गोडसे@गांधी.कॉम / सीन 6 / असगर वज़ाहत

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(मंच पर अँधेरा है)

उद् घोषणा : बिहार में राँची से पुरूलिया जानेवाले सड़क पर धमहो से 13 किलोमीटर दूर बेतिया जनजाति के सांगी गाँव में गांधी ने आश्रम बनाया।

(धीरे-धीरे प्रकाश आता है। गांधी तथा अन्‍य, आश्रम के लिए अलग-अलग तरह के काम करते दिखाई पड़ते है। मंच पर पत्रों का आना-जाना तथा गतिविधियाँ होती रहती हैं और उद् घोषणा चलती रहती है) दिल्‍ली में कांग्रेस के बड़े-बड़े नेता बापू को भूले नहीं हैं। उन्‍हें पता चलता रहता है कि बापू कहाँ हैं और और क्‍या कर रहे हैं। उन्‍होंने बिहार के मुख्यमंत्री श्री बाबू को निर्देश दे रखे हैं कि धुर आदिवासी गाँव में जहाँ पहुँचने के लिए 13 मील पैदल चलना पड़ता है, वहाँ बापू के लिए जो भी साधन जुटाए जा सकते हों, जुटाए जाएँ... इधर आश्रम में गांधी ओर उनके सहयोगी नगपुरिया बोली सीख रहे हैं, गांधी के आदेश से सबने वही कपड़े पहनने शुरू कर दिए हैं जो दूसरे आदिवासी पहनते हैं। गांधी ने पहला काम ये बताया कि आरम वाले खेती-किसानी में गाँव वालों की मदद करें...

(उद् घोषणा के दौरान मंच पर संबंधित गतिविधियाँ दिखाई देती रहती हैं। उद्घोषणा जारी रहती है।)

... सुषमा गाँव की दूसरी लड़कियों के साथ चिमकौली जमा करने जंगल चली जाती है... निर्मला देवी पर रसोईघर की जिम्‍मेदारी है... बावनदास गांधी जी की मदद करते हैं... प्रार्थना सभा में आनेवालों की संख्या बढ़ रही है...

(मंच पर प्रार्थना सभा हो रही है। सब भजन गा रहे हैं।)

...रघुपति राघव राजाराम...

(सभा में तीन अजनबी आकर बैठ जाते हैं। भजन खत्‍म होता है तो एक अजनबी गांधी जी के पास आता है।)

रामनाथ : (नमस्‍ते करता है) ... गांधी जी मेरा नाम रामनाथ है, मैं इस जि‍ले का डिप्‍टी कमिश्‍नर हूँ...

गांधी : बैठिए... और आप लोग?

रामनाथ : जी... ये... जिले के इंजीनियर है और आप जिले एसपी हैं।

गांधी : बेठिए... बताइए... क्‍या बात है...

रामनाथ : शासन का आदेश है...

गांधी : (बात काट कर) अगर आदेश है तो मेरे पास क्‍यों आ गए... जो आदेश है वैसा करना चाहिए।

रामनाथ : आदेश ये हे कि आपकी सहमति से...

गांधी : (बात काट कर) क्‍या किया जाए?

रामनाथ : सबसे पहले तो गाँव में दो हैंडपंप लगाने की योजना है।

गांधी : ये हैंडपंप क्‍या होता है?

रामनाथ : जी... ? मतलब...

गांधी : हैंडपंप क्‍या होता है?... उसमें क्‍या खराबी हो सकती है?... उसकी देख भाल कैसे की जाएगी... ये सब आप पहले गाँव वालों को बताओ और उसके बाद हैंडपंप लगाओ...

रामनाथ : सर, हम लोग उनकी भाषा नहीं जानते।

गांधी : भाषा नहीं... जानते... तो सीख लो...

रामनाथ : जी?

गांधी : हाँ... बिना भाषा जाने इनका विकास कैसे करोगे?

रामनाथ : जी... हाँ... ठीक कहते हैं... शासन यह भी चाहता है कि यहाँ तक टेलीफोन लाइन डाल दी जाए...

गांधी : क्‍यों?

रामनाथ : जी... जी... मतलब बातचीत करने में इजी हो ताएगा... मैं यहाँ पर टेलीफोन पर बातचीत करने तो आया नहीं हूँ... जिसे मुझसे बातचीत करनी हो... यहाँ आकर करे... और फिर... सिर्फ मेरे लिए शासन इतना पैसा क्‍यों खर्च करना चाहता है?

रामनाथ (नोट्स लेते जाते हैं)... महात्‍मा जी... यहाँ से गाँव में पुलिस चौकी...

गांधी : पुलिस चौकी? क्‍यों? किसलिए?

रामनाथ : हिफाजत... सुरक्षा के लिए।

गांधी : किसकी सुरक्षा?

रामनाथ : ज... ज... जी... आपकी...

गांधी : मेरी सुरक्षा?... क्‍या मजाक है... मुझे यहाँ कोई खतरा नहीं है...

रामनाथ : जी... मतलब... अच्‍छा रहेगा... प्रशासन गाँव में...

गांधी : गाँव में, गाँव वालों का अपना प्रशासन है।

रामनाथ : अपना प्रशासन?

गांधी : हाँ... इनकी अपनी सुरक्षा है, अपने सिपाही हैं, अपनी अदालत है...

रामनाथ : जी... ये कैसे?

गांधी : तुम्‍हें ये सब समझाने का समय नहीं है मेरे पास... अब जाओ।

रामनाथ : एक और बात करनी है महात्‍मा जी।

गांधी : हाँ... बताओ...

रामनाथ : (एक चपरासी) थैले इधर लाओ...

(चपरासी दो बड़े-बड़े थैले सामने लाता है। रामनाथ के इशारे पर गांधीजी के सामने रख दिए जाते हैं।)

रामनाथ : ये आपकी डाक है... चिट्ठि‍याँ हैं... जो पूरे देश के डाकखानों से यहाँ रि-डायरेक्‍ट कर दी गई हैं।

गांघी : धन्यवाद... चिट्ठि‍याँ लाने के लिए।

रामनाथ : नियरेस्‍ट पोस्‍ट ऑफिस यहाँ से 20 मील दूर है। अब वहाँ से वीक में एक बार आपके पास डाक आया करेगी...

गांधी : बहुत अच्‍छा...

रामनाथ : और किसी चीज की जरूरत... ?

गांधी : नहीं... यहाँ सब‍कुछ है... नमस्‍ते।

(तीनों अधिकारी और चपरासी चले जाते हैं। गांधीजी चिट्ठि‍यों का बैग खेल लेते हैं। उन्‍हें एक रंगीन लिफाफे में एक पत्र दिखाई प्रड़ता है। उसे उठा कर पढ़ते हैं।)

गांधी : सुषमा शर्मा, केयर ऑफ महात्‍मा गांधी, राँची बिहार।

(लिफाफा खोलते हैं। लाल रंग के कागज का खत है। गांधी उसे पढ़ते हैं। )

गांधी : (चिट्ठी पढ़ते हैं) ... मेरी जान से प्‍यारी सुषमा, तुम्‍हें हजारों... प्‍यार... तुम्‍हारे चले जाने के बाद कई दिन तक तो मैं होश में ही नहीं रहा... अब लगता है कि यह सहन नहीं कर पाऊँगा। माफ करना मुझे, मुझे लगता है कि हमारे प्रेम के बीच महात्‍मा जी आ गए हैं।

(गांधी की आवाज भारी होती है और चिट्ठी पढ़ना बंद कर देते है )

गांधी : (आवाज देते हैं) सुषमा... सुषमा।

(सुषमा आती है)

गांधी : सुषमा तुम अपना सामान बाँधो और आश्रम से चली जाओ...

सुषमा : (घबरा कर) क्‍यों... क्‍यों बापू क्‍यों?

गांधी : तुमने आश्रम का अनुशासन भंग किया है... लगता है ये मेरे ही पाप हैं जो मेरे सामने आ रहे हैं... यहाँ ब्रह्मचर्य पालन करने के लिए भगीरथ प्रयास किए जा रहे हैं... यहाँ गंदगी, सड़न, कुविचार, काम के लिए लालसा... मैं इतनी गंदगी में नहीं जी सकता... न मैं दूसरों को इस नरक में रखना चाहता हूँ... तुमने मर्यादा को भंग किया है... तुम्‍हें प्रायश्चित करना पड़ेगा...

(चिट्ठी दिखाते हैं। सुषमा समझ जाती है।)

सुषमा : मैं प्रायश्चित करने के लिए तैयार हूँ बापू।

गांधी : तैयार हो...

सुषमा : जी।

गांधी : हृदय से नवीन को अपना भाई या पिता मान सकती हो?

सुषमा : (रोते हुए) ये क्‍या है बापू...

गांधी : तुम्‍हारे मन में काम की ज्वाला जल रही है... तुम आश्रम में रहने योग्‍य नहीं हो... तुम्‍हारे मन में विकार है...

सुषमा : नहीं... बापू नहीं... एक मौका मुझे दीजिए बापू... एक मौका...

गांधी : चलो ठीक है, पाप की दौड़ लंबी नहीं होती।