कुर्ता / कल्पतरु / सुशोभित
सुशोभित
कुर्ता पहनकर मुझको लगता जैसे उम्रदराज़ हो गया हूं। यों नौउम्र तो इधर एक मुद्दत से ख़ुद को नहीं समझा। लेकिन पुरानी पीढ़ी के लोग बहुत कुर्ता पहनते थे। सफ़ारी सूट भी बहुत पहनते, वो तो ख़ैर अब लूना-स्कूटर की तरह गुम हो गए। पर पहले रुपहले परदे के सजीले-छबीले नायक भी अकसर कुर्ते में नज़र आते। राजेश खन्ना पतलून पर कुर्ता पहनता था। पैरों में सैंडिल। समुद्र किनारे गीली रेत पर पैरों की छापें छोड़ता चला जाता। अमिताभ बच्चन ने भी बहुत कुर्ता पहना। 'मिली' फ़िल्म में तो पूरे ही समय। कुर्ते के साथ वो अकसर चूड़ीदार पायजामा पहनता। उस पर यह फबता था। लम्बा क़द और छरहरी काया हो तो कुर्ता शरीर पर खिल जाता है। बाल घने हों तो और बेहतर। दिलीप कुमार ने कितनी ही फ़िल्मों में धोती-कुर्ता पहना। याद करता हूं पुरानी फ़िल्मों के नायक घर-परिवार के दृश्यों में कुर्ते में ही दिखलाई देते थे। बांह ऊपर चढ़ाकर भोजन करने बैठते। एक बार विनोद मेहरा को गाना गाते देखा- "आपकी आंखों में कुछ महके हुए से राज़ हैं!" उसके बाल कानों पर चले आए थे और छाती उघड़ी हुई थी। उसने सफ़ेद कुर्ता पहना था, बटन पूरे नहीं लगाए थे। अस्सी के दशक के जवांमर्द यों भी कमीज़ और कुर्ते के बटन खुले ही रखते थे।
कुर्ता पहनकर मुझको लगा, जैसे मैं सत्तर-अस्सी के दशक के सिनेमा का नायक हूं। चश्मा पहनकर तस्वीर उतरवाई तो लगा, शायद किसी कला-फ़िल्म में एक रोल मिल जाता। 'स्पर्श' में मोहन गोखले ने जैसा रोल किया था वैसा। साई परांजपे को मुझे किसी ना किसी फ़िल्म में लेना चाहिए था। 'सूरज का सातवां घोड़ा' में रजत कपूर खुले गले की बनियान पहने रहता और तरबूज़ खाकर बीज थूकता। बाहर निकलने पर कुर्ता चढ़ा लेता। मृणाल सेन की 'पदातिक' में धृतिमान चोटर्जी कुर्ते में ही तो था। पर मुझमें धृतिमान जैसा अंगार कहा। सौमित्र जैसा शहद भी शायद नहीं। एक लड़की मुझसे कहती थी, तुम अमोल पालेकर की तरह बोलते हो। शायद यह सच हो, पर इतने भर से मुझको बाशु चोटर्जी किसी काम का शायद ही समझते। मुझमें तो एक स्वाभाविक रुखाई है। कुर्ता खद्दर का हो तो देह पर बड़ा रूखा मालूम होता है, पर नियमित पहनने से वह डौल में आ जाता है। अकसर मुझको लगता, बहुत दिनों तक पहने कुर्ते से आदमी के मन का एक राब्ता ज़रूर बन जाता होगा। खूंटे पर टंगा वह कुछ न कुछ कहता होगा।
अचकन तो लाट-साहब लोगों की चीज़ है। शेरवानी दूल्हों की। कमीज़ें भली होती हैं पर कुर्तों की बेतक़ल्लुफ़ी मुझको लुभाती है। कुर्ते सादा-रंग हों तो बढ़िया। उनमें चमक-दमक नहीं होनी चाहिए, वरना कुर्ते का मतलब ही क्या? कुर्तों में जेबें होती हैं। आजकल तो हम पतलून की जेबों के आसरे हो गए हैं और पतलूनें बड़ी तंग हो गई हैं। कमीज़ की जेब में रखा तो सिक्का भी गिर जाता है। आज मैंने कुर्ता पहना तो मुझको लगा, जेब से कोई करतब की चीज़ बाहर निकालनी चाहिए। तमाखू-चूने की डिबिया जैसी? सरौते जैसी? बीड़ी का बण्डल? दियासलाई? पहले के ज़माने के लोगों के कुर्ते की जेबों से ऐसी ही चीज़ें बरामद होती थीं। बड़ा आदमी हो तो सिगरेट-लाइटर। कुर्ते की जेबें बटुए के बोझ से वज़नी होकर अलग ही झूलती थीं।
मैं एक किताब पढ़ रहा था, उसमें लेखक ने लिखा- "गली के छोर पर वह दुकान सबसे अलग-थलग थी, कुर्ते की जेब जैसी दूर धंसी हुई।" मैंने कहा, वाह क्या बात है। ऐसी क़िस्सा-कहन हो तो अपनी बड़ी दिलजोई हो जाती है। एक बार पढ़ा, "यह गाना इतना सरल है, जैसे कुर्ते का छोर, जो कहीं अटकता नहीं।" एक बार एक कविता- "तुम्हारी साड़ी का पल्लू, मेरे कुर्ते का छोर देर तलक बतियायें।" ऐसी बातें लिखने वाले लेखक भी कमबख़्त इधर मिलते नहीं। मेरे पिता की तरह वो भी खो गए, जो भारी खद्दर का कुर्ता पहनते थे।
पहले के ज़माने में वो क़लमनवीस को दिखलाना चाहते तो उसे कुर्ता पहना देते। शाइर भी कुर्ता पहनता। ग़रीब-ग़ुरबे का कुर्ता मैला होता। सेठ रेशम का कुर्ता पहनता तो गले में सोने की ज़ंजीर दमकती। जो बेसब्रे होते वो छिलके की तरह कुर्ता उतार फेंकते। लेकिन कुर्ते को तनिक तहज़ीब से निकालना चाहिए। आस्तीनें उलट न जाएं, इतना ख़याल रखना चाहिए। ऐसी बेख़याली भी क्या कि कुर्ता निकालकर बिस्तर पर पटक दिया।
मैं यही सब आज दिनभर सोचता रहा, जो नया कुर्ता पहना। कुर्ता पहनकर तस्वीरें खिंचवाईं। कुर्ता नीला था और खादी का था। जाड़ों में उसे दिल्ली से लाया था। सोचा था गर्मियों के दिन आएंगे तो कुर्ता पहनूंगा। कुर्ते की पहनाई से आ जाने वाली अदा को देह में सम्हालूंगा। पर ये गर्मियां तो घर में ही कट रही हैं। कुर्ता पहनकर गली में आध घंटे चहलक़दमी ज़रूर कर आया। एकबारगी मुझको लगा, मैं फ़िल्म '27 डाउन' का एम.के. रैना हूं, अलबत्ता मेरी दाढ़ी उतनी घनी नहीं। क़द ज़रूर वैसा ही होगा, अकेलापन भी। एकबारगी मुझको लगा, मैं और उम्रदराज़ हो गया हूं। इस साल की ये गर्मियां जब ख़त्म होंगी, तो सभी थोड़े-थोड़े बुज़ुर्ग हो रहेंगे। मेरी उम्र शायद उन सबसे एकाध दोपहर ज़्यादा ठहरेगी।