजर उस पर पड़ी। वह दौड़ कर उसके पास गई. उसे अपने से सटा लिया। "क्या हुआ गुलाबो, हम तो हँसी-हँसी में लड़ रहे थे।" गुलाब कुँअर हिलक-हिलक कर रो रही थी। उसका सारा शरीर थर-थर काँप रहा था। वह शोर के दहशत से भरी थी। दोनों बहनों ने चुप कराने की पूरी कोशिश की बिल्लू ने कान पकड़कर मजाकिया तरीके से उठक-बैठक की तब उसका रोना रुका। जीतू को मानो काठ मार गया, गुलाब कुँअर का रोना इसके कलेजे में खंजर-सा चुभ रहा था जाने क्यों। काम समेट कर सभी अपने-अपने टप्पर में आए. खजूर की डाल देख नैना बनजारन खुश हो गई.

"जीतू, तूने अच्छा किया खजूर की डाल ही ले आया। पत्तियाँ निकालकर डालियों से अलगनी बाँधूँगी कपड़े इधर उधर गट्ठर में पड़े रहते हैं। ठीक किया।"-गुलाब कुँअर के सूजे हुए मुख को देखकर नैना कुछ बोलने को हुई कि जीतू ने अपनी उँगली ओठों पर डाल चुप करा दिया, इशारे से कहा बाद में बताएगा। टिक्कड़ और पत्तियों की खट्टी मिर्ची वाली चटनी जीतू स्वाद लेकर खाने लगा। गुलाब के लिए बकरी की दूध सनी रोटी के कौर बड़े मनुहार से खिलाने लगी नैना बनजारन। खाने के बाद अपनी गोद में उसका सर ले थपक-थपक कर सुला दिया। जब गोद में इसका सर रखती नैना की छाती फटने लगतीं, आँखें भर आतीं। हाय, राज पाट लेंगे मरद मानुस और इज्जत गँवाती है औरतें। जो सेज पर सोती है उसके बूँद का बिरिछ बनाकर खड़ा करती है, जिसने ओदर फाड़ के जना उस औरत को भूल जाता है मरद जात। माथे पर मुकुट साजने के लिए तखत पर बैठने के लिए हवस पूरी करता है अपनी कहता धरम के लिए करम कर रहे हैं। तो कौन जनीजात रोकती है। जो करना है कर, इस जनम देनेवाली को बख्श। नहीं न बख्शता तो भुगत। नापता रह, घोड़े दौड़ाता, फलाँगता रह जंगल पहाड़, रेगिस्तान में आकर डूब मर। क्या कभी चैन से रहता है तू, ओ धरती के राजा, कभी सुकून मिला तुझे! ढाल तलवार तेरी सबसे बड़ी हमसाया है तभी तो तू औरत की कदर नहीं जानता।

गुलाब कुँअर सो गई थी। उसका सर बालिश्त पर टिका टप्पर से बाहर निकली। शाम का झुटपुटा था। टेढ़े बेर के नीचे पत्थर पर जीतू बैठा था। कई बार नैना ने उसे उस बेर के पेड़ के नीचे बैठने से मना किया। कभी भी काँटे गड़ जाएँगे। कई बार उसके गहरे घाव हो जाते हैं। पर यह माने तब न।

"जीतू, इधर आ"-पुकारा नैना ने। जीतू उठकर आ गया। टप्पर के बाहर आकर बैठ गया चारों ओर बनजारे टप्पर, मचान, चटाई बनाने में लगे थे। शायद यहाँ से डेरा उठाने की तैयारी है। जीतू ने बिना किसी भूमिका के दोपहर वाली घटना बयान की।

"माई, छोकरी लड़ाई झगड़े की आवाज से भी डरती है।"

"तुझे तो मालूम है न छोकरे कि यह क्यों डरती है?"

"वो तो सबों को मालूम है पर आदत से लाचार हैं हम।"

"जीतू, तुझसे एक बात कहनी है।"

"बोल न"

"तू तो करतब दिखाकर अच्छा कमा लेता है-अब तुझे बेड़ियाँ डालनी है।"

"क्यों, मैं कहीं भाग रहा हूँ क्या?"

" अरे नहीं, वैसी बेड़ी नहीं तेरी सगाई करनी है।

"सगाई? किससे?" वह थोड़ा शरमाया।

"गुलाब कुँअर से।"

"क्या कहती है, वह राजकुमारी और मैं?"-अचंभे से कहा जीतू ने।

"तू भी कोई राजकुमार... से कम है क्या?"-नैना उसके वजूद का सच बोलने ही जा रही थी कि सँभल गई.

"अरे नहीं।"

"जीतू बेटा, तुझे यह भी मालूम है न कि शेरशाह ने इसे घुँघरू पहनाने और नचवाने का हुकुम दिया था।"

"मालूम है।"

"इसका कोई नहीं है यह अब बनजारन है। मैं चाहती हूँ कि यह घुँघरू बाँधकर सड़कों पर न नाचे। तू कमाकर खिलाए. यह इतना-सा करेगा अपनी जिज्जी के लिए?"-जीतू ने सर झुका लिया। उसके उपर एक बड़ी जिम्मेवारी आ गई. इस राजकुमारी को इसे रानी की तरह रखने का हौसला है। उसके लिए क्या करे? क्या फौज में भरती हो जाए? कई बनजारे तो फौज में भरती भी हो गए. एक दिन इसने भी कहा था नैना से कि यह भी चाहता है फौज में भरती होना तो उसने झिड़क दिया था। "क्या कहता है, बनजारा है बनजारों की तरह रह। लड़ने मरने की क्या ज़रूरत है।"

"बिना लड़े भी फौज में रहते हैं लोग। सभी लड़ाके नहीं होते।"