गोडसे@गांधी.कॉम / सीन 12 / असगर वज़ाहत

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(मंच पर अँधेरा है।)

उद् घोषणा: दो हजार पन्‍नों की फाइल बिहार सरकार के सैकड़ों दफ्तरों का चक्‍कर लगाती है, होम मिनिस्‍ट्री और लॉ मिनिस्‍ट्री के गलियारों से गुजरती, पी.एम. सेक्रेटेरियट पहुँची है। रिपोर्टों-गवाहों के बयानों, साक्ष्‍यों के बाद कानून के सैकड़ों हवालों, संविधान की धाराओं, अफसरों और मंत्रियों की 'रिकमेंडेशन' से भरी-पूरी इस फाइल में बिहार सरकार ने सेंट्रल गवर्नमेंट से इजाजत माँगी है कि क्‍या श्री मोहनदास करमचंद गांधी,पुत्र करमचंद गांधी को दफा 121, 121-ए, 123, 124-ए और 126 के तहत गिरफ्तार करके मुकद्दमा चलाया जा सकता है? देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के लिए यह फैसला करना मुश्किल था, लेकिन कैबिनेट की राय थी कि संविधान और देश की अवमानना के किसी भी मामले में बड़े-से-बड़े आदमी के खि‍लाफ कार्रवाई की जा सकती है, चाहे वह राष्‍ट्रपति क्‍यों न हों... इसके बाद गांधी को प्‍यारेलाल, बावनदास, सुषमा और निर्मला देवी के साथ गिरफ्तार कर लिया गया।

(धीरे-धीरे मंच पर प्रकाश आता है। जेल के अंदर बावनदास आता है, उसके पीछे सुषमा है। सबसे अंत में निर्मला देवी हैं, जिसने बकरी की रस्‍सी पकड़ी हुई है। हवलदार निर्मला देवी को जेल के अंदर बकरी ले जाने से रोकता है।)

हवलदार : ये क्या है, बकरी क्यों ले जा रही हो जेल में?

निर्मला देवी : गांधी बाबा की बकरी है।

हवलदार : अरे किसी की भी बकरी हो... अंदर नहीं जाएगी।

निर्मला देवी : क्‍यों नहीं जाएगी... बुड्ढा भूखा मर जाएगा, इसी का दूध पी-पी कर तो

वह जीता है।

हवलदार : ला, इधर ला... बकरी की रस्‍सी।

निर्मला देवी : मैं न दूँगी... चाहे मेरी जान ही चली जाए।

सुषमा : अम्‍मा दे दे बकरी।

बावनदास : बकरी जेल नहीं जाता। हम जानता है, हम चार ठो बार जेल गया है।

निर्मला देवी : तू चुप रह... मैं तो ले जाऊँगी।

हवलदार : (झटपट छीनना चाहता है) ... ला... बहुत हो गई.. नहीं तो लेडीज पुलिस बुलाता हूँ...

निर्मला देवी : अरे, तू क्‍या मुझसे छीन लेगा बकरी... ले उधर से रस्‍सी पकड़ कर खींच...

देखूँ तूने कितना दूध पिया है।

(प्‍यारेलाल आते हैं। उनके साथ जेलर भी है।)

प्‍यारेलाल : बकरी तो बापू के साथ कई बार जेल जा चुकी है।

जेलर : ठीक है... जाने दो..

(प्‍यारेलाल और जेलर के अलावा सब अंदर चले जाते हैं। मंच पर कैदी के कपड़ों में गांधी आते हैं।)

गांधी : मुझे जानकारी मिली है कि इसी जेल में नाथूराम गोडसे अपनी सजा काट रहा है।

जेलर : जी हाँ... वो इसी जेल में है।

गांधी : किस वार्ड में है?

जेलर : वो वार्ड नंबर पाँच में है।

गांधी : मुझे भी पाँच नंबर का वार्ड दे दीजिए।

जेलर : (चौंक कर) ... क्‍यों?

गांधी : यह मेरी इच्‍छा है... मैं गोडसे से बात करना चाहता हूँ।

जेलर : श्रीमान जी... कैदी को जेल में माँगने से वार्ड नहीं मिलते... और फिर उसने आप पर जानलेवा हमला किया था

गांधी : यही वजह है... यही है।

जेलर : मतलब... मैं समझा नहीं... आप उस आदमी के साथ एक वार्ड में क्‍यों रहना चाहते हैं, जिसने आप पर जानलेवा हमला किया था?

गांधी : मैंने कहा न, मैं उससे बातचीत करना चाहता हूँ। उसके साथ 'डायलॉग' करना चाहता हूँ।

जेलर : माफ करें... जेल 'डायलॉग' करने का कोई फोरम नहीं है।

गांधी : 'डायलॉग' करना तो बुनियादी अधिकार है। आप किसी को कैसे रोक सकते हैं?

जेलर : देखिए, मेरी सबसे पहली और बड़ी जिम्‍मेदारी यह है कि जेल में लॉ और आर्डर कायम रहे...

गांधी : तो मेरे वार्ड नंबर पाँच में जाने से लॉ और ऑर्डर को क्‍या खतरा हो सकता है?

जेलर : वह आदमी आप पर फिर हमला कर सकता है।

गांधी : क्‍या उसके पास यहाँ पिस्‍तौल है?

जेलर : (घबरा कर) नहीं... नहीं... पिस्‍तौल तो नहीं लेकिन उसके बगैर भी किसी का कत्‍ल किया जा सकता है।

गांधी : मैं आपको लिख कर देता हूँ... आप मेरे कहने से मुझे वार्ड नंबर पाँच दे रहे हैं और अगर, वहाँ मेरे साथ कुछ होता है तो उसकी जिम्‍मेदारी भी मेरी होगी।

जेलर : आपके लिख कर देने की कोई कानूनी अहमियत नहीं होगी।

गांधी : मैं तो इसे परमात्‍मा की कृपा मानता हूँ। अब कोई मुझे उसके साथ संवाद बनाने में रोक नही सकता... और सबसे बड़ी बात यह है कि वह संवाद पूरे देश के लिए बहुत जरूरी है... बहुत जरूरी।

जेलर : आदरणीय, आप चाहे जो कहें, आपको वार्ड नंबर पाँच में नहीं भेजा जा सकता।

गांधी : अगर ऐसा हे तो मेरे पास एक ही रास्‍ता बचता है...

जेलर : क्‍या?

गांधी : अपनी माँग के लिए आमरण अनशन।

जेलर : नहीं... नहीं... ठहरिए महात्‍मा जी... मैं...।

गांधी : हाँ तुम 'ऊपर' से पूछताछ कर लो...।

(जेलर चला जाता है)

प्‍यारेलाल : बापू, आप भी कमाल करते हैं।

गांधी : मेरी समझ में नहीं आता कि बहुत सीधी-सादी और मोटी बातें लोगों की समझ में क्‍यों नहीं आती... मैं कोई अनोखी बात नहीं कर रहा हूँ।

प्‍यारेलाल : बापू, आपकी हर बात अनोखी होती है। गोडसे के वार्ड में आपके रहने का कोई तुक नहीं है।

गांधी : प्‍यारेलाल, सच्‍चाई में अगर ताकत है और तुम यह मानते हो कि है... तो शरमाते क्‍यों हो?... झिझकते क्‍यों हो?... और अगर सच्‍चाई की ताकत पर भरोसा नहीं है तो जीवित रहने से फायदा?