परिपक्व स्त्री से प्रेम / पवित्र पाप / सुशोभित
सुशोभित
1988 के वारसा में कांक्रीट के दो विशालकाय अपार्टमेंटल ब्लॉक्स। दोनों की सैकड़ों खिड़कियाँ एक-दूसरे की ओर मुंह किए, अपने भीतर के अवकाशों और भरावों को एक-दूसरे से एक निश्चित फ़ासले पर क़ायम रखे हुए हैं।
एक खिड़की के भीतर एक लड़का रहता है, दूसरी के भीतर एक लड़की।
लड़का किशोरवय का ही है, पूर्व-भूमण्डलीकृत दुनिया के अठारस-उन्नीस की उम्र वाले उन टीनएजर्स में से एक, जिनके भीतर तरुणाई की पहली करवट से कोमल भावनाएँ घर कर जाया करती थीं। लड़की उससे उम्र में काफ़ी बड़ी, जिसे कि कहते हैं ‘एट द रॉन्ग साइड ऑफ़ थर्टीज़’। मैच्योर, सेक्शुअली एक्टिव, सिडक्ट्रेस। स्वतंत्र, संतुष्ट और भावुक रोमानी कल्पनाओं से पूरी तरह मुक्त। लड़का लड़की से प्रेम करता है। कोमल, निष्कवच, आहत होने को तत्पर, प्लेटोनिक प्यार। दूरबीन की आँख से लड़की को निहारता है। दोनों के बीच एक संतुलित दूरी हमेशा क़ायम रखे हुए, मानो वह दूरी ही उसके अनुराग का आलम्बन हो, उसके प्यार का देश, जो भंग हुई तो तिलिस्म टूट रहेगा।
लड़की उसके अस्तित्व से पूरी तरह अनजान है और अदृश्य की यह प्रतिज्ञा उस प्रेम की एक और अनिवार्य शर्त। लड़की आठ बजकर पैंतालीस मिनट पर घर लौटकर आती है, लड़के ने अपनी घड़ी में आठ बजकर पैंतालीस मिनट का अलार्म लगा रखा होता है। लड़की फ्रिज से ब्रेड लोफ़ निकालती है, लड़का अपनी डबलरोटी पर बटर लगाता है। लड़की दूध के घूंट के साथ रोटी के टुकड़ों को निगलती है, लड़का इस रात्रिभोज में उसके साथ शिरक़त करता है- दूरी की अपनी प्रतिज्ञा अक्षुण्ण रखे हुए- जैसे कौमार्य।
लड़की प्रेम-सम्बंधों में लिप्त रहती है। पुरुष उसके कमरे में आते-जाते रहते हैं। संसर्ग के अंतरंग क्षण में लड़का दूरबीन से आँखें हटा लेता है। ईर्ष्या या जुगुप्सा से नहीं, कामना से भी नहीं, बस वह इस दृश्य से ख़ुद को परे हटा लेना चाहता है, अपनी अदृश्यता के क्षितिज पर ठिठके हुए।
यह लड़का पोस्ट ऑफ़िस में काम करता है। वह लड़की के नाम फ़र्ज़ी मनीऑर्डर नोटिस भेजता है, ताकि उसकी एक झलक देख सके। वह उसके घर अलस्सुबह दूध की बोतल देने आता है ताकि उसकी उनींदी आँखों को निहार सके। वह उसे फ़ोन लगाता है और दम साधे उसकी आवाज़ सुनता रहता है। वह डाकघर से उसकी चिट्ठियाँ ग़ायब करता रहता है, लेकिन उन्हें पढ़ता नहीं। एक दिन लड़की घर आती है और खिड़की में बैठ रोने लगती है। लड़के के सब्र का बांध टूट जाता है। अगली सुबह वह उसके पास जाता है और उससे पूछ बैठता है : ‘तुम कल रो क्यों रही थीं?’ लड़की अचरज से कहती है : ‘तुम्हें कैसे मालूम?’ लड़का जवाब देता है, ‘मैं तुम पर नज़र रखता हूँ।’ लड़की पूछती है : ‘क्यों?’ लड़का कहता है : ‘क्योंकि प्यार है तुमसे।’
एक सेक्शुअली मैच्योर औरत के लिए एक टीनएजर लड़के की कोमल भावनाओं का केंद्र बन जाना नया कौतुक। एक नए क़िस्म का एडवेंचर, पके हुए पुरुष प्रेमियों से अलग। वह इस कौतुक का मज़ा लेती है और उसके साथ खेलती है। उससे बात करती है, उसे चाय पर बुलाती है, उसके बारे में तहक़ीक़ात करती है। लड़का हर बात का उत्तर देता रहता है, उस पर से नज़रें हटाए बिना, उससे पूरी तरह मंत्रमुग्ध।
लड़के का नाम : तोमेक। लड़की का नाम : माग्दा। ये दोनों दो अलग-अलग खिड़कियों में ही नहीं, दो अलग-अलग दुनियाओं में रहने वाले, और उनके बीच दूरी केवल अलभ्यता और असम्भवता की ही नहीं, उनकी दिशाएँ भी समूची अलग-थलग। लड़की उससे पूछती है, ‘तुम मुझे चूमना चाहोगे?’ लड़का इनकार कर देता है। लड़की उससे कहती है, ‘तुम मुझे छूना चाहोगे?’ लड़का इनकार कर देता है। वह इस गुत्थी को समझ नहीं पाती। बहुत कैजु़अल तरीक़े से स्वयं को प्रस्तुत करते वह उसके समक्ष प्रणय प्रस्ताव रखती है। लड़का इससे आहत होकर वहाँ से चला जाता है। दूरी की उसकी पवित्र प्रतिज्ञा उसके हृदय की सम्राज्ञी ने ही एक बेख़याल बेरहमी से तोड़ दी थी।
लड़का घर जाकर अपनी कलाइयाँ काट लेता है। लड़की को गहरी ठेस पहुँचती है। तोमेक और माग्दा के बीच उम्र के तजुर्बों से आए बेमाप फ़ासले अब भी क़ायम हैं, लेकिन अब इसके बाद लड़की उस जगह पर खड़ी होकर उसको देखने की कोशिश करने लगती है, जहाँ से वह उसे देखता रहता था। वह उसके रूम पर जाती है और उसकी दूरबीन से अपने ख़ाली कमरे को निहारती है। पर्सपेक्टिव उलट जाते हैं, दुनियाएँ अपनी जगह बदल लेती हैं। वह जानती है कि वह इस जगह पर पहले रह चुकी है- कोमल भावना की इस सुदूर करवट पर- शायद स्वयं अपनी सुदूर किशोरावस्था में कभी- और दोनों में से यह उसकी ही अधिक ज़िम्मेदारी है कि वह यह दूरी लाँघकर उसके पास आए।
और तब, दूरबीन से अपने ख़ाली कमरे को देखते हुए वह कल्पना करती है कि वह खिड़की में अकेली बैठी रो रही है लेकिन इस बार लड़का उसके पास आता है और उसके बालों को सहलाने लगता है। वह पलटकर देखती है और मुस्करा देती है। उसकी मुस्कराहट लड़के के प्यार का मुक़ाम है, उसके साथ शिरक़त का एक शऊर। इस मुक़ाम पर पहुँचने लड़की को पीछे लौटकर आना ही होता है, उम्र के तक़ाज़ों को निरस्त करते, छत्तीस को अठारह बनाते हुए।
धीरे-धीरे फ़िल्म फ़ेडआउट हो जाती है।
फ़िल्म का नाम मुस्तैदी से नोट कर लीजिये : ‘अ शॉर्ट फ़िल्म अबाउट लव।’ और फ़िल्मकार हैं : क्रिष्तॉफ़ केज़्लॉव्स्की।