ज्वार-भाटे का गल्पदेश / बावरा बटोही / सुशोभित

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ज्वार-भाटे का गल्पदेश
सुशोभित


वह ज्‍वार-भाटे का देश है- 'द टाइड कंट्री'। गंगा का मुहाना, जिसे सुंदरबन कहते हैं।

दुनिया का सबसे बड़ा डेल्‍टा। इधर हुगली की धारा से उधर मेघना के विसर्जन तक। बीच में पद्मा का पाट है। कलकत्‍ते से खुलना तक। गंगा कहाँ, ब्रह्मपुत्र कहाँ, यहाँ तो उनका अनेकांत है, बहुल उत्‍तर-जीवन है। बंगभूमि को सींचती ये धाराएं सागर-संगम को जाती हैं तो सहस्रों स्‍वप्‍नों में टूटती हैं। मंझले क़द वाले, किंचित बौने दरख्‍़तों से भरे जंगलों का इलाक़ा, जिसमें किंवदंतियों में शुमार रॉयल बेंगाल टाइगर्स की आवाजाही, जल-थल जनजीवन, मछली के पुत्रों-सा मानुष, मानुष की रक्‍तशिराओं-सी भूमि। आधा दलदल, आधी धूप। हरी छांह, गीली राह। वह सुंदरबन है।

यह लैंडस्‍केप मन को बहुत मथता है। पता नहीं कब जाना हो, कभी हो भी या नहीं, लेकिन अमितव घोष का सुंदरबन-नॉवल 'द हंग्री टाइड' पढ़ जाने से ख़ुद को रोका नहीं। हमने ख़ुद से कहा- पढ़ेंगे, 'शैडो लाइंस' बाद में कभी, 'कलकत्‍ता क्रोमोसोम' और 'सी ऑफ़ पॉपीज़' भी बाद में ही। अभी तो यह भूखी लहर है, ज्‍वार-भाटे के देश में, बढ़ती-घटती। पानी की कलाएं हैं, चंद्रमा को चिढ़ाती मुंह। धरती पर बारिश का घर है। उसमें डूबता-उतराता गल्‍पदेश है। कौतूहल के सीमांत पर बसा एक लैंडस्‍केप इस तरह भी एक गल्‍प की दिशा बनता है।