दीवाना-ए-आज़ादी: करतारसिंह सराभा / भाग-6 /रूपसिंह चंदेल

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घर लौटकर करतार सिंह ने बाब्बा और बीजी को अमेरिका में कैलीफोर्निया के बर्कले की युनिवर्सिटी ऑफ कैलीफोर्निया का विचार बताया। दादा ने तुरंत उड़ीसा बेटे को तार भेजकर जानना चाहा कि करतार को वहाँ पढ़ने के लिए भेजना कितना सही होगा। बेटे ने तुरंत उत्तर दिया कि वह एक अच्छा विश्वविद्यालय है और करतार को भेजने की वे व्यवस्था करें। इसप्रकार करतार के अमेरिका जाने की तैयारी शुरू हो गयी।

और एक दिन करतार पानी वाले जहाज द्वारा कैलीफोर्निया जाने के लिए रवान हो गया। वह जनवरी का ठंड भरा एक दिन था। उड़ीसा वाले चाचा उसे जहाज पर चढ़ाने गए थे।

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जनवरी, १९१२ का वह दिन। सुबह मौसम बहुत ठंडा था। चारों ओर घना कोहरा छाया हुआ था। रात में काफी बर्फ गिरी थी। तेज हवाएं चल रही थीं। सुबह हो चुकी थी, लेकिन सूर्य के दर्शन नहीं हुए थे। करतार सिंह अपने केबिन में अभी सोये हुए थे कि शोरगुल से उनकी आँख खुल गयी। देखा लोग अपना सामान समेट उतरने की तैयारी कर रहे हैं। उन्हें समझते देर न लगी कि उनका जहाज सान्फ्रांसिको के बन्दरगाह पर पहुंच चुका है। उन्हें वहीं उतरना था। वह केबिन के बाहर निकले। बाहर निकलते ही तेज ठंडी हवा ने उनका स्वागत किया। सारा शरीर कंपकपा उठा। करतार सिंह केबिन के अंदर गए और सामान समेट कर बाहर आ गए. लेकिन बाहर आते ही उन्हें रोक लिया गया। उन दिनों भारत से आने वाले हर व्यक्ति से अमेरिका की पुलिस गहन पूछताछ करती थी। करतार सिंह ने देखा कि केवल भरातीय लोगों को ही रोका जा रहा था, जबकि दूसरे देश के नागरिकों को मामूली पूछताछ के बाद जाने दिया जा रहा था।

करतार सिंह ने अपने साथ यात्रा कर रहे एक यात्री से, जो एक जर्मन नागरिक था और भारत से ही उनके साथ यात्रा कर रहा था, पूछा, "भारतीयों को ही क्यों रोका जा रहा है?"

जर्मन नागरिक ने धीमे स्वर में उत्तर दिया, "क्योंकि भारतीय एक गुलाम देश के नागरिक हैं, इसीलिए उनके साथ बुरा बर्ताव किया जाता है।"

जर्मन नागरिक की बात सुनकर करतार सिंह बहुत आहत हुए. सोचा, 'देश से बाहर भी उनके देश वासियों को केवल इसलिए अपमान सहना पड़ रहा है क्योंकि वे गुलामी की जंजीरों में जकड़े हुए हैं।' मन में एक संकल्प ने आकार लेना शुरू किया। तभी वह इमिग्रेशन विभाग के एक अमेरिकी अफसर के सामने थे, जो एक अंग्रेज था। उसने करतार को रोक लिया और दूसरे अफसर की ओर इशारा किया। वह करतार सिंह को एक कमरे में ले गया और कड़कती आवाज में बोला, "तुम्हारी उमर क्या है?"

"साढ़े चौदह साल।"

"अपना जन्म प्रमाणपत्र दिखाओ."

करतार सिंह ने स्कूल का सार्टिफिकेट बैग से निकाला और उसकी ओर बढ़ा दिया। प्रमाण पत्र उलट-पलट कर देखने के बाद उसे करतार सिंह को वापस लौटाते हुए अफसर ने पूछा, "इतनी कम उम्र में तुम्हारा यहाँ आने का क्या उद्देश्य है?"

"पढ़ने के लिए—हायर स्टडी के लिए आया हूँ।"

"इंडिया में पढ़ने के लिए कॉलेज नहीं हैं?" पहले की अपेक्षा अफसर की आवाज और कड़क थी।

"मैं युनिवर्सिटी ऑफ कैलीफोर्निया में प्रवेश लेकर उच्च शिक्षा प्राप्त करने के उद्देश्य से आया हूँ।"

"और यदि तुम्हें अमेरिका में न उतरने दिया जाए?"

अफसर की इस बात का उत्तर करतार सिंह के पास मौजूद था। उन्होंने सोचने में समय नष्ट नहीं किया। तुरन्त बोले, "यह बहुत बड़ा अन्याय होगा। विद्यार्थियों के मार्ग में इस प्रकार की बाधा पैदा करने से तो विश्व की उन्नति ही रुक जाएगी। कौन जानता है कि मैं यहाँ उच्च शिक्षा प्राप्त कर संसार की भलाई के लिए कोई बड़ा कार्य करने में समर्थ हो सकूं—कोई ऎसा कार्य जिससे मानव कल्याण हो—-या कोई वैज्ञानिक अनुसंधान जिससे दुनिया को बड़ा लाभ हो सके."

अफसर करतार सिंह के इस उत्तर से अत्यधिक प्रभावित हुआ। उसने उन्हें उतरने की अनुमति दे दी। वह करतार सिंह से इतना प्रभावित हो चुका था कि उसने अपने घर के पते का कार्ड भी उन्हें दिया और कहा, "कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय में प्रवेश मिलने में यदि कोई परेशानी होगी तो वह उससे उसके घर पर मिल लेगें। करतार सिंह से हाथ मिलाते हुए वह बोला," मैं तुम्हारी समस्या हल कर दूंगा।"

उस इमिग्रेशन अधिकारी का कार्ड जेब में डाल उसे धन्यवाद देकर करतार सिंह बाहर आ गए. बाहर जोगिन्दर नामका का एक युवक उनकी प्रतीक्षा कर रहा था। वह युवक उड़ीसा वाले चाचा के एक मित्र का भतीजा था। चाचा ने मित्र को कहकर जोगिन्दर को तार भेजवा दिया था। तार मिलने के बाद से जोगिन्दर बंदरगाह के चक्कर लगाने लगा था। आखिर जब एक दिन पहले उसे सूचना मिली कि अगले दिन सुबह भारत से आने वाला जहाज पहुंच जाएगा, जोगिन्दर सुबह छः बजे ही करतार सिंह को लेने पहुंच गया था। जोगिन्दर पंजाब के गुरुदास पुर का रहने वाला था और सान्फ्रासिको की एक फैक्ट्री में काम करता था। जोगिन्दर सिंह ने बताया कि वहाँ बहुत से भारतीय रहते हैं जो मेहनत मजदूरी कर धन एकत्र कर रहे हैं। जोगिन्दर ने करतार सिंह को कहा कि बर्कले जाकर विश्वविद्यालय में प्रवेश लेने तक वह उसके साथ रहे और तब तक वह उसका खर्च वहन करेगा, लेकिन करतार सिंह को यह स्वीकार नहीं था। उन्हें कुछ दिन ही सांन्फ्रासिस्को में रहना था, उसके बाद उन्हें अपने को बर्कले विश्वविद्यालय में एनरोल करवाने के लिए जाना था। लेकिन जितने दिन भी उन्हें जोगिन्दर के साथ रहना था, वह न उस पर आश्रित रहना चाहते थे और न ही घर से लाया धन खर्च करना चाहते थे। वह उस धन को विश्विद्यालय की पढ़ाई में खर्च करना चाहते थे। वह काम की तलाश में शहर की सड़कें नापने लगे।

एक दिन शाम जोगिन्दर बोला, "भ्राजी तू चिन्ता क्यों करता है। आराम नाल रह। मेरे रहते तुम्हें चिन्ता करने की ज़रूरत नहीं।"

करतार इस मामले में उसकी बात का उत्तर नहीं देते थे। जोगिन्दर के काम पर जाते ही वह भी काम की तलाश में निकल पड़ते थे। ऎसे ही एक दिन दोपहर के समय वह सड़क पर जा रहे थे कि अपने पीछे चीखने-चिल्लाने की आवाज सुनकर उनके कदम रुक गए. उन्होंने पीछे मुड़कर देखा। एक गोरा अमेरिकन एक काले आदमी को चीख-चीखकर डांट रहा था। एक क्षण तक करतार सिंह खड़े स्थिति समझने की कोशिश करते रहे किन्तु जब उस अमेरिकन ने कहा, "तुम ब्लैक कुली सीधे काम करना नहीं मांगता। इतना-सा बोझ तुम ढो नहीं सकता। फिर इदर किसलिए आया? बोलता क्यों नहीं—डैम इण्डियन—चोप क्युं है?"

करतार सिंह रुक नहीं सके. दौड़कर वहाँ जा पहुंचे और चीखते हुए बोले, "मिस्टर, आपको शर्म नहीं आती। इतना अधिक बोझ उसके सिर पर रखकर आपने घोड़ा सम्झा है उसे। यह कैसे ले जा सकता है इतना बोझ!"

"ये इण्डियन किसी घोड़े से कम नहीं हैं। यहाँ आकर इनको ऎसा ही काम करना होगा।"

"श्रीमान, आप पहले भी भारतीयों के लिए अपशब्द इस्तेमाल कर चुके हैं और अब भी—क्या भारतीय इंसान नहीं हैं?"

"इंसान—गुलाम इंसान नहीं हुआ करते मिस्टर।"

करतार सिंह कुछ कहते इससे पहले ही वह अमेरिकन बुदबुदाता हुआ आगे बढ़ गया कि अब तो घोड़ा गाड़ी भेजना ही होगा। करतार सिंह उस मजदूर के पास खड़े न जाने कितनी देर तक अमेरिका में भारतीयों की स्थिति के बारे में सोचते रहे थे।

'देश की स्वतम्त्रता के लिए मुझे कुछ करना चाहिए'

वह भारतीय मजदूर करतार सिंह के चेहरे की ओर देखता रहा। वह पैंतीस साल का व्यक्ति था—दुबला, मध्यम कद का, गहरे सांवले रंग का। कुछ देर बाद वह बोला, "भइया, आप भी इंडिया से हैं?"

"जी, पंजाब से—लुधियाना से।"

"काम की तलाश में आए हैं?"

"नहीं पढ़ाई करने के लिए."

"ज़रूर पढ़ो भइया—पढ़े भारतीयों की यहाँ थोड़ी इज्जत है—बाकी हम मजदूरों को ये भारत के अंग्रेजों की तरह ही हांकते हैं।"

"ये भी तो अंग्रेज ही हैं।" करतार सिंह बोले, "क्या काम करते हो?"

"इस अंग्रेज के खेतों में काम करता हूँ।"

"कहां के रहने वाले हो।"

"संयुक्त प्रांत का।"

तभी उस मजदूर को घोड़ा गाड़ी में वह अंग्रेज आता दिखाई दिया। मजदूर चुप हो गया। करतार सिंह खड़े रहे कि यदि दोबारा वह अंग्रेज उस मजदूर के साथ बदततमीजी करेगा तो वह उससे भिड़ जाएगें। लेकिन वैसा हुआ नहीं। अंग्रेज ने घोड़ागाड़ी एक ओर खड़ी की और मजदूर से बोला, "इसे थोडा-थोडा करके इसपर रख।"

मजदूर सामान घोड़ा गाड़ी पर रखने लगा तो करतार सिंह जोगिन्दर सिंह के घर की ओर चले गए. उस दिन उनका मन उखड़ गया था।