चाल / रवीन्द्र कालिया / पृष्ठ 5

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'किरण तो अभी कालिज से नहीं लौटी। दूसरे, उसकी तबीयज भी ठीक नहीं है।'

'तबीयत ठीक हो जाएगी।' शिवेन्द्र ने कहा, 'मैं उसका फ्राड नहीं चलने दूँगा।'

संजाना थर्मस ले आई, तो शिवेन्द्र ने सबके गिलासों में थोडा-थोडा बर्फ डाल दी और खुद कप उठा लिया, 'चियर्स!'

शिवेन्द्र अपना कप सिर से भी ऊपर ले गया।

'चियर्स!' सबने कहा और पीने लगे।

'यहाँ कही फोन है?' शिवेन्द्र ने पूछा।

'हाँ है। एक नम्बर में।'

'जरा दफ्तर में फोन पर मारिया से कह दो कि शिवेन्द्र यहाँ है और एक घण्टे तक इस फोन पर उपलब्ध है।' शिवेन्द्र ने गटागट अपना प्याला खाली कर दिया।

प्रकाश ने इधर-उधर चवन्नी ढूँढी उसे कहीं न मिली। एक दिन उसने रसोई में एक कटोरी में कुछ रेजगारी देखी थी, मगर आज वह कटोरी भी नहीं मिल रही थी।

'क्या ढूँढ रहे हो?'

'रेजगारी।' प्रकाश ने कहा।

शिवेन्द्र ने पर्स खोला और एक दस का नोट उसकी ओर बढा दिया-'इधर रेजगारी की शहर में बहुत कमी है।'

प्रकाश ने नोट थाम लिया और पाल के कमरे की ओर चल दिया। वह खुश था कि कुछ समय के लिए तो शिवेन्द्र से दूर हो सका। दोनों बंदरियाँ घर में कैसे फुदक रही हैं। किरण आएगी, तो सब को सीधा कर देगी। मॉडल होंगी, अपने घर होंगी। प्रकाश को उनकी हर हरकत पर क्रोध आ रहा था। उसकी इच्छा हो रही थी, अंधेरी चला जाए और किरण को लेकर तब तक कहीं बैठा रहे, जब तक यह चंडाल चौकडी लौट नहीं जाती।

पाल कुर्सी पर उकडूँ बैठा था। टाइपराइटर केस में बन्द था। मेज पर कोई कागज नहीं था। जैसे पाल ने यह धंधा बन्द करने का निर्णय ले लिया हो। बच्चे भी कोनों में दुबके थे।

'पाल साहब!' प्रकाश ने धीरे से कहा।

पाल ने आँखें उठाईं। उसकी आँखें सुर्ख हो रही थी। उनमें लहू था, और कुछ नहीं था। प्रकाश सहम गया। वह आदमी किसी भी समय बदतमीज हो सकता है।

'मैं शायद बहुत गलत समय पर आ गया। लगता है, आप की तबीयत नासाज है। मुझे जरूरी फोन करना था।'

'कीजिए। फोन नहीं कटा, यही गनीमत है, वरना कोई मेरे घर की तरफ ताकता भी नहीं।'

प्रकाश ने फोन मिलाया। मारिया मिल गई। उसने शिवेन्द्र का संदेश दे दिया और पाल के सामने दस का नोट फैला दिया।

'रेजगारी हो तो दीजिए।' पाल ने कहा।'

'रेजगारी नहीं है।'

'फिर कभी दे दीजिएगा।' प्रकाश लौटने लगा, तो पाल ने आवाज दी।

'कल तक के लिए क्या आप दस का नोट स्पेयर कर सकते हैं? आप दे सकें तो दे दीजिए। कल ग्यारह तक लौटा दूँगा।' पाल ने मेजके ड्रॉअर से सौ रुपए का एक चेक निकाला और प्रकाश को दिखाते हुए बोला, 'यह कल की तारीख का चैक है। बियरर चेक। आप चेक रख सकते हैं। कल मुझे नब्बे रुपए लौटा दीजिए।'

दरअसल यह दस का नोट मेरा नहीं है।' प्रकाश ने कहा, 'शिवेन्द्र ने फोन के लिए दिया था।'

'कोई बात नहीं।' पाल ने कहा।

'रेणु कहाँ है?' प्रकाश ने पूछा।

'दरवाजे में मुँह छिपाए रो रही है।'

'क्यों?'

'उसकी माँ भाग गई। दो दिन से घर नहीं आई।'

'आपने कहीं पता कराया। कहीं कोई एक्सीडेण्ट न हो गया हो।'

'नहीं एक्सीडेण्ट नहीं हुआ। वह बता कर गई है। कहती है, मैं गरीबी में नहीं रह सकती।'

प्रकाश चुपचाप खडा रहा। दस का नोट उसके हाथ में था। उसने पाया उसकी कमीज या पाजामें में कोई जेब नहीं थी कि ठूँस ले। 'वह गरीबी में नहीं रह सकती और मैं गरीबी से उबर नहीं सकता, मैंने बहुत हाथ-पाँव मारे जिसकी तकदीर ही फूट गई हो, वह क्या कर सकता है। जाते हुए वह एक और दिलचस्प बात कह गई कि उसने पैंतीस वर्ष की उम्र में पहली बार डिस्कवर किया है, कि प्यार किसे कहते हैं। आप को ताज्जुब होगा, उसके चार बच्चे हो गए, मगर उसे प्यार का एहसास नहीं हुआ।' पाल ने कहा। प्रकाश ने देखा, शिवेन्द्र बाल्कनी में खडा उसकी प्रतीक्षा कर रहा था।

'लीजिए आप दस रुपए ले लीजिए। मैं अपने मित्र से कह दूँगा।' प्रकाश बोला।

'आप मुझ पर दया करके मुझे दस रुपए दे रहे हैं। मैं दया का पात्र नहीं बना रहना चाहता। आपका मित्र चाहे तो नब्बे रुपए में सौ का यह चेक खरीद सकता है। किसी ऐसी, वैसी पार्टी का नहीं है। ओ पी रल्हन ने खुद दस्तखत किया हैं।'

'आप दस रुपए रखिए।' प्रकाश ने कहा, 'में अपने मित्र से यह प्रस्ताव नहीं रख सकता। उसके साथ कुछ दूसरे लोग भी हैं।'

प्रकाश ने दस का नोट पाल की मेज पर रख दिया और बाहर निकल आया। सूरज डूबने को हो रहा था। किरण को अब तक आ जाना चाहिए था। उसने सोचा, शिवेन्द्र की गाडी में उसे अंधेरी तक देख आये। अंधेरी जाकर क्या होगा, हो सकता है, वह बस में बैठ चुकी हो या किसी वजह से गाडियाँ ही अस्त-व्यस्त हों। तभी पाल का बडा बेटा तीर की तरह प्रकाश के पास से निकल गया। 'अंकल रसगुल्ले लेने जा रहा हूँ। खाओगे? रेणु ने लिए गुडिया लाऊँगा और अपने लिए पतंग।' बच्चा बकता हुआ भागे जा रहा था। कुछ ही देर में वह आखों से ओझल हो गया।

प्रकाश ने पलटकर देखा, पाल के घर का माहौल एकदम बदल गया था। बच्चा लोग इधर उधर से निकलकर बाप से चिपक गए थे। कोई बाप के कंधे पर सवार हो गया और कई कमर से लटकने लगा। शायद, बच्चों को प्रसन्न करने के लिए ही पाल को पैसे की जरूरत थी।

'तुम्हारा दस का नोट मैंने पाल को दे दिया। उसकी बीवी भाग गई है और बच्चे रो रहे हैं।' प्रकाश ने लौट कर घुसते ही शिवेन्द्र से कह कर दस रुपए से मुक्ति पा ली। शिवेन्द्र ने इस बात में कोई दिलचस्पी न ली। वह उस समय दोनों लडकियों को अपनी स्पेन-यात्रा के अनुभव सुना रहा था। लडकियाँ जानती हैं और शिवेन्द्र जानता है कि लडकियाँ जानती हैं कि वह कभी समुद्र पार नहीं गया। एक बार नेपाल गया था और वहाँ से सिफलिस लेकर लौटा था। वह तुरन्त सतर्क न हो जाता, तो अब तक उसका जीवन नरक हो गया होता। इस समय शिवेन्द्र वही पुराना किस्सा सुना रहा था कि कैसे मेड्रिड में एक युवती ने उसकी गाल पर थप्पड दे मारा था। इसके बाद वह उसे अपने घर ले गई। दरअसल शिवेन्द्र ने अपनी जवानी के दिनों में जो जो दो-एक उपन्यास पढ रखे थे, अक्सर उनके नायकों के साथ अपना तादात्म्य स्थापित करता रहता। शिवेन्द्र की शादी के समय उसके एक प्रसिद्ध साहित्यिक मित्र के पास उपहार देने को केवल 'ज्यां क्रिस्तोफ' था। शिवेन्द्र ने जस-तस उपन्यास पढ लिया, पढ क्या लिया, पढ-पढ कर अपनी बीवी को प्रभावित करता रहा कि वह पढाकू किस्म का आदमी है। उपन्यास पढ कर वह वर्षों अपने का क्रिस्तोफ समझता रहा। उसे विश्वास हो गया, 'ज्यां क्रिस्तोफ' कोई और नहीं शिवेन्द्र ही है। शिवेन्द्र ने देखा कि लडकियाँ उसकी बात से प्रभावित नहीं हो रहीं और प्रकाश भी इधर-उधर ताक रहा है, तो उसने समझ लिया कि वह यह किस्सा जरूर दोहरा रहा होगा। अक्सर उसके दोस्त शिकायत करते हैं कि वह एक ही बात को महीनों किसी-न-किसी प्रसंग में दुहराया रहता है। वैसे शिवेन्द्र का बात करने का अंदाज इतना रोचक और आवाज इतनी संवेदनपूर्ण थी कि कोई भी आदमी उसकी बात को पाँच-छह बार आसानी में बर्दाश्त कर सकता था।

'तुम्हारी बीवी लौट आई है और लौटते ही बडी बेनियाजी और अफसाना निगारी के अन्दाज में तथाकथित रसोई में घुस गई है। उससे पूछ कर बता दो कि उसे तैयार होने में कितना लगेगा?'

'कब आ गई?' प्रकाश ने पूछा।

'जब तुम फोन करने गए थे। तुम साले पाल की बीवी की चिंता में मरे जा रहे हो जबकि तुम्हारी अपनी बीवी की भी हालत खस्ता है। तुमने कहीं अपना इंताजाम नहीं किया, तो तुम्हारा हश्र भी वही होगा, जो पाल का हुआ बताते हो। यह दूसरी बात है, तुम्हारे पास रोने के लिए बच्चे नहीं , दोस्त ही बचेंगे।'

शिवेन्द्र की बात से लडकियों को बडा मजा आया। वे खिलखिला कर हँस पडीं। किरण अपनी सूरत की साधरणता के बावजूद पार्टियों में इन लड़कियों पर हावी रही है। दोनों लडकियाँ सुन्दर हैं मगर बात करने में फिसडडी। वे अपनी बात से नहीं सुस्कराहट से प्रभावित करती हैं। प्रकाश ने संजाना की तरफ देखा और व्यंग से मुस्करा दिया। शिवेन्द्र के घर की लिफ्ट में उसने एक सिंधी फाइनेंसर को संजाना से लिपटे देख लिया था। संजाना ने भी प्रकाश को देख लिया था। प्रकाश ने इस तरह देखते हुए पाकर वह अपनी घडी देखने लगी थी।

'अब समय आ गया है पार्टनर, कि तुम भी फिट हो जाओ। तुम्हारे सामने कोई चारा न हो, तो 'पार्क डेविस एंड ली' तो है ही। तुम इंजीनियर आदमी हो, कुछ-न-कुछ तो पीट ही लाओगे। इधर 'कमानीज' का बहुत शोर है। सुनते हैं, इस वर्ष वे पाँच लाख का एकाउंट दे रहे हैं। तुम अगर तय कर लो तो एकाउंट हथिया लोगे। पाँच प्रतिशत कमीशन तो कोई भी दे देगा। 'पार्क डेविस एंड ली' तो साढे सात प्रतिशत तुम्हारे नाम डेबिट कर देगी। तुम्हारा सहपाठी चन्द्रा चोकसी उनका पी.आर.ओ. है। कहो तो अभी तुम्हारा नियुक्ति पत्र टाइप करवा दूँ। 'कमानीज' को हमारे मॉडल भी पसन्द है। कम्पेन के बारे में निश्चिन्त रहो। लोग एकाउण्ट्स एग्जीक्यूटिव होने के लिए वर्षों जूते चटखाते हैं, यहाँ 'पार्क डेविस एण्ड ली' का सोल प्रोप्राइटर तुम्हारे घर में तुम्हें यह ऑफर दे रहा है। शुरू में कृष्णमूर्ति हमारे यहाँ चार सौ पाता था, अब 'प्रतिभा' से फोर फिगर्स ड्रा कर रहा है। 'पार्क डेविस एण्ड ली' का आदमी बेकार नहीं रहता। सुनन्दा से ही पूछ लो, 'उसका उसे कितने प्रलोभन दे चुके है। मगर सुनन्दा को मालूम है, हमारे यहाँ उसका भविष्य सुरक्षित है। तुम इस लाइन में नए आओगे। शुरू में ज्यादा नहीं दे पाऊँगा। मगर यह तय हे कि पहले ही रोज़ तुम्हारी वार्डरोब बनवा दूँगा। तुम जल्दी ही जान जाओगे, हमारा खेल दिखावे का खेल है। मेरी जरूरतें पूरी हों जाएँ, चर्चगेट में दफ्तर ले लूँ, नीचे इम्पाला खडी रहे, फिर देखो कैसे ए.एस.पी. की ऐसी-तैसी करता हूँ।'

प्रकाश शिवेन्द्र से पूर-का-पूरा यही भाषण कई बार सुन चुका था। शिवेन्द्र बात कर रहा था, और प्रकाश लगातार रसोई की तरफ देख रहा था। शिवेन्द्र की बात खत्म हो तो वह किरण से हाल-चाल मालूम करे। किरण ने आज जरूर गुणवंतराय का सिर फोड दिया होगा। प्रकाश ने रसोई में झाँक कर देखा, किरण कहीं नजर नहीं आ रही थी। आटे के कनस्तर पर उसकी किताबें पडी थीं। रसोई में जाकर हो वह किरण को देख पाया। वह एक कोने में दुबकी चाय पी रही थी।