अर्द्धसत्य में ओम पुरी / व्यक्तिश: / नैनसुख / सुशोभित
सुशोभित
ऐसा कम ही होता है कि कोई एक भूमिका किसी अभिनेता के व्यक्तित्व में इतने गहरे तक पैबस्त हो जाए और वह अपने को उस रूपक के साथ इस हद तक आइडेंटिफाई कर ले कि हम यह सोचना छोड़कर कि 'इस भूमिका को उसके सिवा कोई और कर ही नहीं सकता था' यह सोचने लगें कि कहीं ऐसा तो नहीं कि 'यह भूमिका निभाने के लिए ही वह बना था!' जैसे उसका अस्तित्व और उस भूमिका में निहित व्यक्ति-रूपक चेतना की दो समान्तर धाराएँ हों और नियति को उन्हें मिलाना ही था। इससे भी बढ़कर यह कि मानो भूमिका में निहित व्यक्ति-रूपक एक स्वेच्छाचारी चेतना हो और वह अपने लिए अनुरूप अभिनेताओं को रचने और उनका दोहन करने में सक्षम हो!
गोविंद निहलानी की फ़िल्म 'अर्द्धसत्य' में ओम पुरी के द्वारा निभाए गए चरित्र अनंत वेळणकर और स्वयं उनके जीवन में निहित समतुल्यताओं का जायजा लेने पर हम ऐसा ही सोचने पर मजबूर हो जाते हैं।
अनंत वेळणकर एक बेहद ग्रंथिपूर्ण व्यक्तित्व था। मानो उसका निर्माण माँस, मज्जा, रक्त और स्नायुतंत्र से नहीं, बल्कि ग्रंथियों और कुंठाओं से हुआ हो। उसके भीतर पितृहंता ग्रंथि थी, यौन-कुंठाएँ थीं, वह एक बेहद इम्पल्सिव कैरेक्टर था, अन्यथा शांत, संयत, विवेकशील होने के बावजूद आक्रोश की आँधी में बह जाने वाला पुतला। उसके भीतर निहित क्रोध ने मानो कालांतर में विवेकशीलता की गृहस्थ-चेतना को अपदस्थ करके अपना स्वयं का एक स्थायी निवास बना लिया था, अलबत्ता प्रकट में वह बहुधा शांत ही नज़र आता था।
अनंत वेळणकर न्याय-चेतना की क्षति के रोष से ग्रस्त व्यक्ति था, उसके यहाँ एक 'उत्पीड़ित विवेक-चेतना' (मुक्तिबोध) थी। उसने अपने मन में न्याय के कुछ अटल मानदंड स्वयं ही सोच लिए थे और उनसे परिस्थितियों के दोलन पर वह सहसा आपा खो बैठता था। देशकाल का भान बहुधा उसे नहीं रहता और समझाइशों के बावजूद वह बार-बार अपने आक्रोश की गर्त में ढहता रहता था। वह अभी दुनिया की विडम्बनाओं के प्रति सहज नहीं हो पाया था। उसने अपनी रीढ़ की हड्डी झुकाना सीखा नहीं था।
ये तमाम कैरेक्टेरिस्टिक्स हूबहू ओम पुरी के व्यक्तित्व का भी अनिवार्य हिस्सा बन गई थीं। मालूम नहीं, यह ओम पुरी के व्यक्तित्व में मूलत: निहित थे, या फ़िल्म में डूबने के दौरान उन्होंने इन्हें अपने भीतर बसा लिया था। बाज़ दफ़े ऐसा भी होता है कि आप जीवन के बीच में अपनी शख़्सियत के किन्हीं नए पहलुओं को आविष्कृत करते हैं, जो आपके विन्यास को हमेशा के लिए बदल देते हैं। वह रोष भी हो सकता है, सिनिसिज़्म भी, रोमैंटिसिज्म भी- मूल चरित्र के पूर्वग्रह को निरस्त कर देने वाला।
अर्द्धसत्य' में ओम पुरी द्वारा निभाया गया किरदार एक कैरेक्टर स्टडी है- दोहरे स्तर पर- वह चरित्र स्वयं में एक पेचीदा विषय है, और उस चरित्र को निभानेवाले ओम पुरी के व्यक्तित्व से उसकी समतुल्यताएँ एक दूसरे अध्ययन का विषय हैं। मानो जब विजय तेंडुलकर ने वेळणकर को सोचना शुरू किया हो और जब गोविंद निहलानी ने इस भूमिका के लिए ओम पुरी की कल्पना करना शुरू की हो, तब चेतना की ये दो धाराएँ दो अलग-अलग नियतियों का निर्वाह करते-करते आख़िरकार एक दिशा में चल पड़ी हों और फिर फ़िल्म के निर्माण के दौरान अन्तत: वे पर्सेप्शन के एक त्रिवेणी संगम में मिलकर एक हो गई हों, जिसके बाद अनंत और ओम को अलगाना मुश्किल हो गया हो।
'अर्द्धसत्य' के बाद से ओम पुरी कभी भी अनंत वेळणकर से मुक्त नहीं हो सके, कभी-कभी तो उन्होंने ख़ुद को अनंत वेळणकर का दयनीय कैरीकेचर भी बन जाने दिया- जैसे कि अण्णा आन्दोलन के मंच पर!