दीवाना-ए-आज़ादी: करतारसिंह सराभा / भाग-5 /रूपसिंह चंदेल
उड़ीसा में चाचा के साथ रहते हुए करतार सिंह ने हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली। उनका मन अब वहाँ भी नहीं रम रहा था। उच्च शिक्षा के लिए चाचा ने उन्हें कलकत्ता भेजने का निर्णय किया, लेकिन करतार सिंह ने मना कर दिया। उनका मन ही उचट गया था। चाचा ने समझ लिया कि उनका भतीजा देश की गुलामी से विचलित है और यदि वह देश में रहेगा तो निश्चित ही वह क्रान्तिकारी गतिविधियों में शामिल हो जाएगा। उनसे बातचीत करके और अंग्रेजों और जमींदारों और राजाओं के विरुद्ध उनके विचार जानकर चाचा किसी निर्णय पर नहीं पहुंच पा रहे थे। युवा वर्ग बिपिन्द्र चन्द्र पाल और बालगंगाधर तिलक से प्रभावित हो रहे थे। दूसरी ओर रासबिहारी बोस और शचीन्द्र नाथ सान्याल की क्रान्तिकारी गतिविधियां उन्हें अपनी ओर आकर्षित कर रही थीं। बोस १९०८ में अलीपुर बम कांड के मुकदमे से बचने के लिए बंगाल से भागकर देहरादून चले गए थे, जहां उन्होंने एक क्लर्क के रूप में काम किया था। यही नहीं १२ दिसंम्बर १९१२ को लार्ड हार्डिंग को जान से मारने के असफल प्रयत्न में उन्हें गिरफ्तार करने के लिए पुलिस सक्रिय हो उठी थी, लेकिन वह पुलिस की पकड़ से बाहर रहे थे। हार्डिंग पर हमला तो वसंत कुमार विश्वास ने किया था, लेकिन ब्रिटिश पुलिस उसमें रासबिहारी बोस की भूमिका भी मान रही थी।
शचीन्द्र नाथ सान्याल रास बिहारी बोस के साथ थे। बंगाल के इन दोनों क्रान्तिकारियों से बहुत से किशोर और युवा प्रभावित हो रहे थे। करतार सिंह के चाचा को खतरा अनुभव होने लगा कि यदि भतीजे को पढ़ने के लिए कलकत्ता भेजा तो वह इन क्रान्तिकारियों के संपर्क में अवश्य आ जाएगा। उन दिनों कलकत्ता क्रान्तिकारियों का केन्द्र था। अंततः उन्होंने निर्णय किया कि उन्हें उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका भेज दिया जाए, इसके लिए उन्होंने अपनी भाभी साहिब कौर और भापा जी से संपर्क किया। परीक्षा के बाद करतार गांव के लिए रवाना हो गए थे। चाचा उनके विषय में क्या सोच रहे थे, यह चर्चा ौन्होंने करतार से नहीं की थी। बस उनकी इच्छा अवश्य जाननी चाही थी और उत्तर में करतार सिंह ने कहा था, "चाचा जी, पहला सवाल आजादी का है। हम पढ़कर इन अंग्रेजों की गुलामी ही करेंगे!" उस दिन करतार ने खुलकर चाचा को अपनी बात बता दी थी और चाचा ने भी अनुभव किया था कि कलकत्ता में ही नहीं, देश के किसी भी क्षेत्र में करतार सिंह को पढ़ने के लिए भेजने से उन्हें क्रान्तिकारी गतिविधियों से रोका नहीं जा सकता। चाचा ने करतार सिंह से कुछ नहीं कहा था और अगले ही दिन अपने भापा और भाभी को तार भेजकर राय मांगी थी और बताया था कि वह करतार को सराभा भेज रहे हैं।
करतार के गांव पहुंचने के बाद एक दिन दादा जी, जिन्हें करतार कभी बाब्बा कहते तो कभी दादा, ने पूछा, "बेटा, अब तुम्हारी कॉलेज की पढ़ाई शुरू होने वाली है। तुमने क्या सोचा है?"
"बाब्बा जी, पढ़कर हमें इन अंग्रेजों की गुलामी ही तो करनी होगी, फिर इतनी पढ़ाई बहुत है। आगे पढ़कर क्या करना। खेती करने वाला भी तो कोई नहीं।"
"खेती की तुम परवाह क्यों करते हो बेटा। खूब पढ़ोगे तभी दुनिया को जानोगे। अंग्रेजों की गुलामी से निज़ात पाने का रास्ता पढ़कर ही निकाला जा सकता है।"
सोच में पड़ गया था करतार सिंह का किशोर मन।
"आप मुझे दो दिन का समय दें दादा जी."
"तू चार दिन का ले-ले पुत्तर—पर पढ़ाई ज़रूर कर। जहां चाहेगा तुझे पढ़ाउंगा। मंगल सिंह की आत्मा को तभी शांति मिलेगी जब तू पढ़ लिखकर काबिल बनेगा।" कुछ देर के लिए रुके दादा जी, करतार सिंह के चेहरे पर नज़रे गड़ाए रहे, फिर बोले, "लाहौर, कलकत्ता, इंग्लैंड, अमेरिका—-जहां तेरा मन करे—मेरे मन को भी शांति मिलेगी—तो सोच पुत्तर। अभी बहुत दिन बाकी हैं।"
करतार सिंह सोचता रहा कई दिनों तक। वह खेतों और बाग की ओर निकल जाता और अकेले में घास पर लेटा सोचता रहता। एक दिन उसे गुरमीत की याद आई. उससे मिलने के लिए मन मचल उठा। उसे परकासो दीदी की याद भी आई. 'मुझे गांव आए कई दिन हो गए. आते ही दादा जी ने कॉलेज की समस्या खड़ी कर दी। लेकिन मुझे गुरमीत से मिलकर पूछना चाहिए कि वह कहाँ जाएगा! ।'
और अगले दिन उसने माँ को लुधियाना जाने और दो दिन बाद लौटने के लिए सूचित किया। दादा जी को भी कहा और लुधियाना के लिए निकल पड़ा। सीधे वह गुरमीत के घर गया। उसे देखकर गुरमीत दौड़कर उससे लिपट गया। "यारां, एक साल बाद तेरी शक्ल देख मन खुश हो गया।" देर तक वह करतार सिंह से लिपटा रहा। अलग हुआ तो बोला, "तू नाराज था मुझसे?"
"क्यों?"
"उड़ीसा जाने के बाद न चिट्ठी न पत्तरी—तूने तो मेरा नाम ही अपनी डायरी से खारिज कर दिया लगता है।"
"तू दिल दुखाने वाली बातें क्यों कर रहा है। तुझे भूला होता तो गांव आते ही दौड़कर आता?"
गुरमीत चुप रहा देर तक, फिर पूछा, "कैसी कट रही है वहां?" और इतना कहते ही उसे याद आया कि करतार सिंह इतनी दूर से चलकर केवल उससे मिलने आया है और वह घर के बाहर खड़ा उससे बतियाए जा रहा है। "करतार, मैं बहुत ही नालायक हूँ। तुझे यहीं रोक लिया—चल घर चल। बीजी तुझसे मिलकर बहुत खुश होगी।"
और दोनों घर के अंदर गए. करतार सिंह को देखकर गुरमीत की बीजी पलंग से नीचे उतर गयीं और पैरों को हाथ लगाते करतार को छाती से लगाती बोलीं, "मुझे तो बिल्कुल ही भूल गया था तू?"
"बीजी" करतार गुरमीत की माँ को बीजी ही पुकारता था, "आपको कैसे भूल सकता हूँ।" और गुरमीत की माँ के साथ पलंग पर बैठकर करतार ने अपने उड़ीसा जाने, वहाँ के लोगों की तकलीफों, गरीबी, शोषण आदि का जो सजीव चित्र खींचा, उसे सुनकर गुरमीत की बीजी की आंखों से धारासार आंसू बहने लगे।
"देश जब तक गुलाम रहेगा बीजी—उन गरीबों को ही नहीं सभी को ऎसे ही हालातों से गुजरते रहना होगा। जो लोग अंग्रेजों के तलवे सहला लेते हैं, उनकी चापलूसी कर लेते हैं—यानी हमारे जमींदार, जागीरदार और ये राजे-महाराजे—ये ही मौज कर रहे हैं, बाकी जनता नर्क भोग रही है। मैंने जितना पंजाब में देखा उससे कई गुना अधिक बुरे हाल दूसरी जगहों में हैं।"
"सही कह रहा है पुत्तर"
नाश्ता के साथ देर तक गुरमीत और उसकी बीजी के साथ बातें करने के बाद करतार ने कहा, "गुरमीत, दीदी से मिल आऊं?"
"परकासो दीदी से?" गुरमीत ने पूछा।
"हां, वही तो एक दीदी हैं यहाँ मेरी। दूर की रिश्तेदारी है, लेकिन उनके यहाँ रहकर मुझे कभी कोई तकलीफ नहीं रही।"
"एक दिन परकासो दीदी बाज़ार में मिल गयी थीं" गुरमीत बोला, "तेरे बारे में पूछ रही थीं।"
करतार सिंह चुप रहा। उसे अपराध बोध हो रहा था कि उसने न दीदी को पत्र लिखा और न गुरमीत को।
"मैंने कहा था कि दीदी करतार हमें भूल गया। इस पर दीदी ने छूटते ही कहा था," नहीं गुरमीत, ऎसा नहीं कर सकता करतार। वह ज़रूर कहीं उलझा होगा——"
गुरमीत की बात समाप्त होने के बाद करतार सिंह ने लंबी सांस ली और पलंग उसे उतरते हुए गुरमीत की माँ से बोला, "बीजी, मैं दीदी से मिलने जा रहा हूँ। हो सकता है वहीं आज रात बिताउं। वैसे यहाँ दो दिन रहूँगा। आज वहाँ रहा तो कल सुबह आपके यहाँ आ जाउंगा।"
"कोई नहीं पुत्तर—जहां तेरा मन रमें—पर जाने से पहले मिलकर जाना।"
"आप निश्चिंत रहें बीजी, कल सुबह आपके पास हाजिर हो जाउंगा और दिनभर आपके साथ रहूँगा।गुरमीत मुझे छोड़कर लौट आएगा।"
"तू मुझे सुरक्षा कवच की तरह लेकर जा रहा है, लेकिन दीदी तुझे मारेंगी नहीं।" और गुरमीत हंसने लगा। करतार सिंह भी हंसने लगा, "दीदी इतनी अच्छी हैं—।"
रास्ते में करतार सिंह ने अपनी समस्या बतायी और पूछा कि वह हाई स्कूल के बाद किस कॉलेज में प्रवेश लेने की सोच रहा है।
"अभी कुछ सोचा नहीं।" गुरमीत बोला, "परिणाम तो आए—फिर सोचूंगा।"
"मैं क्या करूं? मैं पढ़ना नहीं चाहता, लेकिन घर वाले पढ़ाना चाहते हैं। वे मुझे बैरिस्टर बनाना चाहते हैं। उनका कहना है कि मैं पढ़कर देश की सेवा अच्छी तरह कर सकता हूँ। लेकिन मैं ब्रिटेन नहीं जाना चाहता। मुझे इन अंग्रेजों से घृणा हो गयी है।"
"तो अमेरिका चला जा।"
"वहां कहां?"
"कैलीफोर्निया के बर्कले की" युनिवर्सिटी ऑफ कैलीफोर्निया"बहुत अच्छी है। पंजाब के कई युवक वहाँ पढ़ने गए हुए हैं।"
"ओह! किसी को जानता है तू।"
"नहीं। बस सुना है। वैसे वहाँ बहुत से सिख रहते हैं—तुझे वहाँ परेशानी न होगी।"
करतार सिंह सोच में पड़ गया। परकासो दीदी के घर पहुंचने तक दोनों चुप रहे थे।