दीवाना-ए-आज़ादी: करतारसिंह सराभा / भाग-9 /रूपसिंह चंदेल

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करतार सिंह सराभा अपने नाम के साथ ग्रेवाल के स्थान पर सराभा लिखने लगे। सोहन सिंह के निर्देशन में वह 'युगान्तर आश्रम' का काम देख रहे थे। उनका अधिकांश समय सान्फ्रासिस्को में बीतने लगा था। पढ़ाई के प्रति अरुचि होने लगी थी, लेकिन सोहन सिंह के कहने पर उन्होंने विश्वविद्यालय छोड़ा नहीं। उन्हीं दिनों योरोप के रास्ते दिल्ली के युवा क्रान्तिकारी लाला हरदयाल सान्फ्रासिस्को पहुंचे।

लाला हरदयाल को उनकी क्रान्तिकारी गतिविधियों के कारण भारत सरकार के सख्त रुख के चलते देश से बाहर जाना पड़ा था। हरदयाल का जन्म १४ अक्टूबर, १८८४ को दिल्ली के संभ्रान्त परिवार में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा दिल्ली में लेने के पश्चात वह पंजाब विश्वविद्यालय के गवर्नमेण्ट कॉलेज लाहौर से ग्रेजुएशन करने चले गए थे। वह बहुत ही कुशाग्र बुद्धि थे। उनके विषय में कहा जाता है कि सैकड़ों पृष्ठों की पुस्तक पढ़ने के पश्चात उसका हर पृष्ठ उनके मस्तिष्क में सुरक्षित रहता था। कोई कहीं से कुछ पूछता और लाला जी उसे ज्यों का त्यों सुना देते थे।

ग्रेजुएशन के बाद लाला हरदयाल भारत सरकार की छात्रवृत्ति पर ऑक्सफोर्ड के सेंट जॉन कॉलेज पढ़ने गए. वहाँ देश की आजादी के लिए सक्रिय युवकों के संपर्क में आने के बाद वह भी क्रान्तिकारी गतिविधियों में सक्रिय भाग लेने लगे। १९०७ में उन्होंने सरकारी स्कॉलरशिप त्याग दिया। १९०८ में भारत लौट आए, जहां ब्रिटिश हुकूमत से देश को आजाद करवाने के लिए क्रान्तिकारी कार्यों में सक्रिय हो गये। सरकार उनके कार्यों से चौकन्नी हो गयी। अंततः उन्हें देश छोड़ना पड़ा। वह फ्रांस और जर्मनी गए, जहां उन्होंने भारत में ब्रिटिश हुकूमत द्वारा भारतीयों पर किए जा रहे अत्याचारों के विषय में वहाँ के लोगों को अवगत करवाया।

लाला हरदयाल ने फ्रांस और जर्मनी को अपने क्रान्तिकारी कार्यों के लिए उपयुक्त न मान अमेरिका जाने का निर्णय किया और एक दिन वह अमेरिका जा पहुंचे। वहाँ उनकी मुलाकात सोहन सिंह से हुई. सोहन सिंह लाला हरदयाल से चौदह साल बड़े थे। उनके जुझारूपन से लाला जी बहुत प्रभावित हुए. सोहन सिंह के माध्यम से करतार सिंह सराभा की मुलाकात हरदयाल से हुई. तीनों ने मिलकर एक ऎसी संस्था स्थापित करने का विचार किया, जिसके नाम में ही क्रान्ति की भावना निहित हो। सोच विचारकर लाला हरदयाल ने उस संस्था का नाम 'गदर' रखने का निर्णय किया। गदर का उद्देश्य भारत में सशस्त्र क्रांति करके ब्रिटिश हुकूमत को उखाड़ फेंकना था और देश में एक लोकतांत्रिक सरकार की स्थापना करना था। 'गदर' की स्थापना २१ अप्रैल, १९१३ को की गई. उस दिन कैलीफोर्निया, वाशिंगट सहित अमेरिका के अन्य राज्यों में कार्यरत सिखों और अन्य भारतीयों को बुलाया गया था। विभिन्न राज्यों से बहुत बड़ी मात्रा में लोग एकत्रित हुए थे। सान्फ्रांसिस्को और बर्कले के छात्र भी थे। सैकड़ों लोगों की उपस्थिति में 'गदर' की स्थापना और उसके उद्देश्यों के विषय में लाला हरदयाल और सोहन सिंह ने भाषण दिए. करतार सिंह सराभा को भी मंच पर बुलाया गया। सराभा ने संक्षिप्त भाषण में कहा, "साथियो, अब समय आ गया है कि हम देश से ब्रितानी शासन को जड़ से उखाड़ फेंकें। उसके लिए हमें अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिए तत्पर रहना होगा।"

"हम तैयार हैं वीर जी." नीचे बैठे लोग एक स्वर में बोले।

"भारत माता की जय" करतार सिंह ने नारा दिया। भीड़ ने तुमुल ध्वनि से उसे दोहराया।

"मैं, आज से ही विश्वविद्यालय की पढ़ाई छोड़ रहा हूँ और अपना भावी जीवन देश सेवा के लिए अर्पित करता हूँ।" करतार सिंह ने घोषणा की।

सराभा का निर्णय सुनकर भीड़ ने हर्ष ध्वनि के साथ उनके उस निर्णय का स्वागत किया।

उस दिन के बाद करतार सिंह ने अपने को 'गदर' के कार्यों में समर्पित कर दिया।

सोहन सिंह को सर्व सम्मति से 'गदर' का अध्यक्ष नियुक्त किया गया, जबकि लाला हरदयाल उसके सचिव बनाए गए. करतार सिंह, अनुज राय, नयन सिंह आदि छात्रों ने कोई भी पद लेने से इंकार कर दिया। करतार सिंह के मित्रो को यह जानकारी थी कि वह यदा कदा कविताएं लिखते हैं। जब वह मंच पर थे तभी एक मित्र ने नीचे से ऊंची आवाज में कहा, "सराभा, आज अपनी रची कोई कविता सुनाओ."

करतार सिंह सराभा संकोच में पड़ गए. बहुत सोचने के बाद उन्हें अपनी एक कविता की एक पंक्ति याद आयी,

"बनी सिर शेरां दे, की जाणा भज्ज के." (अर्थात शेरों के सिर पर आ बनी है अब भागकर क्या जाएगें?)

नीचे भीड़ ने जोरदार तालियां बजायीं। करतार सिंह आगे की पंक्तियां भूल गए. भारत माता की जय बोलते हुए मंच से नीचे उतर आए.

'गदर' का कार्यालय 'युगान्तर आश्रम' में ही था। करतार सिंह बर्कले से अब सान्फ्रासिस्को शिफ्ट हो गए थे। पूरा समय दोनों संस्थाओं को देने लगे थे। 'युगान्तर आश्रम' की स्थापना का मुख्य उद्देश्य जहां अमेरिका में रहने मज़दूरों की समस्याओं को उठाना और उन्हें उनके अधिकार दिलाने के साथ भारत से ब्रिटिश हुकूमत को उखाड़ फेंकने के लिए लोगों को तैयार करना था, वहीं 'गदर' का एक मात्र उद्देश्य भारत से ब्रिटिश हुकूमत को समाप्त करना था। यद्यपि दोनों संस्थाएं अपना काम कर रही थीं और दोनों में करतार सिंह सराभा की भूमिका थी, लेकिन अब वह गदर के लिए अधिक समय दे रहे थे। वैसे भी युगान्तर आश्रम की सक्रियता के कारण भारतीय मजदूरों की समस्याओं की ओर स्थानीय सरकार और मालिकों ने ध्यान देना शुरू कर दिया था। 'गदर' की स्थापना एक बहुत बड़े उद्देश्य के लिए की गई थी और उसके लिए निरन्तर बैठकें आयोजित करके मजदूरों को देश की आजादी के लिए तैयार करने की आवश्यकता थी।

अमेरिका के उन सभी राज्यों में जहां भारतीय मजदूर काम करते थे, सोहन सिंह मीटिंग करते रहे थे, लेकिन लाला हरदयाल के पहुंचने से उनके काम में और गति आ गई थी और उनके साथ अब करतार सिंह सराभा पढ़ाई छोड़कर पूरी तरह से जुड़ गए थे। अब सोहन सिंह के साथ हर मीटिंग में सराभा उपस्थित रहने लगे थे। सभा के अंत में उपस्थित लोगों से देश की स्वतंत्रता के लिए सर्वस्व न्योछावर करने की प्रतिज्ञा करवाई जाती थी। करतार सिंह और लाला हरदयाल के तेज तर्रार भाषणों का प्रभाव यह होने लगा कि बहुत से स्थानीय अमेरिकी उनकी मीटिंग्स में शामिल होकर उन्हें सुनने लगे थे। उससे पहले उनके मस्तिष्क में भारतीयों की छवि केवल कोल्हू के बैल जैसी थी, जिसके कोई जुबान नहीं होती। मालिक जैसा चाहते हैं वह वैसा करने के लिए अभिशप्त होता है, लेकिन वहाँ के अंग्रेज देख रहे थे कि भारतीय संघर्ष की ओर अग्रसर थे और अब वे भी उनकी आजादी के संघर्ष में उनके साथ होना चाहते थे।

गदर की स्थापना को दो माह बीत चुके थे। एक दिन एक मित्र ने करतार सिंह सराभा से कहा, "सराभा, तुम्हें हवाई जहाज चलाना आना चाहिए!"

"यह कोई आसान काम है।"

"आसान तो नहीं—लेकिन मैं सोचता हूँ कि तुममे वह क्षमता है कि तुम ऎसा कर सकते हो।"

"कर तो सकता हूँ, लेकिन मेरी उम्र आड़े आएगी।"

"हां, लेकिन अठारह की आयु होने तक तुम जहाज बनाना तो सीख ही सकते हो।"

"उससे लाभ क्या होगा?"

"देश को आजाद करवाने में बड़ी सहायता मिल सकती है। जहाज हाथ लग जाए और तुम्हें चलाना आता हो तो तुम अपने साथियों को अंग्रेजों के चुंगल से ले उड़ सकते हो। बम बनाना सीख लो तो अंग्रेजों पर बम बरसा सकते हो।"

करतार सिंह मुस्करा पड़े, "लेकिन कौन सीखने देगा जहाज बनाना और उसे चलाने देना।"

"कोशिश करो। न्यूयार्क में एक प्राइवेट कंपनी जहाज बनाती है। सोहन सिंह चाचा से बात करके देखो—शायद वह कुछ मदद कर सकें।"

और करतार सिंह ने सोहन सिंह से चर्चा की। सुनकर सोहन सिंह पहले तो मुस्कराए, लेकिन तत्काल यह सोचकर गंभीर हो गए कि करतार सिंह जो ठान लेता है वह करता अवश्य है। वह सहायक नहीं होंगे तो वह कोई अन्य उपाय निकालेगा। उन्होंने धीमे स्वर में कहा, "ठीक है, मैं जानकारी हासिल करता हूँ।"

सोहन सिंह ने अनेक लोगों से इस विषय में चर्चा की। कई लोगों ने उनकी बात को हंसी में उड़ा दिया, क्योंकि सभी को पता था कि करतार सिंह नाबालिग थे। उन्हें एक व्यक्ति मिला जो उनकी मिल में सुपरवाइजर था और भारतीय था। उसने सुनकर वही आशंका व्यक्त की कि करतार सिंह की उम्र कम है, लेकिन यह भी कहा कि न्यूयार्क की जहाज बनाने वाली कंपनी में उसके परिचित गुप्ता जी हैं, जिनके नाम वह करतार को पत्र दे देगा। यदि संभावना हुई तो गुप्ता जी उसकी सहायता करेंगे। उसने गुप्ता जी के नाम पत्र लिख दिया।

पत्र लेकर अगले ही दिन करतार सिंह सराभा न्यूयार्क के लिए रवान हो गए. उस कंपनी में यद्यपि कई भारतीय काम करते थे, लेकिन गुप्ता एक ही थे और गुप्ता जी के नाम से ही लोग उन्हें जानते थे। गुप्ता जी वहाँ इंजीनियर थे। सराभा उनसे मिले और उनके परिचित का पत्र उन्हें दिया। पत्र पढ़कर वह गंभीर हो गए, लेकिन करतार सिंह के विषय में उनके परिचित ने जो जानकारी दी थी, उसके विषय में सोचकर उन्होंने केवल इतना कहा, "एक दो दिन प्रतीक्षा करनी होगी—मैं मैनेजर साहब से पूछकर ही कुछ बता पाउंगा।"

"जी सर।"

"आप ठहरे कहाँ हैं?" गुप्ता जी ने करतार सिंह से पूछ लिया।

"होटल में—यहां से दूर नहीं है।" सराभा ने कहा।

"परेशानी हो तो मेरे यहाँ रुक जाओ."

"नहीं सर, आप मेरा यह काम करवा दें—होटल में मुझे कोई परेशानी नहीं है।"

"ठीक है। दो दिन बाद आकर पता कर लेना।" क्षणभर रुककर गुप्ता जी बोले, "तब तक न्यूयार्क और इसके आसपास की जगहें घूम लो।"

"जी सर।" करतार सिंह गुप्ता जी को प्रणाम करके लौट लिए.

दो दिन उन्होंने न्यूयार्क शहर देखने में व्यतीत किए. तीसरे दिन सुबह जब वह गुप्ता जी से मिले, गुप्ता जी प्रसन्न दिखाई दिए. करतार सिंह को लगा कि शायद उनका काम हो चुका है और यह सच था। मैनेजर ने गुप्ता जी को निर्देश दिया कि वह अपने अधीन करतार सिंह को काम सिखाएं।

करतार सिंह सराभा की खुशी का ठिकाना नहीं था।

♦♦ • ♦♦


कुछ माह में ही करतार सिंह सराभा जहाज के कल पुर्जे जोड़ने में पारंगत हो गए. उनके अफसर उनसे अत्यधिक प्रसन्न थे। अफसरों को प्रसन्न देखकर उन्होंने जहाज चलाने की इच्छा जाहिर की, लेकिन उन्हें इंकार कर दिया गया, "अभी तुम्हारी उम्र इस योग्य नहीं है और न ही उस प्रकार की शिक्षा है।" अफसरों की बात सुनकर करतार सिंह बहुत निराश हुए. उनका मन करता कि वह किसी पक्षी की भांति आसमान में उड़ जाएं और अपने देश पहुंच जाएं। उन्होंने मिस्टर गुप्ता से इस बारे में चर्चा की थी कि वह जहाज चलाना सीखना चाहते थे, लेकिन अधिकारियों ने इंकार कर दिया। मि। गुप्ता ने उन्हें समझाया कि उसके लिए लंबा समय चाहिए.

"लेकिन मैं लंबे समय तक प्रतीक्षा नहीं कर सकता।" करतार सिंह ने कहा।

"मैं जानता हूँ—तुम्हें माँ भारती की पुकार सुनाई दे रही है करतार—इसलिए तुमने जो सीखा है वह पर्याप्त है, हालांकि यह कभी तुम्हारे काम आ सकेगा, कह नहीं सकता।"

करतार सिंह चुप रहे। मि। गुप्ता करतार सिंह की भावना को आहत नहीं करना चाहते थे, इसलिए कहा, "यदि, कभी अवसर आया तो तुम्हें जहाज की सैर का अवसर दिलवाऊंगा।"

और वह अवसर एक दिन आ ही गया।

कंपनी ने अपने एक अधिकारी मि। जैक को किसी कार्य से जापान जाने का आदेश दिया। मिस्टर जैक एक अमेरिकन अनार्किस्ट माने जाते थे, लेकिन वह कुशल जहाज चालक थे। मि। गुप्ता भी क्रान्तिकारी विचारों के थे और दोनों की अच्छी बनती थी। मिस्टर जैक के साथ मि। गुप्ता को भी जाना था। मिस्टर गुप्ता ने करतार सिंह सराभा को साथ ले जाने की अनुमति उच्च प्रबन्धन से ले ली। सराभा के लिए यह सोने में सुहागा था। जाने से पहले सराभा सोहन सिंह से मिलने गए. सोहन सिंह ने कहा, " सराभा, जापान के कोव नामक स्थान में पुराने भारतीय क्रान्तिकारी बाबा गुरुदत्त सिंह जी रहते हैं उनसे मिलकर अवश्य आना। वे कुछ महत्त्वपूर्ण बातें तुम्हें बता सकते हैं।

"जैसी आपकी आज्ञा चाचा जी." सराभा ने सोहन सिंह के चरण स्पर्श करके आशीर्वाद लिया।

" तुम्हें तुम्हारे काम में सफलता मिले।

जापान पहुंचकर मिस्टर जैक और मिस। गुप्ता कंपनी के काम में व्यस्त हो गए, जबकि करतार सिंह कोव जा पहुंचे। वह बाबा गुरुदत्त सिंह जी से मिले। बाका को अपने आने का उद्देश्य बताया और अमेरिका में चल रही क्रान्तिकारी गतिविधियों की जानकारी दी। सुनकर बाबा परम संतुष्ट भाव से बोले, "देश को आजाद देखने के लिए मैं तो शायद जीवित नहीं बचूंगा, लेकिन मैं तुम सभी की सफलता की वाहे गुरु से दुआ मांगता हूँ।" आसमान की ओर दोनों हाथ उठाकर बाबा गुरुदत्त सिंह जी ने कहा, "हे वाहे गुरू—इन वीरों को इनकी मंजिल तक पहुंचाना। भारत माँ खून के आंसू रो रही है। ये वीर उसके कष्टों को दूर कर सकें इन्हें वह ताकत देना।"

"हमें आगे क्या करना चाहिए बाबा जी?" करतार सिंह सराभा ने उनके चरणों में सिर रखकर पूछा।

"बेटे, मेरा सुझाव है कि तुम्हें उन सभी क्रान्तिकारियों को जिन्हें तुमने अमेरिका में एकत्रित किया और क्रान्ति के लिए तैयार किया है, लेकर हिन्दुस्तान वापस जाना चाहिए. वहाँ सेना और जनता के बीच विद्रोह के बीज बोना चाहिए. सब जब एक जुट होकर विद्रोह करेंगे तभी अंग्रेजों के पैर उखड़ सकते हैं—-वैसे यह इतना आसान नहीं है, क्योंकि आज उनके पास सारी ताकत है, लेकिन तुम्हें यह करना ही होगा और इसके लिए बहुत सतर्क होकर वहाँ काम करना होगा। हुकूमत या उसके किसी चाटुकार को इसकी भनक नहीं लगनी चाहिए." बाबा बूढ़े हो चुके थे। बोलते हुए थकान अनुभव की तो कुछ देर के लिए रुके, गला साफ किया फिर बोलना शुरू किया, "तुम्हें सोहन सिंह ने बताया होगा कि एक दिन मैंने भी यही स्वप्न देखा था। काम भी शुरू कर दिया था। बहुत से नौजवान मेरे साथ थे, लेकिन हमारे बीच ही किसी ने अंग्रेजों के कान फूक दिए. लोग बिकने को तैयार रहते हैं। उन्हें इस बात से कुछ लेना देना नहीं कि उनके मामूली से लाभ के कारण देश की जनता किस प्रकार अंग्रेजों और उनके नुमाइंदों द्वारा सतायी जा रही है। इस देश का यही सबसे बड़ा दुर्भाग्य रहा है कि हर काल में देशद्रोही रहे हैं, जिन्होंने मामूली लाभ के लिए दुश्मनों से हाथ मिलाया और देश को वह कष्ट दिए कि आज हम सैकड़ों सालों से उस पीड़ा को झेल रहे हैं।"

बाबा फिर कुछ देर के लिए रुके.

"तो पुलिस मेरे पीछे पड़ गई. वे मेरी जासूसी करने लगे। जासूस भी भारतीय ही थे। मैं कब तक उनसे बचता घूमता। काम में बाधा पहुंचने लगी। इसी बीच मेरे कुछ युवा साथियों को गिरफ्तार कर लिया गया। उनके पास से फ्रांस क्रान्ति सम्बन्धी कुछ चीजें मिलीं और इतना ही ब्रिटिश हुकूमत के लिए पर्याप्त था। उन सबको सलाखों के पीछे डाल दिया गया। मैं भी पहुंच गया होता, यदि मैंने एक निहंग का वेश धरकर वहाँ से भाग नहीं निकला होता। तब से निर्वासित जीवन जी रहा हूँ।"

"मैं आपको वचन देता हूँ बाबा जी कि आपके निर्देश का पालन करूंगा और जब तक जिन्दा रहूँगा देश की आजादी के लिए अंग्रेज़ी हुकूमत से लड़ता रहूँगा।"

"मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है।"

करतार सिंह सराभा ने बाबा के चरण स्पर्श किए और मिस्टर जैक और मिस्टर गुप्ता से मिलने के लिए प्रस्थान कर गए.