दीवाना-ए-आज़ादी: करतारसिंह सराभा / भाग-7 /रूपसिंह चंदेल

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जोगिन्दर सिंह ने करतार सिंह को न नौकरी करने दी और न ही उन्हें कोई ढंग की नौकरी मिली। उन्हें खेतों में काम के लिए बुलाया गया, लेकिन वह इसलिए नहीं गए कि जिस उद्देश्य से वह अमेरिका गए थे वह पीछे छूट जाएगा। खेतों में काम करने वाले मजदूरों से मालिक दिनभर जमकर काम लेते थे और शाम वे केवल इस योग्य रह पाते थे कि भोजन पकाएं और सो जाएं जिससे अगले दिन उसी ऊर्जा के साथ खेतों में कर सकें। एक प्रकार से वे जानवर जैसी ज़िन्दगी जी रहे थे। कुछ भारतीय दूसरे कामों में भी लगे हुए थे। लेकिन वह करतार के अनुकूल न था। वह केवल कुछ घंटों का काम चाहते जिससे उनका निजी खर्च निकल आए और वह जोगिन्दर पर बोझ न बन सकें। फैक्ट्रियों में काम मिल सकता था और उसके लिए जोगिन्दर ने प्रयास भी किया, लेकिन कोई भी फक्ट्री मालिक कम समय के लिए नौकरी देने के लिए तैयार नहीं था। अंततः वह दिन निकट आ गया, जब करतार सिंह को बरकले के लिए प्रस्थान करना पड़ा।

कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय में उन्होंने रसायनशास्त्र में प्रवेश लिया। उनका स्वप्न अनुसंधान करने का था, ऎसा अनुसंधान कार्य जो विश्व में मानव हितार्थ हो। रहने की व्यवस्था होने के पश्चात करतार सिंह ने फिर काम की तलाश शुरू कर दी। कलीफोर्निया विश्वविद्यालय और बर्कले सिटी कॉलेज में उन दिनों बहुत से भारतीय छात्र पढ़ रहे थे। १८८० के पश्चात भारतीयों में आधुनिक शिक्षा को लेकर जो जागृति आयी थी उसका परिणाम था कि सम्पन्न घरों के बच्चे अमेरिका, इंग्लैण्ड तथा अन्य देशों में उच्च शिक्षा के लिए जाने लगे थे।

बर्कले कैलीफोर्निया का एक सुन्दर और आधुनिक शहर था। इसका नाम अठारहवीं शताब्दी में एंग्लो-आइरिश बिशप और दार्शनिक जार्ज बर्कले के नाम पर पड़ा था।

रहने की व्यवस्था हो जाने के पश्चात करतार सिंह ने फिर काम की तलाश शुरू की। वह चाहते थे कि विश्वविद्यालय जाने से पहले वह कुछ घण्टे काम करें और उसके पश्चात विश्वविद्याल और फिर शेष समय पढ़ाई या दूसरे निजी काम। पटना का नयन सिंह नामका एक छात्र करतार सिंह का सहपाठी था। उसके साथ उनकी अच्छी मित्रता हो गयी। नयन सिंह एक जमींदार परिवार का बेटा था। लेकिन विचारों से वह भिन्न था। नयन सिंह एक फलोद्यान में फल तोड़ने का काम करता था। सुबह सात बजे से नौ बजे तक। वह करतार सिंह के साथ बैठता था और उसी ने करतार को मकान खोजने में सहायता की थी। जिस मकान में वह रहता था उससे चार मकान छोड़कर करतार सिंह को उसने मकान दिलवा दिया था। यद्यपि करतार सिंह विश्वविद्यालय होस्टल में रहना चाहते थे, लेकिन होस्टल में उस समय जगह नहीं थी और कमरा मिल जाने पर उन्हें काम करने जाने की समस्या हो सकती थी।

करतार सिंह ने नयन सिंह से अपने लिए कहीं काम खोजने में सहायता के लिए चर्चा की। तब तक उन्हें यह जानकारी नहीं थी कि नयन सिंह कहीं काम करता था। उसकी पारिवारिक प्रुष्ठभूमि जानने के बाद करतार सिंह ने अनुमान लगाया था कि घर से समृद्ध नयन सिंह को काम करने की आवश्यकता नहीं थी। लेकिन करतार सिंह की बात सुनकर जब नयन सिंह ने कहा, "भरा जी मैं कल से ही तेरे लिए काम का इंतजाम कर दूंगा।" नयन सिंह बोला, वह उसे पंजाबी में भरा जी कहने लगा था और यह शब्द उसने करतार सिंह से सीखा था, क्योंकि कई बार करतार सिंह ने उसे इसी शब्द से सम्बोधित किया था,

नयन सिंह की बात से करतार सिंह को आश्चर्य भी हुआ और प्रसन्नता भी। आश्चर्य इस बात से कि सानफ्रान्सिस्को में जोगिन्दर के प्रयासों और स्वयं उसके माथा पच्ची करने के बाद भी काम नहीं मिला था जबकि नयन सिंह अगले दिन से ही उसके लिए काम दिलवाने की बात कर रहा था।

"लगता है कि तुमने काम दिलवाने की एजेंसी चला रखी है।" मुस्कराते हुए करतार सिंह बोले थे।

"न भरा जी—मैं पढ़ने आया हूँ या बिजनेस करने।" नयन सिंह बोला, "लेकिन मैं जहां काम करता हूँ—वहां एक लड़का काम छोड़कर कल ही गया है। तुमने बहुत सही समय पर बताया।"

"तुम और काम?" मुंह फैल गया करतार सिंह का।

"क्यों? मैं काम नहीं कर सकता? विदेश में रहना कोई आसान है?"

"वह बात नहीं—तुम एक जमींदार घर से हो।—मैंने सोचा।"

"तुम तो मेरे विचारों से परिचित हो करतार। मैं जमींदारी को नहीं मानता। मैंने अपनी आंखों से किसानों का खून चूसा जाते देखा है—-गरीबों की खेती छीनी जाते—उन पर कोड़ों के प्रहार देखे हैं। यह सब जमींदार अपनी ऎय्याशी और अंग्रेजों का खजाना भरने के लिए करता है। मेरे घर में भी यह सब होता है। मुझे ऎसी जमींदारी से घृणा है करतार—जहां इंसान इसांन का ही खून पीता है। गरीबों की बहन बेटियों को अपनी हवश का शिकार बनाता है।"

करतार सिंह चुप सुन रहे थे। वह जानते थे कि जमींदारों के जुल्म कैसे होते हैं!

नयन सिंह आगे बोला, "हमारे संयुक्त प्रान्त में एक बहुत ही घिनौनी प्रथा है।"

करतार सिंह नयन सिंह के चेहरे की ओर देखने लगे।

"कोई ही जमींदार होगा जो उस घिनौनी प्रथा का पालन न करता हो। जो नहीं करते वैसे भले जमींदारों और जागीरदारों की संख्या अधिक नहीं।"

"क्या है प्रथा?"

"गांव में जिस किसी गरीब की शादी होती है उसकी नवविवाहिता को पहली रात जमींदार के साथ बितानी होती है। पहले यह बहुत अधिक होता था। १८५७ के बाद इस पर कुछ अंकुश लगा है। मज़ाल कि कोई गरीब ना नुकर कर जाए. मेरे चाचा ताऊ ने सारी ज़िन्दगी ऎसा किया। मेरे पिता देवता व्यक्ति हैं और यही कारण रहा कि गांव की जमींदारी की परवाह न करते हुए वह पटना आ गए और वहाँ व्यापार करने लगे। खानदान में कोई पहला व्यक्ति था जिसने व्यवसाय की ओर कदम रखा था। बहुत ही लानत मलानत की गई, लेकिन पिता जी टस से मस नहीं हुए. गांव वह जाते केवल फसल के समय अपना हक लेने के लिए. बाबा ने जमीन का बटवारा कर दिया था और पिता जी की ज़मीन चाचा जोतवाते थे। आधा-अधूरा मिलता, लेकिन पिता जी ना नुकर किए बिना वह ले आते। उनका स्वप्न था कि उनकी संताने पढ़ें और इसी का परिणाम है कि मैं यहाँ हूँ और बड़े भाई इंग्लैण्ड में बैरिस्टरी पढ़ रहे हैं।"

करतार अवाक चुप नयन सिंह की बात सुन रहे थे। केवल इतना ही बोले, "मुझे जमींदारों के अत्याचारों के बारे में जानकारी है नयन।"

"अब तुम समझ सकते हो कि मेरी सोच वह क्यों नहीं रही! मैं एक आम भारतीय की भांति रहना चाहता हूँ। पिता पर अधिक बोझ नहीं डालना चाहता। भाई की पढ़ाई के साथ घर में दो बहने हैं जिनकी शादी करनी है और हमारे यहाँ लड़कियों के विवाह का अर्थ तुम्हें शायद नहीं मालूम होगा।"

"नहीं।"

"अच्छा खासा दहेज देना होता है। तीन से पांच दिन बारात की आव भगत की जाती है। सामान्य लोगों के तो घर बिक जाते हैं या वे इतना कर्जदार हो जाते हैं कि सालों साल उससे मुक्त नहीं हो पाते। गांव में किसान की आस खेती से होती है। फसल अच्छी हुई तो वह कर्जदाता सेठ या जमींदार का कुछ अदा कर देता है वर्ना ब्याज पर ब्याज—।"

लंबी सांस खींची करतार ने, "लेकिन पंजाब में दहेज की बात नहीं होती। हां शादी में रौनक खूब होती है और पिता बेटी के लिए जो कर सकता है करता है, लेकिन आपके यहाँ की तरह मांगा नहीं जाता।"

"यह बुराई पता नहीं कब शुरू हुई. एक ओर देश वैसे ही अंग्रेजों और जमींदारों, जागीरदारों की लूट से परेशान है और एक ओर यह सब—-देश को इन सबसे कैसे निज़ात मिले यह हम सबकी सोच का विषय है।"

"ओह, तुम तो मेरी मन की बात कर रहे हो।"

"सच!"

"हां, लेकिन फिलहाल हमें उस मूल मुद्दे पर आ जाना चाहिए, वर्ना वह पीछे छूट जाएगा।" करतार सिंह बोले।

"हां—तुम कल सुबह साढ़े छः बजे तैयार रहना। मुझे सात बजे काम पर पहुंचना होता है।"

"क्या काम करते हो?"

"बहुत परिश्रम का काम नहीं। यहाँ से बमुश्किल एक मील की दूरी पर एक फलोद्यान है कर्नल हंट का। कर्नल भारत में ब्रिटिश सेना में थे। परिवार पहले ही यहाँ आ बसा था। पांच साल पहले समय से पहले नौकरी छोड़कर वह यहाँ आ गए. एक अंग्रेज से यह उद्यान खरीदा और अब उसीकी देखभाल में रहते हैं। बहुत प्रकार के फलों के पेड़ हैं—उन्हें फ्ल तोड़ने के लिए दो लोगों की ज़रूरत है। एक मैं हूँ और एक कल काम छोड़कर गया। जब हम वहाँ पहुंचेगें, कर्नल आ चुके होंगे। तुम्हें पाकर वह खुश होंगे। भला अंग्रेज है। वैसे भारत में पाए जाने वाले अंग्रेज भले कहाँ होते हैं, लेकिन सभी क्रूर नहीं होते। जो थोड़े भले होते हैं उनमें कर्नल हंट एक हैं। शायद इसीलिए यहाँ आ गए."

"कल सुबह मैं तुम्हारे मकान के नीचे मिलूंगा।"

"ओ.के."

और अगले दिन नयन सिंह के साथ करतार सिंह उद्यान में गए. कर्नल हंट वहाँ पहले से ही मौजूद थे। नयन सिंह ने उनसे करतार सिंह के विषय में बात की। करतार सिंह की पगड़ी देखकर कर्नल समझ गए कि किशोर सरदार है पंजाब का। पंजाब के लोगों को वह परिश्रमी मानते थे। नयन सिंह की बात सुन करतार को काम पर रखने में उन्होंने एक मिनट से भी कम समय लिया। उन्होंने करतार सिंह से कुछ भी नहीं पूछा। नयन सिंह ने उन्हें सब कुछ बता दिया था।

उस दिन के बाद से करतार सिंह नयन सिंह के साथ फलोद्यान में फल तोड़ने जाने लगे थे।

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उस दिन विश्वविद्यालय से लौटते हुए करतार सिंह ने चर्चा छेड़ते हुए कहा, "नयन, तुम्हें नहीं लगता कि अंग्रेज देश से आसानी से नहीं जाने वाले।"

"जिसे लूटने को मिल रहा हो—वह आसानी से क्यों किसी देश को छोड़ देगा। सोचो, लोग मामूली चीज छोड़ने को तैयार नहीं होते, यहाँ तो इतना बड़ा देश है।"

"क्या यह हम लोगों का दायित्व नहीं कि देश की आजादी के लिए कुछ करें।"

"यहां एक क्लब है 'नालन्दा क्लब' । मैं उसका सदस्य हूँ। संयुक्त प्रांत के छात्रों ने उसकी स्थापना की थी। हम प्रायः वहाँ एकत्रित होते हैं और देश के विषय में हर पहलू पर चर्चा करते हैं।"

"मैं भी उसका सदस्य बन सकता हूँ।"

"क्यों नहीं?"

"मैंने सोचा, शायद केवल संयुक्त प्रांत के छात्र ही उसके सदस्य बनते हों।"

"कोई भी बन सकता है। यहाँ तक कि कोई किसी भी देश का क्यों न हो, उसका सदस्य बन सकता है। हां, वह भारत विरोधी नहीं होना चाहिए. यहाँ के दो अमेरिकी छात्र भी उसके सदस्य हैं।" क्षण भर के लिए रुका नयन सिंह, "तुम यह तो जानते ही होगे कि कई अंग्रेज हैं जो भारत को आजाद देखना चाहते हैं। वे ब्रिटिश हुकूमत के कटु आलोचक हैं—भारत में भी ऎसे लोग हैं।"

"जानता हूँ।"

"इससे स्पष्ट है कि उनमें भी कुछ हैं जो मानवीय हैं।"

"बिल्कुल हैं।"

"तुम आज शाम ही चलो। क्लब के सदस्य बन जाओ."

उसी शाम करतार सिंह नयन सिंह के साथ क्लब कार्यालय गए. वहाँ पहले से ही कई छात्र एकत्रित थे। देश की राजनीतिक स्थिति को लेकर बातें चल रही थीं। अधिकांश छात्र संयुक्त प्रांत और बंगाल के थे। बंगाल के छात्र देश की स्थिति से बहुत अधिक उत्तेजित थे। नयन सिंह के साथ करतार सिंह के पहुंचने पर सब चुप हो गए.

"आओ नयन, बहुत दिनों बाद दिखे।" एक छात्र बोला।

"बस—" नयन सिंह केवल इतना ही बोला।

"तुम्हारे साथ मेहमान का परिचय करवाओ." वही छात्र बोला।

बंगाली छात्र सिगरेट का धुंआ उड़ा रहे थे। कमरे में चारों ओर सिगरेट का धुंआ उड़ रहा था। नयन सिंह कुछ बोलता उससे पहले ही करतार सिंह बोले, " भ्राजी, एक गुज़ारिश करूं? '

"एक नहीं, दस करो—सरदार जी." पहले वाला छात्र ही बोला। शेष सभी करतार सिंह के चेहरे की ओर देखने लगे। वे छः थे, जिनमें बंगाल के दो छात्र थे।

"भ्राजी, को सिगरेट पीने के लिए बाहर भेज देंगे। मुझे उलटी हो जाएगी।"

"ओह। श्योर—श्योर—" वह छात्र बोला, "तोपन बिश्वास, तुम दोनों बाहर जाकर सिगरेट खत्म करके आओ."

"ओ.के." और दोनों बंगाली छात्र बाहर निकल गए.

नयन सिंह ने करतार सिंह का परिचय दिया और क्लब की सदस्यता के लिए कहा। कुर्सी पर बैठा छात्र अनुज राय था। अनुज भागलपुर का रहने वाला था और क्लब का सचिव था। वह बाइस वर्ष का युवक था, लंबा, सुन्दर।

"नयन—यह भी पूछने की बात है। सरदार जी अभी से इस क्लब के सदस्य हुए. हमें इन जैसे किशोरों और युवकों की ही तलाश है।"

"मेरा नाम करतार सिंह ग्रेवाल है। मैं लुधियाना के एक गांव 'सराभा' का रहने वाला हूँ।"

"बुरा तो नहीं मानेगें।" अनुज राय बोला।

"बुरा क्यों मानना?" करतार सिंह ने पगड़ी संभालते हुए कहा।

"आज से आपका नाम करतार सिंह सराभा रहे तो आपको बुरा तो नहीं लगेगा।"

"मेरे लिए यह गर्व की बात है। मेरे नाम के साथ मेरे गांव का नाम जुड़े इससे बड़े फख्र की क्या बात हो सकती है भ्राजी किसी को। वैसे भी पंजाब में कुछ लोग अपने गांव का नाम अपने नाम के साथ जोड़ते हैं।"

"मुझे पता है" अनुज राय ने कहा, "तभी मैंने आपका नया नामकरण किया।"

"शुक्रिया भ्राजी."

उस दिन सामान्य बातें ही हुई क्लब में। लेकिन उस दिन के बाद करतार सिंह नियमित नालंदा क्लब जाने लगे थे।