पहचान / भाग 3 / अनवर सुहैल

Gadya Kosh से
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कल्लू के गाँव के नीचे एक नाला बहता था। दर्रा-नाला। खदान से निकला पानी और कालोनी का निकासी पानी नाले में साल भर बहता। दर्रा-नाले के इर्द-गिर्द एक बस्ती आबाद हो गर्इ थी। यह ठेकेदारी मजदूरों की बस्ती थी। इस आबादी का नाम सफेदपोश लोगों ने आजाद नगर नाम दिया था।

आजाद नगर नाम के अनुसार ये बस्ती भारतीय दंड विधान की धाराओं, उपधाराओं आदि पाबंदियों से आजाद थी। इस बस्ती को समस्त वर्जनाओं से आजादी मिली हुर्इ थी। आजाद नगर में प्रचुरता से उपलब्ध था - शराब, शबाब, कबाब, जरायम-पेशा लोग, भूख-बीमारी-बेकारी और सट्टा-जुआ के अड्डे।

सभ्य-जन इधर का रुख न करते, वे उसे पाप-नगरी कहते। रावण की लंका और नर्क का द्वार कहते।

इस नर्क के निवासी थे तमाम मेहनतकश...

ये मेहनत-कश कार्ल-मार्क्स के देसी संस्करण वाले तमाम मजदूर संगठनों की निगाह से उपेक्षित थे। उनकी खुशहाली के लिए उन मजदूर संगठनों के पास कोर्इ कार्यक्रम न था। उन लोगों के लिए कोर्इ मानवाधिकार आयोग न था। कोर्इ टाउन-प्लानिंग कमेटी न थी। कोर्इ अस्पताल, कोर्इ नर्सिंग होम न था। उनके लिए कोर्इ रिक्शा-स्टेंड या बस-अड्डा न था। उनके बच्चों के लिए कोर्इ स्कूल न था। उनके लिए किसी तरह की औपचारिक या अनौपचारिक शिक्षा की कोर्इ व्यवस्था न थी।

उनकी आध्यात्मिक उन्नति के लिए कोर्इ मौलवी, पंडित या पादरी न था।

उनमें ज्यादातर लोग कोयले के ढेर से पत्थर-शेल छाँट कर अलग करने वाले मजदूर थे। खदान चलाने के लिए भवन, नगर, सड़कें और विशालकाय वर्कशाप आदि निर्माण के काम में नियोजित सैकड़ों रेजा मजदूर और मिस्त्री। विद्युत, यांत्रिकीय, सिविल आदि काम के लिए कुशल-अकुशल ठेकेदारी कामगार। मेहनत-मशक्कत, नैन-मटक्का से लेकर गाने-बजाने तक में कुशल युवतियाँ।

आजाद नगर में कुछ छोटे-मोटे ठेकेदारों ने भी अपने आशियाने सजाए हुए थे।

पुलिस थाने के रिकार्ड में ये बस्ती तमाम अपराधों की जन्मदाता के नाम से मशहूर थी। इसलिए पुलिस यहाँ अक्सर दबिश करती और प्रकरण बनाया करती, लेकिन गलत काम पूरी तरह से बंद नहीं करवाती। लोग कहते कि यदि आजाद नगर सुधर गया या उजड़ गया तो फिर पुलिस विभाग की कमार्इ बंद हो जाएगी।

कल्लू आजाद नगर के उस हिस्से का नियमित ग्राहक था, जहाँ दारू और रूप का सौदा होता था।

ऐसे ही गप्प के दौरान यूनुस ने एक किशोरी के बारे में जानना चाहा, जो साइकिल पर दनदनाती फिरती है। लोग कहते हैं कि वह थानेदार और एक बड़े ठेकेदार की रखैल है।

कल्लू ने यूनुस की तरफ अविश्वास से देखा - 'का गुरू, तुम भी इस चक्कर में रहते हो?'

यूनुस क्या जवाब देता - 'तो क्या, मैं आदमी नहीं हूँ का?'

बस, फिर क्या था।

कल्लू एक दिन यूनुस को आजाद नगर ले गया।

पहले तो यूनुस ने ना-नुकुर की। उसे डर था कि कहीं ये बात खालू या खाला तक न पहुँचे। उसकी गत बन जाएगी। यदि सनूबर उसकी ये हरकत जान गर्इ तो जिंदगी भर माफ न करेगी। उसे कितना प्यार करती है सनूबर।

अरे, जब सनूबर की चचेरी बहन जमीला ने यूनुस को अपने हुस्न के जाल में फँसाना चाहा था तो सनूबर ने ही उसे बचाया था।

जमीला यूनुस से चार-पाँच साल बड़ी होगी। वह विवाहित थी। उस समय उसके बच्चा न हुआ था। एकदम पके आम की तरह गदरार्इ हुर्इ थी।

जमीला मैके आर्इ तो खाला से मिलने चली आर्इ। जमीला का शौहर खाड़ी देश कमाने गया था। जमीला के पास पैसे तो इफरात थे। इसीलिए वह दिल खोल कर खर्च करती थी। ऐसे मेहमान किसे बुरे लग सकते हैं।

जमीला की खाला से खूब पटती। वे जब भी मिलतीं, जाने क्या बातें करके खूब हँसतीं, ज्यों बचपन की बिछड़ी पक्की सहेली हों।

जमीला की नाक में पड़ी सोने की लौंग में एक नग गड़ा था। रोशनी पड़ने पर वह खूब चमकता। उसकी चमक से जमीला की आँखें दमकने लगतीं। यूनुस जब भी जमीला की तरफ देखता, उसकी नाक की लौंग की चमक के तिलस्म में उलझ कर रह जाता।

शायद इस बात से जमीला वाकिफ थी।

यूनुस ने महसूस किया कि जमीला उसकी तरफ कुछ अधिक झुकाव रखती है। ऐसा पहले न था। अब शायद यूनुस किशोरास्था से जवानी की ओर तेजी से कदम बढ़ा रहा था। काम-धंधा करने से उसके जिस्म में गजब की कशिश आ गर्इ थी। था भी यूनुस पाँच फीट सात इंच का गबरू जवान। हल्की-हल्की मूँछ और बाल संजय दत्त जैसे। यूनुस संजय दत्त का फैन था।

यूनुस नाइट-शिफ्ट खट के घर लौटा तो घड़ी में सुबह के दस बज रहे थे। रात पाली में पेलोडर चलाने के बाद यदि गाड़ी में कुछ खराबी आ जाए तो उसे वर्कशॉप लाकर खड़ा करना होता था। फिर गाड़ी में जो भी ब्रेक-डाउन हो उसे मेकेनिक को बतलाकर मरम्मत करवाना रात-पाली के आपरेटर का काम था। वहाँ का सुपरवाइजर एक मद्रासी था। बहुत कानून बतियाता था। सो इस प्रक्रिया में देर तो हो ही जाती।

जब वह घर पहुँचा उस समय खालू ड्यूटी गए हुए थे। खाला कहीं पड़ोस में गपियाने गर्इ थीं। गोद के बच्चे छोड़कर पढ़ने वाले सभी बच्चे स्कूल जा चुके थे।

यूनुस ने दरवाजा ढकेला तो वह खुल गया।

सन्नाटा देख वह बैठकी में रखे तखत पर बैठ गया कि आहट सुनकर कोर्इ बोलेगा। हो सकता है कि खाला गुसलखाने में हों।

लेकिन कुछ देर तक कोर्इ खट-पट नहीं हुर्इ तो वह उठा। रसोर्इ से होकर आँगन की तरफ गया। आँगन में पानी की टंकी थी, जहाँ परिवार के मर्द या फिर बच्चे नहाते-धोते थे।

हाथ-मुँह धोने वह टंकी के पास जा पहुँचा।

अभी वहाँ पहुँच कहाँ पाया था कि उसने जो दृश्य देखा तो उसके होश उड़ गए।

जमीला टंकी के पीछे खड़े-खड़े नहा रही थी।

उसकी कमर से ऊपर का हिस्सा खुला हुआ था।

साँवला जवान जिस्म...

साँचे में ढला बदन...

यूनुस ने उल्टे पाँव भागना चाहा, लेकिन तभी उसकी नाक की लौंग का नग चमचमाने लगा। उसकी चमक से निकली किरनों की रस्सी से यूनुस के पाँव बँध से गए थे।

आहट पाकर जमीला एकबारगी चौंकी, फिर खिलखिलाकर हँस पड़ी। उसने अपने जिस्म को छुपाया नहीं बल्कि दो मग पानी और जिस्म पर डाल लिया।

यूनुस के होश उड़ गए।

उसने जाना कि जमीला की हँसी में खुला आमंत्रण था।

जमीला एक चैलेंज की तरह उससे टकरार्इ थी।

घबराहट में यूनुस घर से निकल भागा, वह रुका नहीं।

वह तब तक न लौटा जब तक उसे विश्वास न हो गया कि अब घर में खाला और बच्चे आ गए होंगे।

दोपहर में जब वह आँगन में खटिया डाले धूप में सो रहा था, कि उसे लगा उसके ऊपर कोर्इ सोया हुआ है। वह जमीला थी, जो मौका पाकर यूनुस को छेड़ रही थी।

जमीला की छातियाँ उसकी छाती से आ लगी थीं।

यूनुस की साँस अटकने लगी।

जमीला के होंठ यूनुस के चेहरे पर अपना कमाल दिखाने लगे।

जमीला उसके कान में फुसफुसा कर गा रही थी -

'धीरे धीरे प्यार को बढ़ाना है

हद से गुजर जाना है...'

क्या यूनुस को उस समय तक 'हद से गुजर जाने' का मतलब पता चल पाया था?

ऐसा नहीं कि यूनुस कोर्इ संत था लेकिन वह उस समय सनूबर की आँखों की झील में डुबकियाँ लगा रहा था। सनूबर के पल्टे हुए होंठ जब मुस्कराते तो जैसे यूनुस के जेब खनखनाने लगते थे। यूनुस एकाएक रर्इस आदमी में बदल जाता था।

उसे सनूबर छोड़ और कोर्इ दूसरी लड़की कैसे प्यारी होती?

एक दिन उसने सनूबर से जमीला की हरकतों के बारे में बताया तो सनूबर खूब हँसी। उसने यूनुस को चिढ़ाया कि वह कैसा मर्द-बच्चा है। यहाँ तक कि सनूबर ने जमीला के साथ मिलकर उसकी हँसी भी उड़ार्इं थी।

यूनुस अपने प्यार के साथ बेवफार्इ नहीं करना चाहता था।

इस घटना के बाद उसने अपने लिए सनूबर के दिल में और ज्यादा जगह बना ली थी।