झूठा अलार्म / कल्पतरु / सुशोभित

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झूठा अलार्म
सुशोभित


झूठे अलार्म को तवज्जो देने के बाद आप उस भूल को दुरुस्त नहीं कर सकते।

ये काफ़्का ने कहा था। ये काफ़्का ने अपनी कहानी "अ कंट्री डॉक्टर" में कहा था। ये कहानी ऐसे उद्यम के बारे में थी, जिसमें आरम्भ से ही दोष था। या दोष ही जिसका आरम्भ था। या आरम्भ सदैव ही दोष होता है। उससे किसी को लाभ ना हो सकता था।

एक झूठे अलार्म को तवज्जो। प्रवर्तन में ही भूल हो तो गुण कहां से हो? विषबेल पर अमरफल कैसे फूले? जिस नदी के उद्गम पर नाग का डेरा हो, उसका जल कैसे निर्मल हो? प्रतिबिम्ब में सुगंध कैसे? स्वप्न में स्वेद कहां?

तब, जो नष्ट नहीं हो सकता, उसकी कामना करने वाले मन को भी संतोष कैसे मिले? जीवन में आकर अपराध कैसे ना हो, अपराध का दंड कैसे ना मिले? और दंडद्वीप में जो दत्तचित्त होकर दंड ना भुगते, उसके ध्येय का क्या ठिकाना?

जैसे जैसे शोक आत्मा में घर करता जाता है, जैसे दिनमान में पैठता है आलोक, वैसे वैसे उसकी सामर्थ्य बढ़ती। इससे जी चुराकर बचने का वैसा कोई उपाय नहीं होता, जिसमें कोलाहल ना हो।

और झूठे कोलाहल को तवज्जो देने के बाद भी आप उस भूल को दुरुस्त कैसे करेंगे?