आधे-अधूरे / मोहन राकेश / पृष्ठ 8

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पुरुष तीन : तुम पर है यह। जैसा भी कह दो ।

स्त्री : कह देती हूँ-शायद देर हो जाए मुझे । कोई आनेवाला है, उसे भी बता देगी ।

पुरुष तीन : कोई और आनेवाला है ?

स्त्री : जुनेजा। वही आदमी जिसकी वजह से...तुम जानते ही हो सब । (अहाते की तरफ देखती) बिन्नी! (जवाब न मिलने से) बिन्नी! ...कहाँ चली गई यह ?

अहाते के दरवाजे से जा कर उधर देख लेती है और कुछ उत्तेजित-सी हो कर लौट आती है।

पता नहीं कहाँ चली गई यह लड़की भी अब... !

पुरुष तीन : इंतजार कर लो ।

स्त्री : नहीं, वह आदमी आ गया तो, मुश्किल हो जाएगी । मुझे बहुत जरूरी बात करनी है तुमसे। आज ही। अभी ।

पुरुष तीन : (नया सिगरेट सुलगता) तो ठीक है। एट योर डिस्पोजल ।

स्त्री : (इस तरह कमरे को देखती जैसे कि कोई चीज वहाँ छूटी जा रही हो) हाँ...आओ ।

पुरुष तीन : (चलते-चलते रुक कर ) लेकिन...घर इस तरह अकेला छोड़ जाओगी ?

स्त्री : नहीं, अभी आ जाएगा कोई-न-कोई ।

पुरुष तीन : (छल्ले छोड़ता ) तुम्हारे ऊपर है जैसा भी ठीक समझो ।

स्त्री : (फिर एक नजर कमरे पर डाल कर) मेरे लिए तो...आओ

पुरुष तीन पहले निकल जाता है। स्त्री फिर से पर्स खोल कर उसमें कोई चीज ढूँढ़ती पीछे - पीछे। कुछ क्षण मंच खाली रहता है। फिर बाहर से छोटी लड़की के सिसक कर रोने का स्वर सुनाई देता है। वह रोती हुई अंदर आ कर सोफे पर औंधे हो जाती है। फिर उठ कर कमरे के खालीपन पर नजर डालती है और उसी तरह रोती-सिसकती अंदर के कमरे में चली जाती है। मंच फिर दो-एक क्षण खाली रहता है। उसके बाद बड़ी लड़की चाय की ट्रे के लिए अहाते के दरवाजे से आती है।

बड़ी लड़की : अरे ! चले भी गए ये लोग ?

ट्रे डायनिंग टेबल पर छोड़ कर बाहर के दरवाजे तक आती है , एक बार बाहर देख लेती है और कुछ क्षण अंतमुख भाव से वहीं रुकी रहती है। फिर अपने की झटक कर वापस डायनिंग टेबल की तरफ चल देती है।

कैसे पथरा जाता है सिर कभी-कभी।

रास्ते में ड्रेसिंग टेबल के बिखराव को देख कर रुक जाती है और जल्दी से वहाँ की चीजों को सहेज देती है।

जरा ध्यान न दे आदमी...जंगल हो जाता है सब।

वहाँ से हट कर डायनिंग टेबल के पास आ जाती है और अपने लिए चाय की प्याली बनाने लगती है। छोटी लड़की उसी तरह सिसकती अंदर से आती है।

छोटी लड़की : जब नहीं हो-होना होता, तो सब लोग होते हैं सिर पर। और जब हो-होना होता है तो कोई भी नहीं दि-दिखता कहीं।

बड़ी लड़की चाय बनाना बीच में छोड़ कर उसकी तरफ बढ़ आती है।

बड़ी लड़की : किन्नी ! यह फिर क्या हुआ तुझे ? बाहर से कब आई तू ?

छोटी लड़की : कब आई मैं ! यहाँ पर को- कोई भी क्यों नहीं था ? तू-तुम भी कहाँ थी थोड़ी देर पहले ?

बड़ी लड़की : मैं चाय की पत्ती लाने चली गई थी ।...किसने, अशोक ने मारा है तुझे ?

छोटी लड़की : वह भी क-कहाँ था इस वक्त ? मेरे कान खिंचने के लिए तो पता नहीं क-कहाँ से चला आएगा। पर ज-जब सुरेखा की ममी से बात करने की बात की थी, त-त्तो ?

बड़ी लड़की : सुरेखा की ममी ने कुछ कहा है तुमसे ?

छोटी लड़की : ममा कहाँ हैं ? मुझे उन्हें स-साथ ले कर जाना है वहाँ।

बड़ी लड़की : कहाँ ? सुरेखा के घर ?

छोटी लड़की : सुरेखा की ममी बुला रही हैं उन्हें। कहती हैं, अभी ले-ले कर आ।

बड़ी लड़की : पर किस बात के लिए ?

छोटी लड़की : अशोक को देख लिया था सबने हम लोगों को डाँटते। सुरेखा की ममी ने सुरखा को घ-घर में ले जा कर पिटा, तो उसने...उसने म-मेरा नाम लगा दिया।

बड़ी लड़की : क्या कहा ?

छोटी लड़की : कि मैं सिखाती हूँ उसे वे सब ब-बातें।

बड़ी लड़की : तो...सुरेखा कि ममी ने मुझे बुलाया इस तरह डाँटा है जैसे...पहले बताओ, ममा कहाँ हैं ? मैं उन्हें अभी स-साथ ले कर जाऊँगी। क-कहती हैं, मैं उनकी लड़की को बिगाड़ रही हूँ। और भी बु-बुरी बातें हमारे घर को ले कर।

बड़ी लड़की : ममा बाहर गई हैं।

छोटी लड़की : बाहर कहाँ ?

बड़ी लड़की : तुझे सब जगह का पता है कि कहाँ-कहाँ जाया जा सकता है बाहर ?

छोटी लड़की : (और बिफरती) तु-तुम भी मुझी को डाँट रही हो ? ममा नहीं हैं तो तुम चलो मेरे साथ।

बड़ी लड़की : मैं नहीं चल सकती।

छोटी लड़की : (ताव में) क्यों नहीं चल सकती ?

बड़ी लड़की : नहीं चल सकती कह दिया न।

छोटी लड़की : (उसे परे धकेलती) मत चलो, नहीं चल सकती तो।

बड़ी लड़की : (गुस्से से) किन्नी !

छोटी लड़की : बात मत करो मुझसे। किन्नी !

बड़ी लड़की : तुझे बिलकुल तमीज नहीं है क्या ?

छोटी लड़की : नहीं है मुझे तमीज।

बड़ी लड़की : देख, तू मुझसे ही मार खा बैठेगी आज।

छोटी लड़की : मार लो न तुम।...इनसे ही म-मार खा बैठूँगी आज।

बड़ी लड़की : तू इस वक्त यह रोना बंद करेगी या नहीं।

छोटी लड़की : नहीं करूँगी।...रोना बंद करेगी या नहीं ?

बड़ी लड़की : तो ठीक है। रोती रह बैठ कर।

छोटी लड़की : रो-रोती रह बैठ कर।

अहाते के पीछे से दरवाजे की कुंडी खटखटाने की आवाज सुनाई देती है।

बड़ी लड़की : (उधर देख कर) यह...यह इधर से कौन आया हो सकता है इस वक्त ?

जल्दी से अहाते के दरवाजे से चली जाती है। छोटी लड़की विद्रोह के भाव से कुरसी पर जम जाती है। बड़ी लड़की पुरुष चार के साथ वापस आती है।

(आती हुई) मैंने सोचा कि कौन हो सकता है पीछे का दरवाजा खटखटाए। आपका पता था, आप आनेवाले हैं। पर आप तो हमेशा आगे के दरवाजे से ही आते हैं, इसलिए...।

पुरुष चार : मैं उसी दरवाजे से आता, लेकिन...(छोटी लड़की को देख कर) इसे क्या हुआ है ? इस तरह क्यों बैठी है वहाँ ?

बड़ी लड़की : (छोटी लड़की से) जुनेजा अंकल आए हैं, इधर आ कर बात तो कर इनसे।

छोटी लड़की मुँह फेर कर कुरसी की पीठ पर बैठ कर बाँह फैला लेती है।

पुरुष चार : (छोटी लड़की के पास आता) अरे ! यह तो रो रही है। (उसके सिर पर हाथ फेरता) क्यों ? क्या हुआ मुनिया को ? किसने नाराज कर दिया ? (पुचकारता) उठो बेटे, इस तरह अच्छा नहीं लगता। अब आप बड़े हो गए हैं, इसलिए....।

छोटी लड़की : (सहसा उठ कर बाहर को चलती) हाँ...बड़े हो गए हैं। पता नहीं किस वक्त छोटे हो जाते हैं, किस वक्त बड़े हो जाते हैं ! (बाहर के दरवाजे के पास से) हम नहीं लौट कर आएँगे अब...जब तक ममा नहीं आ जातीं ।

चली जाती है।

पुरुष चार : (लौट कर बड़ी लड़की के तरफ आता) सावित्री बाहर गई है?

बड़ी लड़की सिर्फ सिर हिला देती है।

मैं थोड़ी देर पहले गया था। बाहर सड़क पर न्यू इंडिया की गाड़ी देखी, तो कुछ देर पीछे को घूमने निकल गया। तेरे डैडी ने बताया था, जगमोहन आजकल यहीं है - फिर से ट्रांसफर हो कर आ गया है।...वह ऐसे ही आया था मिलने, या...?

बड़ी लड़की : ममा को पता होगा। मैं नहीं जानती ।

पुरुष चार : अशोक ने जिक्र नहीं किया मुझसे। उसे भी पता नहीं होगा शायद।

बड़ी लड़की : अशोक मिला है आपसे ?

पुरुष चार : बस स्टाप पर खड़ा था। मैंने पूछा, तो बोला कि आप ही के यहाँ जा रहा हूँ डैडी का हालचाल पता करने। कहने लगा, आप भी चलिए, बाद में साथ ही आएँगे पर मैंने सोचा कि एक बार जब इतनी दूर आ ही गया हूँ, तो सावित्री से मिल कर ही जाऊँ । फिर उसे भी जिस हाल में छोड़ आया हूँ, उसकी वजह से... ।

बड़ी लड़की : किसकी बात कर रहे हैं....डैडी की ?

पुरुष चार : हाँ, महेंद्रनाथ की ही। एक तो सारी रात सोया नहीं वह। दूसरे...।

बड़ी लड़की : तबीयत ठीक नहीं उनकी ?

पुरुष चार : तबीयत भी ठीक नहीं और वैसे भी...मैं तो समझता हूँ, महेंद्रनाथ खुद जिम्मेदार है अपनी यह हालत करने के लिए ।

बड़ी लड़की : (उस प्रकरण से बचना चाहती) चाय बनाऊँ आपके लिए ?

पुरुष चार : (चाय का समान देख कर) किसके लिए बनाई बैठी थी इतनी चाय ? पी नहीं लगता किसी ने ?

बड़ी लड़की : (असमंजस में) यह मैंने बनाई थी क्योंकि...क्योंकि सोच रही थी कि...

पुरुष चार : (जैसे बात को समझ कर) वे लोग चले गए होंगे।...सावित्री को पता था न, मैं आनेवाला हूँ ?

बड़ी लड़की : (आहिस्ता से) पता था।

पुरुष चार : यह भी बताया नहीं मुझे अशोक ने...पर उसके लहजे से ही मुझे लग गया था कि...(फिर जैसे कोई बात समझ में आ जाने से) अच्छा, अच्छा, अच्छा ! काफी समझदार लड़का है ।

बड़ी लड़की : (चीनीदानी हाथ में लिए) चीनी कितनी ?

पुरुष चार : चीनी बिलकुल नहीं। मुझे मना है चीनी। वह शायद इसीलिए मुझे वापस ले चलना चाहता था कि...कि उसे मालूम होगा जगमोहन का।

बड़ी लड़की : दूध ?

पुरुष चार : हमेशा जितना।

बड़ी लड़की : कुछ नमकीन लाऊँ अंदर से ?

पुरुष चार : नहीं।

बड़ी लड़की : बैठ जाइए ।

पुरुष चार : ओ, हाँ !

वही एक कुरसी खींच कर बैठ जाता है। बड़ी लड़की एक प्याली उसे दे कर दूसरी प्याली खुद ले कर बैठ जाती है। कुछ पल खामोशी।

बड़ी लड़की : कहाँ-कहाँ घूम आए इस बीच? सुना था कहीं बाहर गए थे ?

पुरुष चार : हैं, गया था बाहर। पर किसी नई जगह नहीं गया।

फिर कुछ पल खामोशी।

बड़ी लड़की : सुषमा का क्या हाल है ?

पुरुष चार : ठीक-ठाक है अपने घर में।

बड़ी लड़की : कोई बच्चा-अच्चा ?

पुरुष चार : अभी नहीं।

फिर कुछ पल खामोशी।

बड़ी लड़की : आप तो बिलकुल चुप बैठे हैं। कोई बात कीजिए न !

पुरुष चार : (उसाँस के साथ) क्या बात करूँ ?

बड़ी लड़की : कुछ भी ।

पुरुष चार : सोच कर तो बहुत-सी बातें आया था। सावित्री होती तो शायद कुछ बात करता भी पर अब लग रहा है बेकार ही है सब।

फिर कुछ पल खामोशी। दोनों लगभग एक साथ अपनी-अपनी प्याली खाली करके रख देते हैं।

बड़ी लड़की : एक बात पूछूँ - डैडी को फिर से वही दौरा तो नहीं पड़ा, ब्लड प्रेशर का ?

पुरुष चार : यह भी पूछने की बात है ?

बड़ी लड़की : आप उन्हें समझाते क्यों नहीं कि....

पुरुष चार : (उठता हुआ) कोई समझा सकता है उसे ? वह इस औरत को इतना चाहता है अंदर से कि...

बड़ी लड़की : यह आप कैसे कह सकते हैं ?

पुरुष चार : तुझे लगता है यह बात सही नहीं है ?

बड़ी लड़की : (उठती हुई) कैसे सही हो सकती है? (अंतर्मुख भाव से)...आप नहीं जानते, हमने इन दोनों के बीच क्या-क्या गुजरते देखा है इस घर में।

पुरुष चार : देखा जो कुछ भी हो....

बड़ी लड़की : इतने साधारण ढंग से उड़ा देने की बात नहीं है, अंकल ! मैं यहाँ थी, तो मुझे कई बार लगता था कि मैं एक घर में नहीं, चिड़ियाघर के एक पिंजरे में रहती हूँ जहाँ...आप शायद सोच भी नहीं सकते कि क्या-क्या होता रहा है यहाँ। डैडी का चीखते हुए ममा के कपड़े तार-तार कर देना...उनके मुँह पर पट्टी बाँध कर उन्हें बंद कमरे में पीटना...खींचते हुए गुसलखाने में कमोड पर ले जा कर...(सिहर कर) मैं तो बयान भी नहीं कर सकती कि कितने-कितने भयानक दृश्य देखे हैं इस घर में मैंने। कोई भी बाहर का आदमी उस सबको देखता-जानता, तो यही कहता कि क्यों नहीं बहुत पहले ही ये लोग...?

पुरुष चार : तूने नई बात नहीं बताई कोई। महेन्द्रनाथ खुद मुझे बताता रहा है यह सब।

बड़ी लड़की : बताते रहे हैं ? फिर भी आप कहते हैं कि... ?

पुरुष चार : फिर भी कहता हूँ कि वह इसे बहुत प्यार करता है।

बड़ी लड़की : कैसे कहते हैं यह आप ? दो आदमी जो रात-दिन एक-दूसरे की जान नोंचने में लगे रहते हों ...?

पुरुष चार : मैं दोनों की नहीं, एक की बात कह रहा हूँ ।

बड़ी लड़की : तो आप सचमुच मानते हैं कि...?

पुरुष चार : बिलकुल मानता हूँ, इसीलिए कहता हूँ कि अपनी आज की हलात के लिए जिम्मेदार महेन्द्र नाथ खुद है। अगर ऐसा न होता, तो आज सुबह से ही रिरिया कर मुझसे न कह रहा होता कि जैसा भी हो मैं इससे बात करके इसे समझाऊँ। मै इस वक्त यहाँ न आया होता, तो पता है क्या होता ?

बड़ी लड़की : क्या होता ?

पुरुष चार : महेन्द्र खुद यहाँ चला आया होता। बिना परवाह किए कि यहाँ आ कर इस ब्लेड प्रेशर में उसका क्या हाल होता और ऐसा पहली बार न होता, तुझे पता ही है। मैने कितनी मुश्किल से समझा-बुझा कर उसे रोका है, मैं ही जानता हूँ। मेरे मन में थोड़ा-सा भरोसा बाकी था कि शायद अब भी कुछ हो सके... मेरे बात करने से ही कुछ बात बन सके। पर आ कर बाहर न्यू इंडिया की गाड़ी देखी, तो मुझे लगा कि नही, कुछ नहीं हो सकता। कुछ नही हो सकता। बात करके मै सिर्फ आपको...मेरा खयाल है चलना चाहिए अब। जाते हुए मुझे उसके लिए दवाई भी ले जानी है।...अच्छा।

बाहर के दरवाजे की तरफ चल देता है। बड़ी लड़की अपनी जगह पर जड़-सी खड़ी रहती है। फिर-एक कदम उसकी तरफ बढ़ जाती है।

बड़ी लड़की : अंकल !

पुरुष चार : (रुक कर) कहो।

बड़ी लड़की : आप जा कर डैडी को यह बात बता देंगे ?

पुरुष चार : कौन-सी ?

बड़ी लड़की : यही ...जगमोहन अंकल के आने की ?

पुरुष चार : क्यों...नही बतानी चाहिए ?

बड़ी लड़की : ऐसा है कि...

पुरुष चार : (हलके से आँख मूँद कर खोलता) मैं न भी बताऊँ शायद पर कुछ फर्क नहीं पड़ने का उससे।...बैठ तू।

दरवाजे से बाहर जाने लगता है।

बड़ी लड़की : अंकल ?

पुरुष चार : (और फिर रुक कर) हाँ, बेटे !

बड़ी लड़की : सचमुच कुछ नही हो सकता क्या ?

पुरुष चार : एक दिन के लिए हो सकता है शायद। दो दिन के लिए हो सकता है। पर हमेशा के लिए... कुछ भी नहीं।

बड़ी लड़की : तो उस हालत से क्या यहीं बेहतर नहीं कि... ?

बाहर से स्त्री के स्वर सुनाई देते हैं।

स्त्री : छोड़ दे मेरा हाथ। छोड़ भी ।

बड़ी लड़की : आ गई हैं वे लौट कर।

पुरुष चार : हाँ।

बाहर जाने के बजाय होंठ चबाता डाइनिंग टेबल की तरफ बढ़ जाता है। स्त्री छोटी लड़की के साथ आती है। छोटी लड़की उसे बाँह से बाहर खींच रही है।

छोटी लड़की : चलती क्यों नहीं तुम मेरे साथ ? चलो न !

स्त्री : (बाँह छुड़ाती) तू हटेगी या नहीं ?

छोटी लड़की : नहीं हटूँगी। उस वक्त तो घर पर नहीं थी, और अब कहती हो... ।

स्त्री : छोड़ मेरी बाँह ।

छोटी लड़की : नहीं छोड़ूँगी ।

स्त्री : नहीं छोड़ेगी ? (गुस्से से बाँह छुड़ा कर उसे परे धकेलती) बड़ा जोम चढ़ने लगा है तुझे !

छोटी लड़की : हाँ, चढ़ने लगा है। जब-जब कोई बात कहता मुझसे, यहाँ किसी को फुरसत नहीं होती चल कर उससे पूछने की।

बड़ी लड़की : उन्हें साँस तो लेने दे। वे अभी घर में दाखिल नहीं हुई कि तूने...।

छोटी लड़की : तुम बात मत करो। मिट्टी के लोंदे की तरह हिली नहीं जब मैंने...।

स्त्री : (उसे फ्राक से पकड़ कर) फिर से कह जो कहा है तूने !

छोटी लड़की : (अपने को छुड़ाने के लिए संघर्ष करती) क्या कहा है मैंने ? पूछो इनसे जब मैंने आ कर इन्हें बताया था, तो...।

पल-भर की खामोशी जिसमें सबकी नजरें स्थिर हो रहती हैं - छोटी लड़की की स्त्री पर और शेष सबकी छोटी लड़की पर।

छोटी लड़की : (अपने आवेश से बेबस) मिट्टी के लोंदे !...सब-के-सब मिट्टी के लोंदे !

पुरुष चार : (उनकी तरफ आता) छोड़ दो लड़की को, सावित्री ! उस पर इस वक्त पागलपन सवार है, इसलिए...।

स्त्री : आप मत पड़िए बीच में।

पुरुष चार : देखो...।

स्त्री : आपसे कहा है, आप मत पड़िए बीच में। मुझे अपने घर में किससे किस तरह बरतना चाहिए, यह मैं औरों से बेहतर जानती हूँ। (छोटी लड़की के एक और चपत जड़ती) इस वक्त चुपचाप चली जा उस कमरे में। मुँह से एक लफ्ज भी और कहा, तो खैर नहीं तेरी।

छोटी लड़की के केवल होंठ हिलते हैं। शब्द उसके मुँह से कोई नहीं निकल पाता। वह घायल नजर से स्त्री को देखती उसी तरह खड़ी रहती है।

जा उस कमरे में। सुना नहीं ?

छोटी लड़की फिर भी खड़ी रहती है।

नहीं जाएगी ?

छोटी लड़की दाँत पीस कर बिना कुछ कहे एकाएक झटके से अंदर के कमरे में चली जाती है। स्त्री जा कर पीछे से दरवाजे की कुंडी लगा देती है।

तुझसे समझूँगी अभी थोड़ी देर में।

बड़ी लड़की : बैठिए, अंकल !

पुरुष चार : नहीं, मैं अभी जाऊँगा।

स्त्री : (उसकी तरफ आती) आपको कुछ बात करनी थी मुझसे...बताया था इसने।

पुरुष चार : हाँ...पर इस वक्त तुम ठीक मूड में नहीं हो...।

स्त्री : मैं बिलकुल ठीक मूड में हूँ। बताइए आप।

बड़ी लड़की : अंकल कह रहे थे, डैडी की तबीयत फिर ठीक नहीं है।

स्त्री : घर से जा कर तबीयत ठीक कब रहती है उनकी ? हर बार का यही एक किस्सा नहीं है ?

बड़ी लड़की : तुम थकी हुई हो। अच्छा होगा जो भी बात करनी हो, बैठ कर आराम से कर लो।

स्त्री : मैं बहुत आराम से हूँ (पुरुष चार से) बताइए आप ।

पुरुष चार : ज्यादा बात अब नहीं करना चाहता। सिर्फ एक ही बात कहना चाहता हूँ तुमसे।

स्त्री : (पल-भर प्रतीक्षा करने के बाद) कहिए।

पुरुष चार : तुम किसी तरह छुटकारा नहीं दे सकती उस आदमी को ?

स्त्री : छुटकारा ? मैं ? उन्हें ? कितनी उल्टी बात है !

पुरुष चार : उलटी बात नहीं है। तुमने जिस तरह से बाँध रखा है उसे अपने साथ.... ।

स्त्री : उन्हें बाँध रखा है ? मैंने अपने साथ... ? सिवा आपके कोई नहीं कह सकता यह बात।

पुरुष चार : क्योंकि और कोई जानता भी तो नहीं उतना जितना मैं जानता हूँ।

स्त्री : आप हमेशा यही मानते आए है कि आप बहुत ज्यादा जानते हैं। नहीं ?

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