चाल / रवीन्द्र कालिया / पृष्ठ 2

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दरअसल इस देश का लगातार पतन हो रहा है। जिस देश में एक इंजीनियर इस तरह खटिया पर पडा-पडा ही दिन बिता दे और नौकरी को तरसता रहे, उस देश का क्या होगा? समय आ गया है कि भगवान कृष्ण अब जन्म ले लें, नहीं तो यह अग्रवाल का बच्चा बनारसी साडियाँ बेच-बेच कर इमारत-पर-इमारत बनाता जाएगा। वह पैसा तो खूब कमा लेगा मगर जीवन भर महसूस नहीं करेगा कि उसकी बीवी 'भांग की पकौड़ी' पढ-पढकर समय काटती है। अग्रवाल का भाग्य अच्छा था कि वह सुन्दर न हुई। वह सुन्दर होती तो क्या होता? कुछ भी नहीं होता। अग्रवाल और अधिक मन लगा कर साडियाँ बेचने लगता।

प्रकाश ने सुबह से चाय भी नहीं पी थी। किरण अब तक दो पीरियड ले चुकी होगी। मालूम नहीं, गुणवंतराय से उसकी भेंट हुई या नहीं। हो सकता है मामला प्रिंसिपल या रजिस्ट्रार तक पहुँच गया हो। कुछ हो भी सकता है। प्रकाश ने देखा, किरण ने सुबह आलू उबालकर उनसे कई काम ले लिए थे। डबलरोटी में आलू, हरी मिर्च भर कर उसने नाश्ता तैयार कर दिया था और उबले आलू की तरकारी बना दी थी। अपने लिए, शायद वह आलू के परांठे बना कर ले गई थी, क्योंकि आलू का एक परांठा प्रकाश के लिए भी रखा था। आलू के इतने उपयोग देखकर प्रकाश फिर भडक गया, मैं आलू से भी गया-बीता हूँ। मेरा परांठा भी नहीं बन सकता। आलू एक मुफीद चीज है, इसे कहीं भी इस्तेमाल किया जा सकता है। अपने बाप की तरह किसी बैंक में आलू हो जाता तो रिटायर होत-होते किसी ब्रांच का मैनेजर जरूर हो जाता, मगर मेरा बाप मुझे इंजीनियर बनाना चहता था। बना दिया इंजीनियर? क्या फायदा हुआ रात देर तक ओवरटाइम करने का? लकवा मार गया और आँखें जाती रहीं। कोई भी मेरे बाप को देख कर कह सकता है कि यह शख्स 'ओवरटाइम' का मारा है। यह तो मैं काफी फुरसत में था कि किरण को फाँस लिया। मेरा बाप तो मेरे लिए लड़की भी न ढूँढ पाता। बाप आखिर बाप है। बूढे बाप पर क्यों तैश दिखा रखा हूँ?

मुझे नौकरी मिल जाए, मैं बाप के सब शिकवे दूर कर दूँगा। बांद्रा में दो बेडरूम-हाल ले लूँगा और अपने बाप के लिए एक नर्स नियुक्त कर दूँगा। किरण को बुरा लगेगा। उससे कहूँगा, वह भी अपनी माँ को बुला ले। दोनों मिल कर पूजा-पाठ करते रहेंगे। बैंक के मैनेजर ने ऋण के सिलसिले में दुबारा मिलने को कहा था, उससे मिलूँगा। संसद-सदस्य चौधरी पिछले पंद्रह वर्षों से लोकसभा में बैठा है, मगर उसे खबर तक नहीं कि पंडित नन्दलाल अग्निहोत्री का होनहार बेटा, जिसे वह गोद में उठा लिया करता था, अंधेरी की एक चाल में बेकार पडा है। मैं चौधरी को एक मर्मभेदी पत्र लिखूँगा। उसे लिखूँगा कि वह इतने वर्षों से संसद में क्या कर रहा है? पिछले वर्ष मेरे बाप ने भी चौधरी के नाम एक पत्र लिखवाया था, जिसके उत्तर में चौघरी ने बहुत-सा साहित्य भेजा था। आजादी से पहले भारत में सुइयाँ भी आयात की जाती थीं आज यहाँ हवाई जहाज बनते हैं। चौधरी ने बहुत सा रंगीन साहित्य भेजा था। उसके पत्र के साथ एक बहुरंगी फोल्डर भी था, 'आर यू प्लानिंग टु सेट आप ए स्मॉल स्केल इंडस्ट्री' फोल्डर की भाषा अत्यंत मुहावरेदार थी। दो रंगी छिपाई। मैपलिथो कागज। कागज के उस टुकडे ने मुझे कितना आंदोलित कर दिया था!'

प्रकाश को याद है, उसने कुछ ही दिनों में कई योजनाओं का प्रारूप तैयार कर लिया था। ड्राई सेल, बैटरी एलिमेनटर, इण्टर कम्युनिकेशन सेट, लाख रुपए तक का ऋण देने को तत्पर था। प्रकाश ने बीसियों बार वह फोल्डर पढा और अपने बाप को उसने एक बहुत ही भावुकतापूर्ण पत्र लिखा। उसने लिखा कि उनके आशीर्वाद से वह शीघ्र ही व्यस्थित हो जाएगा। उसने इण्डस्ट्रियल इस्टेट में डेढ हजार वर्गफीट जगह भी सुरक्षित करा ली है। अगर परिस्थितियों ने साथ दिया, तो छह महीनों में उसकी फैक्ट्री चाले हो जाएगी। उसकी हार्दिक इच्छा है कि शुभ मुर्हूत पर वह अवश्य उपस्थित रहें।

जिस दिन प्रकाश बैंक के मैंनेजर से मिलने गया, किरण ने कालेज में अवकाश ले लिया था। प्रकाश बैंक में पहुँचा, तो बिजली नहीं थी। तमाम कर्मचारी अपनी-अपनी कुर्सी छोडकर हवा में टहल रहे थे।

'आपसे मिलने के पूर्व मैं कार्यालय से कुछ जानकारी ले लेना चाहता था, मगर दुर्भाग्य से आज बिजली नहीं।' प्रकाश ने मैंनेजर के सामने बैठते हुए कहा, 'मैंने इंजीनियरिंग की परीक्षा अच्छे अंक प्राप्त करके पास की है और 'आर' यू प्लानिंग टु सेट अप एक स्मॉल स्केल इण्डस्ट्री' पढ कर आप से मिलने आया हूँ।'

'यह अच्छा ही हुआ कि बिजली नहीं है, वरना आपसे भेंट ही न हो पाती। आप मिश्रा से मिलते और मिश्रा आपको जानकारी की बजाय गाली दे देता। वह आने वाले से यही कहता है कि यह सब स्टंट है आप घर में बैठकर आराम कीजिए। कुछ होना-हवाना नहीं है।' प्रकाश अपनी योजनाओं के बारे में बिस्तार से बात करना चाहता था, मगर उसने पाया कि बैंक का मैनेजर सहसा आध्यात्मिक विषयों में दिलचस्पी लेने लगा है। वह धूप में कहकहे लगा रहे बैंक के कर्मचारियों की ओर टकटकी लगा कर देख रहा था और जैसे दीवारों से बात कर रहा हो, 'तुम नौजवान आदमी हो, मेरी बात को समझ सकते हो। यहाँ तो दिन-भर अनपढ व्यापारी आते हैं, जिन्हें न स्वामी दयानन्द में दिलचस्पी है, न अपनी सांस्कृतिक विरासत में। वेद का अर्थ हे ज्ञान। ज्ञान से हमारा रिश्ता कितना सतही होता जा रहा है, इसका अनुमान आप स्वंय लगा सकते हैं। प्रकृति की बडी-बडी शक्तियों में आर्य लोग दैवी अभिव्यक्ति देखते थे। आज क्या हो रहा है, आप अपनी आँखों से देख रहे हैं। बिजली चली गई और इनसे काम नहीं होता। कोई इनसे काम करने को कहेगा, ये नारे लगाने लगेंगे। मैं इस से चुप रहता हूँ। किसी से कुछ नहीं कहता। आप चले आए, बहुत अच्छा हुआ, नहीं तो मैं गुस्से में भुनभुनाता रहता और ये सब मुझे देख-देखकर मजा लेते। मैं पहले ही 'एक्सटेंशन' पर हूँ। नहीं चाहता इस बुढापे में प्राविडेंट फंड और ग्रेच्युटी पर कोई आँच आए।

आपकी तरह मैं भी मजा ले रहा हूँ। मैंने बिजली कम्पनी को भी फोन नहीं किया। वहाँ कोई फोन ही नहीं उठाएगा। इन सब बातों पर मैं ज्यादा सोचना ही नहीं चाहता। पहले ही मन्द रक्त चाप का मरीज हूँ। दिल दगा दे गया, तो यहीं ढेर हो जाऊँगा। देवों का तर्पण तो दूर की बात है, यहाँ कोई पितरों का तर्पण भी नहीं करेगा। आप यह सब सोचकर उदास मत होइए। आप एक प्रतिभासम्पन्न नवयुवक है, तकनीकी आदमी हैं। बैंक से ऋण लकर अपना धंधा जमाना चाहते हैं। जरूर जमाइए। पुरुषार्थ में बडी शक्ति है। हमारा दुर्भाग्य यही है, हम पुरुषार्थहीन होते जा रहे हैं। आप हमारे बैंक का फोल्डर पढकर आये हैं, मेरा फर्ज है, मैं आपकी पूरी मदद करूँ। ऋण के लिए एक फार्म है, जो आपको भरना पडेगा। इधर कई दिनों से वह फार्म स्टॉक में नहीं है। मैंने मुख्य कार्यालय को कई स्मरण-पत्र दिए हैं कि इस फार्म की बहुत माँग है। दो सौ फार्म तुरंत भेजे जाएँ। फार्म मेरे पास जरूर आए मगर वे नया एकाउंट खोलने के फार्म थे। आज की डाक से यह परिपत्र आया है। आप स्वयं ही पढकर देख लीजिए। मैं अपने ग्राहकों से कुछ नहीं छिपाता। मैं खुले पत्तों से ताश खेलने का आदी हूँ। इस परिपत्र में लिखा है कि बैंकों के राष्ट्रीकरण के बाद पढे-लिखे तकनीकी लोगों को बैंक से अधिक-से-अधिक आर्थिक सहायता मिलनी चाहिए।

आपका समय नष्ट न हो, इससे मेरी राय यही है कि आप कहीं से उस फार्म की प्रतिलिपि प्राप्त कर लें, उसकी छह प्रतिलिपियाँ टांकित करा लें, मुझसे जहाँ तक बन पडेगा, मैं आपके लिए पूरी कोशिश करूँगा। वैसे निजी तौर पर आपको बता दू, मेरे कोशिश करेने से कुछ होगा नहीं। मैं कब से कोशिश कर रहा हूँ कि अस ब्रांच के एकाउंटेंट का तबादला हो जाए, मगर वह आज भी मेरे सर पर सवार है। सारे फसाद की जड़ भी वही है। गर्मी भी उसे ही सबसे ज्यादा लगती है। पुराना आदमी है, अफसरों से लेकर चपरासियों तक को पटाये रखता है, यही वजह है कि उस पर कोई अनुशासनात्मक कार्यवाही नहीं की जा सकती। दो ही वर्षों में मैंने उसकी 'कन्फीडेंशल फाइल इतनी मोटी कर दी है कि अकेले उठती नहीं। मगर आज कागजों का वह अर्थ नहीं रह गया, जो अंग्रेजों के जमाने में था। कागज का एक छोटा-सा पुर्जा जिन्दगी का रुख ही बदल देता था। ऋण की ही बात ले लीजिए। यह सब 'पेपर एनकरेजमेंट' यानी कागजी प्रोत्साहन है। यही वजह है कि हिन्दुस्तान में कागज का अकाल पड गया है। राधे बाबू ने गेहूँ या तेल से उतनी कमाई नहीं की, जितनी आज कागज से कर रहे हैं।'

इसी बीच बिजली आ गई। कमरे में उजाला हो गया और धीरे-धीरे पंखे गति पकडने लगे। प्रकाश के दम-मे-दम आया। अपनी योजनाओं के प्रारूप की जो फाइल प्रकाश अपने साथ इतने उत्साह से लाया था, मैनेजर ने पलट कर भी नहीं देखी थी। चपरासी ने बहीखातों का एक अम्बार मैनेजर के सामने पटक दिया। एक ड्राफ्ट उडकर प्रकाश के पाँव पर गिरा। प्रकाश ने वहीं पडा रहने दिया। मैंनेजर ने चिह्नित पृष्ठों पर मशीन की तरह कलम चलानी शुरू कर दी।

प्रकाश उठा और मैंनेजर के कमरे से बाहर आ गया, जैसे एक दुनिया से दूसरी दुनिया में आ गया हो। उसके सामने कारों, बसों, दुमंजिला बसों और टैक्सियों का हजूम था। लोगों की लम्बी कतारे बसों की प्रतीक्षा में खडी थीं। सडक के दोनों ओर ऊँची-ऊँचीं इमारतें। प्रकाश को लगा वह किसी भी स्तर पर इस दुनिया से तादाम्य स्थापित नहीं कर पा रहा है। वह न तो बस की कतार में शामिल हुआ और ना ही स्टेशन का पुल पार करने स्टेशन की ओर बढा। आगे रेल की लाइन के नीचे से एक रास्ता पूरब की ओर जाता था, वह उसी पर बढ गया । किरण घर में उसका इन्तजार कर रही होगी, मगर उसे घर जाने की जल्दी नहीं थी। किरण सारा किस्सा सुनकर अवश्य गुमसुम हो जाएगी।

वह लुढ़कता-लुढ़कता घर पहुँचा, तो मालूम हुआ किरण कालिज चली गई है। वह एक पत्र छोउ गई थी कि आज उसके केवल दो पीरियड हैं, छुट्टी उसी दिन लेगी, जिस दिन उसके चार पीरियड होंगे। प्रकाश ने राहत की सांस ली और खटिया पर कटे पेड की तरह गिर पडा और घंटों यों ही अकर्मण्य-सा लेटा रहा। किरण के लौटने का समय हो रहा था, मगर उसने उठकर चाय का पानी भी नहीं चढाया।

'वह अब शायद रोज मुझे से चाय की अपेक्षा रखने लगी है'-प्रकाश ने कहा-'ठीक ही तो है, दिन-भर की थकी लौटगी। कम-से-कम चाय का एक गर्म प्याला तो उसे मिलना ही चाहिए। लेकिन आज मैं चाय नही बनाऊँगा, यों ही लेटा रहूँगा। डाक भी खोल कर नहीं देखूँगा, सब में एक ही शब्द होगा: रिसैशन। जब तक रिसैशन दूर नहीं होगा, मैं किरण के लिए चाय बनाता रहूँगा, रिसैशन खत्म न हुआ तो खाना भी बनाने लगूँगा।

चाल में किसी का पंखा खराब हो जाए, इस्त्री काम न करे, रेडियो एक साथ दो-दो स्टेशन पकडने लगे या फ्यूज उड जाए, सब मेरे पास ही आते हैं। अब कह दिया करूँगा, आटा गूँथ लूँ और चपाती सेंक लूँ, फिर आता हूँ।

मछली बाजार का शोर मन्द पडने लगा था। मैदान वीरान हो रहा था। प्रकाश उठा और उसने किसी तरह से नाश्ता लिया। वह देर तक बिना किसी उत्साह और दिलचस्पी के अखबार पढता रहा। कोई भी खबर उसे कहीं भी नहीं छू रही थी। हवाई दुर्घटना में एक सौ व्यक्ति मारे गए, निक्सन ने चीन का निमंत्रण स्वीकार कर लिया। अगला बच्चा अभी नहीं, दो के बाद कभी नहीं। घर में बच्चा होता, तो प्रकाश कितनी आसानी से उसे पाल लेता। मगर वह खाता क्या? ईश्वर सबका इन्तजाम करके धरती पर भेजता है। मगर लिडियाल जिन्दाबाद! किरण भुलक्कड है, मगर 'लिंडियाल' लेना नहीं भूलती। भूल गई तो कन्फरमेशन खटाई में पड जाएगा, मिसेज बोस के साथ यही हुआ था कच्ची नौकरी में ही बच्चे ने धर दबाया और अंधेरी से कांदिवली पहुँच गई।

हल्के से दरवाजा खुला और बाई प्रकाश के पास से गुजर गई। बाई जवान है और घर में एकान्त है, प्रकाश फिर भी जड बैठा रहा। 'बाई!'-प्रकाश ने जोर से आवाज दी।

'क्या है?' बाई ने झाँक कर उसकी तरफ देखा।

'और मैं तुम्हें पकड लूँ और तुम्हारा भरता बना दूँ, तो तुम क्या कर लोगी?'

'यही सब करना होता, तो मैं बर्तन ही क्यों मलती।' बाई ने कहा, 'पाँच नम्बर का मारवाडी बाबू जानबूझ कर टकरा गया था, मैंने तभी काम छोड दिया।'

'मारवाडी बाबू की तो चाल में बहुत इज्जत है।'

'होगी!' बाई ने कहा, 'मगर मुझसे आँख मिलाने को कहो।'

'तुम्हारा आदमी क्या करता है?'

'मजूरी, और क्या करेगा?'

'कहाँ?'

'फैक्टरी में, और कहाँ?'

'कौन-सी फैक्टरी में?'

'वह सामने वाली फैक्टरी में, जहाँ काँच के गिलास बनते हैं।' बाई ने कहा, 'मगर अब कई दिनों से वह बैठ गया है। कहीं भी जम कर काम नहीं करता। उसे कहीं कोई काम दिलवा दो, तो मेरी छुट्टी हो।'

प्रकाश को हँसी आ गई। अकेलापन कितना काटता है। बाई से बात करना बहुत आच्छा लग रहा था। उसकी इच्छा हुई, बाई को गोद में उठाकर झूम जाए। वह सुबह से कितना मनहूस बैठा था। अभी वह अपने आदमी को फैक्टरी का पता बता रही थी, अभी कह रही है, बेकार है।

'तुम्हारे कितने बच्चे हैं?'

'दो।' बाई ने कहा, 'तीसरा पेट में है। इसके बाद बस।'

'कौन-सा महीना है?'

'कार्तिक में होगा।' बाई ने कहा, 'बाबू तुम्हारे यहाँ भी तो होना चाहिए। दो तो सरकार भी कहती है।'

'तुम ठीक कहती हो।'

'साठे को क्यों नहीं दिखाते। सब उसी का इलाज कराते हैं।' बाई ने कहा, 'रोज पर एक फकीर बैठता है, उसका ताबीज भी काम करता है।'

'अच्छा!'

'बबलू की माँ कहती थी, बहू कोई गोलियाँ खाती है।'

प्रकाश ने बाई की तरफ देखा, उसके ब्लाउज का बीच का बटन खुला था। और वह पैर के अंगूठे से जमीन कुरेदने की कोशिश कर रही थी।

'साली मुझे अकेला पा कर फाँस रही है।' प्रकाश ने मन-ही-मन कहा और अखबार में मशगूल हो गया।

बाई तुरंत वहाँ से हट गई अन्दर जाकर बर्तन मलने लगी। कमरे में पोछा लगा दिया, कपडे धोकर कमरे में ऊँची टँगी तारों पर बाँस से फैला दिए। प्रकाश कौतुक से उसे देखता रहा। अपना काम निपटा कर वह दरवाजे के पास जाकर खडी हो गई।