दीवाना-ए-आज़ादी: करतारसिंह सराभा / भाग-10 /रूपसिंह चंदेल

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जापान से लौटने के पश्चात करतार सिंह सान्फ्रांसिस्को लौटकर फिर से 'गदर' संस्था का काम देखने लगे। इस बीच बड़ी मात्रा में सिख देश के लिए कुर्बानी देने का मन बना चुके थे। सभी सोहन सिंह, लाला हरदयाल, करतार सिंह सराभा और उनके मित्रो के भाषणों से प्रभावित थे और तुरंत भारत के लिए प्रयाण करना चाहते थे। करतार सिंह सराभा भी यही चाहते थे। उनका धैर्य चुक रहा था, लेकिन सोहन सिंह ने उन्हें समझा कर रोका था। कहा था कि उपयुक्त समय आने पर वह स्वयं सभी को देश की आजादी के लिए जाने की व्यवस्था करेंगे। विभिन्न शहरों में मीटिंगों के दौर जारी थे।

सराभा के लौटने के बाद सान्फ्रांसिस्को में वह पहली सभा थी। उस सभा में लाला हरदयाल भी उपस्थित थे। वह कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे थे। उनका भाषण सबसे बाद में था। उनके भाषण के बाद कुछ विशेष लोगों की एक अलग बैठक हुई, जिसमें चर्चा हुई कि अपने विचारों के प्रचार के लिए एक पत्र प्रकाशित किया जाना चाहिए. सबने एक मत से लाला हरदयाल की बात से सहमति प्रकट की। पत्र का नाम क्या हो यह विचार किया जाने लगा। तभी करतार सिंह सराभा ने कहा, " गदर' से अच्छा नाम क्या होगा?

लाला हरदयाल और सोहन सिंह सहित सभी उपस्थित सदस्य करतार सिंह सराभा की ओर देखने लगे और क्षण भर बाद लाला हरदयाल ने कहा, "सरादर की बात से सहमत हूँ।" वह सराभा को सरदार कहकर पुकारते थे। सराभा ने एक दिन कहा था, " सर, पार्टी में अधिकांश सरदार ही हैं—-फिर मुझे ही क्यों?

"तुम सब सरदारों में सरदार जो हो। छोटे हो तो क्या, लेकिन जो जोश और क्षमता मैं तुममे देख रहा हूँ उससे इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ कि तुम ही इन सबका नेतृत्व करोगे।"

सराभा चुप रह गए थे।

"सोहन सिंह जी की आयु अधिक हो चुकी है और वह उस प्रकार से भारत जाकर सक्रियता नहीं दिखा सकेंगे, जिस प्रकार तुम कर पाओगे। नया खून है न रगो में—"

"शुक्रिया सर।" सराभा बोले।

"मैंने पहले भी कई बार कहा कि मुझे सर मत कहा करो—सबके लिए लाला तो तुम्हारे लिए भी—-यह सम्बोधन मुझे प्रिय है। ऎसा लगता है कोई अपना पुकार रहा है, जबकि सर में आत्मीयता का अभाव दिखता है।"

"जी, याद रखूंगा। क्षमा चाहता हूँ।"

उस दिन के बाद अखबार प्रकाशित की तैयारी प्रारंभ हो गयी। मशीने खरीदी गयीं। युगान्तर आश्रम में उन्हें लगाया गया। तय हुआ कि अखबार हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू और पंजाबी भाषाओं में प्रकाशित किया जाए. पंजाबी भाषा का प्रभारी सराभा को बनाया गया। अलग-अलग भाषाओं के सम्पादन और प्रभार का काम लोगों को बांट दिया गया। अंग्रेज़ी का प्रभार लाला हरदयाल ने स्वयं संभाला। वितरण और विदेशों में उसे भेजने की जिम्मेदारी सोहन सिंह को दी गई. पूरे माह करतार सिंह पंजाबी अंक की तैयारी में जुटे रहे। युगान्तर आश्रम अब बड़े मकान में शिफ्ट हो गया था, जहां एक बड़े हाल में सभी भाषाओं की मशीने लगाई गई थीं। प्रभारियों के बैठने और काम करने के लिए अलग कमरा था। सराभा उसी कमरे में रहते थे। जिस बेड पर सोते उसी पर बैठकर अखबार के लिए लिखते थे। पहले अंक की सारी सामग्री सराभा की लिखी हुई ही थी, जिसमें उनके आलेख और कविताएं थीं और था भारत में अंग्रेजों की क्रूरता की दास्तानों के समाचार। प्रेस का नाम रखा गया 'गदर प्रेस' । सराभा के अतिरिक्त वहाँ काम करने वाले सभी लोग दिन में मिलों या दूसरे काम करते थे और रात में प्रेस के लिए कुछ घण्टे देते थे। इस प्रकार तय हुआ कि १ नवंबर (शनिवार) , १९१३ को 'गदर' का पहला अंक जनता के बीच वितरित किया जाएगा। इसके लिए युगान्तर आश्रम की ओर से एक विशाल जन सभा का आयोजन किया गया था।

लेकिन शुक्रवार ३१ अक्टूबर, १९१३ को कैलीफोर्निया के सक्रोमेण्टो में एक सभा का आयोजन बहुत पहले ही तय किया जा चुका था... सोहन सिंह और करतार सिंह सराभा तथा उसके साथियों को उसमें उपस्थित होना था। अगले दिन अखबार लांच होना था। समय का संकट था, लेकिन सभा का आयोजन देश के लिए था, इसलिए सभी वहाँ गए. बहुत से लोगों ने भाषण दिए. करतार सिंह सराभा अपने नंबर की प्रतीक्षा कर रहे थे, लेकिन उन्हें बुलाने के बजाए उन लोगों को अवसर दिया जा रहा था जो देश की आजादी के लिए लड़ने को तैयार हुए थे। सोहन सिंह ने ऎसा सोच समझकर किया था। जो लोग भाषण दे सकते थे, वह उन्हें अवसर दे रहे थे, जिससे किसी को कोई शिकायत न रहे कि उसे बोलने का अवसर नहीं दिया गया।

सराभा अधिक कुछ कहना नहीं चाहते थे। लंबे समय से वह मंच का इस्तेमाल करते आ रहे थे और जो कुछ कहना था कह चुके थे, लेकिन उनके मन में एक कविता कुलबुला रही थी, जिसे रात ही उन्होंने सोचा था और कागज पर उतार भी रखा था। ओडेलण्टो का एक सिख किसान भाषण दे रहा था। जैसे ही उसका भाषण समाप्त हुआ, करतार सिंह उछलकर मंच पर जा पहुंचे। आयोजक हत्प्रभ थे। लेकिन कोई कुछ नहीं बोला। सभी उनसे परिचित थे और जानते थे कि अमेरिका में देश की आजादी की ज्वाला प्रज्वलित रखने वाले वह और सोहन सिंह अग्रणी लोगों में थे। मंच पर पहुंचते ही करतार सिंह ने कहा, " साथियो, मैं भाषण देने नहीं आया। आपको केवल दो पंक्तियां सुनाने आया हूँ और उन्होंने सस्वर दोनों पंक्तियां सुनाईं और मंच से नीचे उतर गए:

" चलो चलिए देश नू यादां करें,

येहो आखिरी वचन ते फरमान हो गए."

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१ नवंबर, १९१३ को शनिवार का दिन था। उस दिन सान्फ्रासिस्को का आसमान बिल्कुल साफ था। ठंड थी, लेकिन तेज हवाएं नहीं चल रही थीं। समुद्र से मंद हवा के झोंके भारतीय क्रान्तिकारियों में उत्साह भर रहे थे। सूरज के हल्के पीले प्रकाश में नगर डूबा हुआ था। अमेरिकी नागरिक जब अपने-अपने निजी कामों में व्यस्त थे या आमोद-प्रमोद में लीन, उस दिन दोपहर के समय 'युगान्तर आश्रम' में सान्फ्रासिस्को निवासी भारतीयों की भीड़ एकत्रित थी। लोगों के चेहरे खिले हुए थे। अच्छा खासा उत्सव मनाया गया था उस दिन। यह सब इसलिए था क्योंकि 'गदर' का पहला अंक निकला था। उस समारोह का शुभारंभ सोहन सिंह और लाला हरदयाल ने किया था। लाला हरदयाल ने सभी उपस्थित लोगों को सभी भाषाओं की प्रतियां वितरित की थीं। पंजाबी भाषा के अंक में करतार सिंह के आलेख थे और सम्पादक के रूप में उनका नाम प्रकाशित था।

'गदर' की प्रतियां अमेरिका के दूसरे शहरों के भारतीयों के अतिरिक्त, कनाड़ा, दक्षिण अफ्रीका, भारत, इंग्लैण्ड, जर्मनी आदि देशों में रह रहे भारतीयों को भेजने की व्यवस्था भी लाला हरदयाल ने की थी। युद्ध स्तर पर कार्य होने लगा था। 'गदर' पत्र ने अंग्रेजों के कान खड़े कर दिए थे। लेकिन भारत की ब्रितानी सरकार का कोई वश अमेरिका में नहीं चल पा रहा था। फिर भी उसका दबाव था कि किसी भी प्रकार अमेरिकी सरकार और कैलीफोर्निया प्रशासन उस अखबार को प्रतिबंधित करे। ऎसा तभी संभव हो सकता था जब अमेरिका के विरुद्ध उसमें कुछ विशेष आपत्तिजनक होता, लेकिन ऎसा था नहीं।

सराभा अति उत्साह से पंजाबी अंक की तैयारी करते। उसके लिए लेख और कविताएं लिखते और स्वयं मशीन चलाते। हैंड प्रेस चलाने में बहुत शक्ति लगानी होती। मशीन चलाते-चलाते जब करतार सिंह थक जाते वह पंजाबी गीत गुनगुनाने लगते–

" सेवा देश दी जिंदड़ीए बड़ी औखी,

गल्लां करनीआं ढेर सुखल्लियां ने।

जिन्हा इस सेवा विच पैर पाया,

उन्हां लख मुसीबतां झल्लियां ने।"

अर्थात—"अरे दिल, देश की सेवा बड़ी मुश्किल है, बातें बनाना बड़ा आसान है। जो लोग इस सेवा मार्ग पर अग्रसर हुए, उन्हें लाखों विपत्तियां झेलनी पड़ीं।"

करतार सिंह सराभा स्वभाव से विनोदी थे। प्रेस चलाते समय दूसरी मशीनों पर काम करने वाले साथियों को चुटकले सुनाकर हंसाया करते थे। इससे साथी लोग थकान अनुभव नहीं करते थे और पत्र समय पर निकलता जा रहा था। सभी भाषाओं में 'गदर' पत्र की प्रतियां देश-विदेश में पहुंच रही थीं। पत्र में देश प्रेम सम्बन्धी लेख तथा अन्य ऎसी रचनाएं हुआ करती थीं, जिससे लोगों के हृदय में देश की आजादी के लिए कुछ कर गुजरने की भावना पैदा हो। स्थिति यह बनी कि लोगों को गदर के अगले अंक की प्रतीक्षा रहने लगती थी।

कुछ दिनों पश्चात 'गदर प्रेस' से कुछ क्रान्तिकारी पुस्तकों का प्रकाशन भी किया गया, जिनमें 'गदर दी गूंज' प्रमुख थी। करतार सिंह सराभा और सोहन सिंह के 'गदर' पत्र के प्रकाशन में व्यस्त हो जाने के बाद अमेरिका के अन्य शहरों में सभाओं के आयोजन का काम वहाँ के स्थानीय भारतीयों ने संभाल लिया था। काम पहले ही बांट दिया गया था। बड़ी संख्या में सिख और गैर सिख भारतीय क्रान्तिकारी गतिविधियों में शामिल हो चुके थे।

फरवरी, १९१४ माह के पहले सफ्ताह करतार सिंह को सूचना मिली कि कैलीफोर्निया के स्टॉक्टन शहर में १५ फरवरी को एक सार्वजनिक सभा का आयोजन किया गया है। सराभा, सोहन सिंह। अनुज राय, नयन सिंह आदि को आमंत्रित किया गया था। यही नहीं सांन्फ्रासिस्को और बर्कले के दूसरे छात्रों को भी बुलाया गया था। बड़े स्तर पर वह आयोजन किया था। रविवार का दिन था। अमेरिका के लगभग सभी राज्यों के शहरों से लोग वहाँ एत्रित हुए थे। सराभा और अन्य सभी लोग भी पहुंचे। तय हुआ था कि उस दिन वहाँ तिरंगा झंडा फहराया जाएगा। लाला हरदयाल ने तिरंगा फरया। करतार सिंह सराभा ने इस अवसर पर अपने भाषण में कहा, "साथियो, आज हम यहाँ इसलिए एकत्रित हुए हैं कि पराधीनता की बेड़ियों में जकड़ी भारत माँ की आवाज हमें यहाँ सुख चैन से नहीं सोने दे रही। अंग्रेजों के नापाक कदम भारत माँ के शरीर को रौंद रहे हैं। यहाँ रहकर भी हमें उसकी करुण पुकार सुनाई दे रही है। साथियों, अब वह वक्त आ गया है, जब हमें माँ की मुक्ति के लिए कुछ करना ही चाहिए. यह तिरंगा हमें इस बात के लिए प्रेरित कर रहा है।"

"साथियो, आओ, आज हम फिर एक बार शपथ लें कि हम अपने धर्म, सम्प्रदाय और जाति-पांति के भेदभाव भूलकर एक सच्चे भारतीय के रूप में एक होकर भारत माँ की आजादी के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करेंगे।"

सबने एक स्वर में शपथ दोहराई.

सभा समाप्त हो गयी।

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स्टॉक्टन से लौटकर करतार सिंह सराभा पुनः 'गदर' पत्र के काम में जुट गए थे, तभी एक दिन उन्हें सूचना मिली कि अमेरिका की इमीग्रेशन विभाग ने लाला हरदयाल को गिरफ्तार कर लिया है। सभी हत्प्रभ थे। लेकिन मार्च, १९१४ की एक तारीख को लाला जी को बेल मिल गयी। हरदयाल ने अब अमेरिका में रहना उचित नहीं समझा, जबकि उन्हें इस बात के स्पष्ट निर्देश दिए गए थे कि वह अमेरिका छोड़कर नहीं जाएगें, लेकिन उन्होंने वहाँ से निकल भागने की योजना बना ली थी। वह सोहन सिंह से मिले और विचार विमर्श किया। सोहन सिंह ने भी उन्हें सलाह दी कि लाला जी किसी ऎसे देश में निकल जाएं जहां अंग्रेजों का प्रभाव नहीं था और लाला जी ने स्विट्जरलैंण्ड जाने का निर्णय किया।

एक दिन वेश बदलकर लाला हरदयाल ने पानी के जहाज से स्विट्जरलैंड के लिए प्रस्थान किया। उन्हें छोड़ने के लिए केवल दो लोग गए थे, सोहन सिंह और करतार सिंह सराभा। स्विट्ज्रलैंड में कुछ बिताने के पश्चात उन्होंने बर्लिन जाने का निर्णय किया। उन्हें इस बात का आभास हो गया था कि स्विट्जरलैंड उनके लिए निरापद स्थान नहीं था। जबकि जर्मनी सुरक्षित स्थान था, क्योंकि उन दिनों अंग्रेजों और जर्मन सरकार के बीच तनाव की स्थिति थी। लाला जी का जर्मनी जाने का एक महदुद्देश्य भारत में अंग्रेज़ी शासन की वास्तविकता वहाँ के नेताओं को बताना भी था और इस काम को उन्होंने बखूबी अंजाम दिया था।