दीवाना-ए-आज़ादी: करतारसिंह सराभा / भाग-15 /रूपसिंह चंदेल

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पिंगले लाहौर वापस लौट गए. करतार सिंह सराभा उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे। पिंगले ने उन्हें सूचित किया कि रास दा जनवरी के मध्य तक अमृतसर और लाहौर का दौरा करेंगे। उन्होंने प्रो। सुरेन्द्र बोस को भारत आने के लिए निमंत्रित किया और संकेत में उद्देश्य भी स्पष्ट कर दिया है। शचीन्द्र यह सूचित करेंगे कि प्रो। सुरेन्द्र का उत्तर क्या आता है।

"मैं स्वयं कुछ क्रान्तिकारियों के साथ बम बनाना चाहता हूँ।" पिंगले ने सुझाव दिया।

"आप यह काम अन्य साथियों को सौंप दें। वे भी सक्षम हैं। आप और हमें धन संग्रह के लिए सोचना है। क्रान्ति के लिए धन तो चाहिए ही होगा। उसके बिना हम असलाह कैसे खरीद सकेंगे।"

"हुंह" कुछ देर सोचने के बाद पिंगले बोले, "बिल्कुल ठीक। हमें उन लोगों पर विचार करना चाहिए जो बम बनाने का काम कर सकते हैं।"

"मैं आज ही लोगों से संपर्क करता हूँ।" सराभा ने कहा और कुछ देर बाद मकान से निकल गए. रात वह चार सिख युवकों और दो अन्य युवकों के साथ लौटे। दो अन्य युवकों के नाम मोहम्मद यूनुस और जाकिर हुसैन थे। वे लाहौर विश्वविद्यालय के छात्र थे और सराभा के भाषणों से प्रभावित होकर क्रान्तिकारी कार्यों में उनके साथ शामिल हो गए थे।

अगले दिन से पिंगले ने छहों युवकों को बम बनाने की ट्रेनिंग देनी शुरू की। यह काम शहर से दूर एक ऎसे मकान में किया जाने लगा, जो बंद था। वह मकान मंगत राम कपूर का था। कपूर परिवार एक दशक पहले दिल्ली शिफ्ट हो गया था। उनका वहाँ व्यवसाय था। एक दशक में किसी ने भी उस मकान की ओर देखा तक नहीं था। मकान की हालत जीर्ण-शीर्ण हो रही थी। लेकिन समस्या यह थी कि मकान का प्रयोग बिना उसपर जड़े ताला को तोड़े नहीं हो सकता था। इसका उपाय भी करतार सिंह सराभा और पिंगले ने निकाल लिया। जो चार सिख युवक उस काम के लिए सराभा ने चुने थे, उनमें एक की आयु छब्बीस वर्ष थी और उसका नाम था लखमिन्दर सिंह। लखमिन्दर फीरोजपुर के पास के एक गांव का रहने वाला था और विश्वविद्यालय में केमिस्ट्री का छात्र था। उसकी शादी हो चुकी थी। सराभा ने उसे समझाया कि पुलिस को शक न हो इसलिए वह अपनी पत्नी और एक साल की बच्ची को ले आए और वे उस मकान का ताला तोड़कर उसकी सफाई करवा देंगे। एक परिवार उसमें रहने लगेगा तो दूसरे लोगों के आने-जाने का संकट नहीं होगा...

"भरा जी, अगर कल को मंगत राम कपूर आ गया तो?"

"तब की तब देखेंगे—तब के लिए अभी से दुबले क्यों होना।" पिंगले ने कहा।

लखमिन्दर सिंह अगले ही दिन गांव गया और मां-पिता को खाने-पीने की असुविधा और अन्य समस्याएं बताकर पत्नी और बेटी को ले आया। साथ ही फीरोजपुर के अपने दो अन्य साथियों को भी लेता आया, जो क्रान्तिकारी कार्यों में संलग्न थे। वे लोग सराभा का नाम सुनकर और बम बनाने की ट्रेनिंग लेने के लिए उसके साथ लाहौर आ गए. इनके नाम थे वरियाम सिंह और भाई राम रखा। दोनों बम बनाना सीखने के उद्देश्य से आए थे।

प्रारंभिक शिक्षा और बम बनाने के कुछ सामान के साथ वरियाम सिंह और भाई राम रखा फिरोजपुर लौट गए और वहाँ बम बनाकर उसके प्रयोग के दौरान बम विस्फोट से दोनों की ही मृत्यु हो गयी थी। क्रान्तिकारियों को यह पहला झटका था। करतार सिंह सराभा और विष्णु गणेश पिंगले ने इस काम के लिए अत्यंत सतर्कता से काम लेने की सलाह लखविन्दर सिंह और उसके साथियों को दी।

लखविन्दर की पत्नी और बच्ची के मंगत राम कपूर के मकान में आ रहने के बाद भी किसी का ध्यान उस मकान की ओर नहीं गया। लोगों ने सोचा कि मंगत राम ने उस खाली पड़े मकान को उन लोगों को बेच दिया है। लखविन्दर प्रतिदिन शाम पत्नी के साथ बाहर घूमने और बाज़ार से सामान लाने जाया करता था। वे इतना रिजर्व रहते थे कि किसी ने भी उनसे मित्रता की इच्छा नहीं की। सुबह लखविन्दर नियम के साथ विश्वविद्यालय जाता। लौटकर मित्रो के साथ बम बनाता। उसके मित्र शाम को एक-एक करके अपने घरों को चले जाया करते थे, जबकि वहाँ रहते हुए वरियाम सिंह और राम रखा उसी मकान में रहते रहे थे।

लखविन्दर और उसके साथियों ने आठ बम बना लिए थे। जैसे ही बम तैयार हो जाता वे उसे सराभा के यहाँ पहुंचा देते। लेकिन एक दिन पुलिस को इस बात का शक हुआ कि उस मकान में कुछ संदिग्घ गतिविधियां जारी हैं। पुलिस कार्यवाई करती इससे पहले ही सराभा और पिंगले को इस बात की जानकारी हो चुकी थी कि पुलिस जल्दी ही उस मकान पर छापा मारने वाली है। उन्होंने लखविन्दर सिंह और उसके साथियों को तुरंत वहाँ से बम बनाने की सारी सामग्री हटा देने की सलाह दी और लखविन्दर को पत्नी सहित गांव निकल जाने के लिए कहा। उन लोगों ने वैसा ही किया।

जिस दिन सारा सामान मंगत राम कपूर के मकान से हटाया गया और लखविन्दर पत्नी सहित गांव के लिए रवाना हुआ उसी रात पुलिस ने उस मकान में छापा मारा। जाते समय क्रान्तिकारियों ने मकान में ताला भी बंद नहीं किया था। अंधेरे में टार्च की रोशनी में पुलिस ने मकान का चप्पा-चप्पा छान डाला, लेकिन हाथ कुछ नहीं लगा। पुलिस निराश लौट गयी और मुखबिर को झूठी खबर देने के लिए बहुत ही सुनना पड़ा।

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आठ बम कब्जे में आने के बाद सराभा और पिंगले के हौसले बुलंद हो गए थे।

"लखविन्दर इस काम में सफल रहा है। हमें उसकी सेवाएं आगे भी लेनी होंगी।" सराभा ने पिंगले से कहा।

"वरियाम और राम रखा जीवित होते तो आज हमारे पास इससे दुगने बम होते। अफसोस है उनके जाने का।" पिंगले बोले, "आगे की क्या योजना है?"

"मोंगा में चार दिन बाद गदर पार्टी की बैठक है। मैं वहाँ जाउंगा। आपका क्या विचार है?" सराभा बोले।

"मैं अमृतसर जाउंगा। बोस दा ने कहा था कि मुझे और शचीन्द्र सान्याल को अमृतसर जाकर मूला सिंह से मिलना होगा। मूला सिंह शंघाई से आए हैं और अमृतसर में हैं। उनसे कुछ आर्थिक सहायता की संभावना है और उम्मीद है कि वह कुछ सामान भी हमारे लिए लाए हों।" पिंगले ने कहा।

"मूला सिंह से मिलने मुझे भी चलना चाहिए, लेकिन मोंगा में मेरी प्रतीक्षा होगी। वैसे आपको भी वहाँ ले चलना चाहता था, लेकिन आप अमृतसर जाओ और लौटकर लाहौर में हम एक दूसरे की प्रतीक्षा करेंगे। संभव हो तो शचिन दा को भी लाहौर लेते आएगें।"

और ३ जनवरी, १५ को पिंगले अमृतसर पहुंचे। शचीन्द्र सान्याल पहले ही अमृतसर पहुंच चुके थे और पिंगले की प्रतीक्षा कर रहे थे। मूला सिंह से उन्हें पांच सौ रुपयों की नकद सहायता और कुछ पिस्तौलें और गोलियां मिली थीं। मूला सिंह से मिलकर पिंगले लाहौर लौट गए, जबकि सान्याल बनारस।

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३० दिसम्बर, १९१४ को मोंगा में गदरियों ने एक विशाल सभा का आयोजन किया था। इसमें चार हजार के लगभग गदर के सदस्य भी शामिल हुए जो करतार सिंह सराभा के बाद पंजाब पहुंचे थे। सभी निरापद पंजाब पहुंचने में सफल रहे थे। वास्तविकता यह थी कि ब्रिटिश सरकार बुरी तरह से विश्वयुद्ध में उलझ चुकी थी और देश में होने वाली छुट पुट गड़बड़ियों के प्रति अधिक ध्यान नहीं दे पा रही थी। हालांकि वह बिल्कुल निश्चिंत भी नहीं थी। उसे पता था कि क्रान्तिकारी किसी खास बात के लिए सक्रिय हैं और इसके लिए उसने कुछ जासूस भी छोड़ रखे थे।

मोंगा की उस विशाल सभा में करतार सिंह सराभा की मुलाकात भाई परमानन्द से हुई. दिसम्बर में ही वह बाहर से वहाँ पहुंचे थे। परमानन्द के भाषण से सराभा बहुत प्रभावित हुए. उन्होंने भी भाषण दिए. सभा में विचार किया गया कि पार्टी की गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए धन कैसे एकत्र किया जाए.

"इसके लिए एक ही विकल्प सूझ रहा है—और वह है सरकारी खजाना लूटना और कुछ जमींदारों के यहाँ डकैती डालना।" सराभा ने कहा।

"सरकारी खजाना लूटना सही है, लेकिन जमींदार तो देश के लोग हैं—-"

सभा में उपस्थित एक व्यक्ति के तर्क पर सराभा ने कहा, "हम उस जमींदार के घर नहीं जाएगें जिसने किसानों का खून नहीं चूसा, लेकिन जिसने किसानों पर अत्याचार किए हैं और उनका खून चूसकर धन एकत्रित किया है हम उसके यहाँ डकैती डालेंगे और क्रान्ति हमें अत्याचारी के यहाँ डकैती डालने की छूट देती है।"

"मैं करतार सिंह से सहमत हूँ।" भाई परमानन्द बोले।

एक मत से यह निर्णय हुआ कि सराभा कुछ युवकों को लेकर सरकारी खजाना लूटेंगे और डकैतियां डालेंगे।

"मुझे अभी लाहौर जाना है। उसके बाद मैं लौटकर आप सबसे मिलकर कहाँ क्या करना है योजना को अंतिम रूप दूंगा।"

मोंगा की उस विशाल सभा में सम्मिलित होने के बाद उसी रात करतार सिंह सराभा लाहौर के लिए प्रस्थान कर गए थे। पिंगले भी लौट आए थे। पिंगले ने सराभा को सूचित किया कि उन दोनों को रास दा ने बनारस बुलाया है। वहाँ वह जुगान्तर की बैठक आयोजित कर रहे हैं। बंगाल के अनेक क्रान्तिकारी वहाँ एकत्रित हो रहे हैं। सान्याल इसीलिए अमृतसर से वापस लौट गए हैं।

"हम दोनों को ही चलना होगा।" पिंगले बोले।

"चलेंगे।"

जुगान्तर की मीटिंग में शामिल होने के लिए कलकत्ता से अतुल कृष्ण घोष, नरेन भट्टाचार्य और जतिन मुखर्जी बनारस पहुंचे। पिंगले और सराभा भी समय से पहुंच गए. मीटिंग में रास बिहारी बोस ने सभी उपस्थित लोगों को " अपने देश के लिए बलिदान देने' की शपथ दिलवाई. वहाँ सैन्य विद्रोह कब करवाया जाए इस पर भी चर्चा हुई. जतिन मुखर्जी एक माह का समय चाहते थे। उन्हें अभी भी जर्मनी के क्राउन प्रिंस द्वारा अस्त्र-शस्त्र देने के उनके वायदे के पूरा होने की आशा थी। हर दिन वह इस इंतजार में रहते कि किसी भी दिन उन्हें यह सूचना मिलेगी कि उनके लिए किसी जहाज में अस्त्र-शस्स्त्र भेजे गए हैं। लेकिन हर दिन खाली बीत रहा था। वह इस वास्तविकता को समझने को तैयार नहीं थे कि जर्मनी युद्ध में इस कदर फंस चुका था कि वह उनकी बात भूल चुका था। उन्होंने फोर्ट विलियम की १६वीं राजपूत राइफल्स के हवलदार मंसा सिंह से सम्पर्क किया हुआ था और उसने उन्हें भरोसा दिया था कि उसके सभी सैनिक उनका निर्देश पाते ही वहाँ बगावत कर देंगे। लेकिन फिर भी उन्होंने रास बिहारी बोस से एक माह का समय मांगा। रास दा भी तुरंत कुछ कर सकने की स्थिति में न थे। उन्होंने सराभा और पिंगले से पंजाब की प्रगति पूछीं तो उन लोगों ने भी धन की कमी और पर्याप्त अस्त्र-शस्त्र न होने की बात कहकर फरवरी की कोई तिथि बगावत के लिए तय करने की बात कहीं।

"धन के लिए यहाँ से लौटकर मैं सरकारी खजाने लूटने की योजना बनाउंगा और कुछ जमींदारों के यहाँ डकैती भी डालूंगा और वहाँ से मिले धन से औजार खरीदे जाएगें।" सराभा ने कहा।

' हुंह"रास बिहारी बोस कुछ चिन्त्तित होते हुए बोले," जो भी है। बंगाल और पंजाब में एक साथ एक ही दिन विद्रोह होना चाहिए. मैं जनवरी मध्य में अमृतसर और लाहौर के दौरे करूंगा और विद्रोह की तिथि तय करूंगा।"

करतार सिंह सराभा और पिंगले लाहौर लौट गए और अतुलघोष, नरेन भट्टाचार्य और जतिन मुखर्जी कलकता।