तीसरा दृश्य / एक साम्यहीन साम्यवादी / भुवनेश्वर

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(पूर्व परिचित कुलियों की बस्ती जैसे किसी ने अभिमंत्रित कर निर्जीव कर दी हो। मकानों के आगे या विचित्र जगह मजूर बैठे विष के समान ताड़ी पी रहे हैं, बच्चे कभी डर से, कभी माता की झुंझलाहट से और कभी एक अज्ञात आशंका से रो देते हैं। वह स्वर ऐसा ही तीव्र है जैसे चीलों का दोपहर की नीरवता में कीकना। भावी के समान आशंका की दृढ़ता सबके मुख पर अंकित है। मध्याह्न के प्रखर आतप में जैसे विश्व मूर्षप्राय हो रहा हो। सुंदर के द्वार पर)

एक मजदूर: (सूर्य की किरणों से अपने नेत्र को बचा कर) यह फल होता है! ढोल से खाल भी गई।

दूसरा: क्या बकते हो, आ कर सिर न रगड़े, तो मेरा नाम...

(दूर से गोविंद उत्तेजित-सा आ रहा है)

एक: यह सब उसी की कारस्तानी है, उसी ने तुझे तोते की तरह रटाया है। वही वकील!

गोविंद: पास आ कर (मेरे मौला बुला ले मदीने' की लय में) - यारों वतन हमारा है, औ, हम वतन के हैं - दुनिया के मजदूरों एक हो जाओ।

पहला: अबे झक्की, बातून, इस मशीन की तरह बात करने से क्या होगा, हम सब एक हैं, बता एक हो कर हम क्या कर सकते हैं?

दूसरा: सुनते हैं मिल में अभी भर्ती पूरी नहीं हुई।

गोविंद: (एक ग्रामोफोन के समान) दुनिया के मजूरो, एक हो जाओ!

तीसरा: चुप भी रह भाई...

पहला: (निराश हो कर) सिवा इसके कि हम शहर में जा कर लूट-मार मचा दें, हम और क्या कर सकते हैं!

गोविंद: भाइयो, तकलीफ सहो...

दूसरा: क्यों सहें, इसका फल क्या होगा?

गोविंद: संसार के मजदूरो एक हो जाओ!

पहला: संसार में तो सभी मजूर हैं, रे, गोविंद रुपये की जरूरत तो सबको मजूर बनाए हुए है, तू कैसे कहता है-जहान के मजूर एक नहीं हैं; लेकिन एक हो कर हम क्या करें?

(एक नया मजूरा आता है, लोग मृत्यु के दूत के समान उसका स्वागत करते हैं)

पहला: क्यों रे, क्या खबर लाया, कुछ कहेगा भी!

नया मजदूर: नए मजूर आठ रुपये ही में भर्ती हो रहे हैं; लेकिन हड़ताल करने को नहीं तैयार हैं।

दूसरा: भर्ती पूरी हो गई?

नया: (अभिशाप के स्वर में) हाँ, कल ही सुनते हैं। मनोहर बाबू भाड़ा दे कर इन कुलियों को बाहर से लाए हैं, देखा, गुरू बातें कर रहे हैं, शायद कोई नई खबर लाएँ।

पहला: और वह वकील साहब?

नया: वह कह रहे हैं कि मैंने भूल की, अभी मौकामहल नहीं था।

दूसरा: छि:!

(इसी बीच सुंदर भी आ जाता है। उसके क्लांत और झुलसे हुए मुख पर क्रोध और शोक की उदासीनता। मटमैली और उसके हिंसक आँखों में दृढ़ता और वाणी में कृत्रिम प्रफुल्लता है)

सुंदर: भाई मेरा तो काम हो गया, मैं जा रहा हूँ। मैं परेड पर नौकर हो गया। वकील साहब ने पार्वती से कहा-तुम बाल-बच्चों को ले कर यहीं रहो, 10) का महीना और दोनों की खुराक। और क्या!

(लोग उसकी मुद्रा देख कर चकित हो जाते हैं। कुछ उसकी ओर आश्चर्य, कुछ भेदपूर्ण और कुछ सहानुभूति से देखते हैं और एक-एक करके चले जाते हैं।)

सुंदर: (बैठते हुए) पार्वती जरा-सा पानी ले आ।

पार्वती: भीतर न चलो, धूप से तो चले आ रहे हो।

सुंदर: नहीं पार्वती, धूप से चलने के बाद छाया नहीं...

पार्वती: (कुछ हिचकिचाहट के साथ) तुम कैसे हो रहे हो?

सुंदर: कैसा भी नहीं, अभी परेड से आ रहा हूँ।

(पार्वती जैसे प्रेत से डर गई हो)

बाबू ने कहा कि दस रुपये महीने की नौकरी दी और खाना और रहने को जगह। आज शाम से हमारा नया जनम होगा।

पार्वती: (कठिनता से) अगर तुम्हारा जी न पतियाता हो, तो न चलो।

सुंदर: पागल हुई है, न चलूँगा, तो क्या भूखों मरूँगा।

(दो क्षण गंभीर नीरवता रहती है; पर उस नीरवता में ही दोनों एक-दूसरे का अर्थ समझ लेते हैं)

सुंदर: औरत की जात-या तो मजा उड़ाती है, या न उड़ाने के लिए पछताती है।

(पार्वती सिर नीचा किए, पैर के नाखून से जमीन खोद रही है)

सुंदर: मैं नहीं चाहता कि तू भी पछताए। खाली इसलिए कि तूने मुझसे शादी की।

पार्वती: (मन दृढ़ कर) तो क्या तुम्हारा-हमारा कोई ताल्लुक नहीं?

सुंदर: (हँस कर) तेरे साथ 8 बरस से कर रहा हूँ, इस झोपड़ी में 28 बरस रहा हूँ; पर आज यह झोंपड़ी कैसी जल्दी छूटी जा रही है!

पार्वती: मैं नहीं समझी।

सुंदर: मैं समझ गया, तू नहीं समझी (उत्तेजित हो कर) अगर मैं ना समझता, तो खून हो जाता, मेरे गले में रस्सी होती...

पार्वती: (डर के) फिर !

सुंदर: फिर क्या, मेरी सब समझ में आ गया, मैं और वकील साहब बराबर हैं, मेरे पास रुपया नहीं है, जिंदा रहने के लिए उनके रुपये की मुझे जरूरत है, मेरी जोरू...

पार्वती: (त्रस्त) बस-बस, मैं तुम्हारे हाथ जोड़ती हूँ।