एक थी तरु / भाग 33 / प्रतिभा सक्सेना
अंदर से आवाज आई, ’दुलहिन हो। कहाँ बैठ गईँ जाय के?'
अरे, मैंतो भूल गई, माँजी बुला रहीं थी।
'आई'। वह हड़बड़ा कर चल पड़ी। पैकेट वहीं रखे रह गये।
तरल का मन विवाह के कार्यों से बार-बार उखड़ जाता है।
एक डर सा बैठ गया मन में।
बार-बार विपिन का ध्यान आता है। एक हफ़्ता हो गया कोई खबर नहीं। आई थी तब स्थितियाँ अच्छी नहीं थी। बस बुरी-बुरी बातें ध्यान में आती हैं।
अख़बारों में, कहानियों में जाने कितने ऐसे किस्से पढ़े हैं। ये साधन-संपन्न लोग अपने मतलब के लिये कुछ भी कर गुज़रते हैं -इन्सान का कोई मोल नहीं इनके लिये। फिर विपिन तो अकेला है, साधनहीन!
और लवलीन? सुकुमार सी युवती, जिसने अभी दुनिया का क्या देखा? पाँचवाँ महीना चढ़ चुका होगा, जरा-जरा बात में घबराने लगती है।
कौन है वहाँ देखनेवाला?
मायकेवाले उदासीन , कहते हैं अपने मन से शादी की है अब तुम जानो। जैसा है अपने आप भुगतो। ससुराल में करने वाला है ही कौन -सास-ससुर और दो ब्याही बहनें! भाई को अपनी गृहस्थी से छुट्टी नहीं।
सोच कर जी उचाट होने लगता है।
अखबार भी नहीं देख पाती इन दिनों -बाहर ही बाहर आदमियों के पढ़ते दोपहर होते-होते, इधर-उधर हो जाता है। वैसे ही चीख-पुकार मची रहती है, बैठ कर इत्मीनान से पढ़े कोई मौका नहीं।
उस दिन की बात ध्यान आते ही व्याकुल हो उठती है।
किसी लड़की को दरिन्दों ने रौंद डाला? काँप उठती है तरु -
किसकी बात है? चुनिया?
हाँ, विपिन ने ही तो बताया था।
बार-बार लवलीन का चेहरा आँखों के आगे आ जाता है।
फिर समझाती है अपने को -नहीं, वह नहीं हो सकती।
ये तो रोज़ की खबरें हैं, जाने कितनी बार। जाने कितनी स्त्रियाँ।
। बस आगे नहीं सोच पाती। नहीं नहीं, लवलीन तो किसी के तीन-पाँच में नहीं। उससे क्या मतलब किसी को?
नहीं, वह नहीं, यह बिलकुल नहीं हो सकता ?
डर तो विपिन के लिये है। उसी के पीछे पड़े हैं लोग।
अब नहीं रुक पा रही यहाँ। निपट जाय शादी औऱ चलें अपने घर।
पर अभी तो दो दिन बाकी हैं।
हे भगवान, ठीक रखना विपिन को!
घर में शादी का माहौल। और दन्नू जैसा कैरेक्टर सामने। कुछ शग़ल तो चाहिये ही,
होने लगीं चर्चायें।
और सुनो एक किस्सा -सुनाने में राहुल निपुण है, शुरू हो गया जैसे सामने घट रहा हो।
तो हुआ ये -
'मामा आये, मामा आये।’
बच्चे चिल्लाते हुये सुशीला के पास भागे।
'कौन मामा?’
दन्नू मामा, तुम्हारेवाले।’
आकर देखा दन्नू खड़े सास से बातें कर रहे हैं।
-न बक्सा न बिस्तर, खाली हाथ -। कड़कड़ाते, ठिठुरते हुये
भरे जाड़े में शरीर पर कोई ऊनी कपड़ा नहीं।
सास ने सुशीला को आवाज़ लगा कर कहा, ’बिचारे का बकसा चुर गया। उसी में सारा सामान धरा हता।’
मज़ा आ रहा है सबको। राहुल चालू है -
बड़े विस्तार से दन्नू ने बताया बस ज़रा-सा उठ कर गुसलखाने गये थे, लौट कर आये देखा बक्सा गायब।
उसके ऊपर धरा हुआ पूरी बाँह का स्वेटर और कोट भी गायब! सबसे पूछा-ताछा, हल्ला मचाया भाग -दौड़ की सब बेकार!
इसके पास कोट था कहाँ -सुशीला सशंकित नेत्रों से देख रही है।
'अब उसे स्वेटर लाय के देओ, दुलहिन, मार जड़ाया जाय रहा है लरिका।’
सुशीला ने पति का स्वेटर ला कर पकड़ा दिया पहन लिया दन्नू ने।
श्रोता पूरा मज़ा ले रहे हैं।
'ज़रा रुको, राहुल, हम बस एक मिनट में आये’
श्यामा के दूल्हा ने अल्प-विराम लगवा दिया।
लौटे वे, फिर कहानी शुरू हुई -
जिठानी का भी तो भाई लगा -उनने आकर सिर पर हाथ फेरा, ’कहाँ जाय रहे थे भइया?’
दन्नू बैठ के रोने लगे।’अरे जिज्जी, हम तो सरम के मारे मरे जाय रहे हैंगे। जेब न कट जाय इस लै सारे रुपये संदूक में धर दिये थे। अब एक नोट भर बचा है। बच्चन के लै मिठाई तक न लाय पाये।’
उन्होंने जेब उलटी, एक दस का नोट निकाल कर दिखा दिया।
घर के लोग इकट्ठे होकर’चच् चच्'करने लगे।
दन्नू फिर शुरू हुये, ’हमारे जो बड़के भैया हैं उन्हई के दोस्त ने मुरादनगर की मिल में नौकरी लगवाय दी थी। समझ में नहीं आता अब का करें।
एक मन करता है घर लौट जायँ।’
मज़ा आ रहा है सबको-समझ रहे हैं दन्नू का कौशल
सुशीला की सास ने दिलासा दिया, ’अपसोच न करो बेटा, कभी-कभी अइसा भी हुइ जाता है। जो तुम्हें चाहिये यहाँ से लै जाओ, बहिनी का घर सो अपना घर।’
सास ने कह-सुन कर कोट दिलवाया, अटैची और कुछ कपड़े भी निकाले। बिस्तरा बँधवा दिया सो अलग! -रुपये तो पास में कुछ होने ही चाहियें, ’नई जगह में क्या करेगा बेचारा, मुसीबत का मारा।’
जिठानी ने भी कहा, ’अऊर का! सब वापस कर देगा। बहिनी का कौन रखता है! फिर उसकी तो नौकरी लग गई है। मुसीबत में साथ हमीं लोग तो देंगे।’
हफ़्ते भर बाद शुक्लाइन की लिखाई चिट्ठी आई कि दन्नू आठ-दस दिन से लापता हैं। फिर ख़बर मिली कि खाली हाथ घर पहुँच गये हैं।
अब तो जिसे देखो दन्नू का बखान कर सुशीला को छेड़ रहा है, अरे अम्माँ, उनका एक टिपिन काहे नाहीं दै दिया!’
'दादी को सबसे जियादा तरस आय रहा था, और सौ का नोट पकड़ाय देतीं मामा को?’
सुशीला के लिये मुँह छिपाने की जगह नहीं।
दूल्हा ने अकेले में चुटकी ली, ’काहे, तुमने अपने भैया का जस पहले नहीं बताया। हमारी जेब से सौ का नोट कहाँ ग़ायब हुआ था, अब समझ में आय रहा है।’
रो-रो आती है। बोले क्या बिचारी!
किसी ने रिमार्क कसा, ’कैसा राढ़ा है, इत्ता पिटता है फिर भी।’
राहुल ने छौंक लगाई -जित्ता पिटता है उत्ता और मज़बूत होता जाता है।
सब हँस पड़े।
वाह, आनन्द आ गया।
'अरे चलो रे, सब लोग! वहाँ मंडप गाड़ा जा रहा है।’
अब पड़ेंगे हल्दी के छापे!
गाने होंगे आज सारी रात।
तैयार हो रहे हैं सब।
चंचल में बड़ा उत्साह है। पहली बार मौका मिला है उसे घर की शादी में शामिल होने का।
लंबी हो गई है -पतली-सी, प्यारी सी!
'काहे दुलहिन’माँ जी ने तरु से पूछा, ’पजारूी धोतिन के जोड़ा कहाँ धरे हैं /'
'अरे, ’तरु के मुँह से निकला, ’वो पैकेट तो वहीं भूल आई, उस कमरे में।’
हाय राम। दन्नू के हाथ तो नहीं पड़ गये!
जाकर देखा जस के तस रखे थे।
दन्नू हैं कहाँ, दो दिन से ग़ायब हैं वो तो!
चंचल को भी सजने का शौक है। हर चीज़ चाहिये उसे। दौड़-भाग लगाये है
' मम्मी, हमारी काजल की डिब्बी तुमने कहाँ रख दी?’
'मैनें काहे को रक्खी, मैं क्या लगाती हूँ काजल?तुम्हीं ने कहीं डाली होगी।’
मम्मी की बनारसी साड़ी हाथ में लिये निकल आई है।
'उफ़्फोह, अब मेरी साड़ी नहीं बचेगी। चंचल। तुमसे सम्हलेगी नहीं, लँहगा क्यों नहीं पहन लेती?’
'हाँ, हर जगह वही लँहगा लटका कर चल दें!’
हवा के झोंके की तरह निकल गई वह।
कुछ देर बाद, श्यामा और तरु बच्चों के साथ बाहर निकलीं।
तरु की निगाहें चंचल और साड़ी पर लगी हैं। , 'अरे चंचल, ज़रा ऊँची करो, । और पल्ला इतना लंबा झाड़ू लगाता चल रहा है।’
'वो इधर खिंच आया होगा, हमने तो छोटा लिया था मम्मी।’
'ज़रा ढंग से चलो वो उधर से लिथड़ रही है।’
'मम्मी, तुम तो सबके सामने टोके जा रही हो!’
'सात सौ की मेरी नई बनारसी, तुम लथेड़ रही हो और मैं टोकूँ भी नहीं? अभी सैंडिल में उलझ गई तो ज़री नुचने लगेगी।’
चंचल साड़ी सम्हालती आगे लड़कियों में भाग गई।
अब मम्मी के सामने ही नहीं पड़ेगी।
नई-नई रंग-बिरंगी, बोलती, चमकीली तस्वीरोंवाली किताबें सबके आकर्षण की केन्द्र हैं, मन्नो ने अमेरिका से चंचल के लिये भेजी हैं।
श्यामा के बच्चे बड़ी उत्सुकता से देख रहे हैं।
दन्नू ने पीछे से आकर झाँका बोले, ’जे का है? जे तो बहुत बढ़िया किसम की चीज है।’
'हमारी मौसी ने सात समुंदर पार से हमारे लिये भेजी है, ’ चंचल ने रौबदार आवाज़ में कहा, पता है कहाँ है कनाडा? हवाई जहाज़ से जाओ तो तीसरे दिन पहुँचते हैं।’
'जे तो बहुत काश्टली हुइ हैं।’
एक किताब हाथ में उठा ली दन्नू ने, उलट-पलट कर देखने लगे। बच्चे एक दूसरे को देखने-दिखाने में लगे हैं
उन्होंने धीरे से कमीज़ के नीचे छिपाने की कोशिश की
'ये क्या कर रहे हो, दन्नू मामा?’श्यामा की लड़की चिल्लाई।
“ अरे, कुछू नाहीं जरा खुजलाय रहे थे।’ किताब हाथ में पकड़े रहे, ' जे वाली हम लै जाय रहे हैं पढ़ के वापस दै जइहैं, तुम्हारे पास तो इत्ती सारी हैं।’
वे ले कर चलने लगे,
'नहीं हमारी किताबें यहीं रक्खो, तुम्हें अंग्रेजी पढ़ना आता भी है’, चंचल झपटी, ’ तुम ले जा कर बेच आओगे।’
बच्चों को बता दिया गया है दन्नू चोट्टे हैं, उनसे सावधान रहें।
अनसुनी करते हुये वे तेज़ी से चले जा रहे हैं, चंचल ने पास पड़ी खुरपी उठा ली, और दन्नू पर तानती हुई पीछे दौड़ी, ’देखो, हमारी किताबें उठाये लिये जा रहा है।’
उसने किताब वहीं फेंकी और तेज़ी से निकल गया।
अपनी किताब पोंछती -सहलाती, चंचल बुआ के बच्चों को बताने लगी, ’ये दन्नू बड़ा चोर है। घर का सामान बेच देता है और खूब पिटता है।’
अंदर से आवाज आई, ’अरे तुम लोग तैयार हो जाओ, बुलावा शुरू होनेवाला है।
'लाओ, किताबें अल्मारी में रख दें, दन्नू के हाथ पड़ गईं तो समझो गईं।’