प्रणय निवेदन / पवित्र पाप / सुशोभित

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प्रणय निवेदन
सुशोभित


प्रणय निवेदन पुरुष का स्वाभाविक अधिकार है।

उतना ही जितना कि उस निवेदन को अस्वीकार कर देना स्त्री का अधिकार।

अलिखित शर्त यही है कि पुरुष की वह प्रणय याचना सुघड़, सुधीर, संयत और इसके बावजूद ऐंद्रिक, काव्योक्त और तीक्ष्ण हो! बहुधा तो पुरुष को स्पष्ट शब्दों में स्वयं को व्यक्त करने की भी आवश्यकता नहीं होती, स्त्री उसके मन की भाषा पहले ही बांच लेती है।

स्त्री अपनी पीठ से भी देख सकती है, अपनी त्वचा से भी सुन सकती है, पुरुष की कामनाओं को परखने के लिए उसके पास पांच से अधिक इंद्रियां होती हैं।

तब भी वह जतलाएगी नहीं कि वह बूझ गई है। वह प्रतीक्षा करेगी प्रणय निवेदन की।

प्रणय निवेदन कितना सुंदर है, स्त्री की कल्पनाओं में यह भी सम्मिलित होता है, रतिकेलि और संसर्ग तो ख़ैर होते ही हैं।

स्त्री कहती है- मैं जानती हूं तुम क्या चाहते हो। किंतु उसे ऐसे कहकर दिखलाओ कि रीझ जाऊं।

कि सुख की प्रस्तावना में तुम्हारा यह दायित्व तो है, तुम्हारे पुरुषार्थ का यह निकष तो है। मुझे लुभा सको तो मानूं!

और तब, अगर पुरुष धीरोदात्त है, नायक है, सुशील है, तो स्त्री के समर्पण को अर्जित करने का यत्न करता है, ठीक वैसे ही, जैसे किसी पुरुष को करना चाहिए।

स्त्री और पुरुष के बीच घटित होने वाली चाहना की यह चेष्टा इतनी सुंदर है कि यह काव्य रचती है, शिल्प रचती है, संगीत रचती है, सृष्टि की संसृति वैसे ही हुई है, ब्रह्मांड का विस्तार इसी रीति से सम्भव हुआ है।

पुरुष को स्त्री की सम्मति के प्रवेशद्वार पर खड़े होकर प्रतीक्षा करना होती है, जितनी अनुमति वह देती है, उतना ही उसके भीतर प्रवेश करना होता है। इस नियम का उल्लंघन सम्भव नहीं।

हर वो बलात् चेष्टा, जो इस मर्यादा को लांघती है, पाप है। नैतिक अर्थों में नहीं, बल्कि सौंदर्यशास्त्रीय अर्थों में।

किसी भी रीति का अनधिकार प्रवेश बलात्कार की ही पूर्वपीठिका है।

स्त्री का हृदय जीते बिना उसकी देह को अर्जित कर लेना अपराध है, बंधु।

और कोई भी पाप, कोई भी अपराध, कोई भी यौनाचार, व्यभिचार, बलात्कार सांस्थानिक होने भर से सदाचार नहीं हो जाता। प्रेम और सहमति का विकल्प नहीं। मंत्रोच्चारों से रचा गया सम्भ्रम उस विकल्प की पूर्ति नहीं कर सकता।

सृष्टि के कुछ नियम अकाट्य हैं और रहेंगे।

सृष्ट के कुछ रहस्य अभेद्य हैं और रहेंगे।

स्त्री का हृदय अविजित है तो है।

लौकिक साधनों से उसके भीतर प्रवेश की कुंजी मिल सकती तो आज हाट में बेभाव बिक रहे होते प्रेम, कामना, रतिचेष्टा और परम संतोष की आदिम कंदरा।