गोडसे@गांधी.कॉम / सीन 13 / असगर वज़ाहत

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(मंच पर अँधेरा है।)

वॉयस ओवर के साथ मंच पर धीरे-धीरे प्रकाश आता है।

उद् घोषणा :

'87 साल के महात्‍मा गांधी के अमरण अनशन ने पूरे देश को हिला दिया। प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने गांधी से अनशन न करने की अपील की और देश को बताया कि उन्‍हें वार्ड नंबर 5 में इसलिए नहीं शिफ्ट किया जा रहा क्‍योंकि वहाँ उन पर जानलेवा हमला करनेवाला नाथूराम गोडसे अपनी सजा काट रहा है। महात्‍मा गांधी से बिनोवा भावे, जयप्रकाश नारायण और बाबा आप्‍टे ने अनशन खत्‍म करने की अपील की। लेकिन गांधी ने किसी की एक न सुनी। जल्‍दी ही महात्‍मा की सेहत गिरने लगी और डॉक्‍टरों ने प्रशासन को चेतावनी दे दी कि अगर जल्‍दी ही अनशन न खत्‍म किया गया तो कुछ भी हो सकता है। मंत्रिमंडल की बैठक में तय किया गया कि गांधीजी को गोडसे से बातचीत करने का मौका दिया जाया जा सकता है।

(प्रकाश आता है। वार्ड नंबर पाँच में जेलर के साथ गांधी, प्‍यारेलाल और बावनदास आते हैं। गोडसे अपनी ' चट ' पर बैठा अखबार पढ़ रहा है। वह इन सबको उपेक्षा से देखता है और अखबार पढ़ने लगता है।)

जेलर : ये वार्ड नंबर पाँच... और ये गोडसे की चट...।

गांधी : बस... इसके बराबर वाली चट... मुझे दे दो।

प्‍यारेलाल : बापू... बराबर वाली नहीं... उसके बाद वाली चट... बराबर वाली मैं ले लूँगा...

बावनदास : बाबा... हमको... बराबर वाला चट हमारा है... हम इधर सोया करेगा...

गांधी : क्‍यों?

बावनदास : बस हम बोल दिया... नहीं मिलेगा तो अब हम भी अनशन करेगा...

गांधी : ठीक है तुम इधर अपना समान रखो... उसके बाद मैं,फिर प्‍यारेलाल...

जेलर : ठीक है तो अब मैं चलता हूँ... (गोडसे से) मिस्‍टर गोडसे... आपको मालूम है कि...

गोडसे : (बात काट कर) ... गांधी को नाटक करने का शौक है और मुझे नाटक में कोई रुचि नहीं है... मेरे ऊपर कोई अंतर नहीं पड़ता कि मेरे बराबर कौन लेटा है।

गांधी : नाथूराम अगर ये तुम्‍हें अच्‍छा नहीं लग रहा है तो मैं माफी माँगने के लिए तैयार हूँ लेकिन अब मैं वार्ड नंबर पाँच से कहीं नहीं जाऊँगा। यह मेरे ऊपर परमेश्‍वर की अ‍सीम कृपा हुई है...

(इस बीच बावनदास और प्‍यारेलाल चट को साफ करने लगते हैं। इधर-उधर समान रखते हैं।)

गोडसे : तुम इस वार्ड में मेरे पास क्‍यों आना चाहते थे।

गांधी : वैसे तो लंबी बात है, कम में कहा जाए तो ये समझ लो, मेरे ऊपर गोली चलाने के बाद तुमसे लोग घृणा करने लगे या प्रेम करने लगे। कह सकते हो, घृणा करनेवालों की तादाद प्रेम करनेवालों की तादाद से ज्यादा थी। लेकिन संख्या से क्‍या होता है। मैं घृणा और प्रेम के बीच से नया रास्‍ता, संवाद का रास्‍ता 'डॉयलॉग' का रास्‍ता निकालना चाहता हूँ... तुमसे बात करना चाहता हूँ।

गोडसे : जरूर करो... लेकिन यह समझ कर न करना कि मेरे विचार कच्‍ची मिट्टी के घड़े हैं।

गांधी : नहीं गोडसे... मैं मानता हूँ, तुम्‍हारे विचार बहुत पक्‍के हैं, तुम्‍हारा विश्‍वास बहुत अडिग है, तुम साहसी हो क, ऐसा न होता तुम भरी प्रार्थना सभा में मेरे ऊपर गोली न चलाते... उसके बाद आत्‍मसमर्पण न करते।

गोडसे : हाँ, ये ठीक है मैंने जो कुछ किया था... अपने लिए नहीं किया था... मेरी तुमसे कोई निजी दुश्‍मनी न थी और न है। मैं हिंदुत्व की रक्षा अर्थात हिंदू जाति, हिंदू धर्म और हिंदुस्तान को बचाने के लिए तुम्‍हारी हत्‍या करना चाहता था।

गांधी : मैं खुश हूँ गोडसे... तुम सच बोल रहे हो...

गोडसे : मैंने यही बात अदालत में कही थी...

गांधी : अफसोस की बात यह है कि अदालत में संवाद नहीं होता... सिर्फ बयान और जिरह होती है...

गोडसे : संवाद होता तो क्‍या पूछते?

गांधी : सवाल तो यही पूछता कि हिंदू से तुम्‍हारा मतलब क्‍या है? पहली बात यह कि यह शब्‍द कहाँ से आया? वेद पुराण और उपनिषदों में यह शब्‍द नहीं मिलता... पुराणों में लिखा है, समुद्र के उत्तर और हिमालय के दक्षिण में जो देश है उसका नाम भारत है, यहाँ भरत की संतानें रहती हैं। (गोडसे उठ कर खड़ा हो जाता है। इधर-उधर टहलने लगता है। गांधी उसे ध्‍यान से देखते हैं।)

गोडसे : गांधी, हिंदू शब्‍द बहुत प्राचीन है... यह भ्रम फैलाया गया है कि हिंदू शब्‍द विदेशियों ने दिया था... तुमने प्रश्‍न किया था कि हिंदू से मैं क्‍या अर्थ लेता हूँ, वैदिक धर्म और उनकी शाखाओं पर विश्‍वास करने वालों को मैं हिंदू मानता हूँ और सिंधु नदी के पूर्व में जिस धरती पर हिंदू बसते हैं वह हिंदुस्‍थान है।

(बावनदास और प्‍यारेलाल भी बैठ कर बातचीत सुनने लगते हैं। )

गांधी : गोडसे तुम 'हिंदूस्थान' से प्रेम करते हो।

गोडसे : प्राणों से अधिक।

गांधी : क्‍या मतलब?

गांधी : तुमने सिंधु से लेकर असम और कश्‍मीर से लेकर कन्‍याकुमारी तक का इलाका देखा है?

गोडसे : तुम कहना क्‍या चाहते हो गांधी...।

गांधी : (प्‍यारेलाल से) ... चर्खा इधर उठा दो... मेरे हाथ काम माँग रहे हैं।

(प्‍यारेलाल और बावनदास चर्खा उठा कर गांधी के सामने रख देते हैं। वे चर्खा चलाने लगते हैं।)

गांधी : (गोडसे से) मैं 1915 में जब भारत आया था और यहाँ सेवाभाव से काम करना चाहता था तो मेरे गुरु महामना गोखले ने मुझसे कहा था कि गांधी हिंदुस्तान में कुछ करने से पहले इस देश को देख लो। और मैंने एक साल तक देश को देखा था। और उसका इतना प्रभाव पड़ा कि मैं चकित रह गया।

गोडसे : कैसे?

गांधी : जिसे हम 'हिंदुस्‍थान' या 'हिंदुस्तान' कहते हैं वह एक पूरा संसार है गोडसे... और उस संसार में जो कुछ है... जो रहता है... जो काम करता है... उससे हिंदुस्तान बनता है...

गोडसे : ये गलत है 'हिंदुस्थान' केवल हिंदुओं का देश है...

गांधी : तुम हिंदुस्तान को छोटा कर रहे हो गोडसे... हिंदुस्तान तुम्‍हारी कल्‍पना से कहीं अधिक बड़ा है... परमेश्‍वर की विशेष कृपा रही है इस देश पर...

गोडसे : सैकड़ों साल की गुलामी को तुम कृपा मान रहे हो?

गांधी : गोडसे, असली आजादी मन और विचार की आजादी होती है... हिंदूमत कभी पराजित नहीं हुआ, राम ने अपना विस्‍तार ही किया है...

गांडसे : तुम्‍हें राम से क्‍या लेना-देना... गांधी... तुमने तो राम और रहीम को मिला दिया। ईश्‍वर अल्‍लाह को तुम एक मानते हो...

गांधी : हाँ, गोडसे मैं वही कर रहा हूँ जो यह देश हजारों साल से करता आया है... समझे? समन्‍वय और एकता।

गोडसे : समन्‍वय... यह शब्‍द... मैं इससे घृणा करता हूँ... हम विशुद्ध हैं... हमें हिंदू होने पर गर्व है... हम सर्वश्रेष्‍ठ हैं... सर्वोत्तम हैं...