पहचान / भाग 7 / अनवर सुहैल
खालू जब तक बाहर रहते, खाला ज्यादातर अपने मैके में रहती थीं।
खालू के गाँव में पीने का पानी की तकलीफ थी। निस्तार के लिए तो गाँव के बाहर तालाब मे लोग पहुँचते थे। गाँव के बड़े गृहस्थ पटेल के घर एक कुआँ था। उसमें साल भर पानी रहता। खालू की फौज की कमार्इ से खालू की वृद्धा माँ ने एक कुआँ खुदवाया था, जिसमें जेठ महीना छोड़ साल भर पानी रहता था। बुढ़िया ने सोचा था कि बहू आएगी तो उसे आराम रहेगा।
लेकिन बहू को कहाँ थी सास की चिंता।
वह तो सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए जिंदा थी।
खालू छुट्टियों पर आते तो एक-दो दिन गाँव में रहते, फिर उनका मन उचट जाता। फौज में परिवार की कमी तो खलती है, वरना फौज जैसा सुख और कहाँ?
खालू किसी न किसी बहाने बूढ़ी माँ को मना कर अपने ससुराल चले जाते। वहाँ जाकर खाला के मोहपाश में ऐसा बँधते कि फिर उन्हें दीन-दुनिया का होश न रहता। वे ये भी भूल जाते कि उन्हें फौज में वापस भी जाना है।
खाला के रेशमी रूप का जादू और समर्पण की पेशेवराना अदा का मर्म खालू कहाँ समझ सकते थे। अकाल-ग्रस्त आदमी भूख की शिद्दत में कहाँ तय कर पाता है कि दिया गया खाना जूठा है या बासी। वह तो ताबड़-तोड़ पेट की आग बुझाने में जुट जाता है।
खालू की बूढ़ी माँ इसी गम में असमय मर गर्इं कि उस रंडी, छिनाल बहुरिया ने उसके बेटे पर जाने कैसा जादू कर दिया है। उसके इकलौते बेटे पर उस जादूगरनी ने ऐसा टोना किया कि वह अपनी बूढ़ी माँ को एकदम भूल गया।
सनूबर का जन्म उसके ननिहाल में हुआ।
कर्इ दिन बाद बूढ़ी सास को सूचना मिली कि वह दादी बन गर्इ हैं।
उनकी बहू ने एक लड़की पैदा की है। ये खबर पाकर बुढ़िया ने अपना माथा पीट लिया था।
फिर भी लोक-मर्यादा का लिहाज कर रिश्ते के एक भतीजे को साथ लेकर वह बहू के मैके गर्इं।
खाला छठी नहा चुकी थीं।
वे आँगन में खाट पर बैठी सनूबर के बदन की मालिश कर रही थीं।
बुढ़िया सास को देख उनका माथा ठनका।
फिर भी उन्होंने सलाम किया और दोनों को पैरा से बने मोढ़े पर बिठाया।
घर में उनके भार्इ न थे। केवटिन भाभी भर थी।
खाला ने उन्हें आवाज लगार्इ।
खालू की बुढ़िया माँ ने उन्हें किसी को बुलाने से मना कर दिया।
वैसे भी उस घर में वे खाना-पानी नहीं पी सकती थीं, क्योंकि खाला के भार्इ ने एक कुजात को अपनी ब्याहता बनाकर रखा है।
बस उन्होंने इतना ही कहा कि एक बार नवजात बच्ची को प्यार करेंगी और फिर चली जाएँगी। हाँ, यदि यहाँ कोर्इ तकलीफ हो तो बहू भी चाहे तो साथ चल सकती है।
सनूबर अपनी दादी की गोद में आकर खेलने लगी।
दादी ने अपने भतीजे से पूछा - 'किस पर गर्इ है बच्ची?'
भतीजा कैसे निर्णय लेता कि बच्ची किस पर गर्इ है।
उसे तो बच्ची सिर्फ रूई का गोला लग रही थी।
हाँ, फिर भी उसने उस बच्ची के चेहरे की कुछ विशेषता बुढ़िया को बताने लगा।
तभी घर में ममदू पहलवान आ गया।
भतीजे ने जो ममदू पहलवान को देखा तो उसे ऐसा लगा कि जैसे बच्ची का चेहरे की बनावट कहीं उस पहलवान से तो नहीं मिलती है?
भतीजा अभी नादान था।
उसने ऐसे ही कह दिया कि इन चचा जैसी तो दिखती है ये लड़की।
खाला के चेहरे का रंग उड़ गया।
ममदू पहलवान के तो जैसे पैरों तले जमीन निकल गर्इ।
भतीजे को क्या पता था कि उसने क्या कह दिया?
बस, फिर क्या था। बुढ़िया सास ने अपने अंधेपन को कोसा और भतीजे से कहा कि तत्काल वापस चले।
उन्होंने वहीं अपनी बहू को खूब खरी-खोटी सुनार्इ।
बेटे को सारी बात बताने का संकल्प लिया।
वह इतना नाराज न होतीं यदि उनकी छिनाल बहू ने पोता जना होता या उस नवजात शिशु के नैन-नक्श ददिहाल या ननिहाल किसी पर होते।
बुढ़िया माँ हमेशा ताने दिया करतीं कि उसके बेटे के साथ उस चुड़ैल बहू ने छल किया है। वह बदचलन है। वह बेवा बिचारी क्या करें, उस चुड़ैल ने तो उनके बेटे पर जादू किया हुआ है। उसके गबरू जवान बेटे को नजरबंद करके रखा हुआ है।
लेकिन ये भी सच है कि खालू को इतनी संतानों का पिता कहलाने का गौरव खाला ही ने तो उपलब्ध कराया है।
इसी बात पर वह अपनी सास को प्रताड़ित किया करती - 'अगर तुम्हारे बिटवा जैसे मउगे-फउजी के भरोसे रहती तो इस खानदान में र्इंटा-पथरा भी न हुआ होता। फिर देखते कैसे चलता तेरा वंश!'
फौज का खाया-पिया जिस्म खाला के आगे बौना हो जाता।
नतीजतन खालू जिस बच्चे को सामने पाते, पीट डालते।
यूनुस सब जानता समझता था। वह ये भी जानता था कि दुधारू गाय की लात भी प्यारी होती है। खाला जो खालू की चोरी और कभी सीनाजोरी में अपने गरीब खानदान वालों की माली मदद करती हैं, उसके आगे लोग उनके गुनाह नजरअंदाज कर देते हैं।
इसी तरह खाला सभी की कोर्इ न कोर्इ मजबूरी जानती। उनसे जुड़े तमाम लोग उनके एहसानों के बोझ तले दबे हुए हैं।
खालू को खाला एक पालतू जानवर बना कर रखतीं।
खालू जब कभी गुस्साते तो बच्चों को मारते-पीटते। खाने की थाली पटकते। तमतमाए खालू घर से निकल जाते। लेकिन उनका गुस्सा ज्यादा देर तक टिकता नहीं। जल्द ही वह खाला की लल्लो-चप्पो करने लगते।