ठेठ हिंदी का ठाट / नवाँ ठाट / हरिऔध
वह देखो सामने रामपुर गाँव दिखलाई पड़ता है, चारों ओर हरे भरे बाँस के पेड़ लहरा रहे हैं, उनके पास ही दो एक पेड़ आम, जामुन, महुआ और कटहल के दिखलाई देते हैं, पास ही एक बहुत बड़ा ताल है, ताल के ऊपर गाँव से थोड़ा हटकर एक बड़ा भारी बड़ का पेड़ है, धीमी बयार लगने से उसके पत्ते धीरे-धीरे हिल रहे हैं, उस पर एक झंडी भी फहरा रही है, जान पड़ता है वहाँ काली का थान है। उसी पेड़ के नीचे दो जने बैठे बातें कर रहे हैं। उसमें एक हमारे जान-पहचान वाले देवनंदन हैं, और दूसरा वही भवानीदास है, उनमें बहुत बेर तक बातें होती रहीं। जिससे देवनंदन ने रमानाथ की बहुत-सी बातें जानीं, पिछली बातें उन लोगों की यह थीं।
देवनंदन ने पूछा, जब रंगपुर में तुम दोनों जने साथ रहते थे, तो रमानाथ ने फिर रंगपुर का रहना क्यों छोड़ा?
भवानीदत्त-उन्होंने रंगपुर को अपने आप नहीं छोड़ा, मैं कह चुका हूँ रमानाथ की चाल-चलन ठीक नहीं है, वह बड़ा छटा और लुच्चा है, जिस बाबू के यहाँ वह काम-काज करता था, उन्हीं बाबू की टहलुनी के साथ एक दिन वह पकड़ा गया बाम्हन जान कर बाबू ने और कुछ तो न किया, पर टहलुनी और रमानाथ दोनों को अपने यहाँ से निकाल दिया, तभी से वह कलकत्ते रहता है; टहलुनी भी उसके साथ है, यह दो बरस की बात है, पर मैं यह ठीक कह सकता हूँ, अब भी कलकत्ते ही में है।
देवनंदन-जब यह दो बरस की बात है, तो फिर तुम कैसे कह सकते हो, अब भी वह कलकत्ते में है?
भवानीदत्त-मुझको यहाँ आये दस पन्द्रह दिन हुए, मेरे वहाँ से चलने के दस पाँच दिन पहले बाबू का एक चाकर कलकत्ते आया था, वह कहता था मुझसे और रमानाथ से वहाँ भेंट हुई थी, इसी से मैं जानता हूँ, अब तक वह कलकत्ते में है। उसने और भी कई बातें रमानाथ की मुझसे कही थी। पर उनको मैं आप से नहीं कहना चाहता, उनमें कोई बात काम की नहीं है, सब ऐसी ही हैं, जिससे रमानाथ का नाम लेने को मन नहीं करता।
देवनंदन-जाने दो मैं भी उनको नहीं सुनना चाहता, मुझको उन बातों से कोई काम नहीं है। जो कुछ मैं जानना चाहता था, जान चुका।
इतना कहकर देवनंदन चुप हो गये। भवानीदत्ता ने भी फिर कोई बात न छेड़ी। देवनंदन ने कुछ घड़ी पीछे कलकत्ते की ओर पयान किया।