मृत्यु का मुखौटा / कल्पतरु / सुशोभित

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
मृत्यु का मुखौटा
सुशोभित


चेहरे के भीतर चेहरे की एक छाप होती है। जीवंत चेहरे के भीतर अचल चेहरा।

नींद में डूबे चेहरों पर वो छाप उभर आती है। अपमान में, पराजय में, मृत्यु में भी!

चेहरे अपनी उम्र जीकर मर जाते हैं, चेहरे की छापें ज़िंदा रहती हैं। कम से कम चेहरों से तो अधिक समय ही।

1880 के दशक के अंत में पेरिस में सीन नदी से एक युवा लड़की का शव बरामद हुआ था। उसके शरीर पर ज़ख़्म नहीं थे, और यह मान लिया गया कि उसने आत्महत्या की है।

किंतु वह इतनी सुंदर थी, और उसके चेहरे पर ऐसी रहस्यमयी मुस्कराहट खेल रही थी, कि उसका डेथ मास्क बनाने को मजबूर होना पड़ा। यह एक वैक्स प्लास्टर कास्ट था।

रिल्के ने अपने नॉवल में उस लड़की के डेथ मास्क में बारे में लिखा था कि उसकी मुस्कराहट हतप्रभ करती है, जैसे कि वह पहले से जानती थी कि यह होगा।

फिर रिल्के इसके सामने बीथोवन का डेथ मास्क रखता है और कहता है- बहरे संगीतकार ने अपने चेहरे को यों भींच रखा है कि वो जिन ध्वनियों को सुन सकता है (और इसके सिवा कुछ नहीं सुन सकता), कहीं वो उसके भीतर से फूट ना पड़ें।

संगीत ने मृत बीथोवन के चेहरे को तनाव से भर दिया था।

एक मुस्कराहट की सिम्फ़नी चेहरे पर लेकर मर जाने वाली उस लड़की के भीतर के संगीत का जाने क्या हुआ होगा!