दीवाना-ए-आज़ादी: करतारसिंह सराभा / भाग-11 /रूपसिंह चंदेल

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जून, १९१४ के अंतिम सप्ताह में आस्ट्रिया के आर्कड्यूक फ्रैंज फर्डिनैंड की हत्या सर्बिया के एक नागरिक ने बोस्निया के सराजेवो में कर दी। इस घटना के परिणामस्वरूप २८ जुलाई, १९१४ को विश्वयुद्ध प्रारंभ हो गया। अगस्त में इसने भयंकर रूप धारण कर लिया। एक ओर तथाकथित सेण्ट्रल पावर कहे जाने वाले जर्मनी, आस्ट्रिया-हंगरी जैसे राष्ट्रों की सेनाएं तो दूसरी ओर मित्र देशो ब्रिटेन, फ्रांस, रूस, इटली और जापान जैसे देशों की सेनाएं थीं। अमेरिका १९१७ में इस युद्ध में सम्मिलित हुआ।

अगस्त, १९१४ में युद्ध के विकराल रूप ग्रहण करने और ब्रिटेन के उसमें उलझने के समाचार ने अमेरिका के क्रान्तिकारियों को उत्साह से भर दिया। जैसे ही २८ जुलाई को युद्ध प्रारंभ होने का समाचार करतार सिंह सराभा को ज्ञात हुआ वह 'गदर' के लिए आलेख लिख रहे थे। उसी रात उन्हें छपाई के काम में लगना था। यह समाचार उन्हें नयन सिंह और अजय राय से मिला। दोनों उस दिन बर्कले से उनसे मिलने आए थे और रास्ते में उन्हें यह समाचार प्राप्त हुआ था। समाचार सुनकर सराभा कुर्सी पर उछल पड़े। "भरा जी, लोहा गरम हो रहा है, यही सही समय होगा उस पर चोट करने का।"

"मैं समझा नहीं करतार।" अजय राय बोला।

"ब्रिटेन युद्ध में उलझेगा। भारत की ब्रिटिश हुकूमत आंखे थोड़े ही बंद रखेगी। ब्रिटेन को बचाने के लिए वह पूरे भारत को युद्ध में झोंक देगी।—-" सराभा की बात बीच में काटते हुए नयन सिंह ने कहा, "आप सही कर रहे हैं भरा जी. देश से सैनिक फ्रंट पर लड़ने के लिए भेजे जाएगें।"

"वह सब अलग बात है। देश की ब्रिटिश सरकार का पूरा ध्यान अब इस युद्ध की ओर होगा—और यही समय उपयुक्त होगा हमें अपनी क्रान्तिकारी गतिविधियां वहाँ तेज करने का।"

"सही।" अजय राय केवल इतना ही बोला।

"मुझे कल ही चाचा सोहन सिंह से मिलना होगा और इस बारे में चर्चा करनी होगी। योजना बनानी होगी कि कैसे हम वहाँ कुछ कर सकते हैं।"

"वहां जाकर ही किसी योजना को कार्य रूप दिया जा सकता है।" अजय राय ने कहा।

"मैं भी यही सोचता हूँ।" नयन सिंह का स्वर था।

"कल सोहन सिंह चाचा से बात करके हमें एक गुप्त बैठक आयोजित करनी होगी। लोगों से विचार-विमर्श करना होगा।" सराभा अपने दोनों साथियों की ओर देखते हुए बोले, "यहाँ हमारे कामों को आगे बढ़ाने के लिए आप दोनों हैं—कुछ और लोग भी रहेंगे ही—मार्ग निर्देशन के लिए चाचा सोहन सिंह भी रहेंगे। मैं अधिक से अधिक उन लोगों को देश ले जाना चाहूँगा जो देश के लिए अपने को कुर्बान करने को तैयार होंगे।"

नयन सिंह और अजय राय चुप रहे।

"तुम लोग इसी रविवार को ग्यारह बजे तक आ जाओ यहां। यही 'युगान्तर आश्रम' में एक सभा का आयोजन कर लेंगे।" सराभा बोले।

"हम तो आ जाएगें—लेकिन जो दूर बैठे हैं—यानी न्यूयार्क, वाशिंगटन आदि जगहों में, उन्हें इतने कम समय में सूचित करना और उनका आ जाना क्या संभव होगा।"

करतार सिंह सराभा अजय राय की इस बात से असमंजस में पड़ गए. "आप सही कह रहे हो भरा जी." कुछ देर सोचने के बाद बोले, "यह सब चाचा जी से बात करके तय करना सही होगा।"

"यही उपयुक्त होगा।" नयन सिंह के सुझाव पर सराभा ने सिर हिलाया।

दोनों साथियों के चले जाने के बाद सराभा ने आलेख को बीच में छोड़ दिया और देश पहुंचकर किस प्रकार क्रांति को सही स्वरूप प्रदान करेंगे इस बारे में सोच में डूब गए.

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शाम तक सराभा देश और उसकी आज़ादी के विषय में ही लेटे सोचते रहे। युगान्तर आश्रम के सामने पेड़ पर सूर्य की गमनोत्सुक मद्धम किरणों के जब आ विराजमान हुई तो उन्हें अहसास हुआ कि शाम होने को थी। वह हड़बड़ाकर उठे और आलेख के शेष अंश को समाप्त करने लगे। उसे समाप्त कर उन्होंने आश्रम में ताला बंद किया और सोहन सिंह से मिलने के लिए निकल पड़े। जब वह चाचा सोहन सिंह के निवास पर पहुंचे सात बज चुके थे।

करतार सिंह सराभा को देखते ही सोहन सिंह बोले, "मैं सोच ही रहा था कि तुम अभी तक आए क्यों नहीं?"

"आप ऎसा कैसे सोच रहे थे चाचा जी?" सोहन सिंह के पैरों को हाथ लगाते हुए सराभा ने कहा।

"तुम जिस काम के लिए आए हो उसके लिए."

"मुझे तो कोई काम ही नहीं। खाली बैठा हुआ था—सोचा आपसे मिल लूं।" सराभा के चेहरे पर शरारत थी।

"अब तुझे भी शरारत सूझने लगी है। ठीक है, ऎसा ही होना चाहिए. आगे का मार्ग बहुत कठिन है करतार। उस पर हंसते हुए ही चलना होगा, वर्ना चला न जाएगा।"

करतार सिंह सराभा अब गंभीर हो उठे।

"तुमने समाचार सुन लिया है और उसी के लिए डिसकस करने आए हो।—मैं सही हूँ न!" सोहन सिंह बोले।

"शतप्रतिशत सही हैं आप चाचा जी."

"चाय पिएगा?"

"बना लें।" इन शब्दों के निकलते ही सराभा ने अपनी जीभ काटी और बोले, "चाचा जी आप नहीं—मैं बना देता हूँ।"

"एक ही बात है—तू बातें करता जा।" चूल्हा गर्म था। सोहन सिंह ने केतली चढ़ा दी।

"चाचा जी, इस युद्ध से एक बात साफ दिख रही है कि भारत की अंग्रेज सरकार का सारा ध्यान इस ओर ही केन्द्रित हो जाएगा—हमारे लिए इससे उपयुक्त समय और कोई नहीं हो सकता। आपने सही कहा, मैं इस पर विचार विमर्श के लिए ही आपके पास आया हूँ।"

"क्या विचार है।"

"हमें ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध खुली बगावत की विज्ञप्ति 'गदर' के आगामी अंक में प्रकाशित करना चाहिए. उसी से सम्बन्धित आलेख भी और किसी भी प्रकार इस अंक की प्रतियां भारत पहुंचाकर वहाँ सैनिकों और जनता के बीच बंटवाना चाहिए."

"सहमत हूँ।" सोहन सिंह ने कहा।

"देश में बहुत से लोग क्रान्तिकारी कार्यों में संलग्न हैं। 'गदर' की प्रतियां किसी प्रकार वहाँ पहुंच जाएं और वितरित हो जाएं फिर, मुझे वहाँ जाकर उनसे मिलना चाहिए और उनकी सहायता और सुझाव से सेना और जनता में विद्रोह भड़काना चाहिए."

"लेकिन तुम अकेले कहाँ और क्या करोगे।" सोहन सिंह बोले।

"मैं सोचता हूँ कि हमें एक गुप्त मीटिंग बुलानी चाहिए और उसमें यह प्रस्ताव रखना चाहिए कि देश की आजादी के लिए जो लोग तन-मन धन से अपना सर्वस्व कुर्बान करना चाहते हैं वे मेरे साथ भारत चलें।"

"मैं भी तब से यही सोच रहा हूँ जब से यह समाचार सुना।" सोहन सिंह क्षणभर के लिए रुके फिर बोले, "लेकिन मैं सोचत हूँ कि हमें कुछ दिन रुकना चाहिए—युद्ध का क्या रुख होता है यह देखना चाहिए. हो सकता है कि मित्र देशों से घबड़ाकर जर्मनी और उसके साथ के देश युद्ध बंद करने की घोषणा कर दें।"

"चाचा जी, मुझे ऎसा नहीं लगता।" सराभा बोले, "जिस स्तर पर युद्ध शुरू हुआ है वह लंबा खिंचेगा। अभी तो इसमें और भी राष्ट्र शामिल हो सकते हैं। उन्हें तो हम शामिल ही मान लें जहां अंग्रेजों की लूट जारी है।"

"उनका शामिल होना उनकी विवशता है। गुलाम देश की आवाज उसके शासक होते हैं। इसलिए जो वे चाहेंगे वही होगा।"

"आप सही कह रहे हैं। इस बीच किसी प्रकार हमें भारत के समाचार भी जानने चाहिए."

"तुम्हारा यह सुझाव महत्त्वपूर्ण है। वहाँ क्या हो रहा यह जानने के बाद अपनी योजना को अंतिम रूप देना सही होगा।"

और अगले दिन ही सोहन सिंह ने अपने निकटम व्यक्ति को संकेतिक तार देकर समाचार जानना चाहा। तार की भाषा ऎसी थी कि सेंसर होने के बाद भी कोई उसका अर्थ नहीं समझ सकता था। तार मिलने के अगले दिन ही मित्र ने पत्र लिखकर सांकेतिक भाषा में सूचित किया कि भारत में बड़े स्तर पर सैनिकों की भर्ती शुरू हो चुकी थी, जिन्हें मामूली ट्रेनिंग के बाद फ्रांस या इटली के लिए रवाना कर दिया जाएगा। तार देने के बाद सोहन सिंह मित्र से पत्र के उत्तर की प्रतीक्षा करने लगे थे। उसके बाद ही वह कोई योजना तय करना चाहते थे। लेकिन कई दिन बीत जाने के बाद भी उन्हें उत्तर नहीं मिला। जबकि देश जाने के लिए करतार सिंह सराभा तुरंत मीटिंग बुलाने का दबाव बना रहे थे।

अंततः तय हुआ कि १२ अगस्त, १९१४ को एक सार्वजनिक गुप्त मीटिंग आयोजित की जाए. सोहन सिंह ने ९ अगस्त, १९१४ को अमेरिका के तमाम भारतीयों को १२ अगस्त को मीटिंग में उपस्थित रहने के लिए तार भेज दिया। लेकिन ११ अगस्त को शाम जब सोहन सिंह मिल से घर पहुंचे, उन्हें अपने मित्र का पत्र मिला, जिसमें संकेत में उन्हें बताया गया था कि उसके घूमने जाने की तैयारी पूरी तरह से चल रही थी और वह अपने कुछ साथियों के साथ जल्दी ही यात्रा के लिए निकलेगा। पहले तो सोहन सिंह इस सबके अर्थ सोचते रहे। उन्होंने करतार सिंह सराभा को पत्र पढ़वाया। उन दिनों सराभा युगान्तर आश्रम से अखबार का काम समाप्त कर प्रतिदिन चाचा सोहन सिंह के यहाँ जाया करते थे।

पत्र पढ़कर सराभा मुस्कराए, "चाचा जी, इसका सीधा–सा मतलब है कि अंग्रेज सरकार पूरे जोर शोर से युद्ध में सैनिकों को भेजने की तैयारी में लगी हुई है। उसने अपने एजेंट छोड़ दिए होंगे जो घूमघूम कर युवकों को सब्जबाग दिखाकर सेना में शामिल होने के लिए उत्साहित कर रहे होंगे।"

"ओह! करतार तू सही कह रहा है।" । सोहन सिंह का चेहरा गंभीर हो गया। "हमारे सक्रिय होने का यही सही वक्त है—-तू ठीक कह रहा था।"

गदर के ५ अगस्त के अंक में भारत में अंग्रेज सरकार के विरुद्ध 'युद्ध की घोषणा का निर्णय' प्रकाशित किया गया। हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू और पंजाबी भाषाओं के अंक एक साथ प्रकाशित हुए. उनमें आलेख भी क्रान्ति सम्बन्धी ही थे। बहुत सोच विचार के बाद तय हुआ कि भारत जाने वाले लोग वे अंक ले जाएगें और सेना और जनता में वितरित करेंगे।

१२ अगस्त, १९१४ को शाम चार बजे तक मीटिंग चली। मीटिंग में अमेरिका के विभिन्न राज्यों से लगभग चार हजार से अधिक देशभक्त-देशभक्त सम्मिलित हुए. मीटिंग में सत्येन भूषण सेन और विष्णु गणेश पिंगले भी पहुंचे। पिंगले महाराष्ट्र के रहने वाले थे और १९११ में वाशिंटन विश्वविद्यालय से केमिकल इंजीनियरिंग करने के लिए अमेरिका चले गए थे। अमेरिका जाने की बात उन्होंने अपने घर वालों से छुपायी थी, केवल बड़े भाई केशव राव को बताया था। केशव राव उन्हें बंबई तक छोड़ने गए थे, जहां से विष्णु गणेश पिंगले हांगकांग होते हुए अमेरिका पहुंचे थे। वह गदर पार्टी के संस्थापकों में से थे। पढ़ाई के कारण वह सराभा और सोहनसिंह द्वारा आयोजित केवल प्रमुख मीटिंगों में ही शामिल होते थे। इस बैठक में शामिल होने के लिए सोहन सिंह ने उन्हें विशेष रूप से बुलाया था। सत्येन सेन भी पिंगले और सराभा की भांति उन प्रतिबद्ध क्रान्तिकारियों में थे जो आज़ादी के लिए कुछ भी करने को तैयार थे। वह भी लंबे समय से अमेरिका में रह रहे थे। उन्हें भी सोहन सिंह ने विशेष रूप इसलिए बुलाया था, क्योंकि वह और पिंगले कई बार सोहन सिंह से सराभा की भांति भारत जाकर बगावत की बात कह चुके थे। अब सराभा, पिंगले और सत्येन को वहाँ भेजे जाने का समय आ गया था।

नयन सिंह और अजय राय अपने कुछ साथियों सहित शामिल होने के लिए शनिवार रात ही वहाँ पहुंच गया था। वे युगान्तर आश्रम में करतार सिंह सराभा के साथ ठहरे। रात बातचीत में सराभा से सभी छात्रो ने पूछा, "सरदार, हमारे लिए काम बता।"

"तुम सभी के लिए एक ही काम है" गंभीर स्वर में सराभा बोले, "विश्वविद्यालय की अपनी पढ़ाई पूरी करो और चाचा सोहन सिंह के साथ मिलकर गदर का काम देखते रहो। अभी हम देश की नब्ज टटोलने जा रहे हैं। हमारा प्रयास वहाँ क्रान्ति का बिगुल बजाना होगा। शेष भविष्य तय करेगा।"

रात जब सभी सोने लगे सराभा अपना प्रिय गाना गुनगुनाने लगे:

" चलो चलिए, देश ने युद्ध करन,

एहो आखिरी वचन ते फरमान हो गए."

(चलो, देश को युद्ध करने चलें, यही है आखिरी वचन और फरमान)

सभी छात्र भी सराभा के स्वर में स्वर मिलाकर गाने लगे थे।

मीटिंग के लिए सोहन सिंह ने एक कम्युनिटी सेंटर का बड़ा हाल पहले ही सुरक्षित करवा लिया था। मंच पर सोहन सिंह, सराभा, पिंगले, सत्येन सेन और सोहन सिंह की आयु के कई सिख विराजमान हुए थे। एक ओर तिरंगा झंडा लगा दिया गया था। मीटिंग में प्रस्ताव पारित हुआ कि करतार सिंह सराभा कुछ लोगों का जत्था लेकर कोलम्बों के रास्ते भारत में प्रवेश करेंगे। मीटिंग में यद्यपि चार हजार के लगभग लोग शामिल हुए थे, लेकिन पूरे अमेरिका में ऎसे लोगों की कुल संख्या लगभग बीस हजार से अधिक थी और सभी देश की आजादी के लिए मर मिटना चाहते थे।

"जो लोग करतारा के साथ जाना चाहते हैं वे अपना नाम लिखा दें।" सोहन सिंह ने कहा।

लोग आपस में चर्चा करने लगे। अजय राय एक रजिस्टर लेकर लोगों के नाम-पते दर्ज करने लगा। सोहन सिंह ने जब रजिस्टर देखा, आश्चर्यचकित रह गए. वहाँ उपस्थित हर व्यक्ति देश की आजादी के लिए जाने को तैयार था। लेकिन सोहन सिंह ने उनमें से केवल एक सौ एक युवकों को चुना और उनके नाम पढ़कर सुनाए और उन्हें तैयारी करने के लिए कहा। बाकी में निराशा छा गयी।

"यहां उपस्थित सभी लोगों को देश की आज़ादी के लिए जाना है। जिन लोगों के नामों का चयन किया गया है वह पहले जत्थे में जाएगें। इसके बाद शेष सभी लोग पीछे से वहाँ पहुंचेगें। ऎसा इस लिए जिससे अंग्रेजों को शक न हो।" सोहन सिंह बोले। फिर उन्होंने जाने वाले लोगों को सम्बोधित करते हुए कहा, "आप लोगों को किस दिन प्रस्थान करना होगा, यह सूचना मैं सभी को तार द्वारा दे दूंगा। इस बीच मैं आप सभी के लिए सान्फ्रासिस्को से जहाज द्वारा कोलंबो जाने के लिए जगह सुरक्षित करने का काम करूंगा और वैसी सूचना आप सबको दूंगा।"

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सोहन सिंह और करतार सिंह सराभा ने कोलंबो के रास्ते कलकता जाने वाले जहाज का पता लगाया। पता चला 'एस.एस. सलामिनी' नामक जहाज सान्फ्रासिस्को बंदरगाह से रवाना होगा। सराभा, सत्येन सेन और पिंगले सहित एक सौ दो लोगों के लिए टुकड़ों में टिकट खरीदी गयी। एक साथ खरीदना संदेह को जन्म देना था।

जहाज रवाना होने की तिथि सोहन सिंह ने जाने वाले सभी युवाओं को सूचित किया और उन्हें कम से कम सामान साथ लाने के निर्देश भी दिए और ऎसा ही हुआ।

सभी १०१ क्रान्तिकारी जहाज रवाना होने वाले दिन से एक दिन पहले युगान्तर कार्यालय में उपस्थित थे। उनके लिए सोहन सिंह ने जो होटल बुक करवाए थे वे सीधे उन होटलों में गए थे। वहाँ सामान रखकर एक या दो के रूप में वे सोहन सिंह और सराभा से मिलने युगान्तर पहुंचे थे। उन्हें निर्देश दिए गए थे कि जहाज में भी वे चार-पांच से अधिक एक साथ न मिलें। कभी कोई ऎसी चर्चा न करें जिससे अंग्रेजों को आशंका हो।

अंततः अक्टूबर, १९१४ की निश्चित तिथि को रात नौ बजे बंदरगाह से जहाज को रवाना होना था। अकेले या किसी साथी के साथ क्रान्तिकारी जहाज में सवार हुए और अपने केबिनों में चले गए. विष्णु गणेश पिंगले और सत्येन भूषण सेन सराभा के केबिन में साथ यात्रा कर रहे थे।

जहाज ने देश की आजादी के लिए जंग करने जाने वाले उन भारतीय वीरों को लेकर जाने के लिए ठीक रात नौ बजे सीटी दी और जगमगाते सान्फ्रासिस्को शहर को विदा कह समुद्र की छाती पर तैरने लगा था।