पहचान / भाग 18 / अनवर सुहैल
जब यूनुस ड्यूटी से घर लौटा, उस समय दिन के बारह बजे थे।
खाला घर में नहीं थीं। हस्बेमामूल खाला पड़ोसियों के घर बैठने गर्इ हुर्इ थीं।
सनूबर लगता है स्कूल नहीं गर्इ थी और किचन में चावल पका रही थी।
यूनुस आजकल सनूबर से ज्यादा बातें नहीं करता। बस, काम भर की बातें। वह सीधे आँगन में पानी की टंकी की तरफ हाथ-मुँह धोने चला गया।
गमछे से मुँह पोंछते हुए वह पहले कमरे में चला गया। पर्दा उठा हुआ था। बाहर से रोशनी अंदर आ रही थी। शायद बिजली नहीं थी, वरना इस घर में टीवी कम ही बंद रहता है।
यूनुस तख्त पर लेट गया।
उसने आँखें बंद कर लीं।
उसके माथे पर गहरी लकीरें थीं।
सनूबर कब आकर दरवाजे के पास खड़ी हुर्इ उसे पता न चला। जब सनूबर ने दरवाजा खोला तो चूँ... की आवाज से उसकी तंद्रा भंग हुर्इ।
उसने सनूबर के चेहरे को ध्यान से देखा।
उसे लगा कि सनूबर उससे कुछ कहना चाह रही है।
यूनुस उठ बैठा।
उसने सनूबर के पलटे हुए होंठ और भारी पलकों में कैद उदास आँखों को बड़ी हसरत से देखा। कितना प्यार था सनूबर से उसको।
सनूबर तख्त के पास कुर्सी पर बैठ गर्इ।
यूनुस को लगा कि उसके दिल की गहराइयों से आवाज गूँजी हो - 'सनूबर...!'
सनूबर कुछ न बोली।
'सनूबर, तुम्हें मालूम है, तुम्हारे साथ धोखा हो रहा है।'
यूनुस की बहकी-बहकी बातें सुनकर सनूबर डरी हुर्इ लग रही थी।
'डरो नहीं, ये सच है... तुम्हारे साथ तुम्हारी मम्मी एक खेल खेल रही हैं।'
सनूबर ने अपने कान पर हाथ रख लिए - 'क्या बक रहे हो, यूनुस...?'
'सच सनूबर, तुम्हें जमाल साहब से हुशियार रहना चाहिए। वह बड़ा धोखेबाज है। मैं कैसे कहूँ कि जमाल अंकलवा कितना कमीना है।'
तभी दीवाल घड़ी टनटनार्इ - 'टन्न!'
सनूबर ने घड़ी देखी - 'एक बज गए, मम्मी आती होंगी।'
यूनुस की समझ में न आ रहा था कि बीती रात की दास्तान को वह किन लफ्जों में बयान करे।
फिर भी हिम्मत करके वह बोला - 'सनूबर! वो जमाल सहबवा तुमसे हमदर्दी का दिखावा करता है और जानती हो वो कितना कमीना है कि सुनोगी तो... अच्छा किसी से बताओगी तो नहीं न!'
सनूबर इतने में झुँझला गर्इ।
'नहीं बाबा, किसी से नहीं कहूँगी, तुम बताओ तो सही।'
'तो सुनो, कल रात मैंने अपनी आँखों से देखा। अल्ला-कसम, कलाम-पाक की कसम जो झूठ बोलूँ मुझे मौत आ जाए। मैंने जमाल साहब और खाला को कल रात एक साथ एक बिस्तर पर देखा है सनूबर... तुम्हें विश्वास हो या न हो ये सच है सनूबर...'
सनूबर ने अपने कान बंद कर लिए।
वह रोने लगी।
'कल रात वो हालात देखने के बाद कहाँ सो पाया हूँ, सनूबर!'
यूनुस का मन तो हल्का हुआ लेकिन सनूबर तो जैसे बेजान हो गर्इ।
खाला आर्इं तो यूनुस आँखें बंद किए सोने का नाटक करता रहा।
सनूबर अपने कमरे में लेटी रही।
खाला यूनुस के पास कुर्सी पर बैठ कर चीखीं - 'कहाँ मर गर्इ कुतिया...'
सनूबर ने जवाब न दिया तो उठ कर अंदर गर्इं और सनूबर को झिंझोड़कर उठाते हुए बोलीं - 'कैसे पसरी है महारानी, खाना-वाना बनेगा या आज हड़ताल है? इसीलिए उनसे कहती हूँ कि लड़कियन को पढ़वाइए मत, लेकिन सुनें तब न! आजकल अपने जमाल अंकल की शह पाकर हरामजादी जबान लड़ाना सीख गर्इ है।'
सनूबर कुछ न बोली और उठ बैठी।
यूनुस ने भी आवाज सुनकर नींद खुलने का अभिनय किया।
तब तक चिट्टे-पोट्टे स्कूल से घर आ गए और संयोग से लाइट भी आ गर्इ। छुटकी जमीला ने बस्ता यूनुस की गोद पर पटककर टीवी ऑन किया।
टीवी से चिपककर घंटों वह कार्टून प्रोग्राम देखा करती है।
यूनुस ने देखा कि सनूबर गाली खाकर भी न उठी तो खाला स्वयं किचन में घुसीं।
खाना तो वैसे तैयार ही था।
बस दाल छौंकना बाकी था।
दुपहर में सब्जी बनती न थी। दाल-भात अचार वगैरा के साथ खाया जाता। खालू 'हरियर मिर्च' के साथ खाना खा लेते थे।
दाल छौंक कर खाला ने यूनुस को आवाज दी।
यूनुस उठा और किचन के पास दालान में अपनी सोने की जगह नंगे फर्श पर बैठ गया।
सनूबर वैसे ही गुमसुम लेटी रही और खाला के संग यूनुस ने खाना खा लिया।
यूनुस जानता था कि सनूबर इतनी आसानी से उसकी बात पर विश्वास करेगी नहीं। वह अपने तर्इं छानबीन जरूर करेगी।
पता नहीं उसने क्या छानबीन की और उससे उसे क्या हासिल हुआ लेकिन अगली सुबह यूनुस ने अपने बिस्तर पर अपनी बगल में गर्माहट पार्इ तो जाना कि सनूबर उसकी बगल में लेटी है।
वह घबरा कर उठ बैठा।
सनूबर ने उसका हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचा।
यूनुस ने पहले कमरे और अंदर वाले कमरे की तरफ देखा। आहट लेने की कोशिश की। दीवाल घड़ी पाँच बार टनटनार्इ।
इसका मतलब सभी सो रहे हैं।
खालू तो ड्यूटी गए हुए हैं।
वह सनूबर के बगल में लेट गया।
सनूबर ने उसे बाँहों में भर लिया।
पतली-दुबली सनूबर का नर्म-गुनगुना आलिंगन...
सनूबर उसके कानों में फुसफुसार्इ - 'मुझे भगा कर ले चलो इस जहन्नुम से यूनुस...!'
उस दिन उसे एहसास हुआ कि वह कितना कमजोर आदमी है।
उस दिन उसने फैसला किया कि अब वह अपने लिए एक नर्इ जमीन तलाशेगा...
एक नया आसमान बनाएगा...
एक नए सपने को साकार करेगा...