कला की उच्च शिक्षा / बलराम अग्रवाल
कला की शिक्षा के लिए जिब्रान 1 जुलाई 1908 को बोस्टन से पेरिस गए। पेरिस में अपने कला अध्ययन के दौरान उन्होंने मिस्र, इटली और स्पेन की यात्राएँ कीं। उसी दौरान (1909-10) उन्होंने ‘द एजिज़ ऑव वूमन’ शीर्षक चित्र-श्रृंखला बनाई तथा ऑगस्टे रोडिन (1910) का एक पोर्ट्रेट बनाया। वहाँ वह फ्रांस के ईश्वरवादी कवि व चित्रकार विलियम ब्लेक (1757-1857) की रचनाओं से बहुत प्रभावित हुए। 1910 में पेरिस में ही वह अमीन रिहानी (Ameen Rihani) और अपने पूर्व लेबनानी मित्र यूसुफ हवाइक के सम्पर्क में आए जिनके साथ मिलकर उन्होंने अरब संसार के सांस्कृतिक उत्थान के लिए योजनाएँ बनाईं। जून 1909 में वहीं उन्हें पिता के देहांत का समाचार मिला। पढ़ाई पूरी करके 31जुलाई 1910 को वे अमेरिका लौटे। उनके और मेरी के बीच यह विमर्श हुआ कि बृहत्तर कला-समाज से जुड़ने के मद्देनज़र जिब्रान को बोस्टन छोड़कर स्टुडियो के लिए न्यूयॉर्क में जगह देखनी चाहिए। बोस्टन में उनकी अनपढ़ और अविवाहित बहन मरियाना की देखभाल मेरी कर लेगी। अन्तत: 1912 में उन्होंने न्यूयॉर्क में अपना स्टुडियो ‘द हरमिटेज़’ (The Hermitage) खोल लिया।
अरब रचनाकारों को एकजुट करने का प्रयास
अप्रैल 1920 में उन्होंने "अल-राबिता: अल-क़लामिया" नाम से एक संस्था का गठन अरब लेखकों को एकजुट करने की दृष्टि से किया था। जिब्रान उसके अध्यक्ष बने तथा मिखाइल नियामी सचिव। इस संस्था ने अब्द अल-मसीह हद्दाद के संपादन में एक साहित्यिक और राजनीतिक जर्नल ‘अल-साइह’ भी प्रकाशित किया। जिब्रान के जीवित रहने तक यह संस्था सुचारु रूप से चलती रही। कहीं-कहीं इसका नाम ‘अरीबिता:’ भी मिलता है। मिखाइल नियामी (1889-1988), इलिया अबू मादी (1889-1957), नसीब आरिदा (1887-1946), नादरा हद्दाद (1881-1950) और इल्यास अबू सबाका (1903-47) सरीखे उस समय के जाने-माने अनेक अरब लेखक इस संस्था से जुड़े थे।